जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 483/2009 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्य।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-05.05.2009
परिवाद के निर्णय की तारीख:-29.08.2022
Laxaman Prasad Kashyap, Prop. M/s Sonu Battery & Auto Electric Repairing works 47-Super Market B.N.Road, Lalbagh, Lucknow.
..........Complainant.
Versus
1-Mr. M. Ramadass, C.M.D. The Oriental Insurance company Ltd. Head office oriental House New Delhi.
2- Mr. Raj Chandra, Divisional Manager, The Oriental Insurance company Ltd. Divisional office-II Vikas Deep Building 9th Floor 22 Station Road Lucknow.
3- Mr. K.K. Sonkar, Branch Manager, The Orienal Insurance company Ltd. Direct Agent Branch 9th floor Vikas Deep Building Lucknow.
4-Mr. D.K. Soni, D.G.M. Oriental Ins. Co. Ltd. R.O. Hazratganj, Lucknow.
.............Opposite Parties.
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष ।
निर्णय
परिवादी माननीय राज्य आयोग के आदेश दिनॉंक 03.01.2020 द्वारा पक्षकारों को उपर्युक्त साक्ष्य का अवसर प्रदान करते हुए पुन: गुणदोष के आधार पर सुने जाने के संबंध में आदेश पारित किये जाने हेतु निर्देशित किया गया है।
पक्षकारों को अवसर प्रदान किये जाने के बाद पक्षकारों द्वारा कहा गया कि कोई साक्ष्य नहीं देना है। साक्ष्य पूर्व में दाखिल की जा चुकी है। परन्तु ओरिएन्टल इ0कं0लि0 द्वारा बीमा की प्रतिलिपि, अंतिम रिपोर्ट की आख्या एवं तहरीर दाखिल की गयी।
1. परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत विपक्षीगण से 9,31,809.88 रूपये मय 02 प्रतिशत ब्याज प्रतिमाह की दर से धनराशि जमा किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक, आर्थिक, मानसिक कष्ट के लिये 1,00,000.00 रूपये, वाद व्यय व अन्य भाग दौड़ के लिये 25,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपनी दुकान का बीमा पालिसी नम्बर 221101/2007/363 द्वारा कराया था जिसकी वैधता तिथि 13.03.2007 से 12.03.2008 तक थी। परिवादी ने विपक्षी से लिये हुए रूपये 7,892.00 किश्त में जमा किया तथा परिवादी को बीमा का बाण्ड प्राप्त हुआ। परिवादी की दुकान में दिनॉंक 13/14 मई, 2007 को सेंध लगाकर चोरी हो गयी, जिसकी प्राथमिकी अज्ञात व्यक्तियों के विरूद्ध थाने में दर्ज करायी गयी। दुकान में रखे हुए सामान का बीमा 15,40,000.00 रूपये का था। दिनॉंक 18.05.2017 को विपक्षी संख्या 03 को डिवीजनल आफिस लखनऊ को सर्वेयर नियुक्त करने के लिये पत्र लिखा गया। विपक्षीगण का कथन है कि परिवादी ने 18 दिन बाद सूचना दी है जबकि परिवादी ने बिना विलम्ब किये ही सूचना दी थी।
3. सर्वेयर ने औपचारिकताऍं पूरी करके अपनी रिपोर्ट दिनॉंक 13.06.2007 को प्रस्तुत किया है। दिनॉंक 06.07.2007 को सर्वेयर ने दोबारा विस्तृत रिपोर्ट दी। परिवादी ने बीमा कम्पनी को एक पत्र भेजा कि उसके द्वारा किये गये दावे की धनराशि का भुगतान नहीं किया गया है। इस पत्र के जवाब में डिवीजनल मैनेजर डी0ओ0 02 लखनऊ का एक पत्र दिनॉंक 22.10.2007 को डी0ए0वी0 लखनऊ को भेजा और परिवादी का दावा अस्वीकृत कर दिया गया और दावा अस्वीकृत का कारण यह बताया गया कि पालिसी की शर्तों में दावा नहीं आता है। सर्वेयर द्वारा दो रिर्पोटों के अतिरिक्त और कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गयी थी।
4. विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए पालिसी निर्गत करना स्वीकार किया। परिवादी की दुकान में चोरी होना और प्राथमिकी दर्ज करना भी स्वीकार किया। अनुसंधानकर्ता द्वारा अंतिम प्रपत्र समर्पित करना स्वीकार किया तथा सर्वेयर द्वारा रिपोर्ट देना भी स्वीकार किया। बीमा कम्पनी को घटना की सूचना दिनॉंक 19.05.2007 परिवादी द्वारा दिये गये क्लेम प्रपत्र से मिली, तब सर्वेयर की नियुक्ति हुई और सर्वेयर ने अपनी रिपोर्ट दी। सर्वेयर के अनुसार परिवादी ने 1993 में बिना बीमा कराये ही अपना व्यापार शुरू किया था और उनका केस क्रेडिट कार्ड लिमिट की सीमा 7,00,000.00 रूपये थी जो सिंडीकेट बैंक से थी।
5. विपक्षीगण का कथन है कि परिवादी ने स्टाक में बृद्धि 650.81 प्रतिशत की हुई है जबकि बिक्री 33.6 प्रतिशत कम हुई है। परिवादी के एकाउन्ट एवं स्टाक का आडिट किसी एजेन्सी द्वारा नहीं कराया गया है। परिवादी का पुराना सामान जब बचा है वह नया क्रय करने के पूर्व नहीं बिका था। चोरी गया सामान बीमित दुकान में कुल 72 क्यूसिक फिट में था जिसमें उपरोक्त सामान रखना संभव नहीं था। परिवादी ने 9,31,000.50.00 रूपये बढ़ाकर दिखाया है। अत: परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
6. परिवादी ने अपने साक्ष्य में शपथ पत्र मय संलग्नक, रोजनामचा की प्रति, बैंक का स्टाक स्टेटमेंट, एफ0आई0आर0, आदि दाखिल किया है।
7. विपक्षीगण द्वारा अपना लिखित कथन मय साक्ष्य शपथ पत्र, सर्वेयर रिपोर्ट मय संलग्नक, दाखिल किया है।
8. मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
9. उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत प्रकरण में माननीय राज्य आयोग के आदेश दिनॉंक 03.01.2020 के तहत पक्षकारों को पुन: सुना गया। माननीय राज्य आयोग द्वारा इन्श्योरेंस कम्पनी की अपील पर इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश खण्डित करते हुए यह कहा गया कि प्रस्तुत प्रकरण को पुन: गुणदोष के आधार पर निस्तारित किया जाए तथा अपनी अपील में यह भी उल्लिखित किया कि सर्वेयर द्वारा रिपोर्ट में अंकित क्षतिपूर्ति की धनराशि 1,82,636.00 रूपये स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है, क्योंकि सर्वेयर द्वारा रिपेयर शाप के चोरी गये माल का ही मूल्यांकन 1,82,636.00 रूपये किया है। सर्वेयर ने ट्रेडिंग शाप के चोरी गये माल का मूल्यांकन नहीं किया है। सर्वेयर रिपोर्ट द्वारा उपरोक्त घोषित खरीद को अस्वीकार करने का कोई कारण उल्लिखित नहीं किया गया है।
10. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि दुकान में 15,40,000.00 रूपये मूल्य का स्टाक बीमा कम्पनी ने बीमित किया था तथा कथित माल सर्वेयर की आख्या के अनुसार 72 घनफुट में आना भी संभव नहीं है। ट्रेडिंग की दुकान है यह मानने हेतु भी कोई उचित आधार नहीं है। जैसा कि परिवादी का कथानक है कि दिनॉंक 13,14, मई, 2007 को कुछ अज्ञात चोरों द्वारा सेंध लगाकर चोरी की गयी थी जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट अज्ञात लोगों के विरूद्ध थाने में लिखायी गयी। उस वक्त सामान का बीमा 15,40,000.00 रूपये का था। चोरी के बाद पुलिस ने विवेचना भी की और विवेचना के उपरान्त अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। विपक्षी द्वारा यह कहा गया कि परिवादी द्वारा 9,31,809.88 रूपये की जो मांग की गयी है वह ज्यादा है और सर्वेयर की आख्या के अनुसार 1,82,636.00 रूपये का भुगतान किया जाना ही जायज है।
11. परिवादी ने अपने कथानक की पुष्टि अपने मौखिक शपथ पत्र द्वारा किया है। जैसा कि परिवादी का कथानक है जिसके अनुसार एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी थी जिसकी छायाप्रति संलग्न है, जिसके परिशीलन से विदित है कि दिनॉंक 13, 14 मई 2007 को दुर्घटना होने के संबंध में अज्ञात में परिवादी लक्षमन प्रसाद द्वारा संबंधित थाने में सूचना दर्शायी गयी है जिसमें उन्होंने यह लिखा है- लक्षमन प्रसाद कश्यप पुत्र श्री राम दयाल, निवासी 119 शक्ति नगर, सरोजनी नगर, लखनऊ का हॅूं। प्रार्थी अपनी दुकान सुपर मार्केट, लालबाग, लखनऊ में स्थित सोनू बैटरी व व इलेक्ट्रानिक के नाम से वर्षों पहले से करता चला आ रहा है। प्रार्थी दिनॉंक 13.05.2007 को लगभग 8.00 बजे अपनी दुकान को बन्द करके अपने निवास शक्ति नगर चला गया था। प्रार्थी को सुबह सूचना दी गयी कि तुम्हारी दुकान का शटर खुला है तथा ताला टूटा है। काफी सामान बाहर पड़ा है। इस सूचना पर मैं अपनी दुकान पर पहुंचा तो देखा कि मेरी दुकान का ताला टूटा हुआ है। उसमें रखा सामान (बैट्री, स्टेबलाइजर, सेल्फ अल्टीनेटर मोटर आदि) अज्ञात चोरों द्वारा चूरा लिया गया है। रिपोर्ट लिखकर कार्यवाही करने की कृपा करें।
12. विपक्षीगण की ओर से यह कहा गया कि कुल 72 घनफुट में इनकी दुकान थी और इतनी बड़ी दुकान में जितनी धनराशि का वह क्षतिपूर्ति मॉंग रहे है उतना सामान रखा जाना ही संभव नहीं है। माननीय राज्य आयोग द्वारा सर्वेयर रिपोर्ट के संबंध में यह कहा गया कि सर्वेयर रिपोर्ट विधि सम्मत ढंग से नहीं है और एक ही मंजिल का उन्होंने सर्वे किया है। अत: सर्वेयर की रिपोर्ट को उन्होंने उपयुक्त नहीं माना और उस सर्वेयर की रिपोर्ट के अनुसार ही विपक्षी द्वारा यह कहा जा रहा है कि मात्र 1,36,977.00 रूपये की ही चोरी हुई है।
13. विपक्षीगण द्वारा अपनी गवाही में यह कहा गया कि दुकान का कुल साइज 72 घनफुट था। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी की दुकान विपक्षी से बीमित है। बीमा का प्रपत्र दाखिल किया गया है। बीमा के प्रपत्र के अवलोकन से विदित है कि बीमा दिनॉंक 13.03.2007 से लेकर 12.08.2008 तक था, तथा दुर्घटना की तिथि 13, 14 मई 2007 है अर्थात दुर्घटना से बीकित थी। उसके अवलोकन से विदित है कि Burglary से संबंधित है। Burglary की परिभाषा incyclopedia में यह है कि किसी भी entry Inter a building with interd to comment a crime specially theft इस प्रकार चोरी के लिये परिवादी की दुकान बीमित थी। ट्रेडिंग के लिये नहीं। इसका इस स्तर पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि चोरी के संबंध में परिवादी का कथानक है और उसी के सापेक्ष में एफ0आई0आर0 भी लिखायी गयी है।
14. विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया कि इतना माल रखा जाना किसी भी 72 घनपुट की दुकान में संभव नहीं है। परिवादी द्वारा यह कहा गया कि हमारा सामान था और इसका प्रमाण ट्रेडिंग एकाउन्ट का दाखिल किया है, जिसमें सामान 12,41,578.95.00 रूपये का है। इसलिये विपक्षी के कथन तर्कपूर्ण नहीं लग रहे हैं कि इस दुकान में सामान नहीं था।
