राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-४४२/२००७
(जिला मंच, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-१४७/२००० में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०८-१२-२००६ के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज फैजाबाद
डिवीजन, फैजाबाद।
२. पोस्ट मास्टर, पोस्ट आफिस, जलालपुर, जिला-अम्बेडकर नगर।
.............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
१. पन्ना लाल पुत्र श्री दुर्जन, निवासी ग्राम जैतपुर, डाकखाना उदयापुर, जिला अम्बेडकर
नगर। ............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. रीजनल मैनेजर, दी ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0, फैजाबाद डिवीजन, २/१/५५, सिविल
लाइन्स, फैजाबाद। ............ प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-१.
३. ब्रान्च मैनेजर, यू.पी. कॉपरेटिव भूमि विकास बैंक लि0, जलालपुर, जिला अम्बेडकर
नगर। ............ प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-४.
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-१ की ओर से उपस्थित : श्री अनिल कुमार मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से उपस्थित : श्री आशीष कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-३ की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- १३-०४-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-१४७/२००० में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०८-१२-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार वर्ष १९९७-९८ में उसने शाखा प्रबन्धक उ0प्र0 सहकारी ग्राम्य विकास बैंक लि0 शाखा जलालपुर, जिला अम्बेडकर नगर से २०,०००/- रू० ऋण लेकर ०२ भैंस क्रय की थीं। वर्ष १९९७ में क्रय की
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गयी भैंस का मूल्य ९,५००/- रू० था। दूसरी भैंस वर्ष १९९८ में क्रय की गयी थी। दोनों भैंसों का बीमा प्रत्यर्थी बीमा कम्पनी द्वारा किया गया था। परिवादी की पहली भैंस जो १९९७ में क्रय की गयी थी दिनांक २६-१०-१९९८ को मर गयी। परिवादी ने समस्त औपचारिकताऐं पूर्ण करने के पश्चात् बैंक के पास समस्त कागजात बीमा कम्पनी से दावा प्राप्त करने के लिए जमा किए थे। बैंक ने क्लेम का पैसा मंगाने के स्थान पर परिवादी से ऋण की बसूली प्रारम्भ कर दी। परिवादी ने बीमा कम्पनी में सम्पर्क किया तब ज्ञात हुआ कि दिनांक ०३-०५-१९९९ को पंजीकृत डाक से भुगतान भेजा गया था परन्तु दिनांक ०४-०५-१९९९ को डाक विभाग का पूरा पैसा गायब हो गया। उसी थैले में वह पत्र भी था। जब परिवादी को बीमित धनराशि की अदायगी प्राप्त नहीं हुई तब उसने परिवाद जिला मंच के समक्ष बीमित धनराशि की अदायगी एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
‘’ परिवाद अंशत: विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। परिवाद विपक्षी सं0-२ एवं ३ के विरूद्ध ५,०००/- रू० की क्षतिपूर्ति के लिए स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-२ व ३ इस धनराशि को निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर दें अन्यथा निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक ६ प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज देय हो जायेगा। परिवाद विपक्षी सं0-१ के विरूद्ध रू०९,५००/- तथा इस धनराशि पर १२ प्रतिशत वार्षिक की दर से निर्णय में दी गयी तिथि से भुगतान की तिथि तक ब्याज सहित भुगतान के लिए स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-१ यह समस्त धनराशि एक माह के अन्दर परिवादी को दे। परिवाद विपक्षी-४ के विरूद्ध इस निर्देश के लिए स्वीकार किया जाता है कि विपक्षी सं0-४ परिवादी से केवल वही ऋण का अवशेष लेगा जो परिवादी के ऋण के खाते में दिनांक ०४-०५-१९९९ को अंकित था। परिवाद, मानहानि की धनराशि ३५,०००/- रू० व्यावसायिक हानि की धनराशि ६७,०००/- एवं २५००/- रू० के लिए निरस्त किया जाता है। ‘’
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
