// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, जांजगीर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक CC/20/2012
प्रस्तुति दिनांक 18/05/2012
विनय चतुर्वेदी, उम्र 54 वर्ष,
वल्द श्री होलीशरण चतुर्वेदी
निवासी सिवनी(चांपा) कोरबा रोड, सिवनी,
तहसील चांपा
जिला जांजगीर चांपा छ0ग0 ......आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
- ओरिएंटल इंश्योंरेंस कंपनी लिमिटेड,
सिटी ब्रांच कमर्शियल काम्पलेक्स
ट्रांसपोर्ट नगर कोरबा, तहसील कोरबा,
जिला कोरबा छ0ग0
2. ओरिएंटल इंश्योंरेंस कंपनी लिमिटेड,
स्थानीय ब्रांच कार्यालय लायंस क्लब
चौक मेनरोड चाम्पा ........अनावेदकगण/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 08/05/2015 को पारित)
1. आवेदक विनय चतुर्वेदी, ने अनावेदकगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह आवेदन अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध बीमादावा को निरस्त कर सेवा में कमी के लिए पेश किया है और अनावेदक बीमा कंपनी से 7,65,665/. रूपये क्षतिपूर्ति, ब्याज के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है।
2. आवेदन के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक वाहन क्रमांक सी.जी.11 ए.बी. 1065 का पंजीक़ृत स्वामी है जो अनावेदक बीमा कंपनी के यहां दिनांक 25/11/2009 से 24/11/2010 तक की अवधि के लिए बीमित था । दिनांक 06/04/2010 को उक्त वाहन स्टेयरिंग फेल हो जाने के यांत्रिक खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसकी सूचना आवेदक ने तत्काल अनावेदक बीमा कंपनी को दी, फलस्वरूप सर्वेयर घटना स्थल पर पहुंच कर जांच किया और अपना प्रतिवेदन अनावेदक बीमा कंपनी को सौंपा । आवेदक वाहन की क्षति का आंकलन कर दावा अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे बीमा कंपनी ने दिनांक 10/03/2011 को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि वाहन चालक के पास वैध ड्रायविंग लाईसेंस नहीं था । अत: आवेदक ने अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध यह परिवाद पेश कर उससे वाहन मरम्मत की राशि 7,65,665/. रूपये को ब्याज सहित दिलाए जाने का निवेदन किया है।
3. अनावेदक बीमा कंपनी की ओर से जवाब पेश कर यह तो स्वीकार किया गया कि घटना दिनांक को आवेदक का वाहन उनके यहां बीमित था, किंतु विरोध इस आधार पर किया गया कि आवेदक द्वारा वाहन का उचित रखरखाव नहीं किया गया, इसलिए वाहन में यांत्रिक खराबी आई और दुर्घटना हुई । यह भी कहा गया है कि वाहनचालक के पास घटना समय वाहन को चलाने के लिए वैध ड्रायविंग लाईसेंस नहीं था, बल्कि लाईसेंस फर्जी था, जिसकेकारण उनके द्वारा आवेदक का दावा उचित रूप से निरस्त किया गया और सेवा में कोई कमी नहीं की गई । उक्त आधार पर उन्होंने आवेदक का आवेदन निरस्त किये जाने का निवेदन किया है ।
4. उभयपक्ष का तर्क श्रवण करते हुए इस फोरम द्वारा दिनांक 25/11/2013 को आदेश पारित कर आवेदक का परिवाद इस आधार पर निरस्त किया गया कि उभयपक्ष के मध्य वाहन चालक के ड्रायविंग लाईसेंस की वैधता विवादित होने से संक्षिप्त विचारण के तहत उसका निराकरण संभव नहीं, अत: आवेदक को अपना प्रकरण सिविल न्यायालय से निराकृत कराने की सलाह दी गई, जिसके विरूद्ध अपील में माननीय राज्य आयोग द्वारा यह अभिनिर्धारित करते हुए कि ड्रायविंग लाईसेंस की वैधता के लिए विस्त़ृत विचारण आवश्यक नहीं, प्रकरण इस निर्देश के साथ प्रतिप्रेषित किया गया कि उभयपक्ष को प्रश्नाधीन ड्रायविंग लाईसेंस के संबंध में साक्ष्य अथवा प्रमाण पेश करने का समुचित अवसर प्रदान करते हुए मामले का पुन: नए सिरे से निराकरण किया जावे। अत: उभयपक्ष को अवसर प्रदान करते हुए मामले का पुन: नए सिरे से निराकरण किया जा रहा है ।
5. उभयपक्ष अधिवक्ताओं का तर्क सुना जा चुका है । प्रकरण का अवलोकन कियागया ।
6. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदक बीमा कंपनी से वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है
सकारण निष्कर्ष
7. आवेदक का पक्ष कथन है कि उसका वाहन क्रमांक सी.जी.11 ए.बी. 1065 दिनांक 06/04/2010 को स्टेयरिंग फेल हो जाने के यांत्रिक खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया, किंतु आवेदक अपने इस कथन को प्रमाणित करने के लिए दुर्घटना की रिपोर्ट की कोई कॉपी पेश नहीं किया है और न ही वह दुर्घटना के पश्चात् करवाए गये वाहन मुलाहिजा की कोई कॉपी पेश किया है । फलस्वरूप मामले में सर्वप्रथम यही स्पष्ट नहीं होता कि आवेदक का वाहन दिनांक 06.04.2010 को स्टेयरिंग फेल होने की यांत्रिक खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था । यद्यपि अनावेदक बीमा कंपनी अपने जवाब में दुर्घटना के तथ्य को इंकार नहीं किया है और मात्र यह कथन किया है कि वाहन चालक मालदेवराम के पास दुर्घटनाग्रस्त वाहन को चलाने के लिए वैध एवं प्रभावी ड्रायविंग लाईसेंस नहीं था, साथ ही यह भी कहा है कि उसका ड्रायविंग लाईसेंस फर्जी है, किंतु मात्र इसी आधार पर क्षतिपूर्ति के इस प्रकरण में बगैर प्रमाण यह मान लेना उचित प्रतीत नहीं होता कि आवेदक का वाहन कथित दिनांक को यांत्रिक खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त होकर क्षतिग्रस्त हो गया था ।
8. स्वीकृत रूप से आवेदक का वाहन टाटा एल0पी0एस0 4018 टी0सी0 है, जो हल्के यान की कोटि में नहीं आता, बल्कि भारी वाहन की कोटि में आता है । आवेदक का कथन है कि उसने वाहनचालक मालदेव राम का लाईसेंस देखकर तथा उससे वाहन चलवाकर सावधानी से वाहन चालक नियुक्त किया था, इस संबंध में आवेदक द्वारा पेश वाहनचालक मालदेव राम के ड्रायविंग लाईसेंस की कॉपी के अवलोकन से यह तथ्य स्पष्ट होता है उसका ड्रायविंग लाईसेंस गुमला, झारखंड से बनवाया गया था, जो दिनांक 09/02/2006 को हल्के यान के लिए जारी किया गया था, जिसके संबंध में आवेदक की ओर से कहा गया है कि बाद में उसे 27/03/2009 से भारी वाहन चलाने के लिए अधिक़ृत किया गया था तथा दुर्घटना समय उक्त लाईसेंस दिनांक 18/09/2007 से 17/09 /2010 के लिए नवीनीकृत था, इस कथन के समर्थन में आवेदक अपने स्वयं द्वारा पलामू, आर0टी0ओ0 से वाहन के संबंधमें प्राप्त विवरण की कॉपी पेश किया है ।
