Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/2119

U P Avas Vikas Parishad - Complainant(s)

Versus

Oriental Bank Of Commerce - Opp.Party(s)

N N Pandey

06 Mar 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/2119
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. U P Avas Vikas Parishad
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Oriental Bank Of Commerce
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 06 Mar 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

         सुरक्षित

अपील सं0-2119/2013   

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या—५२८/२००४ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०८/०६/२०११ एवं प्रकीण वाद सं0-१८०/२०११ में पारित आदेश दिनांक ०१/०५/२०१३ के विरूद्ध)

  1. यूपी आवास एवं विकास परिषद द्वारा आवास आयुक्‍त १०४ महात्‍मा गांधी मार्ग लखनऊ।
  2. एस्‍टेट मैनेजमेंट आफीसर यूपी आवास एवं विकास परिषद डी-ब्‍लाक आफिस काम्‍प्‍लेक्‍स शास्‍त्री नगर मेरठ।
  3.     .                                      

Versus

ओरिएंटल बैंक आफ कामर्श द्वारा ब्रांच मैनेजर ब्रांच शास्‍त्री नगर जिला मेरठ।   

                                     ..............प्रत्‍यर्थी

समक्ष:-

  1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठा0सदस्‍य
  2. माननीय श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य ।

अपीलकर्तागण की ओर से उपस्थित: श्री एन0एन0 पाण्‍डेय विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित:       श्री टी0जे0एस0 मक्‍कड़ विद्वान अधिवक्‍ता।   

दिनांक:16-03-2017

माननीय श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या—५२८/२००४ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०८/०६/२०११ एवं प्रकीण वाद सं0-१८०/२०११ में पारित आदेश दिनांक ०१/०५/२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।

     संक्षेप में विवाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलकर्ता/परिवादी द्वारा वाद सं0-८२५/२००४ जिला फोरम मेरठ में इस आशय के साथ दायर किया गया था कि परिवादी का विपक्षी के यहां एक संग्रह खाता खुला हुआ था और उक्‍त खाता खोलते समय दोनों पक्षों के मध्‍य यह अनुबंध हुआ था कि प्रति माह जो धनराशि उक्‍त खाते में जमा होगी विपक्षी बैंक प्रत्‍येक माह निर्धारित तिथियों क्रमश: ०५, १५ व २५ को मात्र रू0 ५०००/-की धनराशि छोडकर शेष धनराशि परिवादी के लखनऊ स्थित खाते में प्रेषित करेगा, किन्‍तु उक्‍त खाते में जमा धनराशि को विपक्षी द्वारा परिवादी के लखनऊ स्थित बैंक खाते में अंतरित नहीं किया गया जिससे परिवादी को लगभग रू0 ०८,०६,०५३.८४/- की धनराशि की ब्‍याज के रूप में क्षति हुई। उक्‍त क्षति की प्रतिपूर्ति के लिए परिवादी ने उक्‍त परिवाद जिला मंच मेरठ के समक्ष प्रस्‍तुत किया। नियत तिथि पर परिवादी अथवा उसके प्रतिनिधि की अनुपस्थिति के कारण उक्‍त वाद दिनांक ०८-०६-२०११ को खारिज कर दिया गया जिसमें निम्‍नलिखित आदेश पारित किया गया:-

‘’ बार-बार आवाज लगायी गयी। वादी गैर हाजिर। ओ0पी0 हाजिर।

आदेश

परिवादी की गैर हाजिरी में परिवाद खण्डित किया जाता है। ‘’

उक्‍त आदेश को वापस लेने और परिवाद को मूल नम्‍बर पर पुन: स्‍थापित करने के लिए एक प्रकीण वाद सं0-१८०/२०११ जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें दिनांक ०१/०५/२०१३ को सुनवाई के बाद प्रकीर्ण प्रार्थना पत्र खण्डित कर दिया गया।

उपरोक्‍त आदेश दिनांक ०८/०६/२०११ तथा ०१/०५/२०१३ से क्षुब्‍ध होकर यह अपील दायर की गयी है।

प्रश्‍नगत अपील में अपीलकर्ता द्वारा जो आधार लिये गये है उनके अनुसार विद्वान जिला मंच ने तथ्‍यों को तथा पक्षकारों के मध्‍य हुए अनुबंध की शर्तों को नजरअंदाज करके त्रुटि की है। पक्षकारों के मध्‍य अनुबंध के अनुसार प्रतिउत्‍तरदाता/विपक्षी द्वारा वांछित धनराशि निर्धारित तिथियों पर परिवादी के लखनऊ स्थित खाते में प्रेषित नहीं की गयी । इससे परिवादी/अपीलकर्ता को ब्‍याज के रूप में भारी क्षति हुई। पुनर्स्‍थापन प्रार्थना पत्र दिनांक ३०/०६/२०११ को मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा (२०११) ९ एस0सी0सी0 ५४१ राजीव हितेन्‍द्र पाठक एवं अन्‍य बनाम एच्‍युत काशीनाथ कारेकर एवं अन्‍य में पारित आदेश के आधार पर खण्डित किया गया है और उक्‍त पुनर्स्‍थापन प्रार्थना पत्र गुण-दोष के आधार निर्णीत न करके त्रुटि की है।

