RISHABH KUMAR SAHU filed a consumer case on 26 Dec 2013 against PANJAB NATIONAL BANK in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/79/2013 and the judgment uploaded on 20 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक- 79-2013 प्रस्तुति दिनांक-02.10.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
ऋशभ कुमार साहू, पिता रामसहाय साहू,
जाति-तेली निवासी-ग्राम धूमा, तहसील
लखनादौन, जिला सिवनी (म0प्र0)।.........................आवेदकपरिवादी।
:-विरूद्ध-:
प्रबंधक,
पंजाब नेषनल बैंक बावली धूमा, तहसील
लखनादौन, जिला सिवनी (म0प्र0)।..............................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 26.12.2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक बैंक षाखा के अपने खाते में दिनांक-02.05.2011 को पेष किये गये परिवादी के नाम, भारतीय स्टेट बैंक, षाखा सिवनी का 25,216-रूपये के चेक की राषि का परिवादी के खाते में भुगतान न किये जाने और इस संबंध में कोर्इ जानकारी न दिये जाने को सेवा में कमी बताते हुये, चेक की राषि, उस पर ब्याज व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह अविवादित है कि-परिवादी ने उसके नाम से 25,216- रूपये का सहारा इंडिया फायनेंस का चेक क्रमांक-271966 भुगतान के लिए पेष किया था। यह भी विवादित नहीं कि-उक्त चेक का भुगतान परिवादी के खाते में नहीं हो सका। यह भी विदित नहीं कि-परिवादी के पक्ष से बैंकिंग लोकपाल कार्यालय, भोपाल को भी षिकायत की गर्इ थी, जिसमें उनके द्वारा निराकरण करने निर्देष भी दिया गया था।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-परिवादी द्वारा अनेकों बार अनावेदक से लिखित व मौखिक निवेदन चेक की राषि का भुगतान किये जाने का किया जा चुका, पर परिवादी को चेक की राषि प्रदान नहीं की गर्इ, तो उसके पिता द्वारा, बैंकिंग लोकपाल, भोपाल को षिकायत की गर्इ थी, जहां से अनावेदक को देय राषि का अविलम्ब भुगतान हेतु आदेषित किया गया था, इसके बावजूद भी, अनावेदक ने राषि का भुगतान नहीं किया, तो जरिये अधिवक्ता रजिस्टर्ड-डाक से दिनांक-17.08.2012 को नोटिस भी अनावेदक को दिया गया, फिर भी उसने न तो राषि का भुगतान किया, न ही नोटिस का कोर्इ जवाब दिया। और एक वर्श की अधिक अवधि के बाद भी चेक की राषि का भुगतान न होने से उक्त राषि पर प्राप्त होने वाले ब्याज का भी नुकसान हुआ है, जिसके लिये अनावेदक जिम्मेदार है, जो कि-अनावेदक ने न तो चेक की राषि का भुगतान किया, न ही परिवादी को चेक वापस किया और न ही चेक अनादर हुआ है, जो कि-चेक की राषि का भुगतान न किये जाने का कोर्इ कारण या आधार भी अनावेदक के पास नहीं। फलत: चेक की राषि 25,216- रूपये बैंक ब्याज दर से ब्याज सहित व क्षतिपूर्ति, हर्जाना दिलाने की मांंग की गर्इ है।
