(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
अपील संख्या 479/2007
(जिला मंच बहराइच द्वारा परिवाद सं0 17/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 08/02/2007 के विरूद्ध)
1- जनरल मैनेजर, नार्थ इस्टर्न रेलवे, गोरखपुर।
2- असिस्टेन्ट इंजीनियर, नार्थ इस्टर्न रेलवे, बहराइच।
3- वर्क सुपर वीजर नार्थ इस्टर्न रेलवे, चिलवरिया, जिला बहराइच।
4- स्टेशन मास्टर, रेलवे स्टेशन, चिलवरिया, जिला बहराइच।
…अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
1- पारस नाथ पाण्डेय पुत्र श्री तीरथ ।
2- श्रीमती उर्मिला विधवा श्री ईश्वर नाथ पाण्डेय।
निवासीगण- इमलिया बाजार, जिला बहराइच।
.........प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:
1. मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठा0 न्यायिक सदस्य।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 सिंह।
दिनांक : 31-12-2014
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठा0 न्यायिक सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
अपीलकर्ता ने प्रस्तुत अपील परिवाद सं0 17/2003 पारस नाथ बनाम यूनियन आफ इंडिया, जिला पीठ बहराइच के निर्णय/आदेश दिनांक 08/02/2007 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है, जिसमें की विद्वान जिला पीठ ने परिवादीगण का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया कि वह विपक्षीगण के कर्मचारी की लापरवाही से दिनांक 19/08/2001 को होने वाली इस दुर्घटना में आई चोटों से मृतक की मृत्यु होने की क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादीगण को मु0 4,00,000/ रूपये की धनराशि अदा करे। विपक्षीगण, परिवादीगण को मु0 1,000/ रूपये वाद व्यय के रूप में तथा मु0 1,000/ रूपये की धनराशि शारीरिक-मानसिक परेशानी के रूप में भी अदा करें। देय राशि की अदायगी दो माह के
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अंदर न किये जाने पर दो माह की अवधि के पश्चात की तिथि से उपरोक्त समस्त धनराशि पर 5 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देय होगा।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादीगण का पुत्र ईश्वर नाथ दिनांक 19/08/2001 को पयागपुर से बहराइच सवारी गाड़ी नं0 193 अप से टिकट नं0 84237 के द्वारा यात्रा कर रहा था। चिलवरिया स्टेशन पर लगभग 17:52 बजे पानी पीने के लिए वह नीचे उतर रहा था कि ट्रेन बिना सीटी बजाये चल दी जिससे उसका पांव पावंदान से फिसल गया और वह प्लेटफार्म और ट्रेन के बीच में पटरी पर गिर गया जिससे वह घायल हो गया और उसका हाथ कट गया। स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन चिलवरिया ने मृतक को चिकित्सा हेतु जिला अस्पताल भेजा और चिकित्साधिकारी, बहराइच के लिए एक पत्र लिखा। मृतक के पिता को इस घटना की सूचना मिली। मृतक रेलवे विभाग की उपेक्षा के कारण शीर्घता से बहराइच नहीं पहुंच पाया और जब मृतक के पिता एवं अन्य लोग प्राइवेट टेम्पो से जिला चिकित्सालय ला रहे थे तो चिलवरिया स्टेशन से निकलकर गोण्डा-बहराइच सड़क मार्ग पर उसकी मृत्यु हो गई। यह दुर्घटना ट्रेन चालक की लापरवाही के कारण हुई है। परिवादीगण ने विपक्षीगण से संपर्क किया किन्तु उन्होंने कोई आर्थिक सहायता नहीं दी, अत: यह वाद प्रस्तुत किया गया।
विपक्षीगण ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह बताया है कि मृतक के घायल होने पर स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन चिलवरिया वहां गये और उपचार हेतु मेमो के साथ उसको जिला अस्पताल बहराइच भेज दिया। यह प्रकरण केवल मात्र रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता था तथा यह परिवाद धारा 13, 15, 24 व 28 रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 से बाधित है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 सिंह के तर्कों को सुना एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने 1 (2007) सी.पी.जे. 160 (डी.बी.) मा0 बाम्बे हाईकोर्ट यूनियन आफ इंडिया बनाम अशोक श्ांकर सरकले व अन्य एवं 1 (2002) सी.पी.जे. 34 (एन.सी.) माननीय राष्ट्रीय आयोग, सथर्न रेलवे बनाम एम0 चिदम्बरम पर विश्वास व्यक्त करते हुए यह तर्क दिया कि है रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट की धारा 13 (1-ए) में यह प्राविधान दिया गया है कि रेलवे एक्ट 1987 की धारा 124 (ए) के अंतर्गत जो भी प्रकरण आयेगा उसके श्रवण का क्षेत्राधिकार उपरोक्त धारा के अंतर्गत रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल को है एवं उपरोक्त
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अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत किसी अन्य न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: ऐसी परिस्थितियों में प्रश्नगत निर्णय के श्रवण का क्षेत्राधिकार न होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी की ओर से यह तर्क दिया गया है कि विद्वान जिला मंच द्वारा विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 के अंतर्गत प्रस्तुत प्रकरण में उपभोक्ता न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार है।
प्रश्नगत प्रकरण में यात्रा के समय परिवादीगण का पुत्र श्री ईश्वर नाथ की पांवदान से फिसलकर प्लेटफार्म और ट्रेन के बीच में पटरी पर गिर जाने के फलस्वरूप आई हुई चोटों एवं अंतत: मृत्यु हो जाने के कारण यह परिवाद, परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
