राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२११०/२०११
(जिला फोरम/आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-३७/२०११ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-०९-२०११ के विरूद्ध)
आगरा डेवलपमेण्ट अथारिटीए, जयपुर हाउस, आगरा द्वारा द्वारा सैक्रेटरी।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
परमजीत सिंह पुत्र स्व0 महेन्द्र सिंह, निवासी जी-९, लायर्स कालोनी, बाईपास रोड, आगरा।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- १३-०४-२०२२.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-३७/२०११ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-०९-२०११ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्लाट सं0-५५, क्षेत्रफल २६९.४१ वर्गमीटर, सैक्टर-२, यातायात नगर योजना, आगरा की नीलामी दिनांक ३०-०८-१९८५ को १,३६,०५२.०५ रू० में श्री हीरा लाल के पक्ष में की गई थी और शर्त यह थी कि क्रेता इसे किसी अन्य को हस्तान्तरित नहीं करेगा। दिनांक २५-०९-१९८५ को आबंटन पत्र निर्गत हुआ और दिनांक २४-१०-१९८५ को ९० वर्षों के लिए पट्टा प्रलेख का निष्पादन हुआ। श्री हीरा लाल इस पट्टे को ९० साल तक न तो किराए पर दे सकता था और नही अपने अधिकारों को किसी अन्य को हस्तान्तरित कर सकता था और यदि ऐसा करना होता तो अपीलार्थी की पूर्व अनुमति आवश्यक थी। हीरा लाल को इस पर ०६ माह के अन्दर भवन
-२-
बनाना था। उसके द्वारा न तो भवन का कब्जा लिया गया और न कोई भवन बनाया गया। तब दिनांक ३०-०८-१९८८ को उसे एक पत्र भेजा गया कि वह भवन का निर्माण करे किन्तु तब भी उसने निर्माण कार्य शुरू नहीं किया। पुन: दिनांक २२-०६-१९९३ को उसे एक पत्र भेजा गया और बताया कि संविदा की शर्तों के अनुपालन में असफल रहने के कारण उसके ऊपर ८९,०५१.१८ रू० नान कन्स्ट्रक्शन का शुल्क लगाया गया है। वह इसे १० प्रतिशत प्रीपेड लीज रेण्ट १३,६०५.२५ रू० के सहित ०७ दिन के अन्दर जमा कर दे अन्यथा उसका आबंटन निरस्त किया जाएगा। इसके बाबजूद भी हीरा लाल ने कोई धनराशि जमा नहीं की। इसके पश्चात् उसे दिनांक १०-०८-१९९३ को कारण बताओ नोटिस भेजा गया। उसने इसका भी उत्तर नहीं दिया। अन्तत: दिनांक १९-११-१९९३ को उसका पट्टा प्रलेख निरस्त कर दिया गया और इसकी सूचना दिनांक १६-०४-१९९४ को उसे दे दी गई।
हीरा लाल ने यह भवन परमजीत सिंह को दिनांक २१-०४-१९८९ को १,६०,०००/- रू० में बेच दिया जो पट्टा प्रलेख की शर्तों का उल्लंघन था और उसने प्राधिकरण को कोई सूचना भी नहीं दी। परमजीत सिंह साड़े पॉंच वर्ष तक शान्त रहा और फिर उसने दिनांक १५-०९-१९९५ को एक शपथ पत्र के साथ इस भवन को फ्री-होल्ड घोषित करने हेतु २७२१.०५ रू० व ३००/- रू० अन्य शुल्क के रूप में जमा किया। इसके पश्चात् अपीलार्थी को इन सब तथ्यों के बारे में जानकारी हुई। तत्पश्चात् परमजीत सिंह को भी लिखित सूचना भेज दी गई कि पट्टा प्रलेख निरस्त कर दिया गया है और उससे कहा कि वह इसका कब्जा दिनांक २८-०८-१९९६ तक प्राधिकरण को वापस कर दे। परिवादी पुन: १४ वर्षों तक खामोश रहा। फिर उसने दिनांक ०४-०६-२०१० को अपने भूखण्ड को फ्री-होल्ड कराने के लिए आवेदन किया। उसे बताया गया कि वह कुल १४,८६,५४५.०१ रू० दिनांक २०-०८-२०१० तक जमा कर दे जिससे यथोचित आदेश पारित किया जा सके।
विद्वान जिला फोरम ने निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
‘’ परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि
-३-
अनिर्माण धनराशि को छोड़ कर दिनांक १९-०७-२०१० की नोटिस में दिखायी गयी ध्नराशि परिवादी से प्राप्त करने का अधिकारी है। साथ ही विपक्षी परिवादी को ३०००/- रू० परिवाद व्यय आदेश की तिथि से ३० के अन्दर अदा करे। अनिर्माण की धनराशि को छोड़ कर शेष धनराशि विपक्षी परिवादी से वसूल कर सकता है। ‘’
