(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :687/2016
(जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद संख्या-28/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-02-2016 के विरूद्ध)
Cholamandalam Investment and Finance Co. Ltd., through its Manager Legal, Office at Gurpreet House, 2nd Floor, 21 Station Road, Lucknow, Branch Office at.
.....अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम्
- Pankaj Bhadoria S/o Sri Bhumipratap Singh Bhadoria, R/o Shanti Colony, P.S. Civil Line, District-Etawah.
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- Assistant Road Transport Officer (A.R.T.O) Etawah.
- विपक्षी संख्या-2
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री बृजेन्द्र चौधरी।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित- श्री ए0के0 पाण्डेय।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
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दिनांक : 29-12-2020
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-28/2015 पंकज भदौरिया बनाम् चोला मण्डलम फाइनेंस कं0लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 27-02-2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’ परिवाद विपक्षी संख्या-1 के विरूद्ध 6,15,956/-रू0 की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है इस धनराशि पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देना होगा। विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्तानुसार धनराशि निर्णय के एक माह में परिवादी को अदा करे तथा परिवादी का कोई उत्पीड़न न करें। विपक्षी संख्या-2 को आदेशित किया जाता है कि बिना परिवादी की अनुमति के ट्रक का हस्तांतरण कागजात में न करें। ‘’
जिला आयोग के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी सं0-1 Cholamandalam Investment and Finance Co. Ltd, ने यह अपील प्रस्तुत की है।
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अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री ए0के0 पाण्डेय उपस्थित आए है। प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद अपीलार्थी और प्रत्यर्थी संख्या-2 सहायक परिवहन अधिकारी, इटावा के विरूद्ध जिला आयोग के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि वह ट्रक संख्या-यू0पी0-75/एम.3951 का स्वामी है और उसका यह ट्रक प्रत्यर्थी संख्या-2 के यहॉं पंजीकृत है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी संख्या-1 का कथन है कि उसने अपीलार्थी से 15,00,000/-रू0 दिनांक 14-06-2012 को ऋण लेकर उपरोक्त ट्रक खरीदा था और ट्रक का पंजीकरण दिनांक 26-06-2012 को हुआ था। उसने 60,,000/-रू0 मार्जिनी मनी दी थी। ट्रक की बाडी बनवाने और रजिस्ट्रेशन, बीमा आदि में 4,25,000/-रू0 खर्च हुआ था। ट्रक हेतु अपीलार्थी से लिये गये उपरोक्त ऋण धनराशि का भुगतान 46,884/-रू0 की 39 किश्तों में होना तय था। इस प्रकार ऋण की अदायगी दिसम्बर, 2015 तक होनी थी, परन्तु दिनांक 18-11-2014 को प्रत्यर्थी/परिवादी के
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भाई की दुघटना में मृत्यु हो गयी, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी डिप्रेशन में चला गया और कुछ किश्तें जमा होने से छूट गयी, तब अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी संख्या-1 है ने दिनांक 18-02-2015 को जबरन ड्राइवर से ट्रक छीन लिया। उस समय ट्रक में 250 लीटर डीजल कीमती 10,000/-रू0 और तिरपाल व अन्य कीमती सामान 60,000/-रू0 मूल्य का था उसे भी उन्होंने कब्जे में ले लिया जिससे परिवादी का व्यवसाय बंद हो गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि दिनांक 18-02-2015 को ट्रक की बाजारू कीमत 15,00,000/-रू0 थी और दिनांक 16-06-2014 से 15-06-2015 तक का बीमा 14,53,000/-रू0 मूल्य पर हुआ था जबकि ट्रक अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी संख्या-1 है ने मात्र 10,00,000/-रू0 में बिक्री होना दर्शाया किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी 9,65,432/-रू0 किश्तों का जमा किया है। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी का कुल 19,65,432/-रू0 जमा है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी संख्या-1 है ने ट्रक की बिक्री 5,00,000/-रू0 कम मूल्य में दिखायी है और ट्रक कब्जा में लिये जाने के समय उसमें सामान भी था जिसकी कीमत 60000/-रू0 थी। इसके साथ ही अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी संख्या-1 है द्वारा ट्रक अवैधानिक ढंग से कब्जे में लिये जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को व्यवसायिक क्षति हुई है अत: उसने जिला आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है :-
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‘’अत: प्रार्थना है कि परिवादी का वाद उपरोक्त विवरण के आधार पर विपक्षी संख्या-1 के विरूद्ध रू0 8,57,956/-रू0 मूल धनराशि इस पर ब्याज 24 प्रतिशत वार्षिक दिनांक 18-02-2015 से अदायगी की तिथि तक जोड़कर अदा करने हेतु निर्णित करने की कृपा करें तथा विपक्षी संख्या-2 को निर्देशित किया जाये कि वह उक्त ट्रक परिवादी के बिना अनुमति के दौरान विचारण किसी को स्थानान्तरित न करे।‘’
जिला आयोग के समक्ष अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी संख्या-1 है ने लिखित कथन प्रस्तुत कर कहा है कि उसकी सेवा में कोई कमी नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत उपभोक्ता नहीं है। उसने 15,00,000/-रू0 ऋण लिया था और ऋण संविदा दिनांक 14-06-2012 को निष्पादित किया था। 46,884/-रू0 की 40 किश्तों में ऋण की अदायगी दिनांक 10 अक्टूबर,2015 तक करनी थी जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी ने जमा नहीं किया है।
लिखित कथन में अपीलार्थी की ओर से यह भी कहा गया है कि धनराशि जमा न होने पर 48 प्रतिशत वार्षिक ब्याज तय हुआ था। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अवशेष धनराशि जमा नहीं की, तो उसे नोटिस दी गयी और उसके बाद ट्रक कब्जे में लिया गया है।
जिला आयोग ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि ट्रक कब्जे में लिये जाने के समय उसका बीमित मूल्य 14,53,000/-रू0 था। जब कि अपीलार्थी जो परिवाद में
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विपक्षी संख्या-1 है ने ट्रक 10,00,000/-रू0 में बेचना दर्शाया है इस प्रकार उसने ट्रक 4,50,000/-रू0 मूल्य कम में बेचा है।
जिला आयोग ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी 9,65,432/-रू0 जमा कर चुका है इस प्रकार अपीलार्थी जो परिवाद में विपक्षी संख्या-1 है के पास कुल 19,65,432/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी का जमा है और ट्रक 4,53,000/-रू0 कम कीमत में बेचा गया है।
जिला आयोग ने अपने निर्णय में उल्लेख किया है कि 1,37,956/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी ने ज्यादा जमा किया है। इसके साथ ही जिला आयोग ने माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को 15,000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु और 10,000/-रू0 वाद व्यय हेतु दिया जाना उचित है। अत: जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला आयोग द्वारा पारित आदेश तथ्य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी से लिये गये ऋण की किश्तों का भुगतान नहीं किया है। अत: अपीलार्थी ने उसे नोटिस दी, फिर भी उसने भुगतान नहीं किया तब वाहन कब्जे में लेकर उसकी बिक्री की गयी है। अपीलार्थी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय तथ्य और विधि के अनुकूल है। अपीलार्थी ने वास्तविक ऋण से अधिक धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी से प्राप्त की है और उसका ट्रक कम मूल्य पर बेचा है। जिला आयोग के निर्णय में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत ट्रक अपीलार्थी फाइनेंसर से 15,00,000/-रू0 की आर्थिक सहायता प्राप्त कर क्रय किया है और परिवाद पत्र के कथन से भी स्पष्ट है कि उसने ट्रक अपीलार्थी द्वारा कब्जे में लिये जाने के पूर्व कुछ किश्तों के भुगतान में चूक की है। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि अपीलार्थी ने ट्रक कब्जा में लेने के बाद बेच दिया है।
सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार करते हुए वर्तमान परिवाद के उचित एवं सही निर्णय हेतु निम्न बिन्दुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है ?
1-प्रत्यर्थी/परिवादी का प्रश्नगत ट्रक अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा कब्जा में लिये जाने की तिथि पर प्रत्यर्थी/परिवादी के जिम्मा प्रश्नगत ऋण की कितनी धनराशि ब्याज सहित अवशेष थी ?
2- क्या अपीलार्थी फाइनेंसर ने प्रत्यर्थी/परिवादी का ट्रक अवैधानिक ढंग से कब्जा में लिया है और उसकी बिक्री वास्तविक मूल्य से कम मूल्य पर की है ?
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3- क्या प्रत्यर्थी/परिवादी के ट्रक की सार्वजनिक नीलामी अपीलार्थी फाइनेंसर ने किया है ? यदि सार्वजनिक नीलामी नहीं किया है तो क्या यह अपीलार्थी की सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार पद्धति है?
जिला आयोग के निर्णय से स्पष्ट है कि जिला आयोग ने संगत बिन्दुओं पर विचार किये बिना आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
जिला आयोग ने यह देखे बिना कि ट्रक कब्जे में लिये जाने के समय प्रत्यर्थी/परिवादी के जिम्मा प्रश्नगत ऋण की कितनी धनराशि ब्याज सहित अवशेष थी आक्षेपित आदेश पारित किया है जो विधि की दृष्टि से उचित नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि जिला आयोग द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त कर पत्रावली जिला आयोग को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाए कि जिला आयोग उभयपक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर इस निर्णय में ऊपर अंकित बिन्दुओं पर विचार कर पुन: विधि के अनुसार निर्णय और आदेश पारित करें।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला आयोग द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए पत्रावली जिला आयोग को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला आयोग उभयपक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर इस निर्णय में ऊपर अंकित बिन्दुओं पर विचार कर पुन: विधि के अनुसार इस निर्णय
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में हाजिरी हेतु निश्चित तिथि से तीन माह के अंदर गुणदोष के आधार पर निर्णय और आदेश पारित करें।
उभयपक्ष जिला आयोग के समक्ष दिनांक 25-02-2021 को उपस्थित हो।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील के निस्तारण तक प्रश्नगत ऋण की वूसली के संसबंध में अपीलार्थी फाइनेंसर प्रत्यर्थी/परिवादी के विरूद्ध कोई उत्पीड़नात्मक कायर्वाही विधि विरूद्ध ढंग से नहीं करेंगे।
अपील में धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्तर्गत जमा धनराशि 25,000/-रू0 व उस पर अर्जित ब्याज अपीलार्थी को वापस की जायेगी ।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) ( विकास सक्सेना )
अध्यक्ष सदस्य
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0