SMT. GEETA BAI RANA filed a consumer case on 10 Dec 2013 against PANJAB NATIONAL BANK in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/73/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -73-2013 प्रस्तुति दिनांक-29.08.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
श्रीमती गीता बार्इ राणा, पति श्री
चन्द्रभान सिंह राणा, निवासी-ग्राम
बेलखेड़ी, पोस्ट पौड़ी तहसील बण्डोल,
जिला सिवनी (म0प्र0)।......................................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
(1) प्रबंधक,
पंजाब नेषनल बैंक, मुख्य षाखा सिवनी,
जिला सिवनी (म0प्र0)।
(2) प्रबंधक,
पंजाब नेषनल बैंक, मुख्य षाखा एरिया
हेड क्वार्टर, मध्य भारत एरिया जबलपुर
जबलपुर (म0प्र0)।...........................अनावेदकगणविपक्षीगण।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 10.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादिया ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा से ट्रेक्टर खरीदी हेतु दिनांक-18.02.2004 को लिये गये 3,30,000-रूपये के ऋण के अनावेदक क्रमांक-1 के प्रस्ताव के अनुसार, भुगतान होकर सेटलमेंट हो जाना कहते हुये, अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा, एन0ओ0सी0 देने से दिनांक-09.01.2013 को इंकार करते हुये, 1,86,000-रूपये की और मांग किये जाने को अनुचित प्रथा व सेवा में कमी के आधार पर, एन0ओ0सी0 प्रमाण-पत्र, हर्जाना व व्यवसायिक दर से ब्याज दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादिया ने एक ट्रेक्टर हेतु फायनेंस कराकर दिनांक-18.02.2004 को अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा के माध्यम से अनावेदक बैंक से 3,30,000-रूपये ऋण प्राप्त किया था, जो कि-उक्त ऋण खाते में जून-2010 तक षेश बची राषि के संबंध में एकमुष्त राषि के रूप में उक्त माह में दिनांक-30.06.2010 तक 74,000- रूपये अनावेदक क्रमांक-1 बैंक में जमा किया था और परिवादिया की भू- अधिकार ऋण पुसितका में दिनांक-30.06.2010 तक समझौते के आधार पर, उक्त राषि अदा हो जाने की टीप दिनांक-05.07.2010 को अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा द्वारा लेख की गर्इ है। यह भी विवादित नहीं कि- दिनांक-18.03.2013 को परिवादिया की ओर से जरिये अधिवक्ता अनावेदकगण को एन0ओ0सी0 व क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु नोटिस जारी किया गया था, जिसका अनावेदकों की ओर से कोर्इ जवाब नहीं दिया गया है।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादिया का अनावेदक क्रमांक-1 की बैंक षाखा में एक चालू खाता क्रमांक-70724 तथा एक अन्य बचत खाता भी है और इन्हीं खातों से के.सी.