जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़उपस्थितिः-(1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या (3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-43/2012
1- मेजर गया प्रसाद सिंह रिटायर्ड पुत्र स्व0 हरि प्रसाद सिंह
2- श्रीमती राधिका सिंह पत्नी गया प्रसाद सिंह
निवासीगण 163 सी शिवनगर कालोनी सहादतगंज वाई पास जिला फैजाबाद। ....................परिवादीगण
बनाम
1- पंजाब नेशनल बैंक शाखा सिंविल लाईन फैजाबाद द्वारा शाखा प्रबन्धक महोदय।
2- भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा फैजाबाद द्वारा शाखा प्रबन्धक महोदय। ................... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 09.10.2015
निर्णय
उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादीगण ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध मु0 25,781=00 मय सावधि ब्याज तथा क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु योजित किया है।
संक्षेप में परिवादी का केस इस प्रकार है कि परिवादी सं0-2 श्रीमती राधिका सिंह ने भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा फैजाबाद से बीमा कराया था, जिसका
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पालिसी संख्या-211281881 था। बीमा का कागजात खाता संख्या पी0सी0 103715 में दि0 05.12.05 को बंधक थी। परिवादी सं0-1 मेजर गया प्रसाद सिंह ने विपक्षी सं0-1 पंजाब नेशनल बैंक शाखा सिविल लाईन फैजाबाद ब्रान्च से यू0पी042टी/1105 ट्रक फाईनेन्स कराया था लोन पर लिया था। लोन अदा कर दिया। दि0 19.09.06 को प्रारूप 35 में नो ड्यूज प्रमाण पत्र बैंक द्वारा आर0टी0ओ0 फैजाबाद को दिया जा चुका है। पंजाब नेशनल बैंक सिविल लाईन फैजाबाद में नोटिस प्रेषक का खाता सं0-452000100010608 मेजर गया प्रसाद सिंह के नाम से है। विपक्षी सं0-2 भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा फैजाबाद से मु0 90,950=00 का चेक विधि विरूद्ध तरीके विपक्षी सं0-1 ने ले लिया लेकिन खाते में मात्र 65,169=00 जमा किया। शेष रूपया परिवादी के खाते में जमा नहीं किया। इस सम्बन्ध में कोई सूचना भी परिवादीगण को नहीं दिया। परिवादी मेजर गया प्रसाद सिंह की वाहन परिवहन विभाग से बन्धक मुक्त हो चुका था। बैंक के अनुसार भी ऋण का भुगतान हो चुका था। फाईनेंस का समस्त किश्तों का समय से भुगतान करता रहा था। 13 सितम्बर 2006 को तत्कालीन शाखा प्रबन्धक महोदय ने समस्त बकाया धनराशि का एक मुश्त भुगतान करने की बात हुई। उन्होंने कहा कि आप समय से अदा कर रहे हैं इसलिए परिवादी से इस आशय का प्रार्थना-पत्र लिया कि यदि एक मुश्त बकाया जमा कर देते हैं, तो बैंक के प्राविधानों का लाभ देते हुए अतिरिक्त ब्याज माफ कर देंगे। परिवादी ने तत्कालीन शाखा प्रबन्धक महोदय के बताने के अनुसार समस्त बकाया का भुगतान एक मुश्त 13 सितम्बर 2006 को कर दिया। बैंक ने दि0 18.09.2006 को फार्म सं0-35 दिया जिसके तहत परिवादी का वाहन हायर परचेज/लीज निरस्त हो गया, जिसे विपक्षी सं0-1 ने स्वीकार भी किया है। परिवादी सं0-1 श्रीमती राधिका सिंह का जब बीमा की भुगतान की अवधि पूरा हो गया और भुगतान के विषय में जानकारी किया तब मालूम हुआ कि परिवादिनी की बीमा की धनराशि बिना परिवादिनी के अनुमति के विपक्षी सं0-1 ने विपक्षी सं0-2 से बैंक के नाम चेक मु0 90,950=00 का ले लिया और विपक्षी सं0-1 बिना परिवादिनी को किसी प्रकार की सूचना दिये परिवादिनी के बीमा की धनराशि का भुगतान भी मु0 25,781=00 का विपक्षी सं0-1 ने कर लिया। विपक्षीगण ने आपस में मिली मार करके विधि विरूद्ध तरीके से बन्दर बाट कर लिया।
