Uttar Pradesh

Chanduali

CC/21/2013

JAI PAL RAHEJA - Complainant(s)

Versus

ORIENTAL INSURANCE CO.LTD - Opp.Party(s)

Dhirendra Pratap Singh

10 Mar 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/21/2013
 
1. JAI PAL RAHEJA
SIGRA VARANASI
VARANASI
UP
...........Complainant(s)
Versus
1. ORIENTAL INSURANCE CO.LTD
MUGALSRAI CHANDUALI
Chandauli
UP
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. jagdishwar Singh PRESIDENT
 HON'BLE MR. Markandey singh MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 21                                सन् 2013ई0
जयपाल रहेजा पुत्र स्व0 चतुर राम रहेजा निवासी सी.एल.164सेक्टर-2 नीयर सी.के. मार्केट सोल्ट लेक कोलकाता, हाल पता डी. 57/4ए प्लांट नम्बर 1 सिन्धनगर थाना सिगरा वाराणसी।
                                      ...........परिवादी                                                                                                                                    बनाम
1-शाखा प्रबन्धक दि ओरियण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 कार्यालय नई बस्ती मुगलसराय जिला चन्दौली।
2-सीमाया सैलजा पार्क पी0वी.टी0 लि0 बजरिये रचित अग्रवाल पुत्र विजय कुमार अग्रवाल निवासी 10/4डीएल्जिन रोड कोलकाता।
                                            .............................विपक्षीगण
उपस्थितिः-
माननीय श्री जगदीश्वर सिंह, अध्यक्ष
माननीय श्री मारकण्डेय सिंह, सदस्य
                               निर्णय
द्वारा श्री जगदीश्वर सिंह,अध्यक्ष
1-    परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 शाखा प्रबन्धक दि ओरियण्टल इश्योरेस कम्पनी लि0,शाखा कार्यालय नई बस्ती मुगलसराय जिला चन्दौली से होण्डा सीटी कार की बीमा धनराशि मु0 3,60000/- व मानसिक क्षति,भागदौड़ के लिए हर्जा तथा वाद व्यय के रूप में मु0 1,00000/- कुल मु0 4,60000/- दिलाये जाने हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया है।    
2-    परिवाद में संक्षेप में कहा गया है कि परिवादी ने दिनांक 1-5-2012 को विपक्षी संख्या 2 से सेकेण्ड हैण्ड होण्डा सीटी कार पंजीयन संख्या डब्लू.बी.ओ. 2वी/1171 खरीदा था। यह कार मु0 3,60000/- में विपक्षी संख्या 1 से  29-12-11 से 28-12-12 तक की अवधि के लिए बीमित थी जिसका बीमा पालिसी संख्या 222599/31/2012/2470(छायाप्रति कागज संख्या 4/24 ता 4/25) है। परिवादी ने उपरोक्त कार क्रय करने के बाद दिनांक 6-5-2012 को विके्रता विपक्षी संख्या 2 सीमाया सैलजा से गाड़ी का पंजीयन अपने पक्ष में अन्तरित कराये जाने हेतु पंजीयन कार्यालय का प्रपत्र 29 व 30(छायाप्रति कागज संख्या 4/2ता 4/3) पर हस्ताक्षर प्राप्त किया था। तत्पश्चात आर0टी0ओ0 कार्यालय कोलकता के यहाॅं पंजीयन हस्तानान्तरित कराने के लिए सम्पूर्ण आवश्यक कार्यवाही पूर्ण करके उपरोक्त फार्म जमा किया। परिवादी का उपरोक्त कार ट्रांसफर प्रक्रिया के दौरान ही दिनांक 20/21-7-2012 की रात्रि में मुगलसराय बाजार में मदन आटो प्वाइन्ट नई बस्ती मुगलसराय चन्दौली से चोरी हो गयी। जिसकी लिखित सूचना(छायाप्रति कागज संख्या 4/28) दिनांक 23-7-2012 को विपक्षी संख्या 1 को  दिया। कार चोरी होने की सूचना सम्बन्धित थाना मुगलसराय में दिया जहाॅं पर पुलिस द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गयी, तब धारा 156(3)भा0द0वि0 के अन्र्तगत प्राथमिकी अंकित कराने हेतु न्यायालय में आवेदन दिया।न्यायालय के आदेश पर दिनांक 24-9-2012 को प्रथम सूचना रिर्पोट मु0अ0सं0326/12 धारा 379 भा0द0वि0 के अन्र्तगत बनाम अज्ञात कायम हुआ। पुलिस द्वारा मुकदमे की विवेचना 