सी. के जरिये ट्रेक्टर हेतु 3,30,000-रूपये का फायनेंस दिनांक-18.02.2004 को परिवादिया ने प्राप्त किया था और ऋण की किष्तों का भुगतान करती रही, बाद में जो रकम ब्याज सहित बची उसके लिए अनावेदक की बैंक षाखा से प्रस्ताव किया गया कि-आवेदिका एकमुष्त भुगतान करती है, तो मात्र 74,000-रूपये भुगतान कर, सेटेलमेंट के तहत ऋण चुकता कर ले, इस पर परिवादिया ने उक्त राषि एकमुष्त चुकता किया था और अनावेदक की ओर से आवेदिका की भू-अधिकार ऋण पुसितका में दिनांक-30.06.2010 की किष्त के समझौता का उल्लेख करते हुये, दिनांक-05.07.2010 को कुछ लेना बाकी नहीं, लेखकर खाता बंद कर, भू अधिकार ऋण पुसितका परिवादिया को दे-दी गर्इ थी। और इस तरह संपूर्ण ऋण का भुगतान कर दिया गया था। आवेदिका को उक्त ट्रेक्टर विक्रय करने हेतु अनापतित प्रमाण-पत्र की आवष्यकता है, जबकि- परिवादिया ने ट्रेक्टर को एजेंसी में जमा कर, षेश राषि का भुगतान कर दिया है और अनावेदकगण द्वारा एन0ओ0सी0 न देने के कारण, एजेंसी से आवेदिका को नया ट्रेक्टर नहीं मिल पा रहा है। दिनांक-09.01.2013 को एन0ओ0सी0 हेतु अनावेदक क्रमांक-1 से संपर्क करने पर, अनावेदक क्रमांक-1 ने एन0ओ0सी0 देने से यह कहते हुये इंकार कर दिया कि-कोर्इ समझौता नहीं हुआ है और परिवादिया से 1,86,000-रूपये बकाया ऋण के रूप में पुन: मांग की गर्इ और इसलिए परिवादिया को एक्सचेंज आफर के तहत, ट्रेक्टर विक्रेता कम्पनी से अपना ट्रेक्टर एक्सचेंज करने में परेषानी हो रही है और परिवादिया अपने उक्त ट्रेक्टर के उपयोग उपभोग से वंचित है, जो कि-ट्रेक्टर व्यवसायिक प्रयोजन हेतु लिया गया है और उपयोग न होने से परिवादिया को भारी नुकसानी हो रही है, इसलिए नया ट्रेक्टर प्राप्त न हो पाने से परिवादिया को 2,00,000-रूपये की क्षति हुर्इ है, ट्रेक्टर के आभाव में 1,00,000-रूपये की अन्य व्यवसायिक क्षति हुर्इ, उक्त राषि व एन0ओ0सी0 की परिवाद में मांग की गर्इ है।
(4) अनावेदक-पक्ष से अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा ही जवाब पेष किया गया है, उसका जवाब का सार यह है कि-परिवादिया ने के.सी.सी. के जरिये ट्रेक्टर फायनेंस नहीं कराया था, बलिक ट्रेक्टर बाबद 3,30,000-रूपये का टर्म लोन लिया था, जिसका ऋण खाता नंबर-ए.यू.00000045 है, जो कि-उक्त ऋण को 34,950-रूपये की 14 छैमाही किष्तों में 7 वर्शों में अदा किया जाना था, जबकि-आवेदिका द्वारा 6 वर्शों में मात्र 1,69,000-रूपये ही जमा किये गये, नियमित रूप से किष्तों का भुगतान नहीं किया गया और इसलिए उक्त ऋण खाता डिफाल्टर की श्रेणी में हो गया, जो कि-बैंक द्वारा अपनी पूंजी की सुरक्षा की दृशिट से मूल राषि यथासंभव प्राप्त करने संबंधी योजनायें समय-समय पर आवष्यक नीति-निर्देषों व बैंक के लोकधन के हित में जो प्रस्तावित की जाती हैं, उसके तहत ही तत्कालीन षाखा प्रबंधक द्वारा बकाया ऋण वसूल न हो पाने पर भुगतान की सलाह दी गर्इ, जो परिवादिया की ओर से ऋण माफी बाबद आवेदन दिया जाना परिलक्षित है, जो कि-ऐसी प्रक्रिया व मामलों में ऋणी को अवगत करा दिया जाता है कि-समझौते बाबद जो कार्यवाही की जाती है और जो राषि जमा की जाती है, वह मात्र एक प्रारमिभक औपचारिकता है और बैंक षाखा प्रबंधक द्वारा, ऐसी कार्यवाही पूर्ण कर और अनुमोदन हेतु वरिश्ठ मण्डल प्रबंधक से मार्गदर्षन मांगा जाता है और वहां से प्राप्त मार्गदर्षन के अनुसार ही कार्यवाही मान्य होती है। और इस बात को अच्छी तरह समझकर परिवादिया द्वारा सहमति दी जाकर, कथित एकमुष्त राषि अदा की थी और परिवादिया द्वारा पृथक से संपूर्ण भुगतान बाबद, रसीद की मांग किये जाने पर बैंक के मण्डल कार्यालय से मार्गदर्षन व अनापतित प्राप्त होने पर ही प्रपत्रों का दिया जाना आष्वस्त किया गया था और नियमानुसार उस समय उक्त खाते को बंद किया जाकर, उक्त आषय की टीप पासबुक में जो अंकित की गर्इ थी, वह मात्र ऋण मुकित कार्यवाही का प्रमाण था, स्वीकृति नहीं है।
(5) मण्डल कार्यालय द्वारा अपने मार्गदर्षन में कहा गया कि- आवेदिका के द्वारा, बिन ब्याजी खाते में 96,709-रूपये ऋण माफी योजना के तहत जमा कर दिया जाता, तो ऐसी सिथति निर्मित न होती। और समझौता अनुमोदित न होने पर देयता से बचने के लिए तथ्यों को तोड़मरोड़कर अनुचित लाभार्जन हेतु मामला पेष किया गया है, कृशि ऋण माफी एवं राहत योजना वर्श-2008 में आवेदिका का मामला लिया गया था, जिसके अन्तर्गत दिनांक-29.09.2008 तक खाते में दर्षित अतिदेय राषि का 75: जमा करने पर, 25: षेश ऋण राषि की छूट दी जानी थी, दिनांक- 30.06.2008 को परिवादिया के ऋण खाते में अतिदेय राषि 1,28,945- रूपये थी, जिसमें 96,709-रूपये जमा किये जाते, तो षेश अतिदेय राषि 32,236-रूपये की छूट दी जानी थी, इस बाबद आवेदिका का अलग से बिल ब्याज खाता क्रमांक-881273 खोला गया था, परिवादिया के मूल ऋण खाता क्रमांक-ए.यू.45 में बकाया राषि 1,63,449-रूपये तथा ब्याज व बिन ब्याज खाता क्रमांक-881273 में 1,28,945-रूपये बकाया था, जिसके विरूद्ध परिवादिया को दिनांक-25.06.2010 को 64,000-रूपये व दिनांक- 28.06.2010 को 10,000-रूपये, इस प्रकार कुल-74,000-रूपये जमा किये थे, जबकि-मूल ऋण खाता ए.यू.45 और बिना ब्याजी खाता क्रमांक- 881273 की राषि मिलाकर कुल-2,18,394-रूपये होता है, जिसमें षासन की ओर से 32,236-रूपये की छूट दी गर्इ है। इस प्रकार 1,86,158- रूपये व उस पर लगने वाला 30 जून-2010 से बैंक के नियमानुसार ऋण खाते पर ब्याज आवेदिका से लिया जाना है, इस कारण उपरोक्त योजना में दी जाने वाली ऋण माफी राषि निरस्त कर दी गर्इ है और ऋण पुसितका में खाता बंद किये जाने के इंद्राज को भी निरस्त किया गया है, जिसके बाबद अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से दिनांक-09.07.2010 को लिखित में परिवादिया को सूचना-पत्र प्रेशित किया गया है और अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से वरिश्ठ कार्यालय से मार्गदर्षन मांगे जाने पर बताया गया कि- छूट की समयावधि में 75: राषि जमा न होने से षेश 25: छूट का प्रस्तावित लाभ की पात्रता परिवादिया को नहीं, जो कि-बैंक द्वारा वरिश्ठ कार्यालय से समझौता अमान्य स्वरूप बकाया प्राप्त योग्य ऋण राषि का सरकाइसी अधिनियम 2002 के अन्तर्गत, वसूली का प्रयास किया जा रहा है, जिससे बचने के लिए परिवादिया ने तथ्यों को तोड़मरोड़कर, अधिकारिता विहीन व समयावधि-बाधित कार्यवाही पेष किया है, जो कि-दिनांक-30.06.2010 के पष्चात परिवाद समय अवधि में पेष न होने से निरस्त योग्य है, उक्त ऋण व्यकितगत टर्म लोन है, जो कि-सरकाइसी अधिनियम 2002 के तहत ऐसे ऋणों की बैंक द्वारा वसूली की जाती है, जो किसी भी न्यायालय में चुनौती योग्य नहीं, परिवाद निरस्त योग्य है।
(6) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में है और
उसका परिवाद समय-सीमा में होकर, संधारणीय
है?
