//जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक c c/20/2013
प्रस्तुति दिनांक 21/01/2013
श्रीमती संध्या पाठक
पति स्व. अनुसुईया प्रसाद पाठक, आयु, 38 वर्ष,
क्वार्टर नं.-बी/20 विंध्या कॉलोनी सब एरिया पिनौरा एरिया,
जोहिला नौरोजाबाद
जिला उमरिया (म.प्र.) ......आवेदिका/परिवादी
विरूद्ध
- दि ओरियेंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
द्वारा- मण्डल प्रबंधक, मण्डल कार्यालय,
राजीव प्लाजा के सामने बस स्टैण्ड बिलासपुर
जिला बिलासपुर (छ.ग.)
- उपक्षेत्रीय प्रबंधक, एस.ई.सी.एल. जोहिला उपक्षेत्र पिनौरा, नौरोजाबाद क्षेत्र
जिला उमरिया (म.प्र.) .........अनावेदकगण/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 01/06/2015 को पारित)
१. आवेदिका संध्या पाठक ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदकगण के विरूद्ध बीमा दावा का निराकरण न कर सेवा में कमी के लिए पेश किया है और अनावेदकगण से बीमा दावा की राशि 5,00,000/. रूपये को ब्याज एवं क्षतिपूर्ति के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदिका का पति स्वर्गीय अनुसूईया पाठक अनावेदक क्रमांक 2 के नियोजन के अधीन जोहिला उपक्षेत्र पिनौरा जिला उमरिया में सीनियर ओवर मेन के पद पर कायर्रत् था। उसने अपने कार्यकाल के दौरान अपने नियोजक के माध्यम से अनावेदक क्रमांक 1 से 5,00,000/-रू. मूल्य का ग्रुप जनता इंश्योरेंस पर्सनल एक्सिडेंट पॉलिसी क्रय किया था, जो दिनांक 16.10.1999 से 15.10.2009 तक की अवधि के लिए वैध था । बीमा अवधि में दिनांक 04.10.2009 को आवेदिका के पति अनुसूईया पाठक की सडक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। आवेदिका नॉमिनी होने के नाते पॉलिसी के अंतर्गत उपलब्ध लाभों को प्राप्त करने के लिए सारी औपचारिकताओं को पूर्ण कर अनावेदक क्रमांक 2 के माध्यम से अनावेदक क्रमांक 1 के पास बीमा दावा प्रस्तुत किया, किंतु लंबा समय व्यतीत हो जाने के उपरांत भी उसके दावे का निराकरण नहीं किया गया। अत: आवेदिका इस फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया, जिसमें इस फोरम द्वारा दिनांक 16.07.2012 को यह पाते हुए कि आवेदिका द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष कोई दावा पेश नहीं किया गया है, उसे दावा पेश करने एवं अनावेदक बीमा कंपनी को दावा निराकृत करने का निर्देश दिया गया । आवेदिका का कथन है कि वह फोरम के निर्देश अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष दावा प्रस्तुत किया, किंतु उसका निराकरण अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा नहीं किया गया, फलस्वरूप उसने पुन: यह परिवाद पेश करना बताया है ।
3. अनावेदक क्रमांक 1 बीमा कंपनी की ओर से जवाब पेश कर परिवाद का विरोध इस आधार पर किया गया है कि आवेदिका द्वारा पेश दावा आवेदन दिनांक 08.08.2012 का निराकरण उनके द्वारा गुण दोषों के आधार पर दिनांक 28.12.2012 को कर दिया गया है तथा इसकी सूचना आवेदिका को रजिस्टर्ड डाक से भेज दी गई है, किंतु आवेदिका इस सत्य को छिपाते हुए प्रश्नाधीन परिवाद प्रस्तुत किया है, जो चलने योग्य नहीं है । आगे यह भी कहा गया है कि आवेदिका, जिस पॉलिसी हेतु बीमा राशि की मांग कर रही है, वह उसके पति की मृत्यु दिनांक को ही प्रभावी नहीं था, बल्कि वह दिनांक 08.03.2002 को देश व्यापी स्तर पर निरस्त किया जा चुका है । अत: इस आधार पर भी आवेदिका का परिवाद चलने योग्य नहीं है, अत: उसने आवेदिका के परिवाद को निरस्त किए जाने का निवेदन किया है ।
4. अनावेदक क्रमांक 2 पृथक जवाबदावा पेश कर अभिकथित किया है कि उसने अपने नियोजन में कार्यरत श्रमिकों के कल्याण के लिए अनावेदक क्रमांक 1 के पास से ग्रुप जनता पर्सनल इंश्योरेंस पॉलिसी दिलाने में केवल सहयोग किया था। इसके अलावा उसका प्रकरण में अन्य कोई दायित्व नहीं है और आवेदिका द्वारा उसे अनावश्यक रूप से पक्षकार बनाया गया है । आगे उसने यह अभिकथन किया है कि अनावेदक क्रमांक 1 द्वारा प्रीमियम प्राप्त करने के उपरांत प्रत्येक श्रमिक को ग्रुप जनता पर्सनल इंश्योरेंस पॉलिसी जारी किया गया था, जिसके शर्तों से वह विबंधित है । आगे यह भी कहा गया है कि उनके मध्य दिनांक 06.09.1999 को मेमोरेण्डम ऑफ अंडर टेंकिंग निष्पादित हुआ था, जिसके अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी को एक पक्षीय रूप से पॉलिसी निरस्त करने का अधिकार नहीं था, फलस्वरूप ही उनके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका प्रस्तुत किया गया है, जो अभी विचाराधीन है । आगे उसने अपने को अनावश्यक पक्षकार निरूपित करते हुए अपने विरूद्ध आवेदिका के परिवाद को निरस्त किए जाने का निवेदन किया है ।
5. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
6. देखना यह है कि क्या आवेदिका, अनावेदकगण से वांछित अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी है
सकारण निष्कर्ष
7. इस संबंध में कोई विवाद नहीं कि आवेदिका का पति स्वर्गीय अनुसूईया पाठक अनावेदक क्रमांक 2 के नियोजन के अधीन जोहिला उपक्षेत्र पिनौरा जिला उमरिया में सीनियर ओवर मेन के पद पर कायर्रत् था। उसने अपने कार्यकाल के दौरान अपने नियोजक के माध्यम से अनावेदक क्रमांक 1 से 5,00,000/-रू. मूल्य का सेलरी सेविंग ग्रुप जनता इंश्योरेंस पर्सनल एक्सिडेंट पॉलिसी क्रय किया था। बीमा अवधि में दिनांक 04.10.2009 को आवेदिका के पति अनुसूईया पाठक की सडक दुर्घटना में मृत्यु हो जाने का तथ्य भी प्रकरण में विवादित नहीं है ।
8. आवेदिका का कथन है कि उसने अपने पति की मृत्यु हो जाने उपरांत नॉमिनी होने के नाते पॉलिसी के अंतर्गत उपलब्ध लाभों को प्राप्त करने के लिए सारी औपचारिकताओं को पूर्ण कर अनावेदक क्रमांक 2 के माध्यम से अनावेदक क्रमांक 1 के पास बीमा दावा प्रस्तुत किया था, किंतु लंबा समय व्यतीत हो जाने के उपरांत भी उसके दावे का निराकरण नहीं किया गया और इस प्रकार सेवा में कमी की गई ।
9. इसके विपरीत अनावेदक बीमा कंपनी का कथन है कि आवेदिका द्वारा उन्हें अपने पति की मृत्यु की सूचना मृत्यु दिनांक के तीन वर्ष उपरांत दिनांक 08.08.2012 को दी गई, जो पॉलिसी की शर्तों का घोर उल्लंघन है । साथ ही कहा गया है कि आवेदिका, जिस पॉलिसी हेतु बीमा राशि की मांग कर रही है, वह उसके पति की मृत्यु दिनांक को ही प्रभावी नहीं था, बल्कि वह दिनांक 08.03.2002 को देश व्यापी स्तर पर निरस्त किया जा चुका है, जिसकी विधिवत सूचना भी आवेदिका के पति को उसके नियोजक के माध्यम से प्रदान कर दी गई थी । उक्त आधार पर अनावेदक बीमा कंपनी बीमा दावा की अदायगी के अपने दायित्व से इंकार किया है और परिवाद निरस्त किए जाने का निवेदन किया है ।
10. अनावेदक क्रमांक 2 का कथन है कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा प्रीमियम प्राप्त कर उसके नियोजन में कार्यरत श्रमिकों को सर्टिफिकेट ऑफ इंश्योरेंस जारी किया गया था । साथ ही कहा गया है कि पॉलिसी के संबंध में उनके मध्य दिनांक 06.09.1999 को मेमोरेण्डम ऑफ अंडर टेंकिंग निष्पादित हुआ था, जिसके अनुसार अनावेदक बीमा कंपनी को एक पक्षीय रूप से पॉलिसी निरस्त करने का अधिकार नहीं था, फलस्वरूप उनके द्वारा अनावेदक क्रमांक 2 के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका प्रस्तुत किया गया है, जो अभी विचाराधीन है ।
11. इस प्रकार अनावेदक क्रमांक 2 के कथन से स्पष्ट है कि आवेदिका जिस पॉलिसी हेतु बीमा राशि की मांग कर रही है, वह उसके पति की मृत्यु दिनांक के पूर्व ही दिनांक 08.03.2002 को निरस्त किया जा चुका है और इस प्रकार आवेदिका के पति की मृत्यु दिनांक 04.09.2010 को प्रश्नाधीन पॉलिसी प्रभाव में नहीं था जिसके संबंध में अनावेदक क्रमांक 2 द्वारा अनावेदक क्रमांक 1 के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका प्रस्तुत किया गया है, जो विचाराधीन है, किंतु माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका विचाराधीन होना इस बात का प्रमाण नहीं बन सकता कि अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा निरस्त किए गए पॉलिसी के संबंध में अनावेदक क्रमांक 2 द्वारा दाखिल रिट याचिका माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार कर ही लिया जावेगा ।
12. उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवेदिका के पति की मृत्यु दिनांक को प्रश्नाधीन पॉलिसी के अस्तित्व में न होने से आवेदिका उक्त पॉलिसी के संबंध में अनावेदकगण से कोई अनुतोष प्राप्त करने के अधिकारिणी नहीं है । अत: उसका परिवाद निरस्त किया जाता है ।
13. उभय पक्ष अपना अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे।
आदेश पारित
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य