राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-१८६८/२०१०
(जिला फोरम(प्रथम), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-७५/२००७ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक ०४-०८-२००९ के विरूद्ध)
लखनऊ डेवलपमेण्ट अथारिटी द्वारा अम्बी बिष्ट प्रॉपर्टी आफीसर एल.डी.ए., लखनऊ।
................... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
श्रीमती ओलिव रोज लॉर्टीयस पत्नी स्व0 ए.एच. मसीह, निवासी म0नं0 सी-१/११२/जे, रेल नगर, सैक्टर-जे, कानपुर रोड, लखनऊ।
.................. प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य ।
२- मा0 श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : १०-११-२०१४
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
आज यह पत्रावली प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है और न ही स्थगन हेतु कोई प्रार्थना पत्र उसकी ओर से प्रस्तुत किया गया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता भी अनुपस्थित हैं। यह अपील, पिछले ०४ वर्ष से अंगीकरण हेतु लम्बित है। अत: पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि इसका अंगीकरण के स्तर पर निस्तारण कर दिया जाय। यह अपील आयोग में योजित की जाने की तिथि से सुनवाई हेतु कई बार सूचीबद्ध हुई है, परन्तु अपीलार्थी इस आयोग के आदेश दिनांक ०३-११-२०१० से प्रकरण में स्थगन आदेश प्राप्त करने के उपरान्त विगत कई तिथियों से इस अपील की कार्यवाही में अनुपस्थित रहा है, अत: ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलार्थी द्वारा इस अपील को योजित करने के बाद से अपील के संचालन में कोई रूचि नहीं ली जा रही है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा - ३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत
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निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में निम्नवत् प्राविधान है :-
नियम - ८(६) : सुनवाई के दिनांक को या किसी अन्य दिनांक को जब तक के लिये सुनवायी स्थगित की जाये, पक्षकारों या उनके प्राधिकृत अभिकर्त्ताओं को राज्य आयोग के समक्ष उपस्थित होना बाध्यकर होगा। यदि अपीलार्थी या उसका प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे दिनांक को उपस्थित होने में असफल रहता है तो राज्य आयोग, स्व विवेकानुसार या तो अपील को खारिज कर सकता है या मामले के गुणावगुण के आधार पर उसे विनिश्चित कर सकता है। यदि प्रत्यर्थी या उसका प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे दिनांक को उपस्थित होने में असफल रहता है तो राज्य आयोग एक पक्षीय कार्यवाही करेगा और मामले के गुणावगुण के आधार पर अपील का एक पक्षीय विनिश्चय करेगा। ‘
उपरोक्त विधिक प्राविधान के अनुसार अपीलार्थी का यह दायित्व था कि वे अपील दायर करने के उपरान्त प्रत्येक नियत तिथि पर स्वयं अथवा उनके द्वारा प्राधिकृत अभिकर्त्ता उपस्थित होते, परन्तु उनके द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया। अत: अपीलार्थी की अनुपस्थिति में यह अपील निर्णीत किये जाने योग्य है। परिणामत:, पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों/साक्ष्यों का परिशीलन किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि प्रस्तुत अपील अधीनस्थ जिला फोरम(प्रथम), लखनऊ द्वारा परिवाद सं0-७५/२००७ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक ०४-०८-२००९ के विरूद्ध दिनांक ०१-११-२०१० को योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत परिवाद को स्वीकार करते हुए परिवादिनी को आदेशित किया गया है कि वह आज (अर्थात् निर्णय की तिथि) से ३० दिवस के अन्दर रू0 ३६७२.६१ विपक्षी कार्यालय में जमा करे एवं उक्त धनराशि जमा करने की दशा में विपक्षीगण को आदेशित किया गया कि वे उक्त विवादित मकान नं0 सी-१/११२/जे सैक्टर-जे, रेल नगर का विक्रय पत्र परिवादिनी के पक्ष में अविलम्ब तहरीर व रजिस्ट्री करें। इसके अतिरिक्त यह भी आदेश दिया गया है कि परिवादिनी, विपक्षीगण से मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हेतु रू0 ५०००.०० एवं वाद व्यय रू0 २०००.०० भी प्राप्त करेगी। अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक ०८-०७-२०१० को प्राप्त की गयी थी। यह अपील निर्णय
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की तिथि से लगभग १५ माह विलम्ब से दाखिल की गयी है और निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने की तिथि से भी लगभग ०२ माह विलम्ब से दाखिल की गयी है। यद्यपि इस विलम्ब को क्षमा करने के लिए अपीलार्थी ने एक प्रार्थना पत्र मय शपथ पत्र प्रस्तुत किया है, जो अभिलेख पर उपलब्ध है, परन्तु इस अपील एवं विलम्ब क्षमा प्रार्थना पत्र पर बल देने के लिए आज सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं है। इस प्रकार यह अपील समय सीमा से बाधित होना पायी जाती है।
इसके अतिरिक्त अपील आधार के समर्थन में अपीलार्थी की ओर से न तो कोई सारवान विधि पुष्टित साक्ष्य अभिलेख पर उपलब्ध है और न ही कोई मा0 उच्चतर न्यायालय की विधि व्यवस्था अपने कथनों के समर्थन में प्रस्तुत की गयी है। अधीनस्थ जिला फोरम द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों एवं तथ्यों पर विस्तार से विचार-विमर्श के उपरान्त दिनांक ०४-०८-२००९ को प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश उद्घोषित किया गया है, जिसमें वर्णित परिस्थितियों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने का प्रथम दृष्ट्या कोई आधार नहीं बनता है तथा अपील में कोई सार होना नहीं पाया जाता है।
फलस्वरूप, यह अपील सारवान साक्ष्य के अभाव में, समय सीमा से बाधित एवं सारहीन होने के कारण अंगीकरण के स्तर पर अपीलार्थी की अनुपस्थिति के कारण निरस्त की जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील समय सीमा से बाधित एवं सारहीन तथा अपीलार्थी की अनुपस्थिति के कारण अंगीकरण के स्तर पर निरस्त की जाती है।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि सभी पक्षकारान् को नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(जुगुल किशोर)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.