इस संबंध में रेलवे एक्ट 1989 की धारा 124 तथा 124 (ए) निम्नवत है:-
124. Extent of liability.- When in the course of working a railway, an accident occurs, being either a collision between train of which one is a train carrying passengers or the derailment of or other accident to a train or any part of a train carrying passengers, then whether or not there has been any wrongful act, neglect or default on the part of the railway administration such as would entitle a passenger who has been injured or the suffered a loss to maintain an action and recover damages in respect thereof, the railway administration shall, notwithstanding anything contained in any other law, be liable to pay compensation to such extent as may be prescribed and to that extent only for loss occasioned by the death of a passenger dying as a result of such accident, and for personal injury and loss, destruction, damage or deterioration of goods owned by the passenger and accompanying him in his compartment or on the train, sustained as a result of such accident.
Explanation- For the puposes of this section ‘’passenger” includes a railway servant on duty.
124A . Compensation on account of untoward incident. – When in the course of working a railway an untoward incident occurs, then whether or not there has been any wrongful act, neglect or default on the part of the railway administration such as would entitle a passenger who has been injured or the dependant of a passenger who has been killed to maintain an action and recover damages in respect thereof, the railway administration shall, notwithstanding anything contained in any other law, be liable to pay compensation to such extent as may be prescribed and to that extent only for loss occasioned by the death of, or injury to, a passenger as a result of such untoward incident:
Provided that no compensation shall be payable under this section by the railway administration if the passenger dies or suffers injury due to-
- suicide or attempted suicide by him;
- self-inflicted injury;
- his own criminal act;
- any act committed by him in a state of intoxication or insanity;
- any natural cause or disease or medical or surgical treatment unless such treatment becomes necessary due to injury caused by the said untoward incident.
Explanation . For the purposes of this section, ‘’passenger” includes-
- a railway servant on duty; and
- a person who has purchased a valid ticket for travelling by a train carrying passengers, on any date or a valid platform ticket and becomes a victim of an untoward incident.]
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उपरोक्त धाराओं के अंतर्गत यदि कोई दुर्घटना अकस्मात् रूप से घटित हो जाती है जिसके कि फलस्वरूप किसी यात्री की मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्थिति में रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-ए) के अंतर्गत ऐसे प्रकरणों का सुनने का क्षेत्राधिकार रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल को है तथा रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 15 के अंतर्गत किसी अन्य न्यायालय को इस प्रकार के प्रकरण को श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: ऐसी परिस्थितियों में प्रश्नगत निर्णय निरस्त किये जाने योग्य है।
चूंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के बाद रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 तथा रेलवे एक्ट 1989 प्रभावी किया गया है। अत: ऐसी परिस्थितियों में रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट की 1987 की धारा 13 (1-ए) के अंतर्गत परिवादिनी द्वारा परिवाद रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था क्योंकि रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 15 के अंतर्गत किसी भी अन्य न्यायालय को इस प्रकार के प्रकरण में श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत यह परिवाद पोषणीय नहीं है एवं उपभोक्ता न्यायालय को इस प्रकरण में श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है।
अत: उपरोक्त विवेचना के आधार पर अपील स्वीकार किये जाने योग्य है तथा प्रश्नगत निर्णय उपभोक्ता न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार न होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच बहराइच द्वारा परिवाद सं0 17/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 08/02/2007 निरस्त किया जाता है। परिवादिनी अपने परिवाद/प्रत्यावेदन को रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-ए) के अंतर्गत प्रस्तुत कर सकती है, जो कि वर्णित परिस्थितियों में काल बाधित नहीं माना जायेगा।
उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(अशोक कुमार चौधरी)
पीठा0 सदस्य
(संजय कुमार)
सुभाष चन्द्र आशु0 कोर्ट नं0 3 सदस्य