राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील सं0- 427/2010
सुरेश चन्द्र पुत्र लेखराज निवासीगण नगला सकत सिंह पो0 नौगवा त0 सादाबाद (महामायानगर)
......अपीलार्थी
बनाम
1. ओरियण्टल बैंक ऑफ कामर्स शाखा नौगवा त0 सादाबाद महामायानगर द्वारा शाखा प्रबंधक।
2. जिलाधिकारी महोदय जिला महामायानगर।
3. तहसीलदार महोदय तह0 सादाबाद जिला महामायानगर।
.......प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री ओ0पी0 दुवेल, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 11.04.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 132/2003 लेखराज व एक अन्य बनाम ओरियण्टल बैंक ऑफ कामर्स व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, महामायानगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 23.01.2010 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रश्नगत निर्णय व आदेश के माध्यम से उपरोक्त परिवाद निरस्त कर दिया है, जिससे व्यथित होकर परिवाद के परिवादी सं0- 2 द्वारा यह अपील प्रस्तुत की गई है।
3. अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि उसने प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक से ट्रैक्टर खरीदने के लिए 1,95,000/-रू0 ऋण दि0 11.04.1996 को लिया और यह ऋण प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक को आठ वर्ष में किश्तों में ब्याज सहित 3,90,000/-रू0 दि0 10.04.2004 तक लौटाना था। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार वह दि0 12.11.2002 तक प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक को 2,74,500/-रू0 अदा कर दिया। अपीलार्थी/परिवादी के निकट प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक ने बदनियती से सुती प्रमाण पत्र, निर्धारित समय से पहले ही प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 के पास भेज दिया तब प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 ने अपने अधीनस्थों के साथ अपीलार्थी/परिवादी के घर पहुंच कर उससे 50,000/-रू0 वसूल कर लिए, परन्तु वसूली की रसीद नहीं दी। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 ने दि0 24.05.2003 को 15,500/-रू0 वसूल करके अपीलार्थी/परिवादी को मुक्त किया, अत: समय से पूर्व की गई वसूली सेवा में कमी है। अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक मात्र वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज ही वसूल सकता था जब कि बैंक ने ब्याज तिमाही चक्रवृद्धि लगायी है। यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध वसूली प्रमाण पत्र निर्गत किया गया है जो सेवा में कमी है। अमीन द्वारा 50,000/-रू0 वसूल करके रसीद भी नहीं दी गई जिससे व्यथित होकर अपीलार्थी/परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
4. प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक द्वारा प्रतिवाद पत्र में कहा गया है कि ट्रैक्टर खरीद हेतु अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण को 1,95,000/-रू0 ऋण उपलब्ध कराया गया था। अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण को दिया गया ऋण 19,000/-रू0 की वार्षिक किश्तों में अदा करना था। प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक के अनुसार अपीलार्थी एवं परिवाद परिवादीगण के खाते में ब्याज रिजर्व बैंक के आदेशानुसार ही लगायी गई है। प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक के अनुसार अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण द्वारा ऋण की अदायगी नियमित रूप से बार-बार मौखिक व लिखित रूप से कहने पर भी नहीं की गई, अत: उनके विरुद्ध वसूली प्रमाण पत्र निर्गत किया गया। प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक के अनुसार अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण के विरुद्ध दि0 31.03.1999 तक 1,39,740/-रू0 बकाया था जिसका वसूली प्रमाण पत्र निर्गत किया गया। प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक के अनुसार तहसील के अमीन द्वारा अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण से कुछ वसूली भी हुई थी। अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक के विरुद्ध परिवाद खारिज होने योग्य है।
5. प्रत्यर्थीगण सं0- 2 व 3/विपक्षीगण सं0- 2 व 3 ने अपने प्रतिवाद में कथन किया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक से वसूली प्रमाण पत्र प्राप्त होने पर अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण के विरुद्ध नियमानुसार साइटेशन जारी करके अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण के उपस्थित न आने पर उनके विरुद्ध वारण्ट जारी करके गिरफ्तारी की कार्यवाही की गई। अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण द्वारा 50,000/-रू0 अदा करने का कथन असत्य है। प्रत्यर्थीगण सं0- 2 व 3/विपक्षीगण सं0- 2 व 3 ने अपने नोटरी के शपथ पत्र में यह कहा है कि विपक्षीगण को अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण ने 50,000/-रू0 नहीं दिए हैं। प्रत्यर्थीगण सं0- 2 व 3/विपक्षीगण सं0- 2 व 3 के अनुसार अपीलार्थी एवं परिवाद के परिवादीगण द्वारा जमानत दिए जाने पर तथा बकाया रकम एक सप्ताह में जमा करने का वायदा करने व 15,500/-रू0 जमा करने पर मुक्त किया गया था। अत: प्रत्यर्थीगण सं0- 2 व 3/विपक्षीगण सं0- 2 व 3 के विरुद्ध परिवाद खारिज होने योग्य है।
6. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवेल को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
7. अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद इस आधार पर खारिज किया गया है कि परिवाद पत्र के क्रम सं0- 2 व 3 तथा प्रतिवाद पत्र के प्रस्तर 05 के अनुसार प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक के वसूली प्रमाण पत्र दिनांकित 21.03.2003 को जिलाधिकारी कार्यालय में प्राप्त हुआ था तथा अपीलार्थी/परिवादी ने ऐसा कोई कथन नहीं किया है कि ऋण की वसूली भू-राजस्व के रूप में नहीं हो सकती है। जिला उपभोक्ता आयोग का यह निष्कर्ष आया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक बकाया धनराशि वसूल करने के लिए वसूली प्रमाण पत्र जारी करने हेतु सक्षम है एवं वसूली प्रमाण जारी करना सेवा में कमी नहीं माना जा सकता है।
8. स्वयं अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार जिलाधिकारी की ओर से नियुक्त तहसीलदार प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 उससे 50,000/-रू0 वसूल कर लिये हैं और उसकी कोई रसीद नहीं दी है। अपीलार्थी/परिवादी का यह तर्क भी मानने योग्य नहीं है, क्योंकि दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर ही अपीलार्थी/परिवादी का कोई तथ्य माना जा सकता है कि उसके द्वारा धनराशि प्रदान कर दी गई है।
9. स्वयं अपीलार्थी/परिवादी के कथनानुसार प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक की बकाया धनराशि के लिए भू-राजस्व की भांति वसूली प्रमाण पत्र जारी है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा राजेन्द्र मोहन वर्मा बनाम ब्रांच मैनेजर स्टेट बैंक आफ इंडिया प्रकाशित II(2002)CPJ पृष्ठ 126 (N.C.) में पारित निर्णय के द्वारा भू-राजस्व की भांति वसूली योग्य धनराशि के सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद संयोजित एवं निस्तारित करना उचित नहीं माना। मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय को दृष्टिगत करते हुए इस मामले में भी यह मानना उचित है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से वाद की पोषणीयता न मानते हुए परिवाद निरस्त किया है।
10. मा0 राष्ट्रीय आयोग के एक अन्य निर्णय एच0यू0डी0ए0 बनाम सुनीता प्रकाशित IV(2014)CPJ पृष्ठ 08 (N.C.) में यही अवधारित किया गया है कि किसी अधिनियम के अधीन जारी वसूली प्रमाण पत्र के विरुद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में वाद पोषणीय नहीं है।
11. उपरोक्त निर्णयों को दृष्टिगत करते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश उचित माना जाता है, जिसमें हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय व आदेश पुष्ट होने योग्य एवं अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
12. अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3