प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध, मनमाना एवं तथ्यों से परे है। विद्वान जिला फोरम ने यह गलत निष्कर्ष दिया है कि परिवादी उपभोक्ता है। परिवादी आबंटी नहीं है। उसने यह भूमि हीरा लाल से बिना कोई सूचना अपीलार्थी को दिए खरीदी है जबकि हीरा लाल को हस्तान्तरण का कोई अधिकार नहीं था जैसा कि पट्टा प्रलेख में लिखा है। परिवादी ने खुद ही गलती की है जो उसने यह भूखण्ड हीरा लाल से खरीदा है जो भू-स्वामी ही नहीं है। परिवाद कालबाधित है। परिवादी ने यह भूखण्ड २१-०४-१९८९ को खरीदा और साड़े पॉंच साल बाद अपीलार्थी को इसकी सूचना दी। वाद का कोई कारण उत्पन्न नहीं हुआ है। वह अपीलार्थी का उपभोक्ता नहीं है, अत: माननीय आयोग से निवेदन है कि वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाए।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
हमने विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय का भी अवलोकन किया। यह स्पष्ट है कि परिवादी ने हीरा लाल से दिनांक २१-०४-१९८९ को बैनामा कराया था और फिर उसने दिनांक १५-०९-२००५ को विपक्षी के आफिस में फ्री-होल्ड कराने के लिए २७२१.०५ रू० जमा किया जिस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। दिनांक १९-०७-२०१० को एक डिमाण्ड नोटिस १४,८६,५४५/- रू० का भेजा गया और कहा गया कि जमा करने पर फ्री-होल्ड कर दिया जाएगा। यह स्पष्ट है कि यह भूखण्ड हीरा लाल को आबंटित हुआ था और समय सीमा के अन्दर निर्माण न कराने और पट्टा प्रलेख की शर्तों का उल्लंघन करने के कारण पट्टा दिनांक १९-११-१९९३ को निरस्त कर दिया गया।
-४-
यहॉं प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब दिनांक १९-११-१९९३ को पट्टा निरस्त कर दिया गया था तब परिवादी ने दिनांक २१-०४-१९८९ को यह प्लाट खरीदा लेकिन १५-०९ २००५ तक विपक्षी को सूचना नहीं दी गई। प्राधिकरण ने १९-०७-२०१० को देय धनराशि का विवरण विभिन्न मदों में मांगा जो जमा नहीं किया गया। पहला प्रश्न है कि क्या प्राधिकरण का उपभोक्ता है, जिसका उत्तर नकारात्मक है क्योंकि जब परिवादी ने दिनांक २१-०४-१९८९ को हीरा लाल से बैनामा कराया था तब क्या इसके लिए प्राधिकरण से अनुमति ली गई थी इसका कोई विवरण नहीं है। प्राधिकरण ने इसके पश्चात् परिवादी से जिन-जिन धनराशियों की मांग की, विद्वान जिला फोरम ने उनमें से अनिर्माण लेवी शुल्क को उचित नहीं माना। अगर अनिर्माण धनराशि के सम्बन्ध में जैसा कि विद्वान जिला फोरम ने लिखा है, कोई भी अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया जो इसके समर्थन में हो, तब यह प्रश्न उठता कि पट्टा प्रलेख के पृष्ठ-४ पर भूमि हस्तान्तरण के पहले प्राधिकरण की सहमति लेना आवश्यक था, के अनुपालन में कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है। जब पट्टा निरस्त हो चुका है और हस्तान्तरण के पूर्व पट्टे की शर्तों के अनुसार प्राधिकरण की सहमति नहीं ली गई तब यह पट्टा प्रलेख की शर्तों का उल्लंघन है और यह परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं था। अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि कथित हस्तान्तरण जो परिवादी ने हीरा लाल से कराया था वह विधि सम्मत नहीं था। ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला फोरम का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है और तद्नुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम/आयोग (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-३७/२०११ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-०९-२०११ अपास्त किया जाता है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
-५-
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.