सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 208/2016
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्धितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या- 1056/2009 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04-12-2015 के विरूद्ध)
एच०डी०एफ०सी० एरगो जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 द्वारा रीजनल मैनेजर (नार्थ) सी-302, थर्ड फ्लोर, अंसल प्लाजा, हुडको प्लेस, एन्ड्रिव्स गंज, न्यू दिल्ली।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
पैहाम अल्वी पुत्र श्री रसीद अल्वी, निवासी 60/40 हुसैनगंज लखनऊ।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री मनोज कुमार दुबे
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता, श्री आर0के0 मिश्रा
दिनांक: 27-11-2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या- 1056 सन् 2009 पैहाम अल्वी बनाम एच०डी०एफ०सी० एरगो जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्धितीय लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 04-12-2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुये निम्न आदेश पारित किया है:-
" परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मोटर साइकिल संख्या- यू0पी0 32 बी०वी० 2310 हीरो हॉण्डा पैशन के सन्दर्भ में सब स्टैण्डर्ड धनराशि 24000/-रू० इस निर्णय की तिथि से चार सप्ताह के अन्दर अदा करें।"
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी, एच०डी०एफ०सी० एरगो जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मनोज कुमार दुबे और प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आर0के0 मिश्रा उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है। मैंने अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसकी मोटर साइकिल जिसका पंजीयन नं० यू0पी0 32 बी०वी० 2310 हीरो हॉण्डा पैशन था, अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से दिनांक 07-07-2007 से दिनांक 06-07-2008 तक की अवधि हेतु बीमित थी। बीमा अवधि में दिनांक 20/21-11-2007 की दरमियानी रात में उसकी यह मोटर साइकिल एक अन्य मोटर साइकिल यू0पी0 32 बी०जे०
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4966 हीरो हॉण्डा स्पलैण्डर प्लस के साथ चोरी चली गयी जिसकी सूचना पुलिस को दी गयी और एफ०आई०आर० दिनांक 08-12-2007 को दर्ज की गयी। बाद में उपरोक्त मोटर साइकिल नं० यू0पी0 32 बी०जे० 4966 हीरो हॉण्डा स्पलैण्डर प्लस संजू श्रीवास्तव पुत्र श्री अनूप कुमार श्रीवास्तव के कब्जे से बरामद की गयी परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी की मोटर साइकिल यू0पी0 32 बी०वी० 2310 हीरो हॉण्डा पैशन पुलिस द्वारा बरामद नहीं की गयी और अंतिम रिपोर्ट न्यायालय प्रेषित की गयी जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने विपक्षी बीमा कम्पनी को क्लेम हेतु समस्त अभिलेख उपलब्ध कराया परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने उसे क्लेम की धनराशि इस आधार पर अदा नहीं किया कि चोरी की सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी ने तुरन्त नहीं दी है।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने सूचना देने में विलम्ब जानबूझकर नहीं किया है, ऐसा मात्र अज्ञानतावश हुआ है। अत: उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर मोटर साइकिल की बीमित धनराशि दिलाए जाने का अनुरोध किया है साथ ही मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय मांगा है।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने लिखित कथन प्रस्तुत किया है जिसमें कहा गया है कि मोटर साइकिल चोरी की सूचना चोरी की तिथि से 18 दिन बाद विपक्षी बीमा कम्पनी को दी गयी है। अत: विलम्ब से सूचना बीमा कम्पनी को दिये जाने के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा अस्वीकार किया गया है जो उचित है। ऐसा कर बीमा कम्पनी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।
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जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने मोटर साइकिल चोरी की सूचना 18 दिन बाद दी है परन्तु चोरी की सूचना पुलिस में 100 नम्बर पर दी है। जिला फोरम ने यह माना है कि इस आधार पर पूरा क्लेम अस्वीकार किया जाना उचित नहीं है। जिला फोरम ने यह भी माना है कि ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर 25 प्रतिशत की कटौती कर निर्णीत किया जाना उचित है। अत: जिला फोरम ने तदनुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आक्षेपित आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने मोटर साइकिल चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को चोरी की घटना के 18 दिन बाद दी है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है। अत: बीमा कम्पनी ने इसी आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त किया है जो अनुचित और विधि विरूद्ध नहीं है। ऐसा कर अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर जो आक्षेपित आदेश पारित किया है वह विधि विरूद्ध है और निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश उचित और विधि सम्मत है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्मलिखित न्यायिक निर्णयों को सन्दर्भित किया है:-
