जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम,पाली(राजस्थान)
परिवाद संख्या सी.सी./06/2012
श्रीमति कल्पना पति सुरेषकुमार कोठारी जाति जैन मालिक मैसर्स षंखेष्वर काटन मिल्स,65 महावीर नरगर,पाली तहसील व जिला पाली (राजस्थान)।
परिवादिया
बनाम
1-दी ओरियण्टल इन्ष्योरेन्स कम्पनी लि0जरिये मण्डलीय प्रबन्धक,136मणिडयारोड,पाली तहसील पाली जिला पाली (राजस्थान)।
2-दी आरियण्टल इन्ष्योरेन्स कम्पनी लि0,जरिये मुख्य प्रबन्धक (रजिस्टर्ड कार्यालय)आरियण्टल हाउस,ए-25-27आषफ अली रोड, नर्इदिल्ली 10002 ।
3-सवानी ट्रांसपोर्ट प्रा0 लि0 जरिये षाखा प्रबन्धक, 25 बी, ट्रांसपोर्ट नगर, पाली (राजस्थान)।
4-सवानी ट्रांसपोर्ट प्रा0 लि0 जरिये षाखा प्रबन्धक, सिंगा राजू स्ट्रीट,कटनापेट,विजयवाडा (आन्ध्रप्रदेष) ।
5-सवानी ट्रांसपोर्ट प्रा0 लि0 जरिये मुख्य प्रबन्धक (रजिस्टर्ड कार्यालय),ब्रोडवे सेन्टर द्वितीय माला, डा.अम्बेडकर रोड, दादर (इ्र्रस्ट) मुम्बर्इ400014(महाराष्ट्र)।
अप्रार्थीगण
दिनांंक 28-01-2015 निर्णय
ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्
परिवादिया ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व पेषकर बताया है कि परिवादियाषंखेष्वर काटन मिल्स की एक मात्र मालिक है । परिवादिया पाली में कपडे का ट्रेडिग का व्यवसाय करता है । अप्रार्थी सं0 एक व दो बीमा का व्यवसाय करते है तथा अप्रार्थी सं0 3 से 5 माल परिवहन का व्यवसाय करते है। परिवादिया ने अप्रार्थीगण सं0 एक से मेरिन बीमा पालिसी सं0 243500212011115 ले रखी है जो दिनांक 01-10-2010 से 30-09-2011 तक प्रभावी थी । परिवदिया ने दिनांक 25-11-2010 को पाली से विजयवाडा भिजवाने हेतु कपडे की दो गाठे अप्रार्थी सं0 तीनष्को पाली में सुपुर्द की। उक्त गाठ में 81400-रूपये का माल था । गंतव्य स्थान पर माल की डिलेवरी प्राप्त होने पर अप्रार्थी सं0 4 को की जानी थी । परिवादिया को प्रतिमाह भेजे जाने वाले माल का पूर्ण विवरण डिक्लेरेषन फार्म में भरकर अप्रार्थी सं0 एक को देना होता है । पद सं0 5 में दर्ज माल की धोषणा परिवादिया द्वारा डिक्ेकलेरेषन फार्म कं्रम सं0 146 एवं 147 की गर्इ है । परिवादिया द्वारा भेजा गया माल गतंव्य स्थान पर नहीं पहुंचा तथा उक्त माल परिवहन के दौरान गुम हो गया । अप्रार्थी सं0 4 द्वारा परिवादिया को विजयवाडा माल की डिलेवरी प्रदान नहीं करने के कारण नोन डिलेवरी सर्टिफिकेट जारी करने हेतु दिनांक 10-1-2011 को नोटिस दिया गया है । परिवादिया ने दिनांक 16-3-2011 को अप्रार्थी सं0 एक के समक्ष क्लेम दावा प्रस्तुत किया। अप्रार्थी सं0 एक ने क्लेम दावे की जाच हेतु सर्वेयर नियुक्त किया। सर्वेयर द्वारा दस्तावेजात की माग की गर्इ जो उन्हे उपलब्ध करावा दिये गये । अप्रार्थीगण से बार बार सम्पर्क किया गया तो बताया गया कि क्लेम दावा जाच में होने का कहा जाता रहा है क्लेम दावे का निर्णय लेने में चार माह का समय पर्याप्त होता है उसके पष्चात अनावष्यक विलम्ब किये जाने से स्पष्ट रूप से जाहिर है कि अप्रार्थीगण ने जानबुझकर उपेक्षा एवं लापरवाही बरतते हुये क्लेम दावे का निस्तारण नहीं कर उपभोक्ता सेवामें त्रुटि की है । अप्रार्थीगण परिवादी को क्षतिपूर्ति करने हेतु पूर्णरूप से उत्तरदायी है ।अप्रार्थी सं03 व 4 के अधिनस्थ कर्मचारी ड्रार्इवर व खलासी की लापरवाही एवं उपेक्षापूर्ण ढग से माल का परिवहन किये जाने के कारण माल गुम हुआ है । परिवादिया द्वारा भेजा गया सम्पूर्ण माल अप्रार्थीगण सं0 एक व दो के यहा बीमित है । परिवादिया ने कुल 124830-रूपये का क्लेम दावा प्रस्ुत किया है तथा अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ पत्र मय दस्तावेजात पेष किये गये है ।
2- अप्रार्थीगण सं0 एक व दो ने परिवाद का जवाब पेषकर निवेदन किया है कि परिवादिया क्लीन हेण्ड से मंच के समक्ष नहीं आयी है इसलिये प्रथमदृष्टया परिवाद काबिल खारिज के है ।बीमा कम्पनी से बीमा करवाकर काल्पनिक धटनाकम रचते हुयें सम्पूर्ण कार्यवाहीया परिवादिया द्वारा अन्य प्रकरणो के जरिये पेष की गर्इ है । बीमा कम्पनी द्वारा अपने सर्वेयर से धटना की सम्पूर्ण जाच करवार्इ गर्इ जिसमें पाया गया कि परिवादिया के द्वारा फजीर्ै तरीके से बीमा अवधि से बहुत पहले पानी से खराब हुये माल की वसूली करने की मंषा से पुरानी वसूली का समायोजन किया गया है । परिवादिया का उक्त माल न तो परिवहन के दौरान गुम हुआ था, न ही परिवादिया से अन्य पक्षकार द्वारा उक्त माल को मंगवाया गया था । मात्र कागजी कार्यवाही के जरिये पुराने नुकसान की भरपार्इ करने की मंषा से काल्पनिक धटना रचते हुये सम्पूर्ण कार्यवाही की गर्इ है जेा जाच में झूठे पाये गये है जिनके विरूद्व बीमा कम्पनी द्वारा पुलिस में कार्यवाही की जानी थी जो विचाराधीन है । सर्वेयर रिपोर्ट में कनसार्इनी के बयानो से ट्रासपोर्टो के बयानो से तथा ट्रक चालको के बयानो से सम्पूर्ण धटनाक्रम झूठा पाया गया है । ट्रक चालक को पूरा भाडा दिया गया है यदि माल गुम होता है तो भाडा नहीं दिया जाता है । माल गुम होने के संबंध में न तो एफ. आर्इ. आर.दर्ज करवार्इ गर्इ है। अत: यह परिवाद गलत आधारो पर पेष किया गया। परिवादी की मेलीमंषा से बीमा से बहुत पहले हुये नुकसान की भरपार्इ के लिये एक आपराधिक षडयन्त्र मात्र है जा प्रथमदृष्टया जाच से साबित है जो सही रूप से खारिज किया गया है । परिवादिया का कार्य व्यवसायिक उदेष्य के लिये किया गया है । इसलिये परिवादिया उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है । अत: परिवादिया का परिवाद खारिज किया जावे। अपने जवाब के समर्थन मे षपथ पत्र पेष किया गया है ।
3- अप्रार्थी सं0 3 से 5 ने अपना जवाब पेषकर बताया है कि अप्रार्थीगण द्वारा परिवादिया को प्रदान की गर्इ सेवाओ में किसी प्रकार की कमी नहीं की गर्इ है तथा परिवादिया द्वारा अप्रार्थी सं0 3 के यहा परिवादग्रस्त माल ऐट ओनर्स रिस्क पर परिवहन हेतु बुक कराया गया था । माल परिवहन के दौरान होने वाली क्षति के लिये परिवादिया स्वयं जिम्मेदार है। अप्रार्थीगण को अनावष्यकरूप से पक्षकार बनाया गया है ।