(ब) यदि हां, तो क्या अनावेदकगण ने, परिवादी का
ऋण खाता दिनांक-05.07.2010 को बंद करने
के पष्चात पुन: ऋण खाते में बकाया राषि होना
कहकर, षेश अदायगी की मांग अनुचित रूप से
कर, सेवा में कमी किया है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) कृशि ऋण माफी और राहत योजना वर्श-2008 किसानों के लिए ऋण माफी और राहत की योजना कृशि से संबंधित प्रयोजनों हेतु लिये गये ऋण के संबंध में रही है, उक्त योजना के तहत ही राहत का लाभ प्राप्त करने के लिए 75: राषि एकमुष्त समझौते के तहत जमा करने की पूर्ति पर, षेश 25: राषि सरकार की ओर से अंषदान के रूप में अदा करते हुये, राहत दिये जाने की योजना बाबद परिवादिया और उसके ऋण खाते के गारंटर को भेजे जाने वाले सूचना-पत्र व टेलीग्राम की प्रतियां प्रदर्ष आर-4 से आर-8 के रूप में अनावेदक-पक्ष से जो पेष हुर्इ है, उससे ही यह स्पश्ट हो जाता है कि-ट्रेक्टर खरीदी हेतु 3,30,000-रूपये का परिवादिया को ऋण, उसकी कृशि भूमि 5.69 एकड़ को रहन रखकर दिया गया था, क्योंकि परिवादी की भू अधिकार पुसितका प्रदर्ष सी-6 में अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा द्वारा, उक्त कृशि ऋण दिये जाने का पृश्ठांकन दिया है। और इस पीठ के कार्यालय में उपलब्ध अन्य मामलों में पेष हुआ, उक्त कृशि ऋण माफी और राहत योजना वर्श-2008 के परिपत्र से स्पश्ट है कि-प्रत्यक्ष कृशि क्रियाकलापों के लिए ट्रेक्टर आदि परिसम्पतितयों को भूमि की उपज बढ़ाने के लिए की गर्इ खरीदी से पूंजी निवेष, उक्त राहत योजना के तहत निवेष ऋण माना गया है और ऐसे निवेष ऋण की मूल ऋण राषि 50,000-रूपये से अधिक होने पर, उस किसान को अन्य किसान की श्रेणी में माना गया है, जो कि-सीमांत किसान व लघु किसान की श्रेणी में नहीं माना जायेगा। और अन्यथा भी परिवादी की भूमि का रकबा 5 एकड़ से अधिक होना उसके प्रदर्ष सी-6 के भू-अधिकार पुसितका से ही स्पश्ट है। लेकिन के.सी.सी. के जरिये उक्त ऋण लिया गया हो, ऐसा परिवादी-पक्ष नहीं दर्षा सका है। तो इतना तो स्पश्ट है कि-परिवादिया ने अपने को किसान होना दर्षाते हुये, कृशि प्रयोजन की योजनाओं के तहत ही बैंक से ऋण प्राप्त किया था और प्रदर्ष आर-1 के उक्त ऋण खाता ए.यू.45 और अकाउंट लेजर की प्रति से भी दर्षित है कि-उसे 1 अप्रैल-2008 को 1,28,945-रूपये का रिलीब अनुदान भी प्राप्त हुआ था, जो उसके ऋण खाते में मुजरा हुर्इ है। प्रदर्ष सी-6 के भू-अधिकार पुसितका के पृश्ठ भाग पर, दिनांक-05.07.2010 को अनावेदक क्रमांक-1 बैंक षाखा के प्रभारी के हस्ताक्षर व सीलमुद्रा सहित, यह पृश्ठांकन लेख किया गया था कि-समझौते के तहत दिनांक-30.06.2010 को ऋण खाता बंद किया गया।
(8) परिवाद को समय-सीमा में होना, परिवाद में इस आधार पर दर्षाया गया है कि-9 जनवरी-2013 को परिवादिया, अनावेदक क्रमांक-1 की बैंक षाखा में एन0ओ0सी0 लेने गर्इ, तो समझौता होने से इंकार करते हुये 1,86,000-रूपये की पुन: मांग की गर्इ और इस संबंध में परिवादिया-पक्ष की ओर से जरिये अधिवक्ता दिनांक-18.03.2013 को एन0 ओ0सी0 व क्षतिपूर्ति प्रदान किये जाने के लिए नोटिस दिये जाने पर भी कोर्इ जवाब अनावेदकों द्वारा न दिये जाने पर वाद-कारण उत्पन्न हुआ।
