ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद माध्यम से परिवादी ने अनुरोध किया है कि विपक्षी को आदेशित किया जाय कि उसके आवास पर लगे कनेक्शन की पी0डी0 विच्छेदन की दिनांक 13/8/2004 के आधार पर फाइनल करें और समस्त औपचारिकताओं को पूरा कराकर परिवादी को नया वि|qत कनेक्शन प्रदान करें। सेवा में कमी तथा अनुचित व्यापार प्रथा के कारण परिवादी ने 75000/- रूपया क्षतिपूर्ति और 15000/- परिवाद वयय अतिरिक्त मांगा हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार है कि परिवादी ने दिनांक 15/6/2004 को गांधी नगर, मुरादाबाद स्थित भवन सं0-104ए श्रीमती सावित्री देवी से खरीदा था। मकान में 4 किलोवाट क्षमता का वि|qत कनेक्शन सं0-059236/1034 लगा था। मकान बेचने से पूर्व श्रीमती सावित्री देवी ने दिनांक 9/6/2004 को 10000/- रूपया और दिनांक 22/6/2004 को 11000/- रूपया विपक्षी के यहॉं जमा कराऐ। दिनांक 13/8/2004 को मकान का कनेक्शन इस आधार पर काट दिया गया कि परिवादी के ऊपर 24765/- रूपया बिजली के बकाया हैं। इसके विरूद्ध परिवादी ने अपनी शिकायत वि|qत सब स्टेशन पर दिनांक 14/8/2004 को दर्ज कराई किन्तु परिवादी के मकान की बिजली नहीं जोड़ी गई। दिनांक 12/4/2004 से 12/6/2004 तक की अवधि के बिल में देय राशि 24765/- रूपया दिखाई गई थी जबकि 21000/- रूपया का भुगतान पूर्व में किया जा चुका था जो बिल में समायोजित नहीं था। परिवादी ने असिस्टेन्ट इंजीनियर से मिलकर उक्त बातें बताई उन्होंने बिल पर अंकित किया कि पिछला भुगतान समायोजित नहीं है इसे चेक कर लिया जाऐ फिर भी पिछले भुगतान का समायोजन नहीं किया गया। परिवादी ने अवर अभियन्ता से मिलकर वि|qत विच्छेदन के प्रमाण पत्र की मांग की, किन्तु उन्होंने तत्सम्बन्धी परिवादी का प्रार्थना पत्र लेने से इन्कार कर दिया उक्त प्रार्थना पत्र परिवादी ने डाक से विपक्षी को भेजा। परिवादी ने दिनांक 14/10/2004 को पुन: शिकायत की। आश्वासन देकर परिवादी से जबरन 5000/- रूपया जमा करा लिऐ गऐ। दिनांक 12/8/2004 से 08/10/2004 की अवधि का दो महीने का 23,224/- रूपया का बिजली का बिल परिवादी को दिया गया जिसमें 401 यूनिट बिजली की खपत दिखाई गई जबकि परिवादी का कनेक्शन कटा हुआ था। इस बिल में भी पिछले जमा 21000/- रूपया समायोजित नहीं किऐ गऐ थे। परिवादी ने जनवरी, 2005 में अपना कनेक्शन जोड़ने हेतु फिर एक प्रार्थना पत्र दिया किन्तु उसका कनेक्शन नहीं जोड़ा गया। माह अक्टूवर, 2004 से माह दिसम्बर, 2004 तक की अवधि में 382 यूनिट की खपत दिखाते हुऐ परिवादी को 25182/- रूपया का बिल भेजा गया उसे लेकर परिवादी विपक्षी के कार्यालय गया जहॉं समायोजन करते हुऐ परिवादी की ओर 1668/- रूपया का अवशेष दिखाया गया। परिवादी के अनुसार यह अवशेष भी गलत था क्योकि दिनांक 13/8/2004 से उसका कनेक्शन कटा हुआ था तब मीटर रीडिंग के अनुसार बिजली की खपत होने का सवाल ही नहीं था। परिवादी ने दिनांक 09/3/2005 को विपक्षी के यहॉं पुन: लिखित शिकायत प्रस्तुत की जिस पर 475/- रूपये का संशोधित बिल बनाकर उसे दिया गया जिसका भुगतान परिवादी ने दिनांक 31/3/2005 को कर दिया। इसके बावजूद परिवादी का कनेक्शन नहीं जोड़ा गया। परिवादी ने दिनांक 16/10/2006 को कनेक्शन जोड़ने हेतु पुन: प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जिस पर 5000/- रूपया जमा करने के लिए परिवादी से कहा गया पुन: संयोजन की मद में 150/- रूपया अतिरिक्त मांगे गऐ चॅूंकि यह मांग गलत थी इसलिए परिवादी ने उसे जमा नहीं किया। विपक्षी के अपकृत्यों से परेशान होकर परिवादी ने दिनांक 01/11/2007 को एक शपथ पत्र इस आशय का दिया कि कनेक्शन को अस्थाई रूप से दिनांक 13/8/2004 से विच्छेदित मानते हुऐ पी0डी0 की जाऐ। दिनांक 27/2/2008 को परिवादी का मीटर उतारा गया और सीलिंग प्रमाण पत्र बनाया गया इसके बाद भी परिवादी विपक्षी के कार्यालय में लगातार सम्पर्क करता रहा किन्तु उसकी पी0डी0 फाइनल नहीं की गई। अन्तत: परिवादी को 6864/- रूपया का बिल दे दिया गया, किन्तु उसकी फाइनल पी0डी0 विपक्षी ने आज तक नहीं बनाई जबकि दिनांक 13/8/2004 से निरन्तर परिवादी का कनेक्शन कटा हुआ है। परिवादी ने उक्त कथनों के आधार पर यह कहते हुऐ कि विपक्षी और उसके अधिकारियों एवं कर्मचारियों के कृत्य सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रथा है, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवाद के साथ परिवादी ने भुगतान की रसीद दिनांक 9/6/2004 अंकन 10000/- रूपये, भुगतान की रसीद दिनांकित 22/6/2004 अंकन 11000/- रूपये, भुगतान की रसीद दिनांकित 31/3/2005 अंकन 475/- रूपया, बिल दिनांकित 29/7/2004 अंकन 24765/- रूपया, परिवादी का शिकायती पत्र दिनांकित 18/8/2004, पिछले जमा के समायोजन हेतु दिऐ गऐ प्रार्थना पत्र और दिनांक 14/10/2004 को जमा किऐ गऐ 5000/- रूपये की रसीद, बिल दिनांकित 24/11/2004 अंकन 23224/- रूपया, परिवादी के शिकायती पत्र दिनांकित 27/1/2005, बिल दिनाक 9/10/2005 अंकन 25182/- रूपया, परिवादी का शिकायती पत्र दिनांकित 16/10/2006, परिवादी द्वारा पी0डी0 करने हेतु किऐ गऐ शपथ पत्र, शिकायती पत्र दिनांकित 9/1/2008, मीटर उतारने का मीटर सीलिंग प्रमाण पत्र दिनांकित 27/2/2008, परिवादी का शपथ पत्र दिनांकित 25/7/2008, शिकायती पत्र दिनांकित 24/9/2008 और पी0डी0 करने हेतु पुन: दिऐ गऐ प्रार्थना पत्र दिनांक 28/9/2008 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/6 लगायत 3/22 हैं।
- विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-9/1 लगायत 9/8 दाखिल किया गया जिसमें गांधी नगर, मुरादाबाद स्थित भवन सं0-104 ए, में श्रीमती सावित्री देवी के नाम घरेलू बिजली का कनेक्शन सं0- 059236/1034 लगा होना तो स्वीकार किया गया है, किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया है। अग्रेत्तर कथन किया गया कि परिवादी ने मकान खरीदने की कोई सूचना विपक्षी को नहीं दी और न ही उसने कभी नाम परिवर्तन कराने हेतु नियमानुसार कोई औपचारिकता पूरी की। परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है, परिवाद में भवन स्वामी सावित्री देवी आवश्यक पक्षकार है, प्रश्नगत भवन पर बिजली के एरियर बकाया हैं जब तक उनका भुगतान नहीं हो जाता इस भवन पर नया वि|qत कनेक्शन नहीं दिया जा सकता, परिवाद कालबाधित है क्योंकि परिवादी ने मकान दिनांक 15/6/2004 को खरीदना बताया है जबकि परिवाद वर्ष, 2010 में 2 वर्ष की अवधि बीतने के बाद योजित किया गया। परिवादी ने वि|qत कनेक्शन दिनांक 13/8/2004 को विच्छेदित होना अपने परिवाद