विपक्षी सं0-1 ने फोरम द्वारा पत्र दि0 24.07.2014 के जवाब में कहा कि मेजर गया प्रसाद सिंह द्वारा बैंक से लिये गये ऋण के सम्बन्ध में भारतीय जीवन बीमा पालिसी बैंक के पक्ष में एशाइन की गयी थी जिसकी परिपक्वता पर भारतीय जीवन
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बीमा निगम से प्राप्त धनराशि मु0 90,950=00 में से मु0 25,781=00 प्रश्नगत ऋण खाता सं0-415200जे0के0 00101117 में बकाया धनराशि मु0 25,781=00 नियमानुसार जमा करते हुए शेष धनराशि मु0 65,169=00 मेजर गया प्रसाद सिंह के बचत खाता सं0-4152000100010608 में नियमानुसार जमा की गयी है। मेजर गया प्रसाद सिंह के प्रश्नगत ऋण खाता सं0 415200जे0के000101117 में दि0 02.12.2010 को मु0 25,781=00 बकाया था, जिसको अदा करने की पूरी जिम्मेदारी ऋणी मेजर गया प्रसाद सिंह की थी, जो नियमानुसार भारतीय जीवन बीमा निगम से प्राप्त धनराशि से समायोजित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त मेजर गया प्रसाद सिंह के इस अनुरोध पर कि उसे बैंक के पक्ष में दृष्टिबन्धक ट्रक को बेचना है और उसके प्रश्नगत ऋण खाते में बकाया धनराशि पूरी तरह से भारतीय जीवन बीमा निगम पालिसी के बैंक के पक्ष में एशाइन रहने से सुरक्षित है। बैंक द्वारा केवल हाईपोथिकेशन क्लाज हटाने के लिए फार्म 35 जारी किया गया जो कत्तई नो ड्यूज नहीं है।
विपक्षी सं0-2 ने अपने जवाब में कहा कि गया प्रसाद सिंह व श्रीमती राधिका सिंह परिवादीगण ने अपने सह जीवन का मु0 50,000=00 का बीमा कराने हेतु एक प्रस्ताव दि0 06.10.1995 को भारतीय जीवन बीमा निगम की फैजाबाद शाखा में प्रस्ताव पत्र तालिका अवधि 89-15 के अन्तर्गत दिया। प्रस्ताव पत्र को स्वीकार करके बीमा पालिसी संख्या 211281881 श्रीमती एवं श्री गया प्रसाद सिंह के नाम जारी किया गया जिसकी प्रारम्भ तिथि 14.10.1995 तथा परिपक्वता तिथि 04.10.2010 थी। उक्त बीमा पालिसी परिवादी सं0-1 के द्वारा पंजाब नेशनल बैंक सिविल लाइन फैजाबाद विपक्षी सं0-1 से लिये गये ऋण के सम्बन्ध में बीमाधारक के द्वारा विपक्षी सं0-1 के पक्ष में समानुदेशित एशाइन्ड कर दिया गया था। उक्त समानुदेशन का पंजीयन नियमतः विपक्षी सं0-2 के द्वारा कर लिया गया था, जिसे परिवादीगण ने स्वीकार भी किया था तथा परिवादीगण के द्वारा इस सम्बन्ध में एब्सोल्यूट एशाइन्ड सम्बन्धित प्रपत्र संख्या 3848 का निष्पादन भी दि0 13.07.01 को किया था। उक्त एशाइन्मेंट के सम्बन्ध में विपक्षी सं0-1 व परिवादीगण को नोटिस भी प्रपत्र 3864 पर दि0 14.07.2001 को भेज दी गयी थी। उक्त बीमा के परिपक्व होने पर विपक्षी सं0-1 ने विपक्षी सं0-2 के समक्ष बीमित धनराशि प्राप्त करने हेतु आवेदन दिया। चूॅंकि उस समय तक बीमा पालिसी एशाइनमेंट से मुक्त नहीं हुई थी, इसलिए नियमतः बीमा पालिसी की धनराशि समानुदेशी प्राप्त करने का अधिकारी था। इस कारण प्रश्नगत बीमा पालिसी की
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परिपक्वता धनराशि मु0 90,950=00 जरिये चेक संख्या 168816 दि0 28.10.2010 को भुगतान कर दिया गया, जिससे सम्बन्धित बाउचर की प्रमाणित छायाप्रति संलग्नक-04 के रूप में संलग्न है। बीमा अधिनियम की धारा-38 में दिये गये प्राविधानों के अनुसार बीमा पालिसी के समानुदेशित रहते हुए बीमा पालिसी की धनराशि बीमा पालिसी की परिपक्वता पर या उसके पूर्व समानुदेशी एशाइन जब भी चाहे प्राप्त करने का अधिकारी होता है। विपक्षी सं0-2 को परिवादीगण के द्वारा भेजी गयी कोई नोटिस कभी प्राप्त नहीं हुई और न ही विपक्षी सं0-1 के द्वारा ही कभी कोई ऐसी सूचना ही विपक्षी सं0-2 को दी गयी कि बीमा पालिसी एशाइनमेंट से मुक्त कर दी गयी है और न ही एशाइन्मेंट रिलीज किये जाने सम्बन्धित कोई प्रमाण-पत्र ही कभी परिवादीगण द्वारा विपक्षी सं0-2 के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