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की गयी लेकिन माल और मुल्जिम का पता न चलने के कारण दिनांक 21-11-2012 को अन्तिम रिर्पोट (छायाप्रति कागज संख्या 4/20) न्यायालय में प्रेषित किया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आदेश दिनांक 15-1-2013 (छायाप्रति कागज संख्या 4/18) द्वारा अन्तिम रिर्पोट स्वीकार कर लिया। परिवादी ने संशोधन द्वारा यह कथन किया  है कि दिनांक 10-9-2012 को आर0टी0ओ0 कार्यालय से गाड़ी का पंजीयन परिवादी के नाम अन्तरित हो गया (जिसकी छायाप्रति कागज संख्या 25/5) है। तत्पश्चात दिनांक 17-9-2012 को परिवादी ने बीमा ट्रांसफर करने हेतु बीमा कम्पनी के शाखा प्रभारी ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 मुगलसराय चन्दौली को प्रार्थना पत्र(छायाप्रति कागज संख्या 25/2) दिया। परिवाद में आगे कहा गया है कि बीमा दावा के संदर्भ में विपक्षी बीमा कम्पनी के अन्वेषक द्वारा मांग किये जाने पर आर.सी.,डी.एल.,बीमा पालिसी,प्रथम सूचना रिर्पोट,फाइनल रिर्पोट स्वीकृत करने के संदर्भ में न्यायालय का आदेश परिवादी द्वारा उपलब्ध करा दिया गया। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा बीमा धनराशि के भुगतान हेतु परिवादी को कई बार बुलाया गया लेकिन कोई भुगतान नहीं किया गया तब विपक्षी बीमा कम्पनी को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजी गयी। इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं किया इसलिए यह दावा बीमा धनराशि एवं मानसिक तथा आर्थिक परेशनी के लिए हर्जा दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
3-    विपक्षी संख्या 1 ने  जबाबदावा प्रस्तुत करते हुए संक्षेप में कथन किया है कि परिवादी द्वारा यह परिवाद मात्र विपक्षी को परेशान करने की गरज से दाखिल किया गया है जिसमे कोई सच्चाई नहीं है इसलिए निरस्त किया जाय। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत फोरम में वही व्यक्ति परिवाद संस्थित कर सकता है जो उपभोक्ता हो। परिवादी न तो बीमा कम्पनी का उपभोक्ता है और न ही प्रीमियम देकर किसी प्रकार की कोई सेवा प्राप्त किया है। परिवादी का वाहन चोरी होने के बाद चोरी की सूचना जितेन्द्र कुमार जुनेजा द्वारा दी गयी है जो कि वाहन स्वामी नहीं है और न ही वाहन का चालक है। बीमा स्वामित्व का स्थानान्तरण हुए बिना बीमा का स्थानान्तरण सम्भव नहीं है। वाहन के पंजीयन के स्थानान्तरण के 14 दिन के अन्दर बीमा का हस्तानान्तरण अवश्य हो जाना चाहिए अन्यथा बीमा कम्पनी किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति की जिम्मेदार नहीं है।परिवादी के कथित मित्र द्वारा वाहन चोरी की रिर्पोट को संदिग्ध मानकर थाना मुगलसराय की पुलिस ने चोरी की घटना दर्ज नहीं की इसलिए न्यायालय के द्वारा प्रथम सूचना रिर्पोट दर्ज कराया गया है। चोरी की तिथि को श्री रहेजा द्वारा  श्री जुनेजा को वाहन सुपुर्द किया था वह चोरी के रात्रि में खुद अपने एजेन्सी पर रोज की भांति गाड़ी खड़ा करके अपने मित्र के साथ वाराणसी आये। प्रश्नगत वाहन बिना किसी सुरक्षा के जी0टी0रोड पर खड़ी रही। जो कि वाहन स्वामी द्वारा पालिसी के शर्तो के अनुसार घोर लापरवाही की गयी है। बीमा अन्वेषक को श्री जुनेजा द्वारा दिये गये बयान से स्पष्ट है कि चोरी के दूसरे दिन अपने कर्मचारी बनारसी दूबे को गाड़ी की चाभी दी जो गाडी धुलवाने हेतु 10 बजे ले गया और शाम 5 बजे गाडी के चोरी होने की
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 सूचना गाडी मालिक को दिया जो काफी संदेहास्पद घटना है। उपरोक्त आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के परिवाद को खारिज किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
4-    परिवादी की ओर से शपथ पत्र के साथ प्रथम सूचना रिर्पोट कागज संख्या 4/1,फार्म 29,30 4/2ता 4/3,आई.सी.आई.सी.आई बैक का पर्चा 4/5,फार्म 35 4/6,पैनकार्ड 4/7,बीमा पालिसी 4/8,मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के आदेश की प्रति 4/18,अन्तिम रिर्पोट 4/20,वाहन रजिस्ट्रेशन कार्ड 4/22 आदि की छायाप्रति प्रस्तुत किया है। परिवादी की ओर से एक दूसरी सूची से बीमा कम्पनी को सूचना देने का प्रार्थना पत्र कागज संख्या 25/2,ड्राइविंग लाइसेंस 25/3,आर0टी0ओ0 कार्यालय की रसीद 25/4,आर0टी0ओ0 कार्यालय का प्रति कागज संख्या 25/5 दाखिल किया गया है। विपक्षी संख्या 1 की ओर से फेहरिस्त के साथ अन्वेषक की रिर्पोट कागज संख्या 22/2ता 22/5,परिवादी की ओर से अन्वेषक को दिये गया दिया प्रार्थना पत्र 22/6,सीमाया का पत्र 22/7,अन्वेषक द्वारा विपक्षी संख्या 2 को भेजे गये पत्र की छायाप्रति 22/8 दाखिल किया गया है। विपक्षी संख्या 2 को इस फोरम द्वारा रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजी गयी जो उनपर तामिल भी हुई किन्तु विपक्षी 2 न तो हाजिर आये एवं न ही जबाबदावा प्रस्तुत किये। अतः यह परिवाद उनके विरूद्ध एक पक्षीय चला।
