(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2600/2007
Kshetriya Prabandhak ICICI Bank Ltd. & other
Versus
Sri Onkar Singh S/O Sri R.K. Thakur
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री श्याम कुमार राय, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित:- श्री अरूण टण्डन, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :06.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-442/2005, श्री ओंकार सिंह बनाम श्रीमान क्षेत्रीय प्रबंधक आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक व अन्य में विद्वान जिला आयोग, (प्रथम) आगरा द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 23.06.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए 45 दिन के अंदर परिवादी से प्राप्त की गयी कार को वापस लौटाने का आदेश पारित किया है तथा क्षतिपूर्ति के मद में 4,00,000/-रू0 अदा करने के लिए भी आदेशित किया गया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार टैक्सी संचालन के लिए परिवादी ने विपक्षी सं0 2 से 2,17,000/-रू0 का ऋण प्राप्त किया था, जिसका भुगतान 6,575/-रू0 36 मासिक किश्तों में होना था। ऋण की प्रथम किश्त ऋण प्रदान करते समय प्राप्त कर ली थी। शेष किश्तों के भुगतान के लिए पोस्ट डेटेड चेक जमा कराये गये थे। परिवादी द्वारा दिये गये चेकों के आधार पर 72,325/-रू0 का भुगतान विपक्षी द्वारा प्राप्त कर लिया गया था, परंतु मार्च व अप्रैल 2005 का भुगतान नहीं हो पाया क्योंकि परिवादी के खाते में धन नहीं था, इन दोनों चेकों की राशि दिनांक 12.04.2005 को कुल 13,150/-रू0 नकद जमा कर दिये गये और रसीद प्राप्त कर ली गयी। टैक्सी का कुल मूल्य अंकन 3,45,000/-रू0 तथा पंजीयन सं0 यू0पी0 80 एफ-9267 था।
4. विपक्षी द्वारा दिनांक 09.06.2005 को एक पत्र भेजा गया और दो किश्तों का भुगतान 07 दिन में करने के लिए कहा गया, उसी दौरान अपने एजेण्टों के माध्यम से दिनांक 12.06.2005 को वाहन छीन लिया गया, जबकि उसके बाद परिवादी ने दिनांक 17.06.2005 को दो किश्तों का भुगतान अंकन 13,150/-रू0 विपक्षी सं0 2 को कर दिया। इसके बाद इस वाहन को किसी अन्य व्यक्ति को विक्रय कर दिया गया, जिसके बाद परिवादी को 12,000-13,000/-रू0 प्रतिमाह नुकसान कारित हो रहा है।
5. विपक्षीगण द्वारा नोटिस की तामील की गयी,परंतु कोई उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए एकतरफा सुनवाई करते हुए उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
6. इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि परिवादी डिफाल्टर है। नोटिस देकर बकाया राशि की मांग की गयी है। नोटिस देने के पश्चात ही वाहन को विक्रय किया गया है, इसलिए अपीलार्थी के स्तर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
7. पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता की बहस सुनने, प्रश्नगत निर्णय/आदेश का अवलोकन करने तथा अपील के ज्ञापन का अवलोकन करने के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर दिये बिना प्रश्नगत निर्णय/आदेश पारित किया गया है? निर्णय में उल्लेख है कि विपक्षीगण पर नोटिस प्रेषित किये गये हैं। विपक्षी सं0 2 पर नोटिस व्यक्तिगत रूप से भी तामील हुई है तथा विपक्षी सं0 1 पर तामील की उपधारणा की गयी है, परतु कोई भी उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि विपक्षीगण पर नोटिस की तामील नहीं थी और एकतरफा निर्णय/आदेश पारित किया गया।
