(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1849/2004
शुभम क्लासिक
बनाम
दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लि0
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री सुशील कुमार शर्मा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आशुतोष कुमार सिंह।
दिनांक : 06.08.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-378/2000, शुभम क्लासिक बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लि0 में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय बरेली द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31.08.2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सुशील कुमार शर्मा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आशुतोष कुमार सिंह को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवादी पर अंकन 10,000/-रू0 अर्थदण्ड लगाते हुए परिवाद इस आधार पर खारिज किया है कि परिवादी द्वारा अंकन 1,32,700/-रू0 की राशि स्वेच्छा से प्राप्त की जा चुकी है और बीमा कंपनी के पक्ष में डिसचार्ज बाऊचर भी निष्पादित किया जा चुका है।
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3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी को दबाव में लेकर यह डिसचार्ज बाऊचर बीमा कंपनी द्वारा तैयार कराया गया, जबकि स्वंय सर्वेयर द्वारा अंकन 1,91,000/-रू0 की क्षति का आंकलन किया गया था। अपने तर्क के समर्थन में नजीर, Noor Ali Vs National Insurance Comapany Limited, 2009 (17) SCC 565 प्रस्तुत की गई है। इस केस के तथ्यों के अनुसार सर्वेयर द्वारा अंकन 1,79,111/-रू0 की क्षति का आंकलन किया गया था। बीमा कंपनी द्वारा केवल 1,21,117/-रू0 परिवादी के पक्ष में फुल एंड फाइनल सेटलमेंट के तहत रिलीज किए गए थे। परिवादी ने यह राशि आपत्ति के तहत स्वीकार की थी तथा न्यायालय के समक्ष लगभग 20 दस्तावेज इस तथ्य को साबित करने के लिए प्रस्तुत किए थे कि परिवादी का नुकसान अत्यधिक हुआ है और विद्वान जिला आयोग ने केवल 6,70,000/-रू0 की राशि 12 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा किए जाने का आदेश दिया है, परन्तु राज्य आयोग द्वारा केवल 50,000/-रू0 क्षतिपूर्ति के लिए आदेश पारित किया गया यानी सर्वेयर द्वारा आंकलित राशि के अन्तर की राशि प्रदान की गई। तदनुसार माननीय न्यायालय द्वारा अपील स्वीकार करते हुए राज्य आयोग एवं माननीय एनसीडीआरसी द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त किया गया और विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को स्थापित किया गया।
4. उपरोक्त केस के तथ्यो के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि परिवादी द्वारा धनराशि को प्राप्त करते समय ही अपनी आपत्ति प्रस्तुत की गई थी, जबकि प्रस्तुत केस में धनराशि प्राप्त
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करने से पूर्व परिवादी द्वारा डिसचार्ज बाऊचर बीमा कंपनी के पक्ष में निष्पादित किया जा चुका था, इसलिए इस नजीर में दी गई व्यवस्था प्रस्तुत केस के लिए लागू नहीं हो सकती। प्रस्तुत केस में यह नहीं कहा जा सकता कि परिवादी ने दबाव के तहत धनराशि प्राप्त की है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 63 में स्पष्ट व्यवस्था है कि यदि मांगी गई राशि से कम राशि प्राप्त की जाती है तब विपक्षी का दायित्व समाप्त हो जाता है और इसके बाद कोई वाद संधारणीय नहीं रहता। अत: इस विधिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए कहा जा सकता है कि चूंकि परिवादी ने धनराशि प्राप्त करने से पूर्व स्वेच्छा से डिसचार्ज बाऊचर बीमा कंपनी के पक्ष में निष्पादित किया है, इसलिए आगे के वाद की कार्यवाही समाप्त हो चुकी है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप का कोई आधार नही है, सिवाय इसके कि परिवादी पर जो अर्थदण्ड अंकन 10,000/-रू0 अधिरोपित किया गया है, उसे समाप्त किया जाए। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31.08.2004 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी पर अधिरोपित अर्थदण्ड अंकन 10,000/-रू0 समाप्त किया जाता है। शेष निर्णय/आदेश पुष्ट किया जाता है।
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प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2