मैं दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी एवं परिवाद में उपलब्ध साक्ष्य तथा परिवादीगण के लिखित बहस का अवलोकन किया। परिवादीगण गया प्रसाद सिंह एवं श्रीमती राधिका सिंह ने ज्वाइन्ट पालिसी सं0-211281881 लिया था। पालिसी लेने के उपरान्त् मेजर गया प्रसाद सिंह ने विपक्षी सं0-1 पंजाब नेशनल बैंक से यू0पी042टी/1105 ट्रक फाईनेन्स कराया। इस ट्रक फाईनेन्स में उक्त पालिसी को एशाइन्मेंट (समानुदेशित) किया। जब पालिसी परिपक्व हुई तो विपक्षी सं0-2 ने पालिसी के मैच्योरिटी की धनराशि का चेक विपक्षी सं0-1 पंजाब नेशनल बैंक शाखा सिविल लाइन फैजाबाद को भेज दिया। यह धनराशि मु0 90,950=00 थी। मेजर गया प्रसाद सिंह परिवादी सं0-1 के ऊपर ट्रक फाईनेन्स का पैसा मु0 25,781=00 ऋण खाता संख्या-415200जे0के0 00101117 में बकाया था। विपक्षी सं0-1 ने मु0 25,781=00 नियमानुसार काटने के उपरान्त् बीमा पालिसी की शेष धनराशि मु0 65,169=00 मेजर गया प्रसाद सिंह के बचत खाता सं0-4152000100010608 में नियमानुसार क्रेडिट कर दिया। परिवादीगण का यह कथन है कि जो लोन विपक्षी सं0-1 से लिया था। दि0 19.09.06 को अदा करने के बाद प्रारूप सं0-35 में नो ड्यूज प्रमाण-पत्र बैंक द्वारा आर0टी0ओ0 फैजाबाद को दिया जा चुका है। विपक्षी सं0-1 ने परिवादी सं0-1 के द्वारा लिये गये ऋण के खाते की बैलेन्स सीट दाखिल किया है। मेरे विचार से परिवादीगण का यह कथन कि दि0 19.09.06 को प्रारूप 35 नो ड्यूज प्रमाण-पत्र बैंक द्वारा दिया गया है और प्रारूप नं0 35 नो ड्यूज प्रमाण-पत्र नहीं होता है। लोन लेने पर ट्रक हाइपोथिकेटेड था। उसका प्रमाण-पत्र होता है। फार्म नं0 35 ऋण अदायगी का प्रमाण-पत्र नहीं होता है। इस प्रकार परिवादीगण का यह कथन कि प्रारूप सं0 35
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नो ड्यूज प्रमाण-पत्र है यह कथन गलत है। परिवादीगण की ओर से अपने परिवाद के समर्थन मंे नो ड्यूज प्रमाण-पत्र विपक्षी सं0-1 द्वारा जारी करने के सम्बन्ध में नहीं दिया है। जब कोई वाहन किसी बैंक से ऋण लेकर के लिया जाता है तो उसके बंधक की सूचना का फार्म बैंक देता है और वह फार्म भर करके आर0टी0ओ0 के यहाॅं जाता है। जब सम्पूर्ण ऋण की अदायगी हो जाती है, तो बैंक द्वारा दिये गये नो ड्यूज प्रमाण-पत्र को आर0टी0ओ0 के यहाॅं लिखा जाता है तो बैंक और आर0टी0ओ0 के यहाॅं से ट्रक बंधक मुक्त हो जायेगा। इस प्रकार पालिसी एशाइन्मेंट विपक्षी सं0-1 के यहाॅं थी। विपक्षी सं0-2 द्वारा पालिसी की परिपक्वता पर विपक्षी सं0-1 के यहाॅं चेक भेजना वाजिब था। इस प्रकार विपक्षी सं0-2 ने कोई गलती नहीं किया। विपक्षी सं0-1 ने कोई गलती नहीं किया। बैंक ने अपना बैलेन्स सीट दाखिल किया है। अपने ऋण की कटौती सही किया है गलत नहीं किया है। मु0 65,169=00 परिवादी सं0-1 के खाते में जमा किया गया है जो सही है। इस प्रकार परिवादीगण के परिवाद में मैं बल नहीं पाता हूॅं। परिवादीगण का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद खारिज किया जाता है।
( विष्णु उपाध्याय ) ( माया देवी शाक्य ) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 09.10.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष