जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
श्रीमति दयावती पत्नी श्री ओम प्रकाष, कौम कोली, निवासी- गुजरधरती, नगरा, मकान नं. 750/36, अजमेर ।
- प्रार्थिया
बनाम
1. मैसर्स आॅथोन्टिक विजन कन्सलटेन्सी(प्राईवेट) लिमिटेड, सी-77, ष्याम अपार्टमेन्ट, सरोजनी मार्ग, सी-स्कीम,जयपुर ।
2. ओरियण्टल इन्ष्योरेंस क.लि.,षाखा कार्यालय, प्रथम आकाषवाणी के सामने, एमआईरोड, जयपुर ।
3. ओरियण्टल इन्ष्योरेंस क.लि. , कचहरी रोड, इण्डिया मोटर चैराहा, अजमेर ।
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 536/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री रामचन्द्र वर्मा,प्रतिनिधि, प्रार्थिया
2.श्री षिषिर कुमार विजयवर्गीय, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-10.08.2016
1. प्रार्थिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसके पति श्री सुखलाल देवला ने अप्रार्थी संख्या 1 की नागरिक सुरक्षा पाॅलिसी रू. 1,25,000/- दिनंाक 29.5.2009 से 28.5.2013 तक की अवधि के लिए प्राप्त की । उसके पति का दिनंाक 14.2.2012 को देहान्त हो जाने पर उसके पाॅलिसी में नाॅमिनी होने के कारण उसने अप्रार्थीगण से सांत्वना राषि दिए जाने का निवेदन किया । किन्तु अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा उसे उक्त राषि इस आधार पर देने से मना कर दिया कि बीमाधारक की मृत्यु के एक माह के अन्दर क्लेम पेष नहीं किया है । अप्रार्थीगण द्वारा उसे वांछित राषि का भुगतान नहीं सेवा में कमी कारित की है । प्रार्थिया ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2. अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवाद का जवाब प्रस्तुत कर प्रार्थिया के पति द्वारा प्रष्नगत नागरिक सुरक्षा पाॅलिसी लिए जाने के तथ्य को स्वीकार करते हुए आगे दर्षाया है कि बीमाधारक द्वारा प्रीमियम की किष्तें नियमित रूप से जमा नहीं करवाई गई । उत्तरदाता द्वारा सदस्यता ष्षुल्क जमा कराए जाने के बाद ओरियण्टल इन्ष्योरेंस कम्पनी से प्रष्नगत पाॅलिसी अपने सदस्यों को उपलब्ध कराई जाती है । प्रार्थिया द्वारा अपने पति के देहान्त के बाद निष्चित समयावधि एक माह में क्लेम प्रस्तुत नहीं किया इसलिए प्रार्थिया कोई अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं है । परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
2. अप्रार्थी संख्या 2 व 3 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि अप्रार्थीगण की आपसी सहमति से प्रष्नगत बीमा पाॅलिसी जारी की जाती है । प्रार्थिया के पति को जारी की गई बीमा पाॅलिसी दुर्घटना बीमा पाॅलिसी थी जो दिनंाक 29.5.2009 को जारी की गई थी । बीमाधारक की मृत्यु प्राकृतिक होने के कारण प्रार्थिया को क्लेम का भुगतान नहीं किया गया । इस प्रकार उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी कारित नही ंकी गई । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है ।
3. प्रार्थिया का तर्क रहा है कि उसके पति द्वारा नागरिक सुरक्षा पाॅलिसी दिनंाक 29.5.2009 से 28.5.2013 की अवधि के लिए ली गई थी। उनके जीवन काल में नियमित रूा से प्रीमियम राषि जमा करवाई जाती रही है । उनका दिनंाक 14.4.2012 को बीमारी के कारण निधन होने के कारण सांत्वना राषि प्राप्त करने की हकदार है । चूंकि इस बाबत् उनके वकील द्वारा नोटिस दिए जाने के फलस्वरूप अप्रार्थी संख्या 1 के वकील द्वारा दिए गए प्रतिउत्तर में यह बताया गया है कि उपभोक्ताओं को सामान्य मृत्यु की स्थिति में भी बीमाधारक की मृत्यु होने पर रू. 50,000/- सांत्वना राषि देने का निर्णय दिनंाक 1.9.2008 को ही किया जा चुका था । परन्तु इस आषय की जानकाराी पाॅलिसीधारक को नहीं दिए जाने के कारण अब वह उक्त राषि प्राप्त करने की हकदार है । अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा यह कहते हुए क्लेम अस्वीकार किया गया है कि बीमाधारक की मृत्यु के एक माह के अन्दर दावा पेष नहीं किया गया है, उचित नहीं है । इन्हीं तर्को को अपनी लिखित बहस में समाहित करते हुए यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि उक्त सूचना देने की समय सीमा बाबत् कोई जानकारी नहीं थी । वास्तव में अप्रार्थी संख्या 1 को प्रार्थिया द्वारा रजिस्टर्ड डाक से 30.4.2012 को सूचना दे दी गई थी क्योंकि हिन्दू समाज में स्त्रियां अपने पति की मृत्यु के बाद 40 दिन तक अपने घर से बाहर नहीं जाती है व 15 दिन में मृत्यु की साूचना दिया जाना अव्यवहारिक व सामाजिक रितीरिवाज के विरूद्व है । एक माह में क्लेम करना सम्भव नहीं था और क्लेम निर्धारित फार्म में प्रस्तुत करना होता है जो अप्रार्थी संेख्या 1 के कार्यालय में उपलब्ध था । कुल मिलाकर इनका तर्क रहा है कि अप्रार्थी ने वर्ष 2008 में ही रू. 50,000/- अपने सदस्यों को सांत्वना राषि दिए जाने हेतु अपनी योजना में सम्मिलित किया था । जो बक्षीष के रूप में दिया जाना वाला अनुतोष, उसको लेने व देने के संबंध में समय सीमा की बाध्यता लगाया जाना अनुचित है । अप्रार्थी का यह कृत्य सेवा में दोष का परिणाम है । परिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए ।
4. अप्रार्थी की ओर से इन तर्को का खण्डन किया गया है । अप्रार्थी संख्या 1 ने विवाद को एकल पंच के माध्यम से निस्तारण होने योग्य बताया । मंच को प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं होना बताया । रू. 50,000/- की सांत्वना राषि निर्धारित नियमों व ष्षर्तो के अन्तर्गत दिए जाने बाबत् एवं इस हेतु सदस्यता फार्म के साथ बुकलेट प्रार्थिया के पति को उपलब्ध करवाया जाना बताया । विषेषतौर पर तर्क प्रस्तुत किया गया है कि प्रार्थिया की ओर से अपने पति की मृत्यु के एक माह की अवधि में क्लेम प्रस्तुत नहीं किए जाने व अत्यधिक विलम्ब से दिनांक 30.4.2012 को अपूर्ण दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत किए जाने पर योजना के प्रावधानों के अन्तर्गत अस्वीकार किए गए क्लेम को सही बताया व परिवाद खारिज होने योग्य बताया ।
5. अप्रार्थी संख्या 2 व 3 की ओर से खण्डन में पाॅलिसी जारी करने व बीमित व्यक्ति ओप्रकाष की मौत को प्राकृतिक होने व दुर्घटना नहीं होने के कारण क्लेम का भुगतान नहीं किया जाना पाॅलिसी की वैध व प्रभावी ष्षर्तो के अनुसार सही होना बताया । बीमा कम्पनी द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं किया जाना बताया ।
6. हमने परस्पर तर्क सुने हैं एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
7. स्वीकृत तथ्य अनुसार प्रार्थिया के पति ने नागरिक सुरक्षा पाॅलिसी दिनंाक 29.5.2009 से 28.5.2013 की अवधि के लिए ली थी तथा समय समय पर उसके द्वारा मासिक प्रीमियम की राषि जमा करवाई गई थी । उक्त बीमाधारक ओम प्रकाष की मृत्यु दिनंाक 14.2.2012 को हुई है । बीमा पाॅलिसी की ष्षर्तो के अनुसार यह पाॅलिसी दुर्घटना बीमा पाॅलिसी थी तथा सामान्य मृत्यु की स्थिति में इस बाबत् कोई उल्लेख नहीं था । स्वयं प्रार्थिया की ओर से लिखित बहस में स्वीकार किया गया है कि अप्रार्थी संख्या 2 की नागरिक सुरक्षा पाॅलिसी के तहत वक्त दुर्घटना में मृत्यु होने पर ही क्लेम राषि देय है इसलिए प्रार्थिया ने इसे परिवाद में ष्षामिल नहीं किया गया है । इसका अर्थ यह हुआ कि अप्रार्थीगण दुर्घटना से बीमाधारक की मृत्यु होने पर ही क्लेम अदा करने के लिए जिम्मेदार थी । अतः बीमाधारक की मृत्यु सामान्य परिस्थितियों में, बीमार होने व दुर्घटना में मृत्यु नहीं होने के कारण अप्रार्थी संख्या 2 व 3 प्रार्थिया को किसी प्रकार का क्लेम देने के लिए जिम्मेदार नहीं है । अतः इनके द्वारा किसी प्रकार सेवा में कमी का परिचय दिया हो, न तो यह सिद्व हुआ है और ना ही यह माना जा सकता है । प्रार्थिया ने अप्रार्थी संख्या 1 के अधिवक्ता द्वारा प्रार्थिया को उसके नोटिस के प्रतिउत्तर में उक्त सांत्वना राषि दिनंाक 1.9.2008 से दिए जाने को आधार बनाया है । प्रार्थिया के मृतक पति ने जब प्रारम्भ में नागरिक सुरक्षा पालिसी ली थी तो तत्समय क्या ऐसी सांत्वना राषि दिए जाने का किसी प्रकार का कोई वचन अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा उसे दिया गया था, ऐसा वह सिद्व नही ंकर पाई है । मात्र दिए गए नोटिस के जवाब के क्रम में अधिवक्ता द्वारा इस बात का उल्लेख कर दिया जाना प्रार्थिया को उक्त सांत्वना राषि के लिए अधिकृत नहीं बना देता । इसी प्रकार अप्रार्थी संख्या 1 के संबंध में उनके वकील द्वारा दिए गए प्रति उत्तर में इस बात का उल्लेख भी इस हेतु अप्रार्थी संख्या 1 को जिम्मेदार नहीं बना देता ।
8. इसके अतिरिक्त उक्त राषि हेतु मृत्यु की तिथि से एक माह के अन्दर अन्दर समस्त दस्तावेजों के साथ क्लेम करना आवष्यक बताया गया है तथा यह स्वीकारोक्ति प्रार्थिया के इस प्रतिवाद से भी सम्पुष्ट होती है कि ऐसा सूचित किया जाना एक माह में सम्भव नहीं था क्योंकि हिन्दू विधि के अन्तर्गत विधवा का 40 दिन तक बाहर निकलना सम्भव नहीं था और वर्जित था । चूंकि एक माह का ऐसा प्रावधान रहा है तो मृत्यु होने की स्थिति में यह अपेक्षित था कि ऐसी सूचना मृत्यु के एक माह के अन्दर अन्दर प्रस्तुत की जानी चाहिए जो कि नहीं की गई है । जैसा कि प्रार्थिया के स्वयं की लिखित बहस में कथनों से सिद्व है कि ऐसी सूचना दिनांक 30.4.23012 को दे दी गई थी ।
9. कुल मिलाकर उपरोक्त विवेचन के प्रकाष में अप्रार्थी संख्या 1 ने भी उक्त सांत्वना राषि नहीं दे कर जो क्लेम अस्वीकृत किया है, उसमें कोई सेवा में कमी रही हो, ऐसा नहीं माना जा सकता । मंच की राय में प्रार्थिया का परिवाद निरस्त होने योग्य है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
10. प्रार्थिया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 10.8.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष