राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2193/2008
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाबाद द्वारा परिवाद संख्या-675/2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं
आदेश दिनांक 30.06.2008 के विरूद्ध)
मे0 सोरान कोल्ड स्टोरेज द्वारा पार्टनर श्री अरविन्द कुमार श्रीवास्तव, सोरावन, इलाबाद।
..............अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम~
श्री ओम प्रकाश पुत्र श्री महरानीदीन, निवासी ग्राम पूरनपुर, परगना, तहसील सोरावन, जिला
इलाहाबाद। ..................प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 मिश्र, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 27.10.2014
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय/आदेश
अपील सुनवाई हेतु ली गयी। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है और न ही उनकी ओर से तिथि स्थगन हेतु कोई प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है जबकि प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री ए0के0 मिश्र उपस्थित हैं। चूंकि यह अपील वर्ष 2008 से अंगीकरण हेतु सूचीबद्ध है अत: पीठ द्वारा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि परिवाद संख्या-675/2001 को अधीनस्थ जिला फोरम, इलाहाबाद द्वारा दिनांक 30.06.2008 को एक पक्षीय सुनवाई के दौरान स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को आदेशित किया गया था कि वह आदेश के दो माह के भीतर रू0 23,400/- परिवादी को आलू की क्षतिपूर्ति स्वरूप अदा करें। अपीलार्थी को इस निर्णय एवं आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक 18.09.2008 को उपलब्ध करा दी गयी थी परन्तु उनके द्वारा यह अपील दिनांक 24.11.2008 को दाखिल की गयी है। इस प्रकार यह अपील दृष्टिमान रूप से समय सीमा से बाधित है। इस विलम्ब को क्षमा करने के लिए अपीलार्थी की ओर से एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि निर्णय के दौरान अस्वस्थ हो जाने के कारण उनके द्वारा समय से अपील दाखिल नहीं की जा सकी। अपीलार्थी ने चिकित्सा प्रमाण पत्र के समर्थन में कोई अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है और न ही चिकित्सक का शपथपत्र ही दाखिल किया गया है। वर्णित परिस्थितियों में चिकित्सक के प्रमाण पत्र के आधार पर इतने अधिक समय के विलम्ब को क्षमा करना न्यायोचित नहीं होगा। ऐसा करने पर माननीय उच्च्तम न्यायालय द्वारा IV (2011) CPJ 613 (SC) में पारित विधिक सिद्धान्त की मंशा विफल हो जायेगी। पीठ द्वारा निर्णय एवं आदेश दिनांक 30.06.2008 का परिशीलन किया गया। यह निर्णय एवं आदेश अभिलेखीय साक्ष्यों पर आधारित है। अत: इसमें हस्तक्षेप करने का प्रथम दृष्टया कोई आधार नहीं बनता है। वर्णित परिस्थितियों में यह अपील समय सीमा से बाधित एवं सारहीन होने के कारण अंगीकरण के स्तर पर निरस्त होने योग्य है।
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तद्नुसार यह अपील समय सीमा से बाधित एवं सारहीन होने के कारण अंगीकरण के स्तर पर निरस्त की जाती है। इस निर्णय/आदेश की सत्य प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।
(आलोक कुमार बोस) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-5