(4) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-परिवादी द्वारा जमा किया गया चेक सहारा इंडिया फायनेंस का था, जिसे परिवादी, बैंक षाखा द्वारा कलेक्षन हेतु, भारतीय स्टेट बैंक को दिनांक-06.05.2011 को स्पीड पोस्ट के द्वारा भेजा गया था, जो कि- कलेक्षन हेतु एस0बी0आर्इ0 लखनादौनसिवनी जाने के पष्चात भी चेक कलेक्षन होकर वापस नहीं आया, जो कि-अनावेदक बैंक षाखा द्वारा, दिनांक-20.07.2011 को फिर दिनांक-20.09.2011 को फिर दिनांक-20.10.2011 और दिनांक-21.10.2011 को भी कलेक्षन के संबंध में पत्र भेजे गये और पुन: दिनांक-25.11.2011 को तत्संबंध में स्पश्टीकरण चाहा गया और दिनांक-16.02.2012 को भी चेक के कलेक्षन के संबंध में पत्र व्यवहार किया गया था, फिर भी परिवादी का उक्त चेक कलेक्षन होकर वापस नहीं आया। और भारतीय स्टेट बैंक, षाखा सिवनी द्वारा दिनांक-07.10.2011 को प्रतिउत्तर में कि-वह एस.बी.आर्इ. द्वारा चेक वापस करने के संबंध में उलिलखित किया गया है, इसी प्रकार भारतीय स्टेट बैंक, षाखा लखनादौन द्वारा, दिनांक-04.10.2011 को अवगत कराया गया कि-कलेक्षन हेतु भेजे गये चेक का भुगतान ड्राफट क्रमांक-784910, दिनांक-24.05.2011 को अनावेदक की षाखा में भेजा जा चुका है। जबकि-अनावेदक की षाखा में उक्त ड्राफट आज तक प्राप्त नहीं हुआ है, जो कि-चेक कलेक्षन होकर अनावेदक की षाखा में नहीं पहुंचा, इसलिए परिवादी को भुगतान नहीं हो सका है।
(5) जवाब में यह भी पोशणीयता पर आपतित ली गर्इ कि-परिवादी के बैंक षाखा में आने पर उसे कर्इ बार अवगत कराया गया कि-उसका चेक एस.बी.आर्इ. षाखा लखनादौन से कलेक्षन होकर वापस नहीं आया है, जो कि-एस.बी.आर्इ. षाखा लखनादौन आवष्यक पक्षकार था, उसे पक्षकार बनाये बिना, परिवाद संधारणीय नहीं। अनावेदक ने कोर्इ सेवा में कमी परिवादी के प्रति नहीं किया है। और परिवादी द्वारा अपने खाते में चेक, कलेक्षन हेतु पेष किये जाने पर, बिना कोर्इ षुल्क लिये दिनांक-06.05.2011 को एस.बी.आर्इ. षाखा लखनादौन को कलेक्षन के लिए भेज दिया था, चेक कलेक्षन होकर आ जाता, तभी कलेक्षन का चार्ज खाते में राषि जमा होने के बाद लिया जाता। जबकि-परिवादी के खाते में राषि जमा ही नहीं हुर्इ, तो मामला कलेक्षन चार्ज लेकर, सेवा में कमी किये जाने का नहीं है।
(6) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में होकर, उसका
परिवाद संधारणीय है?
(ब) क्या अनावेदक ने, परिवादी के चेक का भुगतान कराने
हेतु समुचित कार्यवाही न कर और जानकारी परिवादी
को न देकर उसके प्रति-सेवा में कमी किया है?
(स) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) परिवादी के द्वारा, अनावेदक की बैंक षाखा में सिथत अपने बचत खाते में दिनांक-02.05.2011 को भारतीय स्टेट बैंक, सिवनी के खाते के खातेधारी द्वारा जारी 25,216-रूपये का चेक पेष किया जाना स्वीकृत तथ्य है। अनावेदक-पक्ष का यह जवाब है कि-उक्त चेक कलेक्षन के लिए भेज दिया गया था और परिवादी के उपभोक्ता होने के संबंध में आपतित जवाब में ली गर्इ है कि-चेक पेष करते समय कोर्इ षुल्क या कमीषन प्राप्त नहीं किया जाता है, बलिक चेक का कलैक्षन होकर, राषि प्राप्त हो जाने पर ही, अनावेदक