Uttar Pradesh

StateCommission

A/2005/491

Muradabad Vikas Pradikaran - Complainant(s)

Versus

Om Prakash Agarwal - Opp.Party(s)

Prayas Srivastav Sarvesh Kumar Sharma & Abhishek Misrsa

13 Aug 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2005/491
( Date of Filing : 16 Mar 2005 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Muradabad Vikas Pradikaran
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Om Prakash Agarwal
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 13 Aug 2024
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील सं0 :-491/2005

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, (द्वितीय) मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0-171/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 09/02/2005 के विरूद्ध)

  1. मुरादाबाद विकास प्राधिकरण, मुरादाबाद द्वारा सचिवए
  2. मुरादाबाद विकास प्राधिकरण, मुरादाबाद द्वारा उपाध्‍यक्ष
  3.                                                 अपीलार्थीगण  

बनाम

ओम प्रकाश अग्रवाल, पुत्र श्री राजा राम, निवासी सर्राफ मण्‍डी, चौक, मुरादाबाद। हाल निवासीए 226 लाजपत नगर, मुरादाबाद।

  •                                       प्रत्‍यर्थी   

समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य
  2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री अभिषेक मिश्रा

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री राकेश सिंह परिहार

दिनांक:-13.08.2024

 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.          जिला उपभोक्‍ता आयोग, (द्वितीय) मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0-171/2003 ओम प्रकाश अग्रवाल बनाम मुरादाबाद विकास प्राधिकरण व अन्‍य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 09/02/2005 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।
  2.       जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए परिवादी के पक्ष में आवंटित भवन के निरस्‍तीकरण के आदेश को अपास्‍त किया गया है और यह भी आदेशित किया गया है कि इस भवन का कब्‍जा  सुपुर्द किया जाए और यदि ऐसा करना संभव न हो तो अन्‍य योजना में एच.आई.जी. भवन 4,40,000/-रू0 के मूल्‍य पर ही आवंटित करें एवं कब्‍जा प्रदान करें तथा पूर्व में जमा राशि अंकन 2,20,000/-रू0 पर कब्‍जा प्रदान किये जाने की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज अदा किया जाए।
  3.       परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अक्‍टूबर 1982 में अंकन 8,500/-रू0 जमा कराकर भवन सं0-27 दीनदयाल योजना में आवंटित कराया। विभिन्‍न तिथियों पर धन जमा करते हुए केवल 2,20,000/-रू0 की राशि जमा की गयी। दिनांक 09.05.1997 को कब्‍जा प्रदान किये जाने के लिए पत्र लिखा गया था तब विपक्षीगण द्वारा बताया गया था कि यह भवन किसी आवंटी को कब्‍जा दिया जा चुका है और पैसा वापस लेने का विकल्‍प दिया गया है। परिवादी द्वारा 50 प्रतिशत धनराशि जमा की जा चुकी थी, इसलिए वह कब्‍जा प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हो चुका था। वर्ष 1989 में ही कब्‍जा दिया जाना चाहिए था। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
  4.       विपक्षीगण का कथन है कि वर्ष 1982 में 8,500/-रू0 पंजीकरण हेतु परिवादी ने जमा किये थे। 50 प्रतिशत धनराशि अंकन 1,26,500/-रू0 दिनांक 30.10.1993 तक जमा करने के लिए कहा गया था, लेकिन परिवादी द्वारा केवल 93,500/-रू0 जमा किये गये, इसलिए स्‍वयं परिवादी डिफाल्‍टर है। तदनुसार दिनांक 02.01.1995 को आवंटन निरस्‍त कर दिया गया, बाद में 2,20,000/-रू0 जमा करने का कथन स्‍वीकार किया गया है तथा भवन का मूल्‍य 4,40,000/-रू0 होना भी स्‍वीकार किया गया है। पक्षकारों द्वारा प्रस्‍तुत साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा निष्‍कर्ष दिया गया कि परिवादी द्वारा 2,20,000/-रू0 जमा कराये जा चुके थे। आवंटन निरस्‍त करने से पूर्व कोई पत्र जारी नहीं किया गया, भिन्‍न-भिन्‍न समय पर भवन की भिन्‍न-भिन्‍न मूल्‍य सुनिश्चित किये गये, परंतु अंतिम मूल्‍य 4,40,000/-रू0 के 50 प्रतिशत के बराबर राशि जमा की जा चुकी है।  तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
  5.       अपीलार्थी प्राधिकरण के विद्धान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि दिनांक 30.10.1993 तक 1,26,500/-रू0 जमा किये जाने थे, परंतु केवल 93,500/-रू0 जमा कराये, इसलिए आवंटन निरस्‍त किया गया, जिसमें कोई अवैधानिकता नहीं है। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अवैध आदेश पारित किया है।
  6.       दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना गया। पत्रावली एवं प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश का अवलोकन किया गया।
  7.       जिला उपभोक्‍ता आयोग ने साक्ष्‍य की व्‍याख्‍या के आधार पर यह निष्‍कर्ष दिया है कि विपक्षी द्वारा भवन की कीमत में अनेक बार परिवर्तन किये गये और अंतिम रूप से 4,40,000/-रू0 भवन का मूल्‍य निर्धारित किया गया और परिवादी द्वारा 2,20,000/-रू0 जमा किये जा चुके थे, इसलिए 50 प्रतिशत की राशि जमा करने के पश्‍चात परिवादी भवन पर कब्‍जा प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत हो जाता है। इस स्थिति मे भवन केनिरस्‍तीकरण का आदेश अनुचित है। अपील के दौरान संलग्‍नक सं0 2 से अवशेष राशि जमा कराने की नोटिस की प्रति मौजूद है, परंतु इस नोटिस के साथ रसीद चस्‍पा नहीं की गयी। चूंकि मकान की कीमत मे अनेक बार का परिवर्तन हुआ है, इसलिए परिवादी यह सुनिश्‍चित नहीं हो सका कि किस तिथि तक कितनी राशि जमा करनी है। बार-बार मकान की कीमत परिवर्तित कर स्‍वयं प्राधिकरण द्वारा लापरवाही कारित की गयी है, इसलिए जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्‍तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है।
    •  

अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश पुष्‍ट किया जाता है।

             उभय पक्ष अपीलीय वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

             आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

(सुधा उपाध्‍याय)(सुशील कुमार)

  •  

 

 

     संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2

  

  

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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