5-    हम लोगों ने परिवादी एवं विपक्षी संख्या 1 के विद्वान अधिवक्ता के बहस को सुना, तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया है।
6-    पक्षकारो के कथन से तथा पत्रावली में उपलब्ध बीमा प्रमाण पत्र की छायाप्रति कागज संख्या 4/24 एवं पंजीयन प्रमाण पत्र की छायाप्रति कागज संख्या 25/4 ता 26/6 के परिशीलन से यह प्रमाणित है कि प्रश्नगत वाहन संख्या डब्लू.बी.ओ. 2वी/1171 के पूर्व पंजीकृत स्वामी विपक्षी संख्या 2 सीमाया शैलजा पार्क प्रा0लि0 जरिये रचित अग्रवाल रहे तथा यह वाहन विपक्षी संख्या 1 दि ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0,नईबस्ती मुगलसराय चन्दौली  द्वारा बीमित थी जिसका बीमा पालिसी संख्या 222599/31/2012/2470 था जिसकी बीमा अवधि दिनांक 29-12-11 से 28-12-2012 की अर्द्धरात्रि तक थी। बीमा पालिसी के अवलोकन से स्पष्ट है कि उक्त वाहन मु0 3,60,000/- मूल्य पर बीमित हुई थी तथा बीमा पालिसी में वाहन की क्षति आदि रिस्क पूर्णतया कवर था। परिवादी जयपाल रहेजा ने परिवाद के कथनों के समर्थन में अपना विस्तृत शपथ पत्र कागज संख्या 19/1 दाखिल किया है जिसमे यह कथन किया है कि सीमायां फर्म के मालिक रचित अग्रवाल से उसने उपरोक्त वाहन क्रय किया था तथा उसी समय उसका कब्जा प्राप्त कर लिया। शपथ पत्र के पैरा 2 में कथन किया है कि वाहन की बिक्री करते समय वाहन स्वामी ने पंजीयन के अन्तरण हेतु फार्म 29 व 30 पर अपना हस्ताक्षर बनाकर उसे उसी दिन दे दिया था। फार्म 29व 30 की छायाप्रति कागज संख्या 4/2 ता 4/3 पत्रावली में दाखिल किया है जो दिनांक 6-5-2012 को सीमाया फर्म के मालिक रचित अग्रवाल द्वारा निष्पादित किया गया है इन तथ्यों का कोई स्पष्ट रूप से 
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खण्डन जबाबदावा में नहीं किया गया है और न तो प्रतिशपथ पत्र दाखिल करके परिवादी के उक्त शपथ पत्र का कोई खण्डन हुआ है। इससे प्रमाणित हो जाता है कि परिवादी ने उक्त वाहन बीमा अवधि के अन्दर क्रय करके उसका पंजीयन स्थानान्तरित कराने हेतु आवश्यक प्रपत्र 29 व 30 पर दिनांक 6-5-2012 को विक्रेता से निष्पादित करा लिया था। 
7-    माल विक्रय अधिनियम 1930 की धारा 19 की उपधारा (1) में यह प्राविधान दिया गया  है कि ’’जहाॅं संविदा विनिर्दिष्ट या अभिनिश्चित माल के विक्रय के लिए हो,वहाॅं उस माल  की संपत्ति के्रता को उस समय अन्तरित होती है जिस समय उसका अन्तरित किया जाना ,उस संविदा के पक्षकार द्वारा आशयित हो।’’ इस प्रश्नगत प्रकरण में कार के स्वामी ने परिवादी को कार की बिक्री करके उसका कब्जा भी परिवादी को दे दिया तथा पंजीयन प्रमाण पत्र के अन्तरण हेतु आवश्यक प्रपत्र 29 व 30 पर भी दिनांक 6-5-2012 को हस्ताक्षर करके परिवादी को रजिस्ट्रेशन अपने नाम से अन्तरित करने हेतु उक्त प्रपत्रों को भी दे दिया। अतः प्रश्नगत वाहन के स्वत्व का अन्तरण परिवादी के पक्ष में हो गया तथा परिवादी कार का स्वामित्व प्राप्त करके उसका स्वामी उसी समय बन गया।
8-     मोटर वाहन अधिनियम के अन्र्तगत पंजीयन का स्थानान्तरण कराने का दायित्व परिवादी के उपर है। यह पंजीयन मूलतः टैक्स के उद्देश्य से तथा वैधानिक प्राविधानों के अन्र्तगत होता है जो एक कागजी कार्यवाही है। परिवादी का कथन है कि उसने पंजीयन प्रमाण के अन्तरण हेतु उपरोक्त दोनों प्रपत्र एवं सभी आवश्यक प्रलेख पंजीयन स्थानान्तरण कराने हेतु फार्म आर0टी0ओ0 कार्यालय कोलकता में जमा करा दिया था। पंजीयन अन्तरित नही हुआ था तभी दिनांक 20/21-7-2012 को उपरोक्त कार रात्रि में जब मदन आटो प्वाइन्ट नई बस्ती मुगलसराय चन्दौली में खड़ी थी तो किसी द्वारा चोरी कर ली गयी। परिवादी का यह भी कथन है कि वाहन चोरी हो जाने के बाद इसकी सूचना सम्बन्धित थाना मुगलसराय में दिया गया लेकिन