राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
परिवाद संख्या:-124/2024
सीमा अग्रवाल पत्नी श्री विनोद कुमार अग्रवाल, निवासी 70, कटरा, सब्जी मण्डी, आजमगढ़।
.........परिवादिनी
बनाम
1- वन प्लेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0, फतेह बागियामऊ, सुशांत गोल्फ सिटी, अंसल लखनऊ द्वारा प्रबन्ध निदेशक।
2- वन प्लेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0, वन प्लेस टावर, क्लब रोड, क्लब रोड, पीछे-जे0पी0 महता इंटर कॉलेज, वाराणसी द्वारा निदेशक।
3- वन प्लेस सिटी लखनऊ-फैजाबाद हाईवे, खसरा नं0-75, ग्राम दारापुर, तहसील नवाबगंज, बाराबंकी द्वारा परियोजना प्रबंधक।
...........विपक्षीगण
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
परिवादिनी के अधिवक्ता : श्री विकास अग्रवाल एवं
सुश्री पलक सहाय गुप्ता
विपक्षीगण के अधिवक्ता : कोई नहीं।
दिनांक :- 19.6.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, परिवादिनी सीमा अग्रवाल द्वारा विपक्षी वन प्लेस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा0लि0 व दो अन्य के विरूद्ध इस आयोग के सम्मुख धारा-47 (1)(A) (i)&(ii) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत विपक्षीगण से रू0 5,67,000.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज वापस दिलाये जाने, परिवादिनी से अनुचित अनुबन्ध किये जाने के मद में रू0 2,50,000.00 एवं मानसिक पीड़ा एवं शारीरिक उत्पीडन के मद में क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 2,50,000.00 व अनुचित व्यापार प्रणाली एवं सेवा में कमी के मद में रू0 1,00,000.00 दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
-2-
संक्षेप में परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसने विपक्षीगण से वर्ष-2012 में लखनऊ-फैजाबाद हाईवे जिला बाराबंकी में विभिन्न प्रकार के प्लॉट विक्रय करने हेतु ''वन प्लेस सिटी'' के नाम से स्कीम प्रकाशित की गई, जिससे प्रभावित होकर परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण से सम्पर्क किया गया और दिनांक 16.6.2012 को रू0 1,00,000.00 देकर प्लॉट बुक कराया गया। विपक्षीगण द्वारा समय-समय पर परिवादिनी से धनराशि की मॉग की जाती रही जिसके अन्तर्गत विभिन्न तिथियों पर परिवादिनी द्वारा रू0 5,67,000.00 जमा किये गये। दिनांक 14.12.2012 को क्रेता-विक्रेता अनुबंध सम्पादित किया गया, जिसके अन्तर्गत परिवादिनी ने प्लॉट सं0- A-26 PRITHVI 2100 वर्ग फुट जिसका कुल मूल्य 15,01,500.00 रू0 था, क्रय किये जाने हेतु अनुबन्ध किया गया। आवंटन के समय यह आश्वासन दिया गया था कि कब्जा 36 माह में प्रदान कर दिया जावेगा। परन्तु अभी तक कब्जा नहीं दिया गया। इस संबंध में परिवादिनी ने कई बार विपक्षीगण से सम्पर्क किया तथा स्थल निरीक्षण भी किया परन्तु वहॉ का लेआउट प्लान स्वीकृत नहीं था। परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण से सम्पर्क करने पर विपक्षीगण द्वारा नित्य नये-नये बहाने बनाकर प्लॉट का कब्जा देने में हीला-हवाली की गई और परिवादिनी को परेशान किया गया। अंततोगत्वा परिवादिनी के पास परिवाद प्रस्तुत करने के अलावा अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रह गया अत: विवश होकर परिवादिनी द्वारा राज्य आयोग के सम्मुख उपरोक्त अनुतोष दिलाये जाने हेतु परिवाद प्रस्तुत किया गया।
परिवादिनी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में शपथपत्र एवं संलग्नक-1 लागायत 3 प्रस्तुत किये गये।
-3-
हमारे द्वारा परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद को शपथपत्र एवं साक्ष्यों से पुष्ठ किया गया है अत्एव परिवादिनी के कथनों पर अविश्वास करने का कोई औचित्य नहीं बनता है।
चूंकि विपक्षीगण की ओर से अपने समर्थन में अन्य वादों में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि उनके द्वारा वर्ष-2012 से लगभग 13 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बाद भी परिवादिनी को प्लॉट का कब्जा क्यों नहीं दिया गया, जो विपक्षीगण की सेवा में घोर लापरवाही एवं अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनाये जाने का द्योतक है।
अब प्रश्न यह है कि परिवादिनी विपक्षीगण से क्या उपशम प्राप्त कर सकता है। परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत प्लॉट की कीमत 15,01,500.00 रू0 के एवज में लगभग 13 वर्ष पूर्व रू0 5,67,000.00 जमा किया गया है जिसकी पुष्टि पत्रावली पर उपलब्ध सलग्नक सं0-1 एवं परिवाद पत्र की धारा-6 से होती है अत: हमारे विचार से परिवादिनी विपक्षीगण से जमा धनराशि मय ब्याज, क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय प्राप्त करने का अधिकारी है।
तद्नुसार परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के 30 दिन के अन्दर परिवादिनी को उसके द्वारा जमा की गई धनराशि मु0 5,67,000.00 (पॉच लाख सड़सठ हजार रू0) मय 12 प्रतिशत ब्याज, जमा की तिथि से भुगतान की तिथि तक एवं रू0 10,000.00 (दस हजार रू0) मानसिक, आर्थिक एवं
-4-
शारीरिक क्षतिपूर्ति के मद में तथा रू0 10,000.00 (दस हजार रू0) परिवाद व्यय के रूप में अदा करें।
निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन न किये जाने पर उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर ब्याज की दर 15 प्रतिशत देय होगी
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1