15. परिवादी ने दुर्घटना कारित किये जाने के बाद पुलिस द्वारा विवेचना के उपरान्त जारी की गयी लिस्ट का विवरण दाखिल किया है जिसमें तस्करा जी0डी0 में भी किया गया है और यह भी लिखा गया है कि कुल 9,31,809.88 रूपये धनराशि की चोरी हुई। इसकी प्रतिलिपि पत्रावली पर दाखिल की गयी है। जी0डी0 की प्रतिलिपि के परिशीलन से विदित है कि दिनॉंक 16.05.2008 की जीडी दाखिल की गयी है जिसमें चोरी गये सामान की सूची का तस्करा किया गया है, और 9,31,809.88 रूपये का होना दर्शाया गया है, जो कि दुर्घटना के तुरन्त बाद की है। एक राजकीय सेवा और राज्य के कर्तव्य के निवर्हन के दौरान यह बनायी गयी है जो कि एक पब्लिक प्रपत्र की श्रेणी में आता है और उसकी छायाप्रति के खण्डन में विपक्षी द्वारा कोई भी साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा साक्ष्य में भी यह कहा गया कि 9,31,809.88 रूपये का सामान चोरी हुआ है। इस बात की पुष्टि हो रही है।
16. विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में कोई सामान की चोरी का जिक्र नहीं किया गया है कि क्या सामान चोरी हुआ था। प्रथम सूचना रिपोर्ट चॅूंकि तुरन्त ही लिखी गयी है, अत: उसमें समस्त तथ्यों का होना आवश्यक भी नहीं है और एफ0आई0आर0 incyclopedia नहीं है कि हर तथ्य का उसमें आंकलन किया जायेगा। वह विवेचना के दौरान अपने स्टाक रजिस्टर से सामान जब नहीं पाया होगा तभी विवेचक द्वारा वह धनराशि अंकित की गयी है। अत: विपक्षी के कथनों में कोई बल नहीं है।
17. विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया कि कुल 33.6 प्रतिशत दुकान के सामान की बिक्री हुई है, जबकि स्टाक में भी 650.81 प्रतिशत होना दिखा रहा है, जो कि संभव नहीं है। स्टाक कोई जरूरी नहीं है कि जितना सामान हो वह सब बिक जाए। व्यक्त भिन्न भिन्न प्रकार के सामानों को क्रय करके अपनी दुकान में रखता है, जिससे उसकी बिक्री और बढ़े। 33.6 प्रतिशत ही बिक्री हुई है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें 12,00,000.00 का सामान नहीं होगा। विपक्षी के कथन में कोई बल नहीं है।
18. विपक्षीगण द्वारा यह भी कहा गया कि एकाउन्ट एवं स्टाक का आडिट किसी एजेन्सी द्वारा नहीं किया गया है, तो उसके लिये यह संबंधित विभाग द्वारा किया जाता है। अगर नहीं है तो दण्डात्मक कार्यवाही होती है। अत: इसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। विपक्षी के तर्कों में कोई बल नहीं है। अत- उपरोक्त विवरण से परिवादी यह साबित करने में सफल रहा है कि इस दुकान में चोरी हुई है। अत: उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि जो जी0डी0 में चोरी की धनराशि अंकित की गयी है वह चोरी होना पाया जाता है। इस प्रकार कुल धनराशि 9,31,809.00 रूपया की धनराशि चोरी होना पायी जाती है। चॅूंकि चोरी से संबंधित बीमा कम्पनी द्वारा बीमा किया गया है। अत: उक्त धनराशि बीमा कम्पनी से दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
आदेश
19. परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, तथा विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को मुबलिग 9,31,809.00 (नौ लाख इकतिस हजार आठ सौ नौ रूपये अट्ठासी पैसे मात्र) 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से परिवाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक निर्णय की दिनॉंक से 45 दिन के अन्दर अदा करें। मानसिक, शारीरिक कष्ट के लिये मुबलिग 5000.00 (पॉंच हजार रूपया मात्र) एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग 5000.00(पॉंच हजार रूपया मात्र) भी अदा करें। यदि निर्धारित अवधि में उपरोक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है, तो सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह ) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(सोनिया सिंह) (अशोक कुमार सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक: 29.08.2022