8. द्वितीय विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या परिवादी डिफाल्टर रहा है? इस प्रश्न का उत्तर स्वयं परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों के आधार पर मिलता है। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में स्वीकार किया है कि मार्च एवं अप्रैल सन 2005 की किश्तों का भुगतान नहीं किया जा सका और चेक बाउंस हो चुके थे। इसके पश्चात दिनांक 12.04.2005 को 13,150/-रू0 जमा किये गये, पंरतु वाहन लेने से पूर्व धनराशि जमा नहीं की गयी, जबकि अपीलार्थी द्वारा इस आशय का नोटिस भी प्रेषित किया गया था। अत: वाहन प्राप्त करने तक अपीलार्थी या उसके कर्मचारियों के स्तर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी थी। परिवादी द्वारा अंकन 13,150/-रू0 दिनांक 12.04.2005 को जमा किये गये, इसलिए अपीलार्थी द्वारा जो राशि जमा की गयी, वह वाहन लेने के पश्चात जमा की गयी। यह राशि मार्च व अप्रैल महीने के लिए थी। मार्च व अप्रैल के पश्चात भी दिनांक 13.06.2005 को परिवादी को इस आशय का नोटिस प्रेषित किया गया कि वह अवशेष किश्त जमा करे, जो एनेक्जर सं0 ए (1) है। यह नोटिस दिनांक 13.06.2005 को ही जारी कर दिया गया है, जबकि मार्च व अप्रैल की राशि परिवादी जमा कर चुका था, इसलिए दिनांक 13.06.2005 को वाहन के विक्रय करने की नोटिस की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि इस राशि को जमा करने के पश्चात वाहन वापस लौटा देना चाहिए था। अत: धनराशि जमा होने के पश्चात वाहन वापस न लौटाकर अपीलार्थी द्वारा अवैध व्यापार प्रणाली अपनायी गयी और केवल 1 महीने यानि कि मई माह की किश्त बकाया होने पर दिनांक 13.06.2005 को ही वाहन के विक्रय का नोटिस जारी कर दिया गया, जो पूर्ण रूप से अवैध है, इसलिए इस अवैध नोटिस के आधार पर वाहन के विक्रय की कार्यवाही को विधिसम्मत नहीं कहा जा सकता। अपीलार्थी की ओर से स्वयं इस पीठ द्वारा अपील सं0 707/2008 में पारित निर्णय की एक प्रतिलिपि प्रस्तुत की गयी है। उपरोक्त निर्णय के तथ्य प्रस्तुत केस के तथ्यों से भिन्न है। इस केस में 5 किश्तों का भुगतान बकाया था, जबकि प्रस्तुत केस में 2 किश्तों का भुगतान बकाया हो चुका था, जिसे परिवादी द्वारा जमा कर दिया गया और विपक्षी ने यह राशि प्राप्त भी कर ली, इसलिए इस राशि को जमा करने के पश्चात तथा विक्रय का नोटिस देने के मध्य केवल एक माह की विफलता थी। एक माह की विफलता के आधार पर किसी व्यक्ति के जीवनचर्या के साधन को विक्रय नहीं किया जा सकता, अपीलार्थी कम्पनी का यह कृत्य किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता, परंतु चूंकि वाहन का विक्रय हो चुका है, इसलिए वाहन को वापस लौटाने के आदेश का अनुपालन नहीं हो सकता। इसी आधार पर जिला उपभोक्ता आयोग ने अंकन 4,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है, परंतु इस राशि को अदा करने से पूर्व क्षति का कोई आंकलन नहीं किया गया। परिवादी ने जिस राशि का उल्लेख परिवाद पत्र में किया, उसी राशि को अदा करने के लिए आदेशित कर दिया। परिवाद पत्र के विवरण के अनुसार परिवादी द्वारा यह वाहन अंकन 3,45,000/-रू0 में क्रय करना कहा गया है, परंतु अंकन 3,45,000/-रू0 की कोई रसीद या इन्वायस पत्रावली पर मौजूद नहीं है, चूंकि इस तथ्य के खण्डन के अभाव में यदि यह माना जाए कि अंकन 3,45,000/-रू0 वाहन का मूल्य है तब इस राशि से अतिरिक्त क्षतिपूर्ति का आदेश नहीं दिया जा सकता था तथा परिवादी द्वारा जो राशि जमा की गयी है, उसी राशि के बदले परिवादी ने इस वाहन का संचालन किया है और वाहन से होने वाली आय का उपभोग किया है तथा अंकन 3,45,000/-रू0 मे क्रय करने के पश्चात वाहन की कीमत मे ह्रास हुआ है, जिसमें 10 प्रतिशत की कटौती किया जाना उचित है। अत: अंकन 3,45,000/-रू0 मे से 10 प्रतिशत की कटौती करने के पश्चात अवशेष राशि अंकन 3,10,500/रू0 बतौर क्षतिपूर्ति अदा किया जायेगा। तदनुसार निर्णय/आदेश परिवर्तित होने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि अंकन 4,00,000/-रू0 के स्थान पर अंकन 3,10,500/-रू0 अदा करें। शेष निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2