परिवादिया के परिवाद के षीर्षक से स्पष्ट प्रतीत होता है कि परिवादी एक फर्म है जो वाणिजियक एवं व्यवसायिक प्रकृति का व्यापार करती है । इस प्रकार परिवादी द्वारा अप्रार्थीगण से प्राप्त की गर्इ सेवाऐ पूर्णतया व्यवसायिक उदेष्यो की पूर्ति हेतु क्रय की गर्इ है जिस कारण से हस्तगत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत पोषणीय नहीं है,न मंच को यह परिवाद सुनने का क्षैत्र.ाधिकार एवं श्रवणाधिकार है । परिवादी द्वारा अप्रार्थीगण को केरियर एक्ट की धारा 10 के तहत निर्धारित अवधि में नोटिस नही ंदेने के कारण परिवाद खारिज होने योग्य है । परिवादग्रस्त माल की बिल्टी पर अंकित षर्त के मुताबिक अप्रार्थीगण का पंजीकत कार्यालय महाराष्ट्र में सिथत होने से विवादो का न्याय क्षैत्र मुम्बर्इ होने से माननीय मंच को परिवाद सुनने का क्षैत्राधिकार नहीं है इसलिये परिवाद खारिज होने योग्य है । अप्रार्थीगण ने परिवादी के खरीदार पक्षकार एवं उसके प्रतिनिधि को सूचित किया एवं नियमानुसार नेान डिलेवरी सर्टिफिकेट जारी कर उपभोक्ता सेवामें की पूर्ति की है । अप्रार्थी सं0 4 को परिवादी द्वारा नोटिस देकर नोन डिलेवरी सर्टिफिकेट की माग करने का कथन अस्वीकार है । अप्रार्थीगण ने बीस हजार रूपये परिवाद व्यय दिलाने की प्रार्थना करते हुये परिवाद सव्यय खारिज करने की प्रार्थना की है । अप्रार्थीगण की तरफ से श्री मुकेषकुमार षर्मा ने अपना षपथ पत्र पेष किया है ।
4- बहस अंतिम सुनी गर्इ । पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया तथा अप्रार्थी सं0 एक व दो की ओर से लिखित बहस प्रस्तुत की गर्इ है उसका भी अवलोकन किया गया ।
5- बहस के दौरान अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ताओ का तर्क रहा है कि परिवादिया के परिवाद से स्पष्ट है कि परिवादिया कपडे की ट्रेडिग का कार्य करती है जो वाणिजियक एवं व्यवसायिक प्रकृति का व्यापार है जिससे परिवादिया भारी लाभ अर्जित करती है । परिवादिया ने अप्रार्थीगण से प्राप्त की गर्इ सेवाऐ पूर्णतया व्यवसायिक उदेष्यो की प्रापित के लिये क्रय की है इसलिये परिवादिया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(डी)(।।) के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है । इसलिये परिवादिया का परिवाद मंच के सुनवार्इ योग्य नहीं होने से खारिज किये जाने योग्य है ।
6- उक्त तर्को का जोरदार खण्डन करते हुये परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया अपने कपडे का व्यापार करती है और उसने अपने कपडे की गाठो का परिवहन सुरक्षित कराने हेतु अप्रार्थी सं0 एक व दोेे से बीमा करवाया है तथा अप्रार्थी सं0 3 व 4 कोेनिषिचत स्थान पर माल पहुचाने के लिये सुपुर्द किया है । परिवादिया ने अप्रार्थीगण से प्राप्त सेवाओ का किसी भी प्रकार से वाणिजियक उपभोग नहीं किया है । इसलिये परिवादिया उपभोक्ता संंरक्षण अधिनियम 1986की धारा 2(डी) (।।) के तहत उपभोक्ता की श्रेणी में आता है।
7- हमने उभय पक्षो के तर्को पर मनन किया एवं प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त एवं विधि के प्रावधानो का अवलोकन किया । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(डी)(।।) में उपभोक्ता को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार उपभोक्तासे ऐसा कोर्इ व्यकित अभिप्रेत है जो (।।) किसी ऐसे प्रतिफल के लिये जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है , या भागत: संदाय और भागत: वचन दिया गया है ,या किसी आस्थगित संदाय की पद्वति के अधीन सेवाओ को भाडे पर लेता है या उपभोग करता है और इसके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यकित से भिन्न ऐसी सेवाओ का कोर्इ हिताधिकारी भी है जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिये जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्थगित संदाय की पद्वति के अधीन सेवाओ को भाडे पर लेता है या उपभोग करता है जब ऐसी सेवाओ का उपयोग प्रथम वणिर्ेात व्यकित के अनुमोदन से किया जाता है । लेकिन इसके अन्तर्गत ऐसा व्यकित नहीं है,जो ऐसी सेवाओ्र केा किसी वाणिजियक प्रयोजन के लिये उपाप्त करता है । स्पष्टीकरण-इस खण्ड के प्रयोजन के लिये वाणिजियक प्रयोजन के अन्तर्गत किसी व्यकित द्वारा माल का उपयोग और सेवाओ का उपाप्त नहीं आता। जिसका उसने अनन्य रूप से स्वनियोजन उपाय से अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजन के लिये क्रय और उपयोग किया है ।
8- हस्तगत प्रकरण में परिवादिया ने अप्रार्थीगण सं0 एक व दो से अपने सामान को मेरिन कारगो ओपन पालिसी से आवरित करवाया है । यह भी स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिया कपडे की ट्रेडिग का व्यवसाय करती है । परिवादिया ने अपने सामान का परिवहन के दौरान होने वाले नक्ुसान की रिस्क को ध्यान में रखते हुये बीमा करवाया है । इस प्रकार बीमा एक प्रकार से वास्तविक में होने वाले नुक्सान से बचने के लिये करवाया गया है । परिेवादिया ने बीमा लाभ कमाने के लिये नहीं करवाया है ।
9- माननीय नेषनल कमीषन ने न्यायिक दृष्टान्त 2(2005)सीवीजे27(एनसी) हरसोलिया मोटर्स बनाम नेषननल इन्ष्योरेन्स क0 लि0 के मामले में व्यवस्था दी है कि यदि बीमा पालिसी दुर्धटना में होने वाली क्षति की इन्डीमिटी के लिये करार्इ जाती है । इसमें किसी प्रकार का व्यवसाय व ट्रेडिग करना नहीं माना जा सकता है ।
10- अत: उक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोषनी में परिवादिया उपभोक्ता की श्रेणी में पायी जाती है ।
11- परिवादिया एवं अप्रार्थीगण के द्वारा प्रस्तुत परिवाद एवं जवाबो के निम्न तथ्य स्वीकृत तथ्य होने पाये जाते है:-
1-परिवादिया ने अप्रार्थीगण सं0 एक व दो से मेरिन बीमा पालिसी सं0 243500212011115 ले रखी थी। उक्त पालिसी के तहत परिवादिया के द्वारा पाली से भारत वर्ष में किसी भी जगह माल ट्रांसपोर्ट के द्वारा भेजे जाने पर अप्रार्थीगण सं0 एक के द्वारा बीमित था और उक्त माल गतंव्य स्थान पर पहुचने के बाद सात दिन तक ही बीमित था । उक्त अवधि के दौरान माल में किसी भी प्रकार की क्षति होने पर सारी होने वाली क्षतिपूर्ति अप्रार्थीगण सं. एक व दो की थी। उक्त बीमा पालिसी दिनांक 1-10-2010 से 30-9-2011 की मध्य रात्रि तक की अवधि की थी ।
2-परिवादिया के द्वारा प्रतिमाह भेजे जाने वाले माल का पूर्ण विवरण डिक्लेरेेषन फार्म में भरकर अप्रार्थी सं0 एक के कार्यालय में सुपुंर्द किया जाता था । परिवादिया द्वारा हस्तगत प्रकरण में भेजे गये माल की धोषणा परिवादिया द्वारा डिक्लेरेषन फार्म क्रमांक 146, 147 के द्वारा की गर्इ थी । उक्त डिक्लेरेषन फार्म दिनांक 7-12-2010 को कार्यालय में दिया गया था ।
3-अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 की ओर से परिवादिया का यह कथन स्वीकार किया गया है कि उसको दिनांक 25-11-2010 को परिवादिया ने पाली से भिजवाने हेतु कपडे की कुल दो गाठे पाली में सुपुर्द की थी । अप्रार्थी सं0 3 ता 5 को उक्त माल सही सलामत गतव्य स्थान पर पहुचाने एवं डिलेवरी करने का करार किया गया था ।
4-अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 की ओर से परिवादिया का यह कथन स्वीकार किया गया था कि परिवादिया द्वारा भेजा गया माल सही सलामत गतंव्य स्थान पर नहीं पहुचा और परिवादिया का माल परिवहन के दौरान गुम हो गया और उक्त माल की डिलेवरी विजयवाडा में परिवादिया को नहीं दी गर्इ ।
5-अप्रार्थीगण सं0 3ता 5 ने यह स्वीकार किया है कि उन्होने परिवादिया को नोन डिलेवरी सर्टिफिकेट जारी किया है ।
6-यह भी स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिया के माल की परिवहन के दौरान गुम हो जाने पर अप्रार्थी सं0 एक व दो ने तथा तीन ता पाच ने परिवादिया को हुये नुकसान की क्षतिपूर्ति नही ंकी है ।
12- अब हमें यह देखना है कि क्या अप्रार्थी सं0 एक व दो बीमा कम्पनी ने परिवादिया का माल परिवहन के दौरान गुम हो जाने पर क्षतिपूर्ति अदा नहीं करके सेवा में कमी की है ?
13- इस संबंध में अप्रार्थीगण सं0 एक व दो के विद्वान अधिेावक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया ने श्रीमान मंच के समक्ष परिवाद स्वच्छ हाथो से पेष नहीं किया है । उनका यह भी तर्क रहा है कि परिवादिया ने परिवाद में दर्ज माल वास्तवमें अप्रार्थी सं0 3 ता 5 के मार्फत भेजा ही नहीं गया था,न उक्त माल रास्ते में गुम हुआ था, मात्र कागजी कार्यवाही करके पुराने नुकसान की भरपार्इ करने की मंषा से अप्रार्थी बीमा कम्पनी से बीमा करवाकर काल्पनिक धटना क्रम रचते हुये सम्पूर्ण कार्यवाही परिवादिया तथा उसके पति ने की है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि परिवादिया द्वारा क्लेम प्रस्तुत करने पर अप्रार्थीगण सं0 एक व ष्दो की ओर से सर्वेयर श्री षाहनवाज रिजवी को नियुक्त किया गया था उन्होने इस मामले में जाच की है और ये पाया गया है कि परिवादिया के द्वारा बीमा अवधि से पूर्व पानी से हुये माल की वसूली करने की मंषा से यह सम्पूर्ण धटनाक्रम रचा है ताकि पूर्व में हुये नुकसान कीे वसूली की जा सके । परिवादिया ने अप्रार्थी सं0 3 ता 5 से मिलकर झूंठा बिल तैयार किया है एवं झूंठे आर्डर दर्षाये है एवं झुंठे नोन डिलेवरी सर्टिफिकेट प्रस्तुत किये है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि सर्वेयर ने जाच के दौरान ट्रांसपोटर के बयान,ट्रक चालक के बयान, लेेखबद्व किये है एवं कनसार्इनी के बयान भी लेखबद्व किये है । इन बयानो से सारा धटनाक्रम झूंठा पाया गया है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि ट्रांसपोटर ने जब परिवादिया का माल गतंव्य स्थान पर नहीं पहुचा तो उसको किस आधार पर भाडा दिया गया है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि ट्रांसपोर्टर ने ट्रक से माल गूम हो जाने की रिपोर्ट किसी भी थाने में नहीं करार्इ है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि जिस ट्रक से परिवादिया का माल भेजा गया था उसमें अन्य व्यकितयो का भी माल था अन्य व्यकितयो का माल सेफ पहुचा है एवं परिेवादिया का माल ही गुम हुआ है । इस प्रकार परिवादिया ने ट्रांसपोर्टरो से फर्जी बिल्टी प्राप्त की है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि कम्पनी के सर्वेेयर श्री सहनवाज रिजवी की जाच रिपोर्ट दिनांक 31-10-2011 को तैयार हुर्इ है । उक्त रिपोर्ट के आधार पर परिेवादिया का क्लेम निरस्त किया गया है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने परिवादिया का क्लेम खारिज करके इसमें किसी प्रकार की सेवामें कमी नहीं की है ।
14- विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय राजस्थान राज्य आयोग सर्किट बैच जोधपुर के द्वारा निर्णित 80 अपीलो की, जिसमें प्रथम अपील सं0 5262007 देहली राजस्थान ट्रासपोर्ट क0लि0बनाम वितराग ंफेबि्रक्स प्रा0लि0 व अन्य है, की निर्णय दिनांक 5-5-2008 की फोटो प्रति प्रस्तुत की है ।
15- उक्त तर्क का जोरदार खण्डन करते हुये परिवादिया के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया ने 25-11-2010 को पाली से भेजा हुआ अप्रार्थी सं0 3 के मार्फत कपडे की दो गाठे भेजने के लिये सुपुर्द की थीा जिसकी बिल्टी अप्रार्थी सं0 3 के द्वारा परिवादिया की फर्म को जारी की गर्इ थी । परिवादिया के माल की कीमत 81400-रूपये थी । अप्रार्थी गण सं0 3 ता 5 के द्वारा उक्त माल गतव्य स्थान पर नहीं पहुचाया गया और परिवहन के दौरान रास्ते मे ंही गुम हो गया । विद्वान अधिेावक्ता का यह भी तर्क है कि अप्रार्थी सं0 3 ता 5 की लापरवाही से उक्त माल गुम हुआ है जिससे परिवादिया के माल की कीमत का नुकसान हुआ है । परिवादिया ने माल की कीमत को ध्यान में रखते हुये माल अप्रार्थी सं0 एक व दो से बीमा भी कराया था । प्रार्थिया का माल गतंव्य स्थान पर नहीं पहुचा और गुम हो गया । ऐसी सूरत में प्रार्थिया अपने माल की कीमत की क्षतिपूर्ति अप्रार्थीगण से प्राप्त करने की अधिकारी है । विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टाप्त हस्तगत प्रकरण पर लागू नहीं होते है ।
16- हमने उभय पक्षो के तर्को पर मनन किया एवं प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त का अवलोकन किया ।
17- अप्रार्थी सं0 एक व दो का यह कथन रहा है कि परिवादिया ने अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 से मिलकर उक्त झूठा एवं काल्पनिक धटनाक्रम रचते हुये सम्पूर्ण कार्यवाही की है । उनके अनुसार परिवादिया ने न तो कोर्इ माल भेजा है न रास्ते में कोर्इ माल गुम हुआ है । इस प्रकार अप्रार्थीगण द्वारा कहे गये कथन को साबित करने का भार अप्रार्थीगण सं0 एक व दो पर था ।
18- अब हमें यह देखना है कि अप्रार्थीगण सं0 एक व दो बीमा कम्पनी अपने द्वारा किये गये कथन को साबित करने में सफल रही है ?
19- हस्तगत प्रकरण में अप्रार्थीगण सं0 एक व दो ने अपने जवाब में यह स्पष्ट किया है कि उसने परिवादिया को माल का परिवहन के दौरान गुम हो जाने के संबंध अपने सेर्वेयर श्री सहनवाज रिजवी से जाच ष्करार्इ । अप्रार्थी सं0 एक व दो ने जाच रिपोर्ट की फोटो प्रति भी प्रस्तुत की है । अप्रार्थी सं0 एक व दो के द्वारा नियुक्त सर्वेयेर श्री रजवी द्वारा बनार्इ गर्इ जाच रिपोर्ट की फोटो प्रति मंच के समक्ष प्रस्तुत किये जाने से उसमें उल्लेखित तथ्य क्या साबित माने जा सकते है ? भारतीय साक्ष्य अधिनियम किसी दस्तावेज को साबित करने के लिये एक तरीका बताया गया है जिसमें कोर्इ दस्तावेज जिस व्यकित द्वारा तैयार किया जाता है उसके बयान बतौर साक्षी प्रस्तुत किया गया है और वह अपने बयान से यह साबित करता है कि उसने उक्त जाच रिपोर्ट जाच के दौरेान गवाहो के बयान लेकर तैयार की है और उस गवाह से विपक्षी को जिरह करने का अवसर मिलता है । हस्तगत प्रकरण में अप्रार्थीगण सं0 एक व दो ने श्री रिजवी को बतौर साक्ष्यी मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है । इसके अतिरिक्त यदि यह मान भी लिया जावे कि मंच के समक्ष प्रस्तुत प्रकरण समरी प्रकृति के होते है तो भी अप्रार्थीगण सं0 एक व दो का दायित्व था कि वे अपने सर्वेयर श्री रिजवी का इस आषय का षपथपत्र प्रस्तुत करते कि उन्होने परिवादिया के मामले की जाच की थी और परिवादिया का मामला काल्पनिक एवं झूठा पाया गया है । इस प्रकार अप्रार्थी सं0 एक व दो की ओंर से सर्वेयर श्री रिजवी की रिपोर्ट को साबित कराने के लिये कोर्इ भी साक्ष्य प्रस्तुत नही ंकी गर्इ है । केवल मात्र यह कह देने से कि परिवादिया ने अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 से मिलकर यह धटनाक्रम बनाया है तथा काल्पनिक मामला दायर किया है ,साबित नहीं माना जा सकता है ।
20- अप्रार्थीगण सं0एक व दो की ओर से जो न्यायिक दृष्टान्त माननीय राज्य आयोग की सर्किट बैंच जोधपुर का प्रस्तुत किया गया है वह हस्तगत प्रकरण पर लागू नहीं होता है क्योकि प्रस्तुंत न्यायिक दृष्टान्त में बीमित माल बीमा की समय अवधिेा के पष्चात नष्ट हुआ था इसलिये बीमा कम्पनी को उस नुकसान के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया गया । हस्तगत प्रकरण में ऐसा कोर्इ मामला नही ंहै । हस्तगत प्रकरण में परिवादिया का माल परिवहन के दौरान गुम हुआ है जिसका बीमा अप्रार्थी सं0 एक व दो से करवा रखा है और अप्रार्थीगण सं0 एक व दो ने अपने जवाब में उललेखित तथ्यो की पुषिट किसी प्रकार की साक्ष्य से नहीं की है इसलिये अप्रार्थी सं0 एक व दो बीमा कम्पनी नेे परिवादिया का क्लेम खारिज करके सेवामें कमी की है ।
21- अब हमें यह देखना है कि क्या अप्रार्थी सं0 3 ता 5 ने परिवादिया केमाल को गतंव्य स्थान पर सावघानीपूर्वक नहीं ले जाकर लापवरवाही एवं उपेक्षा पूर्ण तरीके से ले जाकर माल को गुम कर सेवामें कमी की है ?
22- इस संबंध में अप्रार्थी सं0 3 ता 5 के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि परिवादिया ने अप्रार्थी सं0 3 के यहा परिवादग्रस्त माल ऐट ओनर्स रिस्क की षर्त पर परिवहन हेतु बुक कराया था एवं सुपुर्द किया था। इसलिये रास्ते में परिवहन के दौरान होने वाली किसीे जोखिम, नुकसान आदि की जिम्मेदारी स्वयं परिवादिया की थी । विद्वान अधिवक्ता ने बहस के दौरान मंच का ध्यान बिल्टी की ओर आर्कषित किया है जिसमे ंओनर रिस्क दर्ज होना लिखा हुआ है ।
23- हमने विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क पर मनन किया । अप्रार्थी सं0 3 के द्वारा जारी बिल्टी से यह स्पष्ट है कि बिल्टी में आनर्स रिस्क लिखा हुआ है परन्तु क्या ओनर्स रिस्क लिखने मात्र से ट्रांसपोटर अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है ?
24- इस संबंध में माननीय एच्चतम न्यायालय ने न्यायिक दृष्टान्त 1(2000) सी पी जे पेज25(एससी) नाथ ब्रदर्स एक्जीम इन्टरनेषनल लि0 बनाम वेस्ट रोडवेज लि0 में यह सिद्वान्त प्रतिपादित किया है कि ओनर रिस्क लिखने मात्र से केरियर द्वारा की जा रही लापरवाही एवं उपेक्षा से मुक्त नही ंकिया जा सकता । हस्तगत प्रकरण में अप्रार्थी सं0 3 ता 5 की ओर से ऐसी कोर्इ साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गर्इ है कि जिससे साबित हो कि उन्होने परिवादिया के माल को सुरक्षा एवं सावधानी से पहुचाने की कोषिष की थी । इस संबंध में अप्रार्थी सं0 3 ता 5 के ड्रार्इवर ,खलासी,स्टोर इन्चार्ज आदि को साक्ष्य में प्रस्तुत करना चाहिये था या उनका षपथपत्र प्रस्तुत करना चाहिये था । अप्रार्थी सं0 3 ता 5 की ओर से ऐसी कोर्इ साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है । परिवादिया को अपनी साक्ष्य से यह साबित करना आवष्यक नहीं है कि ट्रांसपोर्टर ने परिवहन के दौरान उसके माल को उपेक्षा व लापरवाही पूर्ण तरीके से डील किया । हस्तगत प्रकरण में परिवादिया का माल गुम होने के बाद भी अप्रार्थी सं0 3ता 5 की ओर से कोर्इ रिपोर्ट चोरी आदि के संबंध में किसी भी थाने में दर्ज नहीं करार्इ गर्इ है । अप्रार्थी सं0 3 ता 5 का यह कृत्य धोर लापरवाही का धोतक है इसलिये अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 परिवादिया का माल गुम हो जाने पर पूर्ण उत्तरदायी है । विद्वान अधिवक्ता का बहस के दौरान यह भी तर्क है कि परिकवादिया ने अप्रार्थीगण को केरियर एक्ट की धारा 10 के तहत निर्धारित अवधि में नोटिस नहीं दिया है, इस आधार पर परिवाद खारिज किया जावे।
25- इस संबंध में यह स्पष्ट करना उचित है कि परिवादिया का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत प्रस्तुत किया गया है, न कि केरियर एक्ट के तहत। इसलिये अप्रार्थीगण के द्वारा धारा 10 केरिेयर एक्ट की पालना नहीं करने के संबंध में उठार्इ गर्इ आपति सारहीन होने से खारिज की जाताी है ।
26- अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण का पंजीकृत कार्यालय बम्बर्इ (महाराष्ट्र)में सिथत होने से सभी विवादो का न्यायिक क्षैत्र मुम्बर्इ सिथत क्षैेत्राधिकार वाले न्यायालयो को होने से माननीय मंच ष्को सुनने का क्षैत्राधिेाकार नहीं है ।
27- इस संबंध में यह स्पष्ट करना उचित है कि अप्रार्थी सं0 3 का कार्यालय पाली में सिथत है इसलिये मंच को इस परिवाद को सुनने का क्षैत्राधिकार प्राप्त है ।
28- इस प्रकार उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5 ने भी परिवादिया के माल का परिवहन करते समय उपेक्षा एवं लापरवाही बरती है जिसके कारण उसका माल गुम हुआ है इसलिये अप्रार्थीगण सं0 3 ता 5ने भी परिवादिया को दी गर्इ सेवामें कमी की है ।
29- अत: उक्त विवेचन से मंच इस निष्कर्ष पर पहुचा है कि परिवादिया का परिवाद अप्रार्थीगण सं0 एक व दो एवं 3 ता 5 के विरूद्व संयुक्त एवं पृथक पृथक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है ।
आदेष
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अत: परिवादिया का परिवाद अप्रार्थीगण सं0 एक व दो तथा तीन ता पाच के विरूद्व संयुक्तत: एवं पृथक पृथक रूप से स्वीकार किया जाता है । अप्रार्थीग्ण परिवादिया को निर्णय के एक माह के अन्दर माह माल कीमत 81400-अक्षरे इक्कीयासी हजार चार सौ रूपये अदा करेगे । परिवादिया को माल की उक्त कीमत पर दिनांक 14-11-2011से 9 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज भी तावसूली तक अदा करेगे । अप्रार्थीगण परिवादिया को परिवाद व्यय के 5000-रूपये अक्षरे पाच हजार रूपये भी अदा करेगे । अप्रार्थीगण उक्त राषिेा एक माह में अदा नहीं की तो परिवादिया उक्त राषि पर 9 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज पाने की अधिकारी होगी।