(9) जबकि-अनावेदक-पक्ष की ओर से दिनांक-09.07.2010 को ही परिवादिया के समझौते का प्रस्ताव अस्वीकार हो जाने की लिखित सूचना प्रदर्ष आर-3 परिवादिया को भेज दिया जाना कहा गया है और इस संबंध में बैंक के डाक डिस्पेच रजिस्टर की प्रति प्रदर्ष आर-11 भी पेष की गर्इ है, जिसमें दिनांक-09.07.2010 को परिवादिया को ट्रेक्टर लोन में समझौते बाबद सूचना-पत्र साधारण-डाक से भेजे जाने की प्रविशिट है, जो कि- अनावेदक-पक्ष की ओर से सीनियर षाखा प्रबंधक किषोर जायदे के पेष षपथ-पत्र में भी यह कहा गया है कि-उक्त राहत योजना वर्श-2008 की योजना षर्तों के अनुसार, परिवादिया को दिनांक-29.02.2008 तक खाते में दर्षित अतिदेय राषि का 75: जमा करने पर, षेश 25: की छूट दी जानी थी, पर परिवादिया के खाते में दिनांक-30.06.2008 को अतिदेय राषि 1,28,945-रूपये थी, जिसमें परिवादिया के द्वारा 96,709-रूपये और जमा किये जाने थे, तब उसे अतिदेय राषि 32,236-रूपये की छूट दी जानी थी, पर उसके द्वारा, दिनांक-25.06.2010 को 64,000-रूपये व दिनांक-28.06.2010 को 10,000-रूपये इस तरह कुल-74,000-रूपये ही जमा किये गये, इसलिए वह उक्त छूट पाने की पात्र नहीं रही और उसकी योजना के तहत दी जाने वाली ऋण माफी राषि निरस्त कर दी गर्इ। और ऋण पुसितका में खाता बंद किये जाने के इंद्राज को भी निरस्त किया गया, इस बाबद बैंक षाखा की ओर से दिनांक-09.07.2010 को लिखित सूचना-पत्र भी परिवादिया को प्रेशित किया गया।
(10) उक्त सूचना-पत्र दिनांक-09.07.2010 प्राप्त होने के कोर्इ खण्डन बाबद षपथ-पत्र या अन्य साक्ष्य परिवादिया की ओर से पेष नहीं किया गया है, जो कि-अवधारणा यह है कि-उक्त सूचना-पत्र वापस बैंक को प्राप्त नहीं हुआ, तो परिवादिया को प्राप्त हो गया था।
(11) परिवादिया ने भले ही अपने परिवाद-पत्र की कणिडका-3 में दिनांक-09.01.2013 को एन0ओ0सी0 लेने के लिए अनावेदक क्रमांक-1 से संपर्क करने पर, पुन: 1,86,000-रूपये की मांग किये जाने का उल्लेख किया है, जो कि-इस संबंध में राषि बाबद विवरण परिवादी-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष सी-2 और सी-3 की रजिस्टर्ड-डाक रसीदें दिनांक-18.03.2013 को भेजे गये रजिस्टर्ड नोटिस की प्रति प्रदर्ष सी-1 की कणिडका-4 में वर्णित है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि-दिनांक-09.01.2013 को परिवादिया जब एन0ओ0सी0 प्रमाण-पत्र लेने गर्इ, तो कोर्इ समझौता न होना कहते हुये, अनावेदक क्रमांक-1 ने, परिवादिया से ब्याज खाते और ए.