बैंक षाखा के द्वारा कलेक्षन षुल्क प्राप्त किया जाता है, तो मात्र इस आधार पर कि-चेक पेष किये जाते समय कोर्इ कलेक्षन चार्ज नहीं काटा गया था और चेक की राषि प्राप्त होने पर ही कलेक्षन चार्ज काटा जाना था, तो ऐसे आधार पर कोर्इ नि:षुल्क सेवा अनावेदक-पक्ष का तर्क मान्य नहीं किया जा सकता और न ही ऐसे तर्क के आधार पर, परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी से बाहर हो सकता है, तो परिवादी उपभोकता की श्रेणी में होना पाया जाता है और उसका परिवाद इस जिला फोरम में संधारणीय होना पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(7) प्रदर्ष सी-4 की बैंक रसीद से यह स्पश्ट है कि-दिनांक-02.05.2011 को परिवादी ने, अनावेदक बैंक की षाखा बावली, धूमा में उक्त चेक भुगतान के लिए पेष किया था, जो कि-उक्त चेक की राषि परिवादी के खाते में जमा न होने पर और अनावेदक बैंक षाखा से कोर्इ समुचित जानकारी न दिये जाने पर, अंतत: प्रदर्ष सी-3 का पत्र दिनांक-26.09.2011 का परिवादी द्वारा, अनावेदक को भेजा गया, जो क्षेत्रीय कार्यालय के टोल फ्री नंबर पर भी षिकायत दर्ज करार्इ गर्इ है, इस संबंध में क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों ने मौखिक रूप से आवेदन देने कहा है, जो कि- संतोशप्रद जवाब न देने पर, बैंकिंग लोकपाल को जाना पड़ा और प्रदर्ष सी-2 का पत्र अनावेदक बैंक षाखा को क्षेत्रीय कार्यालय, जबलपुर को भी भेजा गया कि-लिखित में चेक क्यों पास नहीं हुआ है वस्तु-सिथति से अवगत कराने षाखा प्रबंधक को निर्देष दिया जाये। प्रदर्ष सी-8 और सी-7 की प्रति से यह भी स्पश्ट है कि-दिनांक-06.10.2011 को परिवादी ने बैंकिंग लोकपाल को प्रदर्ष सी-8 के आषय का पत्र भेजा और बैंकिंग लोकपाल के यहां से दिनांक-27.10.2011 को जो पत्र प्राप्त हुआ, उसमें अनावेदक बैंक षाखा को सुधारात्मक कार्यवाही व षिकायत के निवारण के निर्देष भेजते हुये, परिवादी को यह सूचित किया गया कि-संबंधित बैंक षाखा को लिखित अभ्यावेदन नहीं दिया गया है या बैंक को अभ्यावेदन दिये 30 दिन नहीं हुये हैं, इसलिए षिकायत, बैंक को आवष्यक कार्यवाही के लिए भेज दी गर्इ है और षिकायत के निपटान से असंतुश्ट होने या बैंक से एक माह के अंदर कोर्इ उत्तर न दिये जाने पर, पुन: षिकायत करें। फिर भी अनावेदक-पक्ष की ओर से कोर्इ समुचित लिखित जानकारी प्राप्त न होने पर, दिनांक-23.11.2011 का षिकायती-पत्र पुन: बैंकिंग लोकपाल को भेजा गया, जिसकी प्रति प्रदर्ष सी-6 के रूप में पेष हुर्इ है। और बैंकिंग लोकपाल के द्वारा, षिकायत दर्ज कर लिये जाने की प्रति प्रदर्ष सी-5 भी परिवादी की ओर से पेष की गर्इ है, जो कि-दिनांक-10.11.2012 को पुन: अनावेदक बैंक षाखा को लिखे पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-9 भी पेष की गर्इ है।