में कहा है इस दृष्टि से भी परिवाद कालबाधित है चॅूंकि परिवाद कथित डिस कनेक्शन के 2 वर्ष से अधिक अवधि के बाद दायर किया गया है। विपक्षी की ओर से यह कहते हुऐ कि परिवादी ने असत्य कथनों के आधार पर वाद योजित किया है और मैन्डेटरी इन्जंक्शन का अनुतोष चाहा है जिसे वह पाने का अधिकारी नहीं है, परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- साक्ष्य में परिवादी ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-10/1 लगायत 10/4 दाखिल किया।
- विपक्षी की ओर से अधिशासी अभियन्ता श्री अनूप कुमार का साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-11/1 लगायत 11/7 दाखिल हुआ।
- प्रत्युत्तर में परिवादी ने रिज्वांइडर शपथ पत्र कागज सं0-12/1 लगायत 12/3 दाखिल किया।
- किसी भी पक्ष ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- मौहल्ला गांधी नगर, मुरादाबाद स्थित भवन सं0-104 ए में श्रीमती सावित्री देवी के नाम 4 किलोवाट का घरेलू कनेक्शन सं0-059236/1034 लगे होने से विपक्षी को इन्कार नहीं है। पक्षकारों के मध्य इस कनेक्शन के वि|qत बिलों की अदायगी का विवाद है। विपक्षी का कथन है कि बिलों का भुगतान नहीं किया गया और कनेक्शन पर विभाग की देयता बनती है जबकि परिवादी का कथन है कि बिल दिनांकित 29/7/2004 (कागज सं0-3/7) और बिल दिनांकित 24/11/2004 (कागज सं0-3/10) गलत जारी किऐ गऐ। इन बिलों के जारी होने से पूर्व ही प्रश्नगत भवन के बिलों की धनराशि का भुगतान हो चुका था किन्तु अदा की गई धनराशि का समायोजन नहीं किया गया। परिवादी का यह भी कथन है कि दिनांक 13/8/2004 को वि|qत कनेक्शन का विच्छेदन गलत किया गया क्योंकि उस समय तक रसीद दिनांकित 9/6/2004 और रसीद दिनांकित 22/6/2004 (पत्रावली का कागज सं0-3/6) द्वारा 11000/- रूपये की धनराशि उक्त कनेक्शन के सापेक्ष जमा की जा चुकी थी जिसे बार-बार अनुरोध करने और विपक्षी के अधिकारियों को निरन्तर प्रार्थना पत्र और शिकायती पत्र देने के बावजूद समायोजित नहीं किया गया। विपक्षी की ओर से यधपि परिवादी के उक्त तर्क का प्रतिवाद किया गया परन्तु पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों से उक्त कथनों की पुष्टि होती है।
- बिल दिनांकित 29/7/2004 (पत्रावली का कागज सं0-3/7) अंकन 24765/- रूपया का है। इस बिल के जारी होने से पूर्व श्रीमती सावित्री देवी की ओर से 21000/- रूपया जमा कराऐ जा चुके थे। यह जमा धनराशि बिल कागज सं0-3/7 में समायोजित नहीं की गई। बिल दिनांकित 24/11/2004 (पत्रावली का कागज सं0-3/10) अंकन 23224/- रूपया का है। इस बिल में बकाया धनराशि 21345/- रूपया दिखाई गई है जबकि पहले ही 21000/- रूपया की धनराशि की अदायगी की जा चुकी थी किन्तु उसे बिल में समायोजित नहीं किया गया। बिल कागज सं0-3/7 जारी होने से पूर्व चॅूंकि 21000/- रूपये की धनराशि जमा हो चुकी थी अत: बिल कागज सं0-3/7 में विलम्ब भुगतान अधिभार के रूप में 387/- रूपया 86 पैसा की मांग श्रीमती सावित्री से किया जाना सही नहीं था। 