प्रतिउत्‍तरदाता/विपक्षी द्वारा अपील का विरोध करते हुए कहा गया है कि अपीलकर्ता उपभोक्‍ता नहीं है, अत: परिवाद जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष प्रतिप्रेषित किये जाने का औचित्‍य नहीं है। प्रत्‍यर्थी का यह कथन न्‍यायोचित प्रतीत होता है। अत: इस प्रश्‍न पर विचारण उपयुक्‍त होगा कि अपीलार्थी उपभोक्‍ता है अथवा नहीं। इसके अतिरिक्‍त के विद्वान अधिवक्‍ता ने कहा कि  मेरठ स्थित बैंक खाते की धनराशि को परिवादी के लखनऊ स्थित खाते में प्रेषित करने के संबंध मे उभय पक्षों के मध्‍य कोई अनुबंध नहीं हुआ था । यदि कोई अनुबंध था तो उसे परिवादी को साक्ष्‍य के रूप में प्रस्‍तुत करना चाहिए था। प्रतिवाद पत्र में यह भी कहा गया है कि अपीलकर्ता/परिवादी वाणिज्यिक संस्‍था है और परिवादी/अपीलार्थी एक वाणिज्यिक संस्‍था होने के कारण, उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवादी कदाचित उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा २(डी) के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता नहीं है। यह अपील उक्‍त आधार पर भी खण्डित किए जाने योग्‍य है।

हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री एन0एन0 पाण्‍डेय एवं प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री टी0जे0एस0 मक्‍कड़ के तर्कों को सुना एवं अभिलेखों का परिशीलन किया गया ।

पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखीय साक्ष्‍यों के अवलोकन से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादी ने पत्रावली पर ऐसा कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया है जिससे यह स्‍पष्‍ट होता हो कि परिवादी और विपक्षी के मध्‍य ऐसा कोई समझौता हुआ था जिससे उसके चालू खाता सं0-११९ में जमा धनराशि को लखनऊ स्थित खाते में नियमित रूप से अंतरित करने की व्‍यवस्‍था हो। ऐसा कोई साक्ष्‍य भी प्रस्‍तुत नहीं किया जिससे यह स्‍पष्‍ट होता हो कि अपीलकर्ता को अंकन रू0 ८,०६,०५३.८४/- की क्षति हुई हो और यह भी स्‍पष्‍ट नहीं है कि उक्‍त क्षति की गणना किस प्रकार की गयी है। यह किसी भी प्रकार के अनुबंध के पत्रावली पर उपलब्‍ध न होने के कारण अपीलकर्ता/परिवादी के कथन पर विश्‍वास नहीं किया जा सकता है। जहां तक अपीलकर्ता के उपभोक्‍ता की श्रेणी में होने का प्रश्‍न है तो प्रत्‍यर्थी के इस कथन में बल है कि अपीलकर्ता/परिवादी एक वाणिज्यिक संस्‍था है। वह भूमि, भवन आदि का कारोबार करती है और उक्‍त कारोबार के संचालन हेतु उसने उक्‍त चालू खाता विपक्षी/प्रत्‍यर्थी के बैंक में खोला था। अत: उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत इस चालू बैंक खाते के आधार पर अपीलकर्ता प्रत्‍यर्थी का उपभोक्‍ता नहीं है। जहां तक ब्‍याज की धनराशि की क्षति का प्रश्‍न है चालू खाते में जमा की गयी धनराशि पर किसी प्रकार का कोई ब्‍याज देय नहीं होता, चाहे वह मेरठ स्थित खाते में होती अथवा लखनऊ स्थित खाते में होती। इसलिए अपीलकर्ता/परिवादी को किसी प्रकार की ब्‍याज के रूप में क्षति होने का कोई प्रश्‍न नहीं है।

अपील भी काफी विलंब से दायर की गयी है और विलंब के दोष को क्षमा करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया है । विलंब के दोष को माफ करने के जो कारण दिए गए हैं वह संतोषजनक प्रतीत नहीं होते हैं क्‍योंकि इसमें अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा जो शिथिलता बरती गयी है वह किसी प्रकार भी क्षम्‍य नहीं की जा सकती है। तदनुसार विलंब क्षमा प्रार्थना पत्र निरस्‍त किया जाता है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर अपीलकर्ता की अपील में कोई बल प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।   

आदेश

     अपील निरस्‍त की जाती है। जिला उपभोक्‍ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या—५२८/२००४ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०८/०६/२०११ एवं प्रकीण वाद सं0-१८०/२०११ में पारित आदेश दिनांक ०१/०५/२०१३ निरस्‍त किये जाते हैं।

उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराई जाए।

 

(उदय शंकर अवस्‍थी)                        (महेश चन्‍द)

   पीठा0सदस्‍य                                    सदस्‍य

सत्‍येन्‍द्र, आशु0 कोर्ट नं0-3

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER

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