Final Order / Judgement | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन-अध्यक्ष। - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि उसके विरूद्ध विपक्षी द्वारा जारी कराई गई आर0सी0 वापिस ली जाय तथा क्षतिपूति और अधिवक्ता फीस की मद में विपक्षी से उसे 10,000/-रूपया दिलाऐ जाऐ।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 29/12/1994 को टयूवैल के लिए परिवादी ने 5 हार्स पावर का एक वि|qत कनेक्शन लिया था वि|qत कनेक्शन नम्बर- 1005/060074 था। बिजली के बिल जमा न करने के कारण विपक्षी द्वारा दिनांक 04/4/2000 को परिवादी की लाईन काट दी गई। उस तारीख से आज तक परिवादी ने बिजली का इस्तेमाल नहीं किया, परिवादी की पी0डी0 हो चुकी है। परिवादी के अनुसार उसने दिनांक 31/3/2001 को 10,000/- रूपया और दिनांक 31/3/2003 को 15,000/- रूपया विपक्षी के कार्यालय में जमा किऐ। परिवादी ने दिनांक 25/6/2003 को सभी वि|qत बिलों की अदायगी कर दी और उसकी रसीद भी प्राप्त कर ली है उसने अपना बोरिंग व कुआ इत्यादि सारा सामान उखड़वा दिया है। परिवादी ने बिजली का कोई इस्तेमाल नहीं किया इसके बावजूद परिवादी के पास अमीन आया जिससे परिवादी को पता चला कि उसके विरूद्ध लगभग 90,000/-रूपया की रिकबरी है इससे परिवादी को मानसिक आघात लगा। परिवादी के अनुसार बिजली विभाग ने उसे कोई नोटिस नहीं दिया। विपक्षी के कार्यालय के परिवादी ने अनेकों चक्कर लगाऐ किन्तु उसकी कोई सुनवाई नहीं की गई, मजबूरन उसे यह परिवाद योजित करना पड़ा। परिवादी ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के समर्थन में परिवादी ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-3/3 लगायत 3/4 दाखिल किया। शपथ पत्र के साथ उसने परमानेन्ट डिसकनेक्शन का विवरण, बिजली के बिलों की अदायगी की रसीद दिनांकित 29/12/1994 अंकन 1590/-रूपया, रसीद दिनांकित 29/12/1994 अंकन 1381/- रूपया, रसीद दिनांकित 31/3/2001 अंकन 10,000/- रूपया, रसीद दिनांकित 31/3/2003 अंकन 15,000/-रूपया, परिवादी द्वारा अपना कनेक्शन कटवाने हेतु अधिशासी अभियन्ता को दिऐ गऐ पत्र, विपक्षी को भेजे गऐ कानूनी नोटिस दिनांकित 11/01/2011 की नकलों को दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/5 लगायत 3/8 हैं। परिवादी ने बिल जमा करने हेतु विपक्षी द्वारा उपलब्ध कराई गई पासबुक की फोटो कापी कागज सं0-3/11 ता 3/12 भी दाखिल की है।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-6/1 लगायत 6/6 दाखिल हुआ। प्रतिवाद पत्र में यह तो स्वीकार किया गया कि परिवादी ने निजी नलकूप हेतु विपक्षी से एक वि|qत कनेक्शन सं0- 0600074/1005 लिया था किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया। अग्रेत्तर कथन किया गया कि वि|qत बिलों का भुगतान न करने के कारण परिवादी का कनेक्शन दिनांक 18/3/2007 को अस्थाई रूप से काट दिया गया था और उसी दिन बिजली की लाईन उतार ली गई थी। परिवादी ने बिजली के बिलों का आंशिक भुगतान किया है। दिनांक 18/3/2007 से परिवादी ने लगतार बिजली का प्रयोग किया है। विशेष कथनों में कहा गया है कि परिवादी को बिल जमा करने हेतु पासबुक दी गई थी किन्तु परिवादी ने वाजिब बिलों का भुगतान नहीं किया। परिवादी की बिजली की लाईन दिनांक 01/10/2009 को उतारी गई थी। वि|qत कनेक्शन के स्थाई विच्छेदन का कार्यालय ज्ञापन दिनांक 16/2/2010 को जारी किया गया था। परिवादी की ओर स्थाई विच्छेदन की तिथि तक अंकन 89,427/- रूपया बकाया थे जिनकी अदायगी का परिवादी जिम्मेदार है। परिवादी को 89,427/- रूपया अदा करने का डिमांड नोटिस भेजा गया था, किन्तु उसने धनराशि जमा नहीं की। रिकबरी