पुलिस ने न तो मुकदमा कायम किया और न ही कोई कार्यवाही किया तब धारा 156(3) द0प्र0सं0 के अन्र्तगत मुकदमा पंजीकृत कराये जाने हेतु आवेदन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के न्यायालय में दिया गया। माननीय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर थाना मुगलसराय में दिनांक 24-9-2012 को प्रथम सूचना रिर्पोट धारा 379 भा0द0वि0 के अन्र्तगत दर्ज हुआ। प्रथम सूचना रिर्पोट की छायाप्रति (कागज संख्या 4/1)पत्रावली में परिवादी की ओर से दाखिल किया गया है जिससे उपरोक्त तथ्य की पुष्टि होती है। परिवादी का यह भी कथन है कि चोरी की घटना के मात्र एक दिन बाद दिनांक 23-7-2012 को उपरोक्त वाहन रात्रि में चोरी हो जाने की सूचना त्वरित ढंग से शाखा प्रभारी दि ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 नईबस्ती मुगलसराय चन्दौली को दिया गया जिसकी छायाप्रति (कागज संख्या 4/26) पत्रावली में दाखिल किया ह,ै जिसके परिशीलन से पाया जाता है कि दिनांक 23-7-2012 को सांयकाल 4 बजे उक्त गाडी के चोरी की लिखित सूचना बीमा कम्पनी के शाखा प्रभारी को प्राप्त हो गयी।
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 तद्नुसार यह प्रमाणित होता है कि वाहन चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को देने में कोई बिलम्ब या लापरवाही नहीं हुई है।
9-    वाहन चोरी के बारे में परिवादी द्वारा जो प्राथमिकी अंकित करायी गयी थी उसकी विधिवत विवेचना पुलिस द्वारा की गयी थी। वाहन चोरी करने वाले व्यक्ति का अथवा वाहन का कोई पता पुलिस नहीं लगा पायी। अन्ततोगत्वा दिनांक 21-11-2012 को विवेचक ने मु0अ0 सं0 326/12 धारा 379भा0द0वि0 के प्रकरण में अन्तिम रिर्पोट प्रेषित किया। इस अन्तिम रिर्पोट में विवेचक ने यह उल्लेख किया है कि वाहन का एवं मुल्जिम का पतारसी और सुरागरसी उन्होने वारण्ट किया, तथा मुखबीरों को भी लगाया गया लेकिन कुछ पता नहीं चला। इस वजह से अन्तिम रिर्पोट उन्होंने प्रेषित कर दिया। पुलिस ने विवेचना में यह नहीं पाया कि वाहन के चोरी की कोई घटना नहीं घटी थी अथवा कोई झूठी रिर्पोट लिखाई गयी है। अन्तिम रिर्पोट में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश दिनांक 5-1-13 द्वारा उपरोक्त कारण से स्वीकार कर लिया। तद्नुसार यह पाया जाता है कि वाहन चोरी की घटना सही थी लेकिन माल व मुल्जिम का दौरान विवेचना पता न लगने के कारण पुलिस ने अन्तिम रिर्पोट (कागज संख्या 4/20) प्रस्तुत किया था जिसे विद्वान मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली ने आदेश दिनांक 15-1-2013 (छायाप्रति कागज संख्या 4/18) द्वारा स्वीकार कर लिया।
10-    जबाबदावा के पैरा 24 व 25 में चोरी की घटना को संदेहास्पद होने का कथन किया गया है लेकिन इसके संदर्भ में कोई प्रमाण विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है। यहाॅं यह तथ्य उल्लेखनीय है कि वाहन चोरी हो जाने के उपरान्त परिवादी ने बीमा पालिसी के अन्र्तगत वाहन के बीमा की धनराशि के भुगतान हेतु सभी आवश्यक कागजातो के साथ बीमा कम्पनी के यहाॅं दावा प्रस्तुत किया था। दावा की जांच हेतु बीमा कम्पनी द्वारा अन्वेषक नियुक्त किया गया था। अन्वेषक ने इस प्रकरण की विधिवत जांच किया। घटना स्थल के चैकीदार ओर आसपास के लोगों का बयान अंकित किया तथा वाहन के बिक्री के संदर्भ मे ंपूर्व वाहन स्वामी सीमाया फर्म के मालिक रचित अग्रवाल का कोलकता में जाकर बयान लिया। सम्यक अन्वेषण के बाद विवेचक ने अपनी रिर्पोट बीमा कम्पनी को प्रस्तुत किया जो इस फोरम द्वारा तलब किया गया था जिसकी छायाप्रति (कागज संख्या 22/2 ता22/5)  विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से दाखिल किया गया है। इसके परिशीलन से पाया जाता है कि अन्वेषक ने जांचोपरान्त यह निष्कर्ष दिया है कि बीमित होण्डा सीटी कार संख्या डब्लू.बी.ओ. 2वी/1171 मदन आटो प्वाइन्ट से चोरी की घटना दिनांक 20/21-7-12 सत्य पाया गया। अतः विपक्षी बीमा कम्पनी के जबाबदावा का कथन उनके स्वयं के अन्वेषक की रिर्पोट से गलत सिद्ध हो जाता है। अतः हम लोग इस निष्कर्ष पर पहंुचते है कि बीमा अवधि के अन्र्तगत उपरोक्त वाहन दिनांक 20/21-7-12 की रात्रि में चोरी कर ली गयी थी। यह चोरी की 