(8) तो परिवादी-पक्ष का मामला है कि-उक्त सब कार्यवाही के पष्चात 19 मार्च-2012 को बैंकिंग लोकपाल से प्रदर्ष सी-10 की आषय की सूचना दी गर्इ कि-षिकायत बाबद बैंक से टिप्पणी प्राप्त की गर्इ, जो कि-बैंक के टिप्पणी व दस्तावेजी प्रपत्रों के मूल्याकंन के प्ष्चात लोकपाल के अभिमत के अनुसार, बैंक द्वारा षिकायत के निराकरण के लिए सकारात्मक कार्यवाही की गर्इ है। और इसलिए षिकायत का अभिलेख बंद किया गया, जिसके साथ अनावेदक बैंक षाखा की लोकपाल को भेजे जवाब दिनांक-24.02.2012 की प्रति प्रदर्ष सी-11 के रूप में पेष की गर्इ है, जिससे यह दर्षित है कि-अनावेदक बैंक षाखा प्रबंधक ने लोकपाल को यह सूचित किया कि-षिकायत का षीघ्र निराकरण कर लिया जायेगा, जो कि-सहारा इंडिया से गुम हुये चेक के स्थान पर, डुप्लीकेट चेक प्राप्त करने हेतु सभी आवष्यक औपचारिकतायें प्राप्त कर ली गर्इ हैं। और भारतीय स्टेट बैंक मुख्य षाखा, सिवनीके उक्त चेक का भुगतान रोके जाने का प्रमाण-पत्र जमा करने और सहारा इंडिया, सिवनी षाखा से आवष्यक षपथ-पत्र सम्यक रूप से हस्ताक्षरित करा देने की कार्यवाही प्राप्त कर ली गर्इ है, इसलिए सहारा इंडिया से बहुत जल्दी डुप्लीकेट चेक प्राप्त हो जाने की आषा है। और उक्त पत्र में अनावेदक बैंक षाखा के मैनेजर ने लोकपाल को यह भी वचन दिया कि-वह खाताधारी को उसके चेक का पूरा भुगतान और उक्त दिनांक तक के विलम्ब अवधि के ब्याज सहित अदा करेगा।
(9) स्पश्ट है कि-अनावेदक के द्वारा बैंकिंग लोकपाल को दिये गये ऐसे आष्वासन व वचन पत्र के आधार पर, लोकपाल ने सकारात्मक कार्यवाही होना मांगते हुये, परिवादी की षिकायत पर कार्यवाही बंद कर दिया। पर वास्तव में अनावेदक-पक्ष की ओर से ऐसी कोर्इ कार्यवाही परिवादी को चेक का भुगतान दिलाने बाबद की गर्इ हो, ऐसा न तो अनावेदक की ओर से पेष जवाब से दर्षित है, न ही उक्त दस्तावेजों से दर्षित है, न ही उक्त बाबद कोर्इ दस्तावेज एस0बी0आर्इ0 मुख्य षाखा, सिवनी से उक्त चेक के भुगतान रोक देने का प्रमाण-पत्र व सहारा इंडिया सिवनी ब्रांच का षपथ-पत्र आदि पेष हुआ और ऐसी कोर्इ कार्यवाही वास्तव में की गर्इ हो, ऐसा अनावेदक के जवाब में भी दर्षाया नहीं गया है।
(10) अनावेदक की ओर से पेष दस्तावेज प्रदर्ष आर-1 और आर-2 से यह दर्षित है कि-दिनांक-20.07.2011 और 20.09.2011 को भारतीय स्टेट बैंक, षाखा सिवनी को प्रष्नाधीन चेक व उसके बी0सी0 वापस प्राप्त न होने व उसका भुगतान प्राप्त न होने बाबद लिखा गया था और प्रदर्ष आर-3 के दिनांक-27.09.2011 को पोस्ट आफिस धूमा से उक्त चेक व बी0सी0 की डाक के वितरण के संबंध में जानकारी चाही गर्इ थी, जो कि-उक्त डाक दिनांक- 06.05.2011 को पोस्ट आफिस के जरिये भेजा जाना प्रदर्ष आर-5 की पोस्टल रसीद से दर्षित है। परन्तु स्टेट बैंक आफ इंडिया, षाखा सिवनी की ओर से दिनांक-07.10.2011 को अनावेदक को प्राप्त पत्र की प्रति प्रदर्ष आर-7 जो पेष की गर्इ है, उसमें स्टेट बैंक षाखा सिवनी द्वारा यह जानकारी दी गर्इ कि-उक्त बी0सी0 क्रमांक- 4342011, दिनांक-02.05.2011, चेक क्रमांक- 371966 स्टेट बैंक की षाखा सिवनी द्वारा, दिनांक-06.05.2011 को वापस कर दिया गया है और उक्त की पुशिट करें, जो