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- सिविल अपील नं० 6739/2010 ओरियण्टल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 बनाम परवेश चन्दर चड्ढा में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशि दिनांक 17 अगस्त 2010
- श्री बलराज शर्मा बनाम मैनेजर आई०सी०आई०सी०आई० लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 2013 एन०सी०जे० 174 (एन०सी) में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांक 24-01-2013
- हुकुम सिंह बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंश कम्पनी लि0 2013 एन०सी०जे० 953 (एन०सी) में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांक 22-11-2013
- सिविल अपील नं० 1373 सन् 2003 सूरजमल राम निवास ऑयल मिल्स बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व अन्य में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 08-10-2010
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है और उपरोक्त सन्दर्भित निर्णयों का आदरपूर्वक अवलोकन किया है।
परिवाद पत्र की धारा-2 में प्रत्यर्थी/परिवादी ने पुलिस के 100 नम्बर पर सूचना दिये जाने का कथन किया है और परिवाद पत्र की धारा-2 के कथन से लिखित कथन में जानकारी न होने के कारण इन्कार किया गया है। परिवाद पत्र के कथन का समर्थन प्रत्यर्थी/परिवादी ने शपथ-पत्र में किया है और जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से विपक्षी बीमा कम्पनी को चोरी की सूचना देने में 18 दिन का विलम्ब तो अवश्य हुआ है परन्तु चोरी की सूचना थाने में 100 नम्बर पर तुरन्त पुलिस
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को दिये जाने के सम्बन्ध में प्रत्यर्थी/परिवादी के कथन पर अविश्वास करने हेतु उचित आधार नहीं है।
परिवाद पत्र की धारा-2 के कथन से स्पष्ट है कि पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में टाल-मटोल किया जा रहा था। अंत में पुलिस ने दिनांक 08-12-2007 को एफ०आई०आर० दर्ज की है। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस थाना में दर्ज होने में जो विलम्ब हुआ है उसका प्रत्यर्थी/परिवादी ने उचित और युक्तिसंगत कारण दर्शित किया है। अत: यह स्पष्ट है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में विलम्ब पुलिस के कारण हुआ है न कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कारण हुआ है और प्रत्यर्थी/परिवादी ने तुरन्त घटना की सूचना पुलिस को देने के अपने दायित्व को पूरा किया है।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने मोटर साइकिल चोरी की घटना फर्जी व बनावटी नहीं बताया है।
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंश कम्पनी लि0 व एक अन्य बनाम राहुल कादियान 2018(1) सी०पी०आर० 772 (एन०सी०) के वाद में माना है कि यदि पुलिस को घटना की सूचना समय से दी गयी है तो जेनविन क्लेम को बीमा कम्पनी मात्र सूचना में विलम्ब के आधार पर रेपुडिएट नहीं कर सकती है। माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धृत है:-
"From the guidelines of the IRDA it is clear that genuine claims are not to be repudiated on the basis of delay in intimation to the insurance company, In the instant case the
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specific condition in case of theft that police must be immediately informed, has been complied with and therefore the veracity of the incident cannot be questioned. Thus, the claims seems to be a genuine claims and therefore the above mentioned IRDA Circular seems to be applicable in the instant case."
उपरोक्त विवेचना एवं माननीय राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर जो आक्षेपित आदेश पारित किया है वह विधि विरूद्ध नहीं कहा जा सकता है। वर्तमान वाद के तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में उपरोक्त विवेचना के आधार पर अपीलार्थी को उसके विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त न्यायिक निर्णयों का लाभ नहीं दिया जा सकता है। अपील बलरहित है। अत: निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01