घटना सत्य पायी जाती है।
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11-     यह निर्विवादित तथ्य है कि परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी के समक्ष वाहन चोरी हो जाने के बाद बीमा धन की प्राप्ति हेतु दावा प्रस्तुत किया था । जिसकी जांच बीमा कम्पनी के अन्वेषक ने किया तथा उन्होंने चोरी की घटना को सत्य पाया। परिवादी ने उपरोक्त वाहन इसके पूर्व पंजीकृत स्वामी से चोरी की घटना के पहले क्रय किया था।यह तथ्य भी सही पाया गया कि अन्वेषक ने अपने निष्कर्ष में यह अंकित किया है कि गाड़ी’’ बीमाधारक मे. सीमायां द्वारा बिक्री कर दिये गया गया है परन्तु नये वाहन स्वामी द्वारा स्वामित्व का अन्तरण नहीं कराया गया है। उनके अनुसार घटना के समय स्वामित्व ट्रांसफर की प्रक्रिया चल रही थी और घटना के बाद जय पाल रहेजा के नाम अंतरित हुई परन्तु बीमा पालिसी अभीतक मे. सीमायां के नाम है’’। इन तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए दावा का निस्तारण करने का निवेदन उन्होंने किया है। बीमा कम्पनी ने अपने जबाबदावा में कही भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि उन्होंने परिवादी के बीमा दावा को निरस्त कर दिया या उसे स्वीकार किया। परिवादी के बीमा दावा पर कोई निष्कर्ष लेने का प्रमाण विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से पत्रावली में कुछ नहीं दिया गया है और न तो इसका कोई कारण बताया गया है। यह तथ्य प्रथम दृष्टया बीमा कम्पनी की घोर लापरवाही प्रदर्शित करता है।
12-    विपक्षी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता ने जबाबदावा के पैरा 18,19,20,21 तथा 22 में किये गये कथनों का उल्लेख करते हुए यह तर्क दिया है कि परिवादी द्वारा वाहन के पंजीयन के स्थानान्तरण 14 दिनों के अन्दर नहीं कराया गया है। फोरम में वही व्यक्ति बीमा कम्पनी के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत कर सकता है जो उपभोक्ता हो। बीमा का अन्तरण न कराने के कारण परिवादी न तो बीमा कम्पनी का उपभोक्ता है और न ही प्रीमियम देकर उसने कोई सेवा प्राप्त की है। इसलिए परिवाद पोषणीय नहीं है। अपने तर्को के समर्थन में विद्वान अधिवक्ता ने 2009(3)टी.ए.सी.पेज 71(ए.पी.)न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी बनाम पेटलू नागारतनम एवं अन्य के मामले में माननीय आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय,2014(2)सी.पी.आर. पेज13(एन.सी) संदीप गुप्ता बनाम यूनाइटेड इण्डिया इन्सोरेंस कम्पनी लि0 द्वारा श्री राजपाल एवं अन्य के मामले में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली ,2014(4)टी.ए.सी.पेज 1(एस.सी.) नरीन्दर सिंह बनाम दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 व अन्य के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय,2006(1)सी.पी.आर. पेज 543 दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 एवं अन्य बनाम केवल सिंह के मामले में माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग चड़ीगढ तथा 2007(1)सी.पी.आर.पेज 7 दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम सन्तराम चैहान के मामले में माननीय हिमांचल प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा दी गयी विधि व्यवस्थाओं का आश्रय लिया है।
13-    उपरोक्त तर्को का विरोध करते हुए परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया है कि इस प्रकरण में परिवादी ने गाडी क्रय करने के बाद फार्म 29व 30 पर दिनांक 6-5-2012 को पूर्व विके्रता का हस्ताक्षर प्राप्त करके सभी 
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आवश्यक प्रलेखों के साथ पंजीयन के अन्तरण हेतु उसे कोलकता में पंजीयन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। पंजीयन की कार्यवाही जब विचाराधीन थी तो उसी दौरान वाहन दिनांक 20/21-7-12 को चोरी हो गया। उन्होंने तर्क दिया है कि वाहन चोरी हो जाने के उपरान्त पंजीयन का अन्तरण परिवादी के पक्ष में दिनांक 10-9-2012 को पंजीयन अधिकारी द्वारा कर दिया गया है। पंजीयन अन्तरित हो जाने के 14 दिन के भीतर ही मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 के प्राविधानों के अन्र्तगत बीमा के अन्तरण हेतु आवेदन पत्र विपक्षी संख्या 1 के शाखा प्रभारी दि यूनाइटेड इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 नईबस्ती मुगलसराय चन्दौली को दिनांक 17-9-12 को दे दिया गया ।ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी के उपर वैधानिक दायित्व था कि वह बीमा का अन्तरण परिवादी के पक्ष में कर दे लेकिन बीमा दावा का भुगतान न करना पड़े सिर्फ इसी कारण से आवेदन पत्र पर बीमा कम्पनी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी । विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यदि बीमाकृत किसी वाहन का अन्तरण बीमा की अवधि में वाहन स्वामी द्वारा कर दिया जाता है तो बीमा से सम्बन्धित सभी लाभ अन्तरती को वाहन के साथ प्राप्त हो जाता है। मोटर वाहन अधिनियम के नियमों के अन्र्तगत पंजीयन के स्थानान्तरण के उपरान्त बीमा के अन्तरण हेतु परिवादी निर्धारित 14 दिन के भीतर आवेदन विपक्षी बीमा कम्पनी को दे दिया था  जिस पर बीमा कम्पनी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी।  इसलिए माना जायेगा कि बीमा का स्थानान्तरण नियमानुसार परिवादी के पक्ष में हो गया है इसलिए बीमा पालिसी के अन्र्तगत परिवादी बीमा धन पाने का अधिकारी है। अपने तर्क के समर्थन में विद्वान अधिवक्ता ने 2012 विधि निर्णय एवं सामयकी पेज 1459 यूनाइटेड इण्डिया इ0क0 लि0 बनाम मो0 इशाक एवं अन्य के मामले में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गयी विधि व्यवस्था का आश्रम लिया है।
14-    हम लोगों द्वारा उपरोक्त तर्को पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया है तथा प्रस्तुत विधि व्यवस्थाओं का परिशीलन किया गया। यह तथ्य पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि वाहन क्रय करने के बाद परिवादी ने पंजीयन के लिए आवश्यक प्रपत्र पंजीयन कार्यालय में जमा कर दिया था और कार्यवाही विचाराधीन थी कि इसी दौरान दिनांक 20/21-7-12 की रात्रि में उक्त वाहन चोरी हो गयी। वाहन चोरी की सूचना मात्र 1 दिन बाद परिवादी की ओर से उसके वाहन के चालक जितेन्द्र कुमार जुनेजा द्वारा विपक्षी बीमा कम्पनी के सम्बन्धित शाखा प्रभारी को दिया गया था,जिसकी(छायाप्रति कागज संख्या 4/26)पत्रावली में उपलब्ध है। इसके परिशीलन से पाया जाता है कि दिनांक 23-7-12 के सांयकाल 4 बजे यह सूचना ओरियेण्टल इश्योरेंस कम्पनी के शाखा नईबस्ती मुगलसराय चन्दौली के शाखा प्रभारी ने प्राप्त किया था। यह तथ्य भी प्रमाणित है कि चोरी की घटना के उपरान्त दिनांक 10-7-12 को उक्त वाहन का पंजीयन परिवादी के नाम पंजीयन अधिकारी द्वारा अन्तरित कर दिया गया है। पंजीयन प्रमाण पत्र  (छायाप्रति का0स.25/4ता 25/6)के परिशीलन से यह तथ्य प्रमाणित हो जाता है कि वाहन के पूर्व स्वामी 
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सीमाया के स्थान पर परिवादी जयपाल रहेजा का नाम पंजीकृत स्वामी के रूप में अंकित हो गया है। पंजीयन अन्तरित होने के मात्र 7 दिन बाद दिनांक 17-9-12 को परिवादी जयपाल रहेजा ने बीमा पालिसी अन्तरित करने हेतु आवेदन पत्र(छायाप्रति का0स025/2)  बीमा कम्पनी के शाखा प्रबन्धक को प्राप्त करा दिया था। अब प्रश्न है कि क्या उक्त स्थिति में बीमा कम्पनी परिवादी के बीमा दावा को विधिता अस्वीकार कर सकती है ?इस बिन्दु पर हम लीोगों द्वारा विचार किया गया।