9. इसके विपरीत अनावेदक बीमा कंपनी की ओर से वाहनचालक मालदेव राम के ड्रायविंग लाईसेंस को फर्जी होना बताया गया है तथा आर0टी0ओ0 बोकारो से वाहनचालक मालदेव राम के ड्रायविंग लाईसेंस के संबंध प्राप्त विवरण पेश कर कहा गया है कि आर0टी0ओ0 द्वारा आवेदक के वाहन चालक को केवल एल0एम0व्ही0 का लाईसेंस जारी किया गय था, जिसकी अवधि दिनांक 02/02/21989 तक थी । आगे कहा गया है कि आवेदक द्वारा उन्हें वाहन चलाने दिनांक 18/09/2007 से 17/09/2010 तक नवीनीकृत ड्रायविंग लाईसेंस की जो प्रतिलिपि दी गई थी उसमें उल्लेखिल सिरियल नंबर 09/95 लाईसेंस नंबर 89/98 के संबंध में जांच पर यह पाया गया कि उक्त सिरियल नंबर से आर0टी0ओ0, गुमला द्वारा किसी मुरली सिंह आ.कुलदीप सिंह को ड्रायविंग लाईसेंस जारी किया गया है । अनावेदक बीमा कंपनी अपने उपरोक्त कथन के संबंध में इनवेस्टीगेटर अमर चौरसिया की जांच रिपोर्ट तथा उसका शपथपत्र पेश किया है ।
10. इस प्रकार अनावेदक बीमा कंपनी का कथन इनवेस्टीगेटर अमर चौरसिया की जांच रिपोर्ट तथा उसके शपथपत्र पर आधारित है, जिसके अवलोकन से दर्शित होता है कि इनवेस्टीगेटर द्वारा जांच ड्रायविंग लाईसेंस क्रमांक 9/95 के संबंध में किया गया था और उसे मुरली सिंह आ.कुलदीप सिंह के नाम पर जारी होना पाया था, जबकि प्रश्नगत मामले में आवेदक के वाहन चालक मालदेव के ड्राईविंग लाईसेंस का क्रमांक 20377/86 है, जिसके संबंध में अनावेदक बीमा कंपनी की ओर से कोई जॉच रिपोर्ट पेश नहीं किया गया है, जबकि अनावेदक बीमा कंपनी को इस संबंध में माननीय राज्य आयोग के निर्देशानुसार अनेकानेक अवसर प्रदान किया गया, फलस्वरूप खण्डन के अभाव में आवेदक की ओर से पेश उसके वाहन चालक के ड्रायविंग लाईसेंस की वैधता पर अविश्वास किए जाने का कोई कारण नहीं पाया जाता ।
11. जहॉं तक प्रश्नगत मामले में अनुतोष का संबंध है, यह सुस्पष्ट है कि आवेदक को अपना मामला स्वयं प्रमाणित करना होता है, किंतु जैसा कि यह देखा जा चुका है कि आवेदक दुर्घटना के तथ्य को स्थापित करने के लिए कोई साक्ष्य पेश नहीं किया है, यहॉं तक कि इस संबंध में उसके द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई रिपोर्ट की कॉपी अथवा वाहन मुलाहिजा रिपोर्ट भी पेश करने का प्रयास नहीं किया गया है । आवेदक के अनुसार दुर्घटना की सूचना पर अनावेदक बीमा कंपनी का सर्वेयर घटना दिनांक ही मौके पर आकर जॉच किया था और अपना प्रतिवेदन बीमा कपंनी को पेश किया था, किंतु ऐसा कोई सर्वेयर रिपोर्ट भी आवेदक द्वारा मामले में पेश कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया है । ऐसी दशा में मात्र अनावेदक बीमा कंपनी के घटना से इंकार नहीं करने पर आवेदक द्वारा प्रस्तुत मरम्मत खर्च के बिल के आधार पर क्षतिपूर्ति का निर्धारण संभव प्रतीत नहीं होता, जबकि आवेदक द्वारा उक्त बिल के समर्थन में संबंधित संस्थान का कोई शपथ पत्र भी दाखिल नहीं किया गया है ।
12. अत: हमारे मतानुसार प्रश्नगत मामले में आवेदक दुर्घटना संबंधी साक्ष्य के अभाव में अनावेदक बीमा कंपनी से कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है । फलस्वरूप आवेदक का परिवाद निरस्त किया जाता है ।
13. उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे ।
आदेश पारित
(अशोक कुमार पाठक ) (श्रीमती शशि राठौर) (मणिशंकर गौरहा)
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