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हमने अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह एवं प्रत्यर्थी सं0-१/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा तथा प्रत्यर्थी सं0-२ की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आशीष कुमार श्रीवास्तव के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-३ की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील के विलम्ब से प्रस्तुतीकरण के सन्दर्भ में तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपील के प्रस्तुतीकरण में विलम्ब जानबूझकर नहीं किया गया है और मामले की परिस्थितियॉं अपीलार्थी डाक विभाग के नियन्त्रण से परे थीं। प्रस्तुत अपील के गुणदोष पर विचारण, जिसका विस्तृत विवरण आगे किया जा रहा है, से यह विदित होता है कि अपील में बल है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब के सम्बन्ध में अपीलार्थी डाक विभाग की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण सन्तोषजनक पाते हुए अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किया जाता है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि बीमा दावा की धनराशि प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा अपीलार्थीगण के माध्यम से प्रत्यर्थी सं0-३ बैंक को प्रेषित की गयी थी। अपीलार्थी यह स्वीकार करते हैं कि यह डाक खो जाने के कारण वितरित नहीं हो सकी किन्तु अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत मामले में प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थीगण का उपभोक्ता नहीं था क्योंकि प्रश्नगत डाक उसके द्वारा नहीं भेजी गयी थी और न ही वह इस डाक का प्राप्तकर्ता था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थीगण का उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि इण्डियन पोस्ट आफिस अधिनियम की धारा-६ के अन्तर्गत अपीलार्थीगण को क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं माना जा सकता।
भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ के अनुसार-
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of
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transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or
by his willful act or default.”
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल है क्योंकि अपीलार्थीगण के माध्यम से भेजी गयी डाक निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा नहीं भेजी गयी और न ही वह उसका प्राप्तकर्ता था। अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपीलार्थीगण का प्रत्यर्थी/परिवादी को उपभोक्ता नहीं माना जा सकता। इसके अतिरिक्त इण्डियन पोस्ट आफिस अधिनियम की धारा-६ के अन्तर्गत मात्र डाक वितरण न होने के कारण अपीलार्थीगण क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं माने जा सकते जब तक कि यह प्रमाणित न हो कि अपीलार्थीगण के किसी कर्मचारी के कपटपूर्ण कार्य अथवा स्वेच्छा से कारित किसी लापरवाही के कारण डाक वितरित नहीं हुई। प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद के अभिकथनों में ऐसा कोई कथन नहीं है। विद्वान जिला मंच ने उपरोक्त तथ्यों पर विचार न करते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया है, अत: अपीलार्थीगण के विरूद्ध पारित प्रश्नगत आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।
जहॉं तक प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ का प्रश्न है, प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ की ओर से प्रश्नगत निर्णय के विरूद्ध कोई अपील योजित नहीं की गयी है। प्रत्यर्थी सं0-२ के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह सूचित किया गया कि प्रत्यर्थी सं0-२ ने प्रश्नगत निर्णय का अनुपालन कर दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने सूचित किया कि प्रत्यर्थी सं0-२ द्वारा प्रश्नगत निर्णय का अनुपालन नहीं किया गया है। ऐसी परिस्थिति में यदि प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ द्वारा प्रश्नगत निर्णय का अनुपालन नहीं किया गया है तो प्रत्यर्थी/परिवादी, प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ के विरूद्ध निर्णय के अनुपालन हेतु कार्यवाही जिला मंच के समक्ष करने के लिए स्वतन्त्र है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, फैजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-
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१४७/२००० में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०८-१२-२००६ मात्र अपीलार्थीगण के विरूद्ध अपास्त किया जाता है। यदि प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ द्वारा प्रश्नगत निर्णय का अनुपालन नहीं किया गया है तो प्रत्यर्थी/परिवादी, प्रत्यर्थी सं0-२ व ३ के विरूद्ध निर्णय के अनुपालन हेतु कार्यवाही जिला मंच के समक्ष करने के लिए स्वतन्त्र है।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-३.