15-    दि न्यू इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम पेटलू नागारतनम एवं अन्य (सुप्रा) के मामले में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 तथा 147 ;प्द्ध;इद्ध;पद्धपर विचार करते हुए माननीय आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि जिस व्यक्ति को वाहन अन्तरित की जाती है उसके पक्ष में यह माना जायेगा कि बीमा पालिसी का भी अन्तरण हो गया है। धारा 157 के अन्र्तगत बीमा पालिसी अन्तरित न कराने का प्रभाव तृतीय पक्ष पर नहीं होगा। अवधारण का उपरोक्त प्राविधान सिर्फ तृतीय पक्ष के जोखिम एवं वाहन को हुई क्षति के संदर्भ में है लेकिन यदि वाहन के अन्तरती ने बीमा का अन्तरण नहीं कराया है तो बीमा पालिसी के अन्र्तगत बीमा कम्पनी के विरूद्ध कोई दावा नहीं कर सकता है। दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 एवं अन्य बनाम केवल सिंह (सुप्रा) के मामले में माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग चड़ीगढ द्वारा भी यह विधि व्यवस्था दी गयी है कि धारा 157 मोटर वाहन अधिनियम के अन्र्तगत वाहन के अन्तरण के उपरान्त बीमा पालिसी स्वतः अन्तरित हो जाने के बारे में जो अवधारण का प्राविधान है वह तृतीय पक्ष के जोखिम के लिए है। संदीप गुप्ता बनाम यूनाइटेड इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी लि0 एवं अन्य (सुप्रा)के मामले में वाहन क्रय करने के बाद के्रता ने बीमा का अन्तरण नहीं कराया था। वाहन चोरी हो गयी। वाहन स्वामी का बीमा दावा मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 के अन्र्तगत बीमा अन्तरित न कराने के कारण खारिज कर दिया था। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली ने इस मामले में यह विधि व्यवस्था दिया है कि बीमा अवधि के अन्दर ट्रक को क्रय करने के उपरान्त यदि ट्रक का अन्तरती बीमा का अन्तरण नहीं कराता है तो वह ट्रक चोरी हो जाने पर बीमा पालिसी के अन्र्तगत कोई दावा करने का अथवा क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। नरीन्दर सिंह बनाम नेशनल एश्योरेंस कम्पनी लि0 व अन्य (सुप्रा) के मामले में गाड़ी क्रय करने के बाद उसका अस्थाई पंजीयन दिनांक 11-1-06 तक कराया गया था। दिनांक 2-2-06 को वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी। कोई अभिलेख व साक्ष्य उपलब्ध नहीं था कि वाहन स्वामी ने तब तक स्थाई पंजीयन हेतु कोई आवेदन किया हो उपरोक्त स्थिति में माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने अवधारित किया है कि दुर्घटना के पूर्व वाहन का स्थाई पंजीयन न कराना बीमा की शर्तो का उल्लंघन है इसलिए वाहन स्वामी कोई क्षतिपूति पाने का अधिकारी नहीं है। दि न्यू इण्डिया एश्योरेंस कम्पनी लि0 बनाम सन्तराम चैहान(सुप्रा) के मामले में वाहन क्रय करने के बाद अन्तरती द्वारा बीमा पालिसी का अन्तरण नहीं कराया गया  था। बीमा का नवीनीकरण पूर्व गाडी मालिक के नाम पर 
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कराया गया था। माननीय हिमांचल प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा अवधारित किया है कि धारा 157 मोटर वाहन अधिनियम के अन्र्तगत वाहन मालिक तृतीय पक्ष के रूप में कोई क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। 
16-    उपरोक्त सभी विधि व्यवस्थाओं के तथ्य एवं परिस्थितियों पर विचारोपरान्त पाया जाता है कि वर्तमान मामले में तथ्य पूर्णतया भिन्न है इसलिए उपरोक्त कोई विधि व्यवस्थ का लाभ विपक्षी बीमा कम्पनी को प्रदान नहीं किया जा सकता है। उपरोक्त विवेचना से इस प्रकरण में प्रमाणित है कि वाहन क्रय करने के बाद पंजीयन के अन्तरण हेतु फार्म 29व 30 भरकर तथा अन्य आवश्यक प्रलेखों को जमा करके पंजीयन कार्यालय में परिवादी द्वारा दिया गया था लेकिन पंजीयन की कार्यवाही जब विचाराधीन थी उसी दौरान वाहन की चोरी हो गयी। चोरी की घटना के बाद पंजीयन अधिकारी ने उपरोक्त वाहन का पंजीयन परिवादी के नाम दिनांक 10-9-12 को अन्तरित कर दिया है जैसा कि पंजीयन प्रमाण पत्र (छायाप्रति का0स025/4ता 25/6) से प्रमाणित है। बीमा प्रमाण पत्र का अन्तरण पंजीयन के अन्तरण के बाद ही होना सम्भव है जैसा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 के प्राविधानों से स्पष्ट है। धारा 157 की उपधारा (1) में यह प्राविधान दिया गया है कि ’’जहाॅं कोई व्यक्ति, जिसके पक्ष में इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार बीमा प्रमाण दिया गया है,उस मोटर यान का स्वामित्व जिसकी बाबत ऐसे बीमा लिया गया था, उसमे सम्बन्धित बीमा पालिसी सहित किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरित करता है वहाॅं बीमा प्रमाण पत्र और प्रमाण पत्र में वर्णित पालिसी उक्त व्यक्ति के पक्ष में जिसे मोटरयान अन्तरित किया गया है उसके उसके अन्तरण की तिथि से प्रभावशील रूप से अन्तरित समझी जायेगी’’। इसकी उपधारा (2) में यह प्राविधान दिया गया है कि ’’अन्तरती,विहित प्रारूप में, अन्तरण की तारीख से 14 दिन के भीतर बीमा प्रमाण पत्र और प्रमाण पत्र में वर्णित पालिसी में उसके पक्ष में अन्तरण के तथ्य की बाबत आवश्यक परिवर्तन करने के लिए बीमाकर्ता को आवेदन करेगा और बीमाकर्ता प्रमाण पत्र में तथा बीमा की पालिसी में बीमा के अन्तरण के बाबत आवश्यक परिवर्तन करेगा।
17-    मोटर यान अधिनियम की धारा 157की उप धारा (2) के उपरोक्त प्राविधानों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अन्तरती पंजीयन प्रमाण पत्र के अन्तरण की तारीख से 14 दिन के भीतर बीमा पालिसी के अन्तरण हेतु आवेदक बीमाकर्ता के समक्ष प्रस्तुत करेगा। ऐसा आवेदन करने पर बीमाकर्ता का दायित्व है कि वह बीमा पालिसी में बीमा के अन्तरण के सम्बन्ध में आवश्यक परिवर्तन करेगा। उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट हो चुका है कि इस प्रकरण में पंजीयन प्रमाण पत्र का अन्तरण दिनांक 10-9-12 को हो जाने के बाद 14 दिन के भीतर अर्थात अन्तरण के मात्र 7 दिन के बाद दिनांक 17-9-12 को परिवादी ने विपक्षी बीमाकर्ता के यहाॅं पंजीयन अन्तरित होने की सूचना देते हुए बीमा प्रमाण पत्र के अन्तरण का निवेदन किया था जिस पर बीमा कम्पनी द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया। अतः माना जायेगा कि बीमा का अन्तरण परिवादी के पक्ष में हो गया है। यह सारी कार्यवाही बीमा 
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दावा के अन्वेषण के पहले पूरी हो गयी थी। उपरोक्त तथ्यों का उल्लेख बीमा कम्पनी के अन्वेषक ने अपनी रिर्पोट में करते हुए अपना निष्कर्ष अंकित किया है । उपरोक्त स्थिति में इस प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियां भिन्न होने की वजह से बीमा कम्पनी के तरफ से प्रस्तुत उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं का कोई लाभ उसे नहीं दिया जा सकता है। परिवादी की ओर से प्रस्तुत विधि व्यवस्था यूनाइटेड इण्डिया इश्योरेंस कम्पनी बनाम मो0 इशाक एवं अन्य (सुप्रा) के मामले में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि मोटरयान का बीमा यान से सम्बद्ध लाभ है। मोटरयान के स्वामित्व में परिवर्तन उसके बीमा को प्रभावित नहीं करता है। बीमित यान का नया स्वामी बीमा के लाभ का पूर्ण रूप से हकदार है एवं उसका पुनः बीमा कराने का उस दशा में अपेक्षा नहीं की जाती है जबकि पूर्व वाहन स्वामी द्वारा कराये गये बीमा की अवधि चल रही हो। इस विधि व्यवस्था को देखते हुए मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों में यह पाया जाता है कि बीमा कम्पनी ने बीमा दावा का परिवादी को भुगतान न करके सेवा में कमी किया है। तद्नुसार परिवादी का  वाहन चोरी हो जाने के कारण उसकी बीमा धनराशि मु03,60000/- तथा इस पर उचित हर्जा ओर वाद व्यय परिवादी को दिलाया जाना न्यायोचित है।
                                 आदेश
    प्रस्तुत परिवाद अंशतः स्वीकार किया जाता है विपक्षी 1 शाखा प्रबन्धक दि ओरियण्टल इश्योरेंस कम्पनी लि0 कार्यालय नई बस्ती मुगलसराय जिला चन्दौली को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से 2 माह के अन्दर परिवादी को बीमा धनराशि मु0 3,60,000/-(तीन लाख साठ हजार) तथा इस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से आइन्दा भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज  एवं मु0 10,000/-(दस हजार) क्षतिपूर्ति तथा मु0 2,000/-(दो हजार) वाद व्यय का भुगतान करें।


(मारकण्डेय सिंह)                                               (जगदीश्वर सिंह)
   सदस्य                                                         अध्यक्ष
                                                           दिनांक 10-3-2015

 
 
[HON'BLE MR. jagdishwar Singh]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Markandey singh]
MEMBER

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