(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-70/2008
मै0 हीरामनी ज्वैलर्स प्रा0लि0 तथा अन्य बनाम दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 तथा अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक: 28.10.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, विपक्षी बीमा कंपनी के विरूद्ध अंकन 50,55,035/-रू0 की क्षतिपूर्ति के लिए तथा इस राशि पर 18 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
2. दौरान परिवाद, परिवादी सं0-2 की मृत्यु हो गई, उनके उत्तराधिकारियों को प्रतिस्थापित किया गया।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी एक लिमिटेड कंपनी है, जो सोने एवं चांदी के गहनों का होलसेल का व्यापार करती है। इस शोरूम का बीमा दिनांक 12/13 मई 2002 तक वैध था। दिनांक 12/13 मई 2002 की रात्रि में ही शोरूम में चोरी हुई, जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई गई। कुल 50,55,035/-रू0 का सामान चोरी हुआ। बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया। बीमा कंपनी द्वारा सर्वेयर नियुक्त किया गया, परन्तु बीमा क्लेम अदा नहीं किया गया, जबकि विवेचना के पश्चात प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में ए.सी.जे.एम. के न्यायालय द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि चोरी की घटना घटित हुई है, इस आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत रिवीजन निरस्त कर दिया गया और दिनांक 31.10.2002 के आदेश की पुष्टि की गई। अत: बीमा क्लेम देय है।
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4. इस परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया तथा बीमा पालिसी की प्रति, प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति, अंतिम रिपोर्ट की प्रति, न्यायालय के आदेशों के प्रति प्रस्तुत की गई।
5. बीमा कंपनी का कथन है कि यथार्थ में चोरी की घटना घटित नहीं हुई है। चोरी की घटना की फर्जी कहानी तैयार की गई है, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
6. लिखित कथन में वर्णित तथ्यों की पुष्टि शपथ पत्र द्वारा की गई है।
7. परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री आर.के. मिश्रा तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का अवलोकन किया गया।
8. परिवाद के तथ्यों के अनुसार बीमा पालिसी की अंतिम तिथि दिनांक 12/13 मई 2002 है और इसी रात्रि में चोरी की घटना होना कहा गया है, इसलिए अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। दस्तावेज सं0-6 पर अंतिम रिपोर्ट की प्रति मौजूद है, जिसमें चोरी न होने का स्पष्ट उल्लेख है। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सिविल याचिका संख्या-4725/2004, दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम उ0प्र0 राज्य में यह आदेश पारित किया गया कि चोरी न होने के तथ्य को बीमा कंपनी द्वारा क्षतिपूर्ति का निर्धारण करने वाले फोरम के समक्ष उठाया जा सकता है। अत: इस आदेश से स्पष्ट है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के इस निष्कर्ष के बावजूद चोरी की घटना हुई है, इस बिन्दु को इस पीठ के समक्ष उठाया जा सकता है। सी.जे.एम. के आदेश मात्र से चोरी की घटना स्थापित नहीं है। फिर यह भी कि सी.जे.एम. के न्यायालय द्वारा अंतिम रिपोर्ट प्राप्त होने पर निम्न तीन कार्यवाही की जा सकती हैं :-
'' 1. अंतिम रिपोर्ट स्वीकार की जा सकती है।
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2. अंतिम रिपोर्ट को खारिज किया जा सकता है एवं पुन: विवेचना का आदेश दिया जा सकता है।
3. अंतिम रिपोर्ट को निरस्त करते हुए संज्ञान लिया जा सकता है। ''
9. अत्यधिक आश्चर्य का विषय है कि संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा अंतिम रिपोर्ट निरस्त करते हुए कोई संज्ञान नहीं लिया गया और अपराधियों को विवेचना हेतु तलब नहीं किया गया, इसलिए यह निष्कर्ष देने का कोई अवसर नहीं था कि चोरी की घटना हुई है, क्योंकि चोरी के संबंध में साक्ष्य I.O. द्वारा तैयार की गई है न कि मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा और मजिस्ट्रेट के न्यायालय ने अपने आदेश में इस कथन का उल्लेख नहीं किया है कि विवेचना के दौरान एकत्र की गई साक्ष्य में अभियुक्तों के नाम मौजूद है तथा उनके विरूद्ध संज्ञान लिया जा सकता है, इसलिए अंतिम रिपोर्ट खारिज करते हुए केवल यह लिख देना कि चोरी की घटना हुई है, इस पीठ द्वारा क्षतिपूर्ति निर्धारित करने के लिए चोरी की घटना को स्थापित नहीं माना जा सकता।
10. परिवाद पत्र में परिवादी ने चोरी की घटना के किसी तरीके का कोई उल्लेख नहीं किया है। यहां तक अंकित नहीं किया है कि चोरी की घटना होने के पश्चात प्रथम बार परिसर को किसके द्वारा देखा गया, उस समय मौके पर क्या स्थिति मौजूद थी। यह भी उल्लेख नहीं किया गया कि ताला तोड़ा गया या सटर उखाड़ा गया या दीवार एवं छत तोड़कर चोरों ने प्रवेश किया। अत्यधिक सरसरी तौर पर लिख दिया गया कि दिनांक 12/13 मई 2002 की रात्रि में चोरी हो गई। चोरी का विवरण प्रस्तुत करना अत्यधिक आवश्यक है, इसलिए स्वंय परिवाद में वर्णित तथ्य चोरी की घटना की फर्जी कहानी की ओर इशारा करती है। विवेचनाधिकारी द्वारा ऐसा ही निष्कर्ष दिया गया, सर्वेयर द्वारा भी इसी आशय का निष्कर्ष दिया गया है।
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11. विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता की ओर से नजीर, Cross Trade Links Vs Oriental Insurance Co.Ltd III (2017) CPJ 121 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि यदि बलपूर्वक प्रवेश साबित नहीं है तब बीमा पालिसी के अंतर्गत बीमा क्लेम देय नहीं है। प्रस्तुत केस में परिवादी ने प्रवेश का कोई तरीका ही नहीं बताया, इसलिए बलपूर्वक प्रवेश साबित होने का प्रश्न ही नहीं उठता। तदनुसार बीमा कंपनी का बीमा क्लेम नकारने का निष्कर्ष विधिसम्मत है। प्रस्तुत परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
12. प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2