प्रकरण क्र.सी.सी./13/265
प्रस्तुती दिनाँक 12.03.2013
मनीष अग्रवाल आ. श्री आनंद अग्रवाल, मेन मार्केट, न्यू खुर्सीपार, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादी
विरूद्ध
प्रबंधक, छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मण्डल संभाग दुर्ग, तह. व जिला- दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 30 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से मानसिक व आर्थिक नुकसानी राशि 1,00,000रू एवं अन्य उचित अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक का एल.आई.जी.-प्/66 मकान जो कि कुरूद, भिलाई में स्थित है तथा जिसका प.ह.नं.19 है, अनावेदक से प्राप्त विक्रय अनुमति (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के आधार पर श्री कृष्ण कुमार कोठारे से दि.09.11.12 को 3,87,500रू. में क्रय कर कब्जा प्राप्त किया गया था। परिवादी के द्वारा उक्त मकान का अनापत्ति प्रमाण पत्र अनावेदक से मांगे जाने पर अनावेदक के द्वारा शीघ्र प्रदान किए जाने का आश्वासन दिया गया था, किंतु उसे प्रदान नहीं किया गया। परिवादी के द्वारा अपने अधिवक्ता मार्फत अनावेदक को नोटिस दिनांक 12.02.13 को प्रेषित किया गया, जिसके जवाब में अनावेदक के द्वारा बताया गया कि कृष्ण कुमार द्वारा उक्त प्लाट की रजिस्ट्री किसी अन्य व्यक्ति द्वारा फर्जी हस्ताक्षर से निष्पादित कर फर्जी रजिस्ट्री की फोटो प्रति संलग्न कर शपथ पत्र सहित आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाने तथा उक्त रसीद नं.197/19699 दि.08.11.2011 से जमा बताया गया है, तत्संबंध में उक्त रसीद बुक कार्यालय से गुम है तथा उक्त राशि कथित दिनांक को मण्डल के रोकड़ बही में दर्ज नहीं होने एवं कृष्ण कुमार कोठारे द्वारा उक्त संपत्ति मनीष अग्रवाल को द्वितीय बयानामा आधार पर बेचा जाने आदि अनावेदक द्वारा जवाब में किये गये कथन आधारहीन एवं मनगढ़त बातें हैं। इस प्रकार अनावेदक से अनापत्ति प्रमाण पत्र के संबंध में हुई त्रुटि सेवा में कमी की श्रेणी में आने से परिवादी को हुई मानसिक, आर्थिक नुकसानी राशि 1,00,000रू. व वाद व्यय एवं अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी ने उक्त अभिकथित भवन का अनापत्ति प्रमाण पत्र की मांग किससे की गई और कब की गई, इस संबंध में कब आवेदन पेश किया गया, उसकी कोई पावती भी परिवादी ने अपने वाद पत्र के साथ पेश नहीं किया है। परिवादी द्वारा प्रेषित अधिवक्ता नोटिस का जवाब प्रेषित किया गया कि कृष्ण कुमार द्वारा उक्त प्लाट की रजिस्ट्री कराई गई, जो कार्यालय में पदस्थ अधिकारियों के द्वारा निष्पादित न कर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा फर्जी हस्ताक्षर से निष्पादित कराये गये है, उसी फर्जी रजिस्ट्री की फोटो प्रति संलग्न कर कृष्ण कुमार कोठारे द्वारा विक्रय अनुमति के तिथि शपथ पत्र सहित आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया। अनावेदक कार्यालय से जारी विक्रय अनुमति में कार्यालीन दस्तावेजों में उपलब्ध प्रति पर 3825रू. चालान दि.08.11.2011 से जमा किये जाने का उल्लेख है, जबकि मूल प्रति जो परिवादी को दी गई छाया प्रति में रसीद नं.197/19699 दि.08.11.2011 से जमा बताया गया है, तत्संबंध में उक्त रसीद बुक कार्यालय से गुम है तथा उक्त राशि कथित दिनांक को मण्डल के रोकड़ बही में दर्ज नहीं है, न तो रसीद के माध्यम से और न ही चालान के माध्यम से अर्थात् वित्तीय अनिमितता की गई फर्जी हस्ताक्षर से निष्पादित रजिस्ट्री दस्तावेज एवं फर्जी विक्रय अनुमति के आधार पर कृष्ण कुमार कोठारे द्वारा उक्त संपत्ति मनीष अग्रवाल को द्वितीय बयानामा आधार पर बेची गई है। इस प्रकार के कुछ प्रकरणों की एफ.आई.आर.दुर्ग कोतवाली में दर्ज करायी गई है। परिवादी के द्वारा मण्डल के किसी व्यक्ति से मिल कर फर्जी रजिस्ट्री कराई गई है, जिसमें कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पे, इनकी भागीदारी संलग्न है। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा परिवादी के प्रति किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है। परिवादी, अनावेदक से किसी प्रकार के अनुतोष पाने की पात्रता नहीं रखता, अतः परिवादी के द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक आर्थिक नुकसानी के एवज में 1,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन से यह स्थिति सामने आती है कि एनेक्चर पी.4 में अभिकथित भूखण्ड सर्वप्रथम सत्य प्रकाश आ. दशरथ लाल को आबंटित किया गया था। सत्य प्रकाश की मृत्यु दि.28.06.2010 को हो चुकी है। सत्य प्रकाश के पिता की मृत्यु दि.09.05.2004 को हो चुकी है। सत्य प्रकाश अविवाहित था, अतः कृष्ण कुमार कोठारे जो कि सत्य प्रकाश का भाई था, भूखण्ड को अपने नाम से कराया और जब रजिस्ट्री की पारी आई तो अनावेदक कार्यालय में पदस्थ अधिकारियों के द्वारा निष्पादित ना कराकर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा फर्ज़ी रजिस्ट्री की फोटो प्रति संलग्न कर कृष्ण कुमार कोठारे द्वारा विक्रय अनुमति के लिए शपथ पत्र सहित आवेदन प्रस्तुत किया गया था और तत्संबंध में रसीद क्रमांक भी भिन्न थे, रसीद बुक कार्यालय से गुम हो गई, विक्रय अनुमति की राशि का इंद्राज मण्डल की रोकड़ बही में दर्ज नहीं है और फर्ज़ी हस्ताक्षर से निष्पादित रजिस्ट्री दस्तावेज और फर्ज़ी विक्रय अनुमति के आधार पर कृष्ण कुमार कोठारे द्वारा उक्त सम्पत्ति परिवादी को द्वितीय बैनामे के आधार पर बेची गई है, ऐसे 15 से 18 प्रकरण सामने आये हैं, जिनकी एफ.आई.आर. थाने में दर्ज कराई गई है।
(7) उपरोक्त स्थिति में हम यह पाते हैं कि अनावेदक ने अपने विभाग में वित्तीय गड़बड़ी पाई, इस प्रकार का फर्ज़ीवाड़ा सामने आया है और इसी कारण परिवादी को यदि अनावेदक ने अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया है तो उसे सेवा में निम्नता नहीं माना जा सकता है, क्योंकि अनावेदक का यह भी तर्क है कि फर्ज़ी दस्तावेज और शासकीय धन गबन के आधार पर निष्पादित क्रय-विक्रय की गई सम्पत्ति के हस्तांतरण एवं नामांत्रण विधि अनुकूल नहीं होने के कारण कार्यवाही सुरक्षित रखी गई है, इन आधारों पर हम अनावेदक द्वारा की गई कार्यवाही को परिवादी के विवाद के संबंध में सेवा में निम्नता नहीं पाते हैं।
(8) फलस्वरूप परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करने के समुचित आधार नहीं पाते हैं, फलस्वरूप परिवादी का दावा खारिज करते हैं।
(9) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।