(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2006/2009
M/S Ashoka Pulses
Versus
The Oriental Insurance Co. Ltd.
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक सिन्हा, विद्धान
अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक: 26.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-398/2006, मे0 अशोका पल्सेस बनाम दि ओरियन्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड में विद्वान जिला आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 16.04.2009 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है। जिला उपभोक्ता आयोग ने देरी के आधार पर परिवाद खारिज किया है तथा यह भी उल्लेख किया है कि परिवाद प्रस्तुत करते समय देरी माफ करने के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है।
2. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि बीमा क्लेम अवैध रूप से नकारा गया था, जिसके खिलाफ पुनर्विचार का आवेदन प्रस्तुत किया गया तथा यह आवेदन भी दिनांक 18.05.2004 को खारिज कर दिया गया, जबकि परिवाद 2006 में प्रस्तुत किया गया, जो समयावधि के अंतर्गत है।
3. परिवाद पत्र के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा ली गयी स्टैण्डर्ड फायर एण्ड पैरिल पॉलिसी के संबंध में बीमा क्लेम इस आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि दिनांक 15.05.2002 को कानपुर में भीषण तूफान आया और वादी की सम्पत्ति नष्ट हो गयी। बीमा कम्पनी द्वारा बीमा क्लेम दिनांक 18.05.2004 के पत्र द्वारा नकार दिया गया है। इसके बाद परिवादी द्वारा पुनर्विचार के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया, जो खारिज कर दिया गया, इसके बाद दिनांक 17.05.2006 को दावा प्रस्तुत किया गया, जिसे जिला उपभोक्ता आयोग ने समयावधि से बाधित माना है। अत: इस अपील के विनिश्चय के लिए एकमात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या पुनर्विचार के लिए दी गयी अवधि के कारण वाद कारण की समयावधि इस पुनर्विचार आवेदन के निस्तारण से प्रारंभ होगी? उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 24 (क) के अनुसार वाद कारण उत्पन्न होने के 02 वर्ष के अंदर उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है। यह प्रावधान आज्ञात्मक है, यद्यपि देरी माफ करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा देरी माफ की जा सकती है। यह आवेदन परिवाद प्रस्तुत करते समय पेश किया जाना चाहिए और यदि कारण पर्याप्त दर्शित होते हैं तब जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा देरी को माफ किया जा सकता है और परिवाद को 02 वर्ष की अवधि के पश्चात भी ग्राह्य किया जा सकता है।
4. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि प्रस्तुत केस में वाद कारण दिनांक 18.05.2004 को उत्पन्न माना जाना चाहिए, जब विपक्षी द्वारा बीमा कम्पनी के उच्च प्राधिकारियों द्वारा भी बीमा क्लेम नकार दिया गया। अपने इस तर्क के समर्थन में उनके द्वारा नजीर Council of Scientific & Industrial Research InstituteVersus New India Assurance Company Limited IV (2022) CPJ 181 (NC) प्रस्तुत की है, जिसमें देरी को माफ करने का आदेश पारित किया गया है। प्रस्तुत केस में देरी माफ करने का कोई अनुरोध नहीं किया गया। इस निर्णय में भी पैरा सं0 4 में स्पष्ट कथन किया गया है कि दिनांक 14.02.2004 को बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, जो दिनांक 11.10.2007 का नकारा गया। इसी तिथि को वाद कारण उत्पन्न हुआ तथा इस नजीर में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी व्यवस्था Inder Singh Rekhi Vs. DDA 34 (1988) DLT 362 (SC) तथा Transport Corporation of India V. Veljan Hydrrair Ltd. (2007) 3 SCC 142 में व्यवस्था दी गयी है कि इसी पैरा में उल्लेख है कि परिवाद दिनांक 10.10.2009 तक प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, इस नजीर में भी माना गया है कि वाद कारण बीमा क्लेम नकारने की तिथि से उत्पन्न होता है न कि उच्च अधिकारियों को प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने की तिथि से। यद्यपि उच्च अधिकारियों को प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने की स्थिति में देरी माफ करने का एक आधार हो सकता है, जैसा कि इस केस में माना गया है, परंतु चूंकि देरी माफ करने के लिए कोई आवेदन जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए इस नजीर का कोई लाभ अपीलार्थी को प्रदान नहीं किया जा सकता। धारा 24 (ए) की व्यवस्था के अनुसार समयावधि व्यतीत हो जाने पर कोई उपभोक्ता परिवाद ग्राह्य ही नहीं किया जायेगा, जब तक देरी माफ न कर दी गयी हो, इसलिए देरी माफी का आवेदन परिवाद प्रस्तुत करते समय दिया जा सकता है, इसके पश्चात देरी माफी का आवेदन प्रस्तुत करने का कोई आधार नहीं है और बगैर आवेदन दिये देरी माफ करने का कोई अधिकार इस आयोग में निहित नहीं है। धारा 24 (ए) की व्यवस्था स्वयं में स्पष्ट है। देरी माफी का आवेदन केवल उस मंच पर प्रस्तुत किया जा सकता है जिस मंच के सामने उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। अपीलार्थी की ओर से जो नजीर प्रस्तुत की गयी है, उस नजीर में उपभोक्ता परिवाद माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, इसलिए माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा ही देरी माफ की गयी है। जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष देरी माफ करने का कोई अनुरोध नहीं किया गया, इसलिए भी यह नजीर प्रस्तुत केस के लिए सुसंगत नहीं है, अपितु स्पष्ट रूप से व्यवस्था करती है कि परिवाद प्रस्तुत करने में देरी उस मंच द्वारा माफ की जा सकती है, जिस मंच के समक्ष उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया जा रहा है और देरी माफ करने के पर्याप्त कारण दर्शित किये गये हों। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2