(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2312/2007
मैसर्स भारतीय सेल्युलर लिमिटेड तथा एक अन्य
बनाम
पी.के. सक्सेना पुत्र श्री के.बी. सक्सेना तथा छ: अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : वी.पी. शर्मा के सहायक
श्री सत्येन्द्र कुमार।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 23.07.2024
माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-182/2005, पी.के. सक्सेना तथा छ: अन्य बनाम मैसर्स भारतीय सेल्युलर लि0 तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय बरेली द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30.8.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री वी.पी. शर्मा के सहायक अधिवक्ता श्री सत्येन्द्र कुमार को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। 2. विद्वान जिला आयोग द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए सभी परिवादीगण को 2-2 हजार रूपये कुल 14 हजार रूपये अदा करने का आदेश पारित किया गया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादीगण यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के कर्मचारी हैं। विपक्षीगण के अभिकर्ता श्री
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सुनील कुमार सक्सेना ने बताया था कि 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों द्वारा सामूहिक रूप से मोबाइल कनेक्शन लिया जाता है तब कंपनी अपने उपभोक्ताओं को इस प्रकार सुविधा देगी, जिसमें सक्रियता शुल्क एवं जमानत शुल्क नहीं लगेगी, केवल 249/-रू0 प्रतिमाह किराया देना होगा तथा 150/-रू0 की सीमा तक नि:शुल्क वार्ता करने की सुविधा दी जाएगी। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में नि:शुल्क रोमिंग मिलेगी। इस योजना पर परिवादीगण सहमत हो गए, परन्तु जो सुविधा बताई गई थी, वह सुविधा कभी प्राप्त नहीं हुई, इसलिए अंकन 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. विपक्षीगण की ओर से केवल दो बिन्दु पर आपत्ति की गई। प्रथम यह कि सुनील कुमार सक्सेना नामक व्यक्ति विपक्षीगण का अभिकर्ता नहीं है। द्वितीय यह कि मोबाइल कनेक्शन के विवरण प्रस्तुत नहीं किए गए।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने यह निष्कर्ष दिया गया कि विपक्षीगण को मोबाइल कनेक्शन के विवरण की पर्याप्त जानकारी थी, परन्तु विपक्षीगण द्वारा आवश्यक सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई, जिसके कारण परिवादीगण को असुविधा हुई। तदनुसार अंकन 2,000/-रू0 प्रत्येक परिवादी के लिए क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश पारित किया गया।
6. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के सहायक अधिवक्ता का यह तर्क है कि विद्वान जिला आयोग ने कल्पना एवं सभावना के आधार पर निर्णय/आदेश पारित किया है। संयुक्त परिवाद
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संधारणीय नहीं है। यथार्थ में कोई उपभोक्ता विवाद नहीं है। अपीलार्थीगण द्वारा किन शर्तों का उल्लंघन किया गया एवं कौनी सी सुविधाएं प्रदान नहीं की गई, इनका कोई उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए विद्वान जिला आयोग का आदेश अपास्त होने योग्य है।
7. निर्णय/आदेश के अवलोकन से ज्ञात होता है कि प्रश्नगत परिवाद 7 व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किया गया है, परन्तु 7 व्यक्तियों द्वारा एक साथ परिवाद प्रस्तुत करने की अनुमति का कोई उल्लेख इस निर्णय/आदेश में मौजूद नहीं है। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि विद्वान जिला आयोग की अनुमति के बिना 7 व्यक्तियों द्वारा एक साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जो विधि विरूद्ध है।
8. परिवाद पत्र के अवलोकन से जाहिर होता है कि विपक्षीगण द्वारा परिवादीगण को प्रत्यक्ष रूप से किसी प्रकार का प्रस्ताव नहीं दिया गया। सुनील कुमार सक्सेना नामक व्यक्ति द्वारा प्रस्ताव दिए जाने का कथन किया गया है, परन्तु उस व्यक्ति को पक्षकार नहीं बनाया गया तथा यह तथ्य भी स्थापित नहीं किया गया कि सुनील कुमार सक्सेना नामक व्यक्ति विपक्षीगण का अभिकर्ता था या नहीं, इसलिए किसी प्रकार की शर्त के उल्लंघन का कोई अस्तित्व ही नहीं है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30.08.2007 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
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प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2