यू.45 के खाते में 1,29,000-रूपये व ब्याज की राषि 57,000-रूपये इस तरह कुल बकाया राषि 1,86,000-रूपये की पुन: मांग किया। स्पश्ट है कि-उक्त के द्वारा, परिवादी-पक्ष जिस राषि की मांग दर्षा रहा है, वह वास्तव में जनवरी 2013 में ऋण खातों में बकाया रही राषि नहीं है, बलिक प्रदर्ष आर-3 के अनावेदक-पक्ष के सूचना-पत्र दिनांक-09.07.2010 में दर्षार्इ गर्इ मांग की राषि ही है, जो कि-अनावेदकगण के जवाब और प्रदर्ष आर-1 व आर-2 के मूल ऋण खाता एवं ब्याज खाता में दर्षार्इ गर्इ राषियों से स्पश्ट है कि-जनवरी-2013 में कोर्इ मांग की गर्इ होती, तो 1,29,000-रूपये ऋण खाते की राषि और 58,000-रूपये ब्याज की मद की राषि रही होती, जबकि-अनावेदक क्रमांक-1 ऋण राहत की स्वीकृति अंतिम रूप से देने वाला कोर्इ प्राधिकारी नहीं रहा है, तो उक्त समझौता प्रस्ताव स्वीकृत न किये जाने की सूचना परिवादी-पक्ष को जुलार्इ-2010 से ही रही होना स्पश्ट है। और इसलिए दो वर्श की विहित समय-सीमा गुजर जाने के बाद, दिनांक-18.03.2013 को कोर्इ जरिये अधिवक्ता नोटिस भेज देने के आधार पर, नवीन वाद-कारण उत्पन्न होना संभव नहीं, तो परिवादी-पक्ष, परिवाद समय-सीमा में पेष होना स्थापित नहीं कर सका है, तो परिवाद विहित समय-सीमा के पष्चात पेष होना पाया जाता है।
(12) भले ही परिवादिया ने अपने को कृशक बताकर और कृशि का प्रयोजन बताकर, अनावेदक बैंक षाखा से ट्रेक्टर खरीदी के लिए ऋण प्राप्त किया था और परिवाद से ही स्पश्ट है कि-परिवादिया के परिवार के भरण-पोशण का साधन उसकी कृशि रही है। परिवाद की कणिडका-5 में स्पश्ट उल्लेख किया गया कि-परिवादिया ने उक्त ट्रेक्टर, व्यवसायिक प्रयोजन के लिए लिया था, जिसका उपयोग नहीं करने से उसको भारी नुकसानी हो रही है और एक्सचेंज आफर के तहत ट्रेक्टर के बदले में नया ट्रेक्टर लेने के लिए एजेन्सी में खड़ा किया गया है, एन0ओ0सी0 न मिलने से नया ट्रेक्टर न उपलब्ध हो पाने से परिवादिया ने 2,00,000-रूपये की क्षति और ट्रेक्टर के आभाव में अन्य व्यवसायिक क्षति का 1,00,000-रूपये आंकलन कर, 3,00,000-रूपये की क्षति भी चाही गर्इ है।
(13) ऐसे में ऋण लेते समय परिवादिया ने ट्रेक्टर खरीदने बाबद अपना वास्तविक प्रयोजन अनावेदक बैंक को भले ही न प्रकट किया हो, पर परिवाद से ही स्पश्ट है कि-अनावेदकगण से ऋण लेकर, परिवादिया ने जो ट्रेक्टर खरीदा, वह व्यवसायिक प्रयोजन के लिए परिवादिया ने लिया था या उसका व्यवसायिक उपयोग कर, लाभार्जन किया, स्वयं परिवादिया के द्वारा ट्रेक्टर चलाया जाता हो व उसके पास कोर्इ ड्रायविंग लायसेंस हो, ऐसा परिवाद का मामला नहीं, ऐसे में कोर्इ स्वनियोजन हेतु ट्रेक्टर क्रय किया जाना भी परिवादी-पक्ष नहीं दर्षा सका है, तो व्यवसायिक प्रयोजन हेतु ट्रेक्टर खरीदी बाबद लिये गये ऋण के बकाया बाबद कोर्इ विवाद के संबंध में परिवादिया किसी भी तरह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं।
(14) तब विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को इस प्रकार निश्कर्शित किया जाता है कि-परिवाद विहित समय-सीमा में भी नहीं है और परिवादिया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत परिवाद पेष कर सकने हेतु, उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं। अत: परिवादिया का पेष परिवाद संधारणीय होना नहीं पाया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(15) कथित कृशि ऋण राहत योजना वर्श-2008 के तहत ऋण राहत बाबद एक बारगी निपटान योजना (ओ0टी0एस0) के तहत पात्र राषि कुल कितनी थी और पात्र राषि का 75: भाग परिवादिया ने वास्तव में एकमुष्त अदा किया था, ऐसा परिवादी-पक्ष द्वारा, परिवाद या अन्य किसी दस्तावेज या साक्ष्य में उल्लेख नहीं। और कुल पात्र राषि का 75: भाग उक्त राहत योजना वर्श-2008 को 30 जून-2010 तक बढ़ाये जाने पर भी परिवादिया ने 30 जून-2010 तक एकमुष्त अदा किया, ऐसा स्वयं परिवादी- पक्ष दर्षा नहीं सका है, जबकि-दिनांक-01.11.2007 को प्रदर्ष आर-10 के नोटिस के द्वारा, परिवादिया के उपर 75,000-रूपये ओवर-डयू हो जाना ही, दिनांक-12.12.2007 के सूचना-पत्र प्रदर्ष आर-9 के द्वारा, 1,50,000-रूपये ओवर-डयू हो जाना, और दिनांक-01.09.2008 के बैंक षाखा द्वारा, परिवादिया के खाते में दिनांक-29.02.2008 को 1,28,945- रूपये अतिदेय राषि षेश होने और ऋण राहत योजना के तहत उसका 75: राषि 96,709-रूपये दिनांक-30.06.2009 तक जमा कराये जाने पर, षेश 25: राषि 32,236-रूपये की राहत, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जायेगी, इस संंबंध में भी सूचना-पत्र भेजा जाना, जिसकी प्रति प्रदर्ष आर-8 पेष की गर्इ है दर्षाया गया है, इसके अतिरिक्त वर्श-2010 में टेलीग्राम की प्रति प्रदर्ष आर-7 व 30 जून-2010 तक एकमुष्त जमा कर, योजना का लाभ लेने बाबद, परिवादिया को भेजे कहे गये पत्र की दिनांक- 08.03.2010 की प्रति प्रदर्ष आर-4 और उसी दिन परिवादिया के दोनों गारंटर को भेजे गये सूचना-पत्र की प्रति प्रदर्ष आर-5 और आर-6 सब अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष किये गये हैं, जिनसे यह स्पश्ट है कि- वर्श-2008 की कथित दिनांक तक की अतिदेय (पात्र) राषि कितनी थी और कितनी राषि परिवादिया के द्वारा अदा किये जाने पर उसे, षेश 25: छूट का लाभ मिलना था, यह वर्श-2008 में ही परिवादिया को सूचित कर दिया गया है, इसके अतिरिक्त उक्त योजना के तहत प्रत्येक बैंक षाखा के नोटिस बोर्ड पर भी अलग-अलग श्रेणी के कृशकों के लिए ऋण ग्रहिता, कृशकों की सूची, कुल पात्र राषि और योजना के तहत समझौता राषि दर्षाते हुये, नोटिस बोर्ड पर लगाने का निर्देषक प्रावधान रहा है, उक्त अनुसार राषि जमा हो जाने पर संबंधित बैंक षाखा द्वारा, ऋण राहत का प्रमाण-पत्र उसमें कुल पात्र राषि, किसान द्वारा उसके हिस्से में भुगतान की गर्इ राषि व राहत राषि का उल्लेख करते हुये जारी किया जाना था। तो उक्त योजना के अनुसार गणना की गर्इ राषि से भिन्न उससे कम कोर्इ राषि अन्य किसान के मामले में अदा किये जाने पर समझौते के तहत राहत संभव नहीं था और उक्त से कम राषि पर बैंक षाखा प्रबंधक को सहमत या तैयार कर लेने का कोर्इ लाभ परिवादी-पक्ष को संभव नहीं था।
(16) प्रदर्ष आर-1 के ऋण खाता स्टेटमेन्ट से दिनांक-25.06.2010 को 64,000-रूपये व दिनांक-28.06.2010 को 10,000-रूपये ऋण खाते में जमा होना पाया जाता है। परिवादी-पक्ष की ओर से प्रदर्ष सी-5 के आवेदन की प्रति व प्रदर्ष सी-6 की भू-अधिकार पुसितका में समझौते के तहत खाता बंद किये जाने के पृश्ठांकन को देखे जाने से यह स्पश्ट हो रहा है कि-तत्कालीन बैंक अधिकारी ने दिनांक-25.06.2010 को समझौते के तहत 64,000-रूपये ही एकमुष्त जमा किया जाना बताया और तत्पष्चात और 10,000-रूपये जमा करने की सलाह दी गर्इ होगी, जो परिवादिया-पक्ष की ओर से जमा की गर्इ और उक्त 74,000-रूपये की राषि जमा करने को ही पर्याप्त बताया गया होगा, इसलिए प्रदर्ष सी-6 के भू-अधिकार पुसितका में समझौते के तहत दिनांक-30.06.2010 को ऋण खाता बंद किये जाने का टीप बैंक अधिकारी द्वारा लेखकर दिया गया और अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष जवाब से भी यही दर्षित है कि-वास्तव में उक्त समझौता प्रस्ताव बाबद बैंक अधिकारी ने ही और कितनी राषि बकाया है, यह उल्लेख किया, तो किसी गलत गणना के आधार पर, समझौता के प्रस्ताव को अनुमोदन हेतु अनावेदक क्रमांक-2 को भेजा, जो सही गणना न होने से स्वीकृत नहीं हुआ, तो यह बैंक अधिकारी की भूल तो है, लेकिन इससे परिवादी-पक्ष के द्वारा स्वयं गणना कर, अतिदेय राषि का 75: जमा करने के दायित्व से कोर्इ मुकित प्राप्त हो सकना संभव नहीं। और कथित योजना के तहत पात्र राषि 75: जमा करने की षर्त स्वयं परिवादिया ने पूर्ति नहीं की है
और भू-अधिकार ऋण पुसितका में समझौते के तहत खाता बंद किये जाने की टीप जो गलत गणना के आधार पर, त्रुटिवष लेख की गर्इ, तो ऐसी त्रुटि के आधार पर परिवादिया षेश ऋण राषि की अदायगी से कतर्इ मुक्त नहीं हो सकती। जो कि-पात्र राषि का 75: भाग अदा किये बिना और प्रमाण-पत्र में पात्र राषि किसान द्वारा भुगतान की गर्इ एक बारगी निपटान के तहत, राषि व राहत राषि के स्पश्ट उल्लेख के बिना ऋण खाते का निपटान संभव ही नहीं रहा है, इसलिए ऐसा नो-डयूज प्रमाण-पत्र जारी किये जाने से इंकार किया जाना किसी भी तरह परिवादिया के प्रति-सेवा में कमी नहीं है। अन्यथा भी बैंक खाते में गणना या सेटेलमेन्ट आफ अकाउंट का विवाद, उपभोक्ता विवाद होना संभव नहीं। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(17) विचारणीय प्रष्न क्रमांक- 'ब के निश्कर्श के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) परिवादिया का प्रस्तुत परिवाद, परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में न होने से और परिवाद समय-सीमा में पेष न होने से भी संधारणीय नहीं। फलत: परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है।
(ब) पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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