(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-91/2012
श्रीमती मंजू सिंह पत्नी श्री वीरेन्द्र कुमार सिंह बनाम दि ब्रांच मैनेजर, पंजाब नेशनल बैंक तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 05.12.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद निम्नलिखित अनुतोषों के लिए प्रस्तुत किया गया है :-
''(A.) विपक्षी को आदेशित किया जाए कि एनपीए हो चुके खाते की
बकाया राशि परिवादी से वसूल न की जाए।
- परिवादी से केवल 25 प्रतिशत की राशि वसूल की जाए तथा 75 प्रतिशत राशि बीमा कंपनी से वसूल की जाए।
- मानसिक प्रताड़ना की मद में अंकन 2,50,000/-रू0 अदा किया जाए।
- परिवाद व्यय के रूप में अंकन 23,000/-रू0 अदा किया जाए।''
2. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री ए.के. मिश्रा तथा विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री एस.एम. बाजपेयी को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन किया गया। विपक्षी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा खादी ग्राम उद्योग के लिए ऋण प्राप्त किया गया था, जिसकी गारण्टी विपक्षी सं0-2 द्वारा 75 प्रतिशत की सीमा तक दी गई थी। बहस के दौरान ज्ञात हुआ कि 75 प्रतिशत की राशि विपक्षी सं0-2 द्वारा अदा की जा चुकी है, इसलिए परिवादी केवल 25 प्रतिशत की सीमा तक ही राशि अदा करने के लिए उत्तरदायी है, परन्तु परिवादी के पक्ष में यह आदेश पारित नहीं किया जा
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सकता कि बैंक द्वारा धन वसूल न किया जाए। परिवादी पर 25 प्रतिशत की सीमा तक जो भी राशि बकाया हो, वह राशि अदा करने के लिए परिवादी उत्तरदायी है। अत: केवल इस सीमा तक ही परिवाद स्वीकार होने योग्य है। प्रस्तुत केस में मानसिक प्रताड़ना की मद में किसी प्रकार की राशि अदा करने के लिए आदेश दिए जाने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि स्वंय परिवाद पत्र में उल्लेख है कि परिवादी पर 25 प्रतिशत की राशि बकाया है। इसी प्रकार परिवाद व्यय की मद में भी प्रस्तुत केस में किसी प्रकार की धनराशि अदा करने का आदेश देने का कोई औचित्य नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
4. प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से इस सीमा तक स्वीकार किया जाता है कि परिवादी द्वारा लिए गए ऋण की राशि में से केवल 25 प्रतिशत की राशि बैंक द्वारा वसूल की जाएगी तथा इस राशि के लिए परिवादी को एक मांग पत्र एक माह के अंदर बैंक द्वारा जारी किया जाए, जिसमें विधि के अंतर्गत देय ब्याज भी शामिल रहेगा। तत्पश्चात परिवादी द्वारा तीन माह के अंदर यह राशि बैंक में जमा की जाएगी। यदि तीन माह के अंदर यह राशि जमा कर दी जाती है तब दण्ड ब्याज वसूल नहीं किया जाएगा, परन्तु मांग पत्र के तीन माह के पश्चात यदि धनराशि अदा नहीं की जाती है तब दण्ड ब्याज के साथ यह राशि देय होगी।
प्रस्तुत परिवाद अंतिम रूप से निस्तारित किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2