जारी होने के बाद फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी द्वारा भिजवाऐ कानूनी नोटिस का सही जबाव विपक्षी द्वारा भेज दिया गया था। परिवादी को कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ और वह कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है। उक्त कथनों के आधार पर परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- प्रतिवाद पत्र के साथ कार्यालय ज्ञापन दिनांक 16/2/2010, परमानेन्ट डिसकनेक्शन फार्म सं0-9 दिनांकित 02/10/2009 तथा रिकबरी सर्टिफिकेट की नकलों को दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-6/7 लगायत 6/11 हैं।
- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-8/1 लगायत 8/3 दाखिल किया। विपक्षी की ओर से अधिशासी अभियन्ता श्री राकेश कुमार का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-11/1 लगायत 11/6 दाखिल हुआ जिसके साथ कार्यालय ज्ञापन दिनांक 16/2/2010, परमानेन्ट डिसकनेक्शन फार्म सं0-9 दिनांकित 02/10/2009 की नकलों को बतौर संलग्नक दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-11/7 लगायत 11/9 हैं। बहस के दौरान कागज सं0-3/6 में दर्शाई गई रसीदों की पठनीय प्रति की हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता से मांग की जिस पर उन्होंने इन रसीदों की पठनीय प्रति उपलब्ध कराईं जो पत्रावली का कागज सं0-15/1 व 15/2 हैं।
- परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की। विपक्षी की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने परमानेन्ट डिसकनेक्शन की डिटेल कागज सं0-3/5 तथा परिवादी द्वारा अधिशासी अभियन्ता को दिऐ गऐ पत्र दिनांकित 22/3/2003 की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ तर्क दिया गया कि परिवादी की वि|qत लाइन बिजली विभाग द्वारा दिनांक 22/3/2002 को काट दी गई थी और दिनांक 25/6/2003 को उसकी पी0डी0 हो गई थी अत: विपक्षीगण के यह कथन कि परिवादी का कनेक्शन दिनांक 18/3/2007 को विच्छेदित हुआ था और उसकी पी0डी0 दिनांक 01/10/2009 को हुई थी, असत्य है।परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने कार्यालय ज्ञापन दिनांक 16/2/2010 कागज सं0-6/7 और 6/8 को मनमाना बताते हुऐ कहा कि कागज सं0-3/5 के अनुसार जब 25/6/2003 को परिवादी की पी0डी0 हो चुकी थी तब उक्त तिथि के बाद की अवधि के बिल शामिल करते हुऐ परिवादी के विरूद्ध दर्शाई जा रही 89,427/-रूपया की डिमांड स्वीकार किऐ जाने योग्य नहीं है।
- प्रतिवाद पत्र में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने कार्यालय ज्ञापन कागज सं0-6/7 लगायत 6/8 तथा परमानेन्ट डिसकनेक्शन सम्बन्धी फार्म सं0-9 की नकल कागज सं0-6/9 की ओर हमारा ध्यान आकषित करते हुऐ कथन किया कि परिवादी की लाइन दिनांक 18/3/2007 को काटी गई थी और उसकी पी0डी0 दिनांक 01/10/2009 को हुई थी। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के अनुसार परिवादी के विरूद्ध जारी कार्यालय ज्ञापन में उल्लिखित डिमांड तद्नुरूप निकाली गई है जो अभिलेखों के अनुसार है ऐसी दशा में परिवाद अस्वीकृत होने योग्य है।
- परिवादी द्वारा दाखिल साक्ष्य सामग्री और अभिलेखों के आधार पर परिवादी का वि|qत कनेक्शन दिनांक 22/3/2002 को विच्छेदित होना तथा पी0डी0 दिनांक 25/6/2003 को होना प्रमाणित है। पत्रावली में अवस्थित कागज सं0-3/7 परिवादी द्वारा विपक्षी के अधिशासी अभियन्ता को दिनांक 22/3/2003 को दिऐ गऐ पत्र की नकल है जिसमें उसने अपने नलकूप की लाइन काटने का अनुरोध किया है। इस पत्र के मार्जिन पर अंकित रिपोर्ट से प्रकट है दिनांक 22/3/2002 को परिवादी की वि|qत लाइन बकाया भुगतान न करने के कारण काट दी गयी थी और पोल से केबिल उतार लिया गया था। कागज सं0-3/5 विपक्षी का ही अभिलेख है जिस पर विपक्षी के जूनियर इंजीनियर के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं। इस प्रपत्र के अनुसार परिवादी की पी0डी0 उसके स्वयं के अनुरोध पर दिनांक 25/6/2003 को बिजली विभाग ने कर दी थी तब दिनांक 01/10/2009 को परिवादी के कनेक्शन की पी0डी0 मानते हुऐ कार्यालय ज्ञापन दिनांकित 16/2/2010 किस आधार पर जारी किया गया इसका कोई संतोषजनक उत्तर विपक्षी की ओर से नहीं आया। यहॉं यह भी उल्लेखनीय है कि जब कागज सं0-3/7 और 3/5 के अनुसार परिवादी की बिजली की लाइन दिनांक 22/3/2002 को काट दी गई थी और पोल से केबिल भी उतार लिया गया था तथा दिनांक 25/6/2003 को उसकी पी0डी0 भी कर दी गयी थी तब वि|qत कनेक्शन काटे जाने की तिथि अर्थात् 22/3/2002 के बाद परिवादी द्वारा बैध रूप से बिजली का उपभोग किया जाना सम्भव नहीं था। विपक्षी का यह केस नहीं है कि परिवादी चोरी से बिजली का प्रयोग कर रहा था। इन परिस्थितियों में विपक्षी के प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-4 में यह उल्लेख किस आधार पर कर दिया गया कि दिनांक 18/3/2007 से परिवादी ने वि|qत का लगातार उपभोग किया था इसका कोई उत्तर हमें पत्रावली में नहीं मिलता। कदाचित दिनांक 22/3/2002 के बाद परिवादी द्वारा बिजली का उपभोग किया जाना प्रमाणित नहीं है। दिनांक 25/6/2003 को उसकी पी0डी0 हो चुकी थी।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे है कि विपक्षी द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन दिनांकित 16/2/2010 (पत्रावली का कागज सं0-6/7 लगायत 6/8) निरस्त होने योग्य है और हमारे मत में परिवादी की पी0डी0 की दिनांक 25/6/2003 मानते हुऐ तद्नुरूप कार्यालय ज्ञापन परिवादी को जारी किया जाना चाहिए। दिनांक 25/6/2003 तक तथा परिवादी द्वारा जमा किऐ गऐ बिलों की राशि को उसमें समायोजित किया जाय।
- इस मामले में उपलब्ध अभिलेखों से विपक्षी के कार्यालय की कार्य प्रणाली उजागर हुई कि किस प्रकार कार्यालय में अभिलेख तैयार कर उपभोक्ता से अनाप-शनाप धनराशि की डिमांड की गई है। विपक्षी के कृत्यों को देखते हुऐ परिवादी को क्षतिपूर्ति की मद में हम एकमुश्त 5000/- रूपया दिलाया जाना भी न्यायोचित समझते हैं। यहॉं यह स्पष्ट किया जाता है कि कार्यालय ज्ञापन तैयार करते समय परिवादी से दिनांक 25/6/2003 के बाद की कोई धनराशि यथा ब्याज इत्यादि वसूल नहीं किया जाऐगा। परिवाद तदानुसार स्वीकार होने योग्य है।
विपक्षी द्वारा परिवादी के विरूद्ध जारी कार्यालय ज्ञापन दिनांकित 16/2/2010 निरस्त किया जाता है। परिवादी के वि|qत कनेक्शन की पी0डी0 की तिथि 25/6/2003 के आधार पर विपक्षी परिवादी को आज की तिथि से एक माह के भीतर नया कार्यालय ज्ञापन जारी करें। कार्यालय ज्ञापन जारी करते समय परिवादी द्वारा वि|qत बिल की मद में दिनांक 31/3/2001 को जमा की गई 10,000/- रूपया, दिनांक 31/3/2003 को जमा की गई 15,000/-रूपये तथा 25/6/2003 तक जमा की गई अन्य धनराशि यदि कोई हो तो उसे समायोजित किया जाय। दिनांक 25/6/2003 की तिथि के बाद की कोई धनराशि यथा ब्याज इत्यादि परिवादी से वसूल न की जाय। विपक्षी परिवादीको आज की तिथि से एक माह के भीतर क्षतिपूर्ति के रूप में एकमुश्त 5000/-रूपया अतिरिक्त अदा करेगें। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
24.09.2016 24.09.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 24.09.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
24.09.2016 24.09.2016 | |