कि-उक्त पत्र प्राप्त होने के बाद, दिनांक-20.10.2011 को अनावेदक की बैंक षाखा के द्वारा, भारतीय स्टेट बैंक मुख्य षाखा, सिवनी को संबोधित पत्र की प्रति प्रदर्ष आर-4 अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष हुर्इ है, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि-एस0बी0आर्इ0 मुख्य षाखा, सिवनी के पत्र दिनांक-07.10.2011 में दिनांक-06.05.2011 को बी0सी0 वापस किया जाना लेख किया गया है, पर अब-तक न तो चेक रिटर्न मिला है, न ही चेक का भुगतान मिला है और हितग्राही द्वारा षिकायत की गर्इ है, तो इस संबंध में उचित कार्यवाही करें।
(11) परन्तु उसके पष्चात दिनांक-22.11.2011 को अनावेदक द्वारा, एस0बी0आर्इ0 प्रषासनिक कार्यालय, जबलपुर को संबोधित पत्र की अनावेदक की ओर से पेष प्रति से यह दर्षित होता है कि-उसमें एस0बी0आर्इ0 षाखा, सिवनी द्वारा, दिनांक-07.10.2011 को भेजी गर्इ सूचना का कोर्इ हवाला ही नहीं दिया गया, बलिक यह लेख किया गया कि-एस0बी0आर्इ0 षाखा सिवनी से अब-तक कोर्इ जवाब नहीं आ पाया है, जो कि-अनावेदक के इस पत्र में यह भी हवाला दिया गया कि-हितग्राही द्वारा लोकपाल में षिकायत कर दिया गया है, इसलिए तत्काल निपटान कराया जाये। परन्तु दिनांक-22.11.2011 का उक्त पत्र भेजे जाने के बाद क्या कार्यवाही अनावेदक-पक्ष के द्वारा और की गर्इ, इस संबंध में परिवाद के जवाब में अनावेदक-पक्ष द्वारा भ्रामक व असत्य जानकारी यह लेख करते हुये दी गर्इ कि-भारतीय स्टेट बैंक की षाखा, लखनादौन को ही पत्र लिखे गये थे और उक्त चेक कलेक्षन के लिए एस0 बी0आर्इ0 षाखा लखनादौन को भेजा गया था। और परिवाद की पोशणीयता पर भी आपतित ली गर्इ थी कि-एस0बी0आर्इ0 षाखा, लखनादौन को पक्षकार बनाने से पक्षकारों को कुसंयोजन हुआ है और एस0बी0आर्इ0 लखनादौन द्वारा कोरियर से ड्राफट भेजा जाना बतलाया गया है, जो कोरियर की गलती से अनावेदक को चेक का भुगतान प्राप्त नहीं हो पाया है, जो कि-ऐसा जवाब में लिया गया बचाव भ्रामक व असत्य होना इसलिए दर्षित है, क्योंकि इस संबंध में जो अनावेदक-पक्ष की ओर से प्रदर्ष आर-8 और आर-9 के पत्र एस0बी0 आर्इ0, षाखा लखनादौन को दिनांक-21.10.2011 को, सेन्ट्रल बैंक, षाखा लखनादौन को दिनांक-16.02.2012 को भेजा जाना कहे गये हैं और एस0 बी0आर्इ0 षाखा लखनादौन से प्राप्त 4 अक्टूबर-2011 के पत्र की प्रति पेष की गर्इ है, वे सब मामले में प्रष्नाधीन चेक व उक्त चेक के बी0सी0 से संबंधित न होकर दूसरे चेक व दूसरे बी0सी0 से संबंधित पत्र रहे हैं, जिन्हें पेष कर, अनावेदक की ओर से परिवादी के चेक का भुगतान का डी0डी0 लखनादौन की षाखा से भेजे जाने पर भी प्राप्त न होने का असत्य व भ्रामक बचाव लिया गया है। और यह भी स्पश्ट है कि-बैंकिंग लोकपाल को भी अनावेदक बैंक षाखा द्वारा, एस0बी0आर्इ0 ब्रांच, सिवनी में सहारा इंडिया द्वारा भुगतान रोक देने का प्रमाण-पत्र व षपथ-पत्र प्राप्त कर, औपचारिकतायें पूर्ण कर लिये जाने और षीघ्र डुप्लीकेट चेक सहारा इंडिया से प्राप्त हो जाने की जो रिपोर्ट पेष की गर्इ थी, ऐसी कोर्इ काय्रवाही की गर्इ हो, ऐसा अनावेदक-पक्ष का कोर्इ जवाब व साक्ष्य में कोर्इ दस्तावेज नहीं, जो कि-न्यायदृश्टांत-2013 (भाग-2) सी0पी0आर0 749 (एन0सी0) दिनेष कुमार बंसल विरूद्ध ओरियण्टल बैंक आफ कामर्स वाले मामले में माननीय राश्ट्रीय आयोग द्वारा यह व्यक्त किया गया है कि-बैंक जैसी संस्था के द्वारा असत्य व भ्रामक तथ्य जवाब में लेखकर बचाव लिया जाना स्वयं में गम्भीर सेवा में कमी है और ऐसे प्रयास के संबंध में पक्षकार को दणिडत किया जाना चाहिये।
(12) अनावेदक के जवाब और एस0बी0आर्इ0 सिवनी से अनावेदक को प्राप्त पत्र दिनांक-07.10.2011 प्रदर्ष आर-7 से जब यह स्पश्ट हो गया था कि-अनावेदक के द्वारा भेजी गर्इ बी0सी0 क्रमांक-ए4342011, दिनांक-02.05.2011, चेक क्रमांक-371966 एस0बी0आर्इ0 से दिनांक-06.05.2011 को ही वापस कर दिया गया था और उक्त आधार पर स्वयं अनावेदक के द्वारा भी दिनांक-20.10.2011 को पुन: प्रदर्ष आर-4 का पत्र एस0बी0आर्इ0 सिवनी को उक्त पत्र का हवाला देते हुये जारी किया गया था कि-न तो अब-तक चेक रिटर्न मिला है, न ही चेक का भुगतान हुआ है, तो अनावेदक द्वारा कलेक्षन के लिए भेजा गया चेक एस0बी0आर्इ0 मुख्य षाखा, सिवनी को वास्तव में प्राप्त हो गया था और उनके द्वारा उसी दिन उक्त चेक औरअथवा बी0सी0 वापस कर दिया जाना कहा गया था, तो अनावेदक को अपने जवाब में या अन्यथा इस पीठ के समक्ष यह सिथति स्पश्ट करना था कि-परिवादी के उक्त चेक का एस0बी0आर्इ0 सिवनी द्वारा, चेक जारीकत्र्ता के खाते से भुगतान हुआ था या उक्त चेक का अनादर हो गया था और चेक के अनादर होने या भुगतान न होने का क्या कारण रहा है। और इस संबंध में विषिश्ट रूप से चेक के आदर या अनादर होने बाबद कारण सहित जानकारी अनावेदक बैंक षाखा द्वारा, एस0बी0आर्इ0 मुख्य षाखा, सिवनी से अक्टूबर-2011 से लेकर अक्टूबर-2013 तक के दो वर्श की अवधि में भी क्यों नहीं प्राप्त की जा सकी। उक्त जानकारी पाने के लिए उक्त अवधि में क्या कार्यवाही की गर्इ, इस संबंध में अनावेदक-पक्ष मौन है, जो कि-परिवादी द्वारा मौखिक रूप से व अनावेदक को पत्र लिखकर जानकारी मांगे जाने पर टोल फ्री नंबर पर एवं लिखित षिकायत के द्वारा अनावेदक की क्षेत्रीय कार्यालय में षिकायत किये जने पर और दो बार बैंकिंग लोकपाल को षिकायत भेजे जाने के बावजूद, अनावेदक बैंक षाखा द्वारा, परिवादी को कभी कोर्इ लिखित सूचना दी नहीं गर्इ, जो स्वयं में परिवादी के प्रति-की गर्इ गंभीर सेवा में कमी है।
(13) फिर दिनांक-07.10.2011 के एस0बी0आर्इ0 षाखा सिवनी के पत्र से अनावेदक को यह जानकारी मिल गर्इ थी कि-एस0बी0आर्इ0 सिवनी को भेजा गया चेक सहित, बी0सी0 उसी दिन एस0बी0आर्इ0 सिवनी द्वारा वापस कर दिया गया, तो उक्त बी0सी0 वास्तव में अनावेदक को वापस प्राप्त नहीं हुआ था, तो एस0बी0आर्इ0 षाखा सिवनी से संबंधित कोरियर या भेजने वाली एजेन्सी की जानकारी लेकर, उक्त डाक कहां, कब और किसको वितरित हुर्इ, यह स्वाभाविक रूप से पता किया जाना होता है और अनावेदक के द्वारा, इस संबंध में कथित डाक के प्राप्त होने न होने बाबद वितरण एजेन्सी की कोर्इ न तो रिपोर्ट पेष की गर्इ है, न ही वितरण एजेन्सी से इस बाबद पुशिट किये जाने के संबंध में अनावेदक के जवाब में कोर्इ तथ्य लेख किया गया है।