387/- रूपया 86 पैसे के इस विलम्ब अधिभार को यदि बिल से निकाल दिया जाऐ तो बिल कागज सं0-3/10 में पिछली बकाया 21000/- रूपया से भी कम बनेगी। स्वीकृत रूप से दिनांक 9/6/2004 को जमा किऐ गऐ 10000/- रूपये और दिनांक 22/6/2204 को जमा किऐ गऐ 11000/- रूपया इस प्रकार कुल 21000/- रूपया के भुगतान को न तो बिल कागज सं0-3/7 में समायोजित किया गया न ही इस भुगतान का समायोजन बिल कागज सं0-3/10 में किया गया था। परिवादी पक्ष द्वारा बार-बार अनुरोध किऐ जाने और यहॉं तक कि विपक्षी के कर्मचारियों द्वारा आदेशित किऐ जाने के बावजूद भी 21000/- रूपये की इस धनराशि का समायोजन न कर बिल कागज सं0-3/7 और बिल कागज सं0-3/10 में पिछली बकाऐ का उल्लेख कर दिया जाना निश्चित रूप से सेवा में कमी और अनुचित व्यापार प्रथा की श्रेणी में आता है। श्रीमती सावित्री देवी की ओर से जमा किऐ गऐ उपरोक्त 21000/- रूपया को विभाग समायोजित कर लेता तो बिल कागज सं0-3/10 में कनेक्शन के सापेक्ष कोई भी बकाया राशि नहीं निकलती। इस दृष्टि से दिनांक 13/8/2004 को श्रीमती सावित्री देवी/ परिवादी का कनेक्शन बिल के भुगतान न करने के आधार पर काटा जाना गलत भी था। इस मामले में इस बात को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता कि परिवादी लगातार 21000/- रूपया के भुगतान के समायोजन का मौखिक एवं लिखित अनुरोध विपक्षी के अधिकारियों से करता रहा और उसने दिनांक 13/8/2004 को गलत तरीके से काट दिऐ गऐ कनेक्शन को जोड़ने का भी निरन्तर अनुरोध किया जैसा कि पत्रावली में अवस्थित कागज सं0-3/9,कागज सं0-3/11, कागज सं0-3/13 और कागज सं0-3/16 के अवलोकन से प्रकट है किन्तु उसकी सुनवाई नहीं की गई और कनेक्शन नहीं जोड़ा गया। परिवादी की यह शिकायत भी आधारहीन नहीं है कि दिनांक 13/8/2004 को जब उसका कनेक्शन काट दिया गया था तो उसके बाद मीटर रीडिंग के आधार पर उसे बिल किस आधार पर भेजे गऐ इसका कोई स्पष्टीकरण पत्रावली में नहीं है। पत्रावली में अवस्थित बिल कागज सं0-3/10 और बिल कागज सं0-3/12 इस बात का प्रमाण है कि दिनांक 13/8/2004 के बाद की अवधि के बिल मीटर रीडिंग के आधार पर बनाऐ गऐ जो कनेक्शन काट दिऐ जाने के बाद कदापि सम्भव नहीं था। पत्रावली में अवस्थित मीटर सीलिंग प्रमाण पत्र कागज सं0-3/17 दिनांकित 27/2/2008 में यह उल्लेख कि मीटर उतारते समय मौके पर बिजली की लाईन डिसकनेक्ट पाई गई थी, परिवादी के इस कथन का समर्थन करता है कि दिनांक 13/8/2004 से उसकी लाइन कटी हुई थी। परिवादी ने दिनांक 13/8/2004 को बिजली काट दिऐ जाने की शिकायत नगरीय वि|qत वितरण खण्ड प्रथम के तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता को लिखित रूप में भी की थी। जब दिनांक 13/8/2004 से परिवादी की लाइन कटी हुई थी और तत्समय तक परिवादी पिछले बकाये का भुगतान कर चुका था तब परिवादी के स्थाई विच्छेदन हेतु अनुरोध किऐ जाने के बावजूद उसकी पी0डी0 न किया जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। इस सम्बन्ध में पत्रावली में अवस्थित परिवादी के शपथ पत्र (कागज सं0-3/15) दिनांकित 01/11/2007 में परिवादी द्वारा किया गया अनुरोध और उस पर तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता द्वारा पी0डी0 किऐ जाने हेतु दिऐ गऐ आदेश दिनांक 02/11/2007 सुसंगत है। परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि तक भी कनेक्शन की पी0डी0 न किया जाना और विधि विरूद्ध तरीके से परिवादी को 6684/- रूपया का बिल कागज सं0-3/20 दिया जाना गलत और आधारहीन है।
- पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के विश्लेषण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अस्थाई विच्छेदन की तिथि 13/8/2004 से कनेक्शन की नियमानुसार पी0डी0 की जानी चाहिए और इस कनेक्शन के सापेक्ष उक्त तिथि के बाद जमा की गई धनराशि को समायोजित करते हुऐ नया कार्यालय ज्ञापन जारी किया जाना चाहिए।
- विपक्षी सं0-1 की ओर से दिऐ गऐ तर्क में हम बल नहीं पाते कि परिवाद कालबाधित है। पत्रावली में अवस्थित कागज सं0-3/20 के अवलोकन से प्रकट है परिवादी ने स्थाई विच्छेदन हेतु विपक्षी के एस0डी0ओ0 से लिखित अनुरोध दिनांक 24/9/2008 को किया था। इस कागज सं0-3/20 पर दृष्टव्य 6864/-रूपये का बिल कदाचित 24/9/2008 के बाद बना होगा। परिवाद दिनांक 23/9/2010 को प्रस्तुत किया गया। कहने का आशय यह है कि रूपया 6864/- के बिल जारी होने के 2 वर्ष के भीतर यह परिवाद योजित हो गया। इस प्रकार परिवाद कालबाधित नहीं है।
- जहॉं तक विपक्षी की ओर से प्रस्तुत इस तर्क का प्रश्न है कि कनेक्शन श्रीमती सावित्री देवी के नाम है अत: परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है, यह तर्क भी इस मामले में विपक्षी के लिए सहायक नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण विवाद परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित कनेक्शन के बिल की अदायगी एवं इसकी पी0डी0 होने अथवा न होने विषयक है। इस दृष्टि से परिवादी को बहैसियत भवन स्वामी परिवाद योजित करने का अधिकार है।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि बिल मुवलिग 6864/- रूपया जो पत्रावली का कागज सं0-3/20 पर दृष्टव्य है, निरस्त होने योग्य है। कनेक्शन की विच्छेदन तिथि दिनांक 13/8/2004 के आधार पर विपक्षी पी0डी0 को फाइनल करे और रिवाइज्ड पी0डी0 बिल एक माह में जारी करे। विपक्षी तथा उसके सम्बन्धित अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा की गई सेवा में कमी और अपनाई गई अनुचित व्यापार प्रथा के दृष्टिगत परिवादी को हम विपक्षी से एकमुश्त 10000/- (दस हजार रूपया) क्षतिपूर्ति दिलाया जाना और परिवाद व्यय की मद में 2500/- (दो हजार पाँच सौ रूपया) दिलाया जाना भी आवश्यक समझते हैं। परिवाद तदानुसार स्वीकार होने योग्य है।
आदेश परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित वि|qत कनेक्शन के सम्बन्ध में जारी बिल अंकन 6864/- रूपये जो कागज सं0-3/20 पर दृष्टव्य है, निरस्त किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वि|qत विच्छेदन की दिनांक 13/8/2004 के आधार पर पी0डी0 फाइनल करे और तदानुसार कार्यालय ज्ञापन एक माह में जारी किया जाय। विपक्षी और उसके अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा अपनाई गई अनुचित व्यापार प्रथा और की गई सेवा में कमी की मद में क्षतिपूर्ति के रूप में परिवादी को 10000/- (दस हजार रूपया) तथा परिवाद व्यय की मद में 2500/- (दो हजार पाँच सौ रूपया) एक माह में अदा किया जाय। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
08.06.2016 08.06.2016 08.06.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 08.06.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
08.06.2016 08.06.2016 08.06.2016 | |