(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2621/2007
Dr. P.C. Gupta Son of Late Sri Sriram Gupta
Versus
Oriental Insurance Company Limited
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री राजेश चड्ढा, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री वासुदेव मिश्रा, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :06.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-597/2003, डा0 पी0सी0 गुप्ता बनाम दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कंपनी लि0 में विद्वान जिला आयोग, बुलन्दशहर द्वारा पारित बहुमत का निर्णय/आदेश दिनांक 22.07.2006/16.10.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज किया है कि परिवादी द्वारा ह्रदय रोग की सूचना बीमा कम्पनी को नहीं दी गयी, इसलिए सूचना छिपाने के आधार पर बीमा क्लेम देय नहीं है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने स्वयं 1989 से नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी से लगातार मैडीक्लेम पॉलिसी प्राप्त की है। मार्च 2000 में अंकन तीन लाख रूपये की मैडीक्लेम पॉलिसी प्राप्त की थी, जिसका नवीनीकरण 2002/2003 के लिए कराया गया था। सभी सूचना स्पष्ट रूप से अंकित की गयी थी। दिनांक 08.06.2001 को अचानक छाती में दर्द होने के कारण इन्द्रप्रस्थ अस्पताल में भर्ती हुआ और वहां पर अपना इलाज कराया गया, जहां से दिनांक 11.06.2001 को डिस्चार्ज किया गया। इलाज के लिए जाने से पूर्व बीमा कम्पनी को सूचना दिनांक 08.06.2001 को दी गयी थी। डिस्चार्ज के समय अस्पताल द्वारा एक समरी तैयार की गयी थी। दिनांक 08.06.2001 से 02.02.2002 तक का इलाज पर जो खर्च हुआ, उसका मूल्य 1,80,672/-रू0 87 पै0 है। इस राशि को क्लेम किया गया, परंतु बीमा कम्पनी द्वारा नकार दिया गया, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. बीमा कम्पनी का कथन है कि परिवादी पूर्व से बीमार था और इस तथ्य को छिपाया गया और बीमा पॉलिसी प्राप्त की गयी, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है। इसी तर्क को जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा स्वीकार किया गया।
5. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है। यथार्थ में पॉलिसी प्राप्त करने से पूर्व किसी प्रकार की बीमारी होने का कोई सबूत मौजूद नहीं था। परिवादी द्वारा कभी भी प्रश्नगत इलाज के अलावा किसी अन्य बीमारी का इलाज नहीं कराया गया। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष विधि-विरूद्ध है, जबकि बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गयी है कि परिवादी ने पूर्व से मौजूद बीमारी के तथ्य को छिपाते हुए बीमा पॉलिसी प्राप्त की है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
6. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत किये गये अभिवचनों, जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय तथा मौखिक बहस को सुनने के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए एकमात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमाधारक द्वारा बीमा पॉलिसी प्राप्त करते समय पूर्व से मौजूद बीमारी के तथ्य को छिपाया गया है, यदि हां तो प्रभाव?
7. इस बिन्दु पर जिला उपभोक्ता आयोग ने अपोलो हॉस्पिटल के डिस्चार्ज समरी को विचार में लिया है, परंतु डिस्चार्ज समरी में कहीं पर भी यह उल्लेख नहीं है कि बीमा पॉलिसी प्राप्त करने से पूर्व बीमाधारक द्वारा किसी बीमारी का इलाज कराया गया हो, जब तक बीमाधारक द्वारा किसी बीमारी का इलाज कराया जाना जाहिर न हो तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि बीमाधारक द्वारा किसी भी बीमारी के तथ्य को छिपाया गया है क्योंकि बीमा पॉलिसी प्राप्त करते समय किसी व्यक्ति के शरीर में क्या बीमारी मौजूद है, इसका ज्ञान नहीं हो सकता, जब तक इलाज न कराया गया हो। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि-विरूद्ध है। यह विनिश्चायक बिन्दु तदनुसार अपीलार्थी के पक्ष में तय किया जाता है।
8. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि अपीलार्थी मैडीक्लेम की क्षतिपूर्ति के रूप में किस राशि को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है? परिवादी द्वारा सशपथ साबित किया गया है कि इलाज के दौरान अंकन 1,80,672/-रू0 87 पैसे खर्च हुआ। बीमा कम्पनी की ओर से इस राशि के खर्च से इंकार नहीं किया गया है। अत: परिवादी इस राशि को मैडीक्लेम पॉलिसी के अंतर्गत परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज के साथ प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा बहुमत के संबंध में पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी, अपीलार्थी/परिवादी को अंकन 1,80,672/-रू0 87 पैसे अदा करे तथा इस राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी अदा करे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2