(14) तब यह सिथति स्पश्ट है कि-अनावेदक बैंक षाखा से कलेक्षन के लिए भेजा गया चेक पोस्ट आफिस से कतर्इ गुम नहीं हुआ था और वह एस0बी0आर्इ0 मुख्य षाखा, सिवनी को बी0सी0 सहित प्राप्त हुआ था, जो कि-यह तथ्य अनावेदक को दिनांक-07.10.2011 को ही ज्ञात हो गया था। तब दो ही सिथतियां संभव थीं, पहली यह कि-एस0बी0आर्इ0 सिवनी से चेक का अनादर यदि हुआ था, तो चेक के अनादर होने के कारण सहित, प्रमाण-पत्र एस0बी0आर्इ0 सिवनी से लेकर उसकी प्रति व चेक के अनादर हो जाने की सूचना परिवादी को अनावेदक के द्वारा भेज दी जानी चाहिये थी, ताकि परिवादी धारा-138 परक्राम्य लिखित अधिनियम के प्रावधान के तहत सक्षम दाणिडक न्यायालय में कार्यवाही की सकता अथवा उक्त चेक की राषि की चेक जारीकत्र्ता से वसूली के लिए कार्यवाही कर सकता।
(15) दूसरी सिथति यह हो सकती थी कि-उक्त चेक व बी0सी0 का चेक जारीकत्र्ता के खाते से राषि काटी जाकर, एस0बी0आर्इ0 सिवनी द्वारा, डी0डी0 या जो भी प्रचलित प्रथा हो, उसके माध्यम से भुगतान अनावेदक बैंक षाखा को भेजा गया और ऐसे भुगतान की डाक को या तो वितरण एजेन्सी द्वारा गुमा दिया गया या अनावेदक के षाखा में डाक प्राप्त होने के बाद गुमा दी गर्इ। तब ऐसी सिथति में भुगतान के डुप्लीकेट दस्तावेजों की मांग एस0बी0आर्इ0 सिवनी से की जाकर, अनावेदक के द्वारा, परिवादी के खाते में राषि जमा की जाती। और क्योंकि यदि चेक जारीकत्र्ता के खाते से चेक की राषि काटी जा चुकी है, तो ऐसी सिथति में परिवादी को चेक जारीकत्र्ता से पुन: राषि वसूलने की कार्यवाही करने का कोर्इ विकल्प, अधिकार या आधार संभव नहीं हो पाता।
(16) तो वास्तव में उक्त दोनों सिथतियों में-से कौन सी सिथति रही है, यह ही अनावेदक को संबंधित एस0बी0आर्इ0 मुख्य षाखा सिवनी से ज्ञात कर, परिवादी को लिखित में सूचित करना था और उपर बताये अनुसार ही कार्यवाही करना था। और यही वास्तविक वस्तु-सिथति अनावेदक के द्वारा, बैंकिंग लोकपाल के समक्ष प्रकट की जानी चाहिये थी। और इस पीठ के समक्ष पेष जवाब में स्पश्ट की जानी चाहिये थी। जबकि- अनावेदक-पक्ष के द्वारा ऐसी कोर्इ वास्तविक सिथति न तो परिवाद के जवाब में स्पश्ट की गर्इं हैं, न ही बैंकिंग लोकपाल के समक्ष प्रकट की गर्इं। और इसके स्थान पर अविषिश्ट और भ्रामक जवाब पेष कर, परिवादी के प्रति-गम्भीर सेवा में कमी की गर्इ है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक- 'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(17) सामान्यत: कलेक्षन के लिए भेजा गया चेक गुम जाने के आधार पर, चेक की राषि के भुगतान का दायित्व बैंक का नहीं होता है और मात्र सेवा में की गर्इ कमी के संबंध में ही हर्जाना दिलाया जाना पर्याप्त रहता है, लेकिन बैंक को यह सिथति स्पश्ट करना आवष्यक होता है कि-चेक जारीकत्र्ता के खाते से चेक की राषि का भुगतान हुआ या नहीं, अर्थात चेक का चेक जारीकत्र्ता के खाते से यदि आहरण हो गया है, तो उक्त राषि की अदायगी चेक जमाकत्र्ता के खाते में किये जाने का दायित्व बैंक का है, लेकिन चेक के अनादर हो जाने की सिथति में चेक की राषि चेक जारीकत्र्ता से वसूल कर पाने का विकल्प व चेक जारीकत्र्ता से वसूली हेतु कार्यवाही करने का अधिकार चेकधारी के पास षेश रहता है। और इसलिए तब उक्त चेक की राषि का भुगतान करने का दायित्व बैंक का नहीं होता। और ऐसी सिथति बैेंक द्वारा स्पश्ट न कर पाने पर, उक्त बाबद सषर्त आदेष किया जा सकता है, जैसा कि-न्यायदृश्टांत-2012 (भाग-2) सी0पी0जे0 370 (एन0सी0) आर्इ.सी.आर्इ.सी.आर्इ. लिमिटेड बनाम सोनेगावडा व अन्य में दी गर्इ प्रतिपादना से स्पश्ट है।
(18) अत: विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
(अ) अनावेदक के द्वारा, परिवादी द्वारा जमा चेक के भुगतान न हो पाने के संबंध में ढार्इ वर्श तक कोर्इ भी समुचित जानकारी मांगने पर भी परिवादी को न दिया जाना और चेक का आदर या अनादर होने बाबद कोर्इ भी सिथति ढार्इ वर्श तक स्पश्ट न किया जाना और परिवाद के जवाब में भी उक्त बाबद कोर्इ तथ्यात्मक सिथति स्पश्ट न कर, असत्य व भ्रामक बचाव लिया जाना और कलेक्षन के लिए भेजे गये चेक के संबंध में गंभीरतापूर्वक कोर्इ समुचित समय में कोर्इ कार्यवाही न किया जाना, अनुचित होकर, परिवादी के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी है, उक्त हेतु अनावेदक, परिवादी को 10,000-रूपये (दस हजार रूपये) दण्डात्मक हर्जाना अदा करे।
(ब) अनावेदक आदेष दिनांक से दो माह की अवधि के अन्दर परिवादी को यह लिखित जानकारी भेजकर सूचित करेगा कि-उसके द्वारा पेष चेक की राषि का चेक जारीकत्र्ता के खाते से आहरण हो चुका है या नहीं और चेक जारीकत्र्ता के खाते से आहरण हुआ है, तो उक्त आहरित राषि और उक्त राषि पर, दिनांक- 07.10. 2011 से भुगतान दिनांक तक की अवधि का 9 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज परिवादी के खाते में आदेष दिनांक से दो माह की अवधि के अन्दर जमा करे, जो कि-अनावेदक उक्त चेक की राषि इंटर बैंकिंग सिस्टम के तहत आहरणकत्र्ता बैंक षाखा से प्राप्त कर सकेगा।
(स) यदि उक्त प्रष्नाधीन चेक का अनादर हुआ है, तो अनादर के कारण सहित, परिवादी को लिखित सूचना संबंधित बैंक की सूचना या प्रमाण-पत्र के साथ अनावेदक, परिवादी को आदेष दिनांक से दो माह की अवधि के अंदर भेजेगा।
(द) अनावेदक स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और
परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में 2,000-रूपये
(दो हजार रूपये) अदा करेगा।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
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(म0प्र0) (म0प्र0)
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