राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1723/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम द्वितीय, आगरा द्वारा परिवाद सं0- 422/2014 में पारित आदेश दि0 23.07.2015 के विरूद्ध)
Shriram General Insurance company limited, E-8, EPIP, RIICO Industrial area, Sitapura, Jaipur (Rajasthan) -302022 Branch Office 16, Chintal house, Station road, Lucknow through its Manager.
……….Appellant
Versus
Naveen gupta S/o Shiv Shankar gupta, Resident of Mohalla- Gopalpura, Shamshabad, District- Agra.
………..Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 22.12.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 422/2014 नवीन गुप्ता बनाम ब्रांच मैनेजर श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी व दो अन्य में जिला फोरम द्वितीय, आगरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 23.07.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि 3,24,000/-रू0 (तीन लाख चौबीस हजार रू0) मय 07 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज दि0 02.09.2011 से वास्तविक अदायगी तक परिवादी को एक माह के अन्दर अदा करे। इसके अलावा मानसिक, कष्ट वेदना एवं वाद व्यय के रूप में 4000/-रू0 (चार हजार रू0) परिवादी को विपक्षीगण एक माह के अन्दर अदा करें”।
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार और प्रत्यर्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी उपस्थित आये हैं।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि महिन्द्रा स्कार्पियो वाहन जिसका पंजीयन सं0- एच0आर0 55 ई 4290 है का वह पंजीकृत स्वामी है और उसका यह वाहन अपीलार्थी/बीमा कम्पनी श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 से बीमाकृत था। उसने 15,439/-रू0 अदा कर बीमा कराया था और बीमा अवधि में ही उसका यह वाहन दि0 01.08.2011 को चोरी हो गया। चोरी की तुरंत सूचना उसने स्थानीय थाना मंटोला और विपक्षी सं0- 1 ब्रांच मैनेजर श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 को दिया। उसकी रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने दि0 06.08.2011 को चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट अपराध सं0- 95/2011 पर दर्ज किया और उसने अपना बीमा दावा विपक्षीगण के कार्यालय में प्रस्तुत किया, परन्तु विपक्षी सं0- 3 के पत्र दि0 02.09.2011 के द्वारा उसे सूचित किया गया कि उसका बीमा दावा खारिज कर दिया गया है। उसने चोरी की सूचना देर से दी है अत: क्षुब्ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने बीमा कम्पनी को चोरी की सूचना 26 दिन विलम्ब से दिये जाने के कारण क्लेम सही आधार पर खारिज किया गया है। परिवादी ने बीमा शर्त का उल्लंघन किया है। विपक्षी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा खारिज कर सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार किया है और यह उल्लेख किया है कि जो बीमा पालिसी अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी को उपलब्ध करायी है उसमें बीमा पालिसी की शर्त सं0- 1 अंकित नहीं है। जिला फोरम ने यह भी उल्लेख किया है कि जब तक बीमा शर्त के सम्बन्ध में उपभोक्ता को अवगत नहीं कराया जाता तब तक वह शर्त बीमाकृत पर बाध्यकारी नहीं हो सकती। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्लेख किया है कि पुलिस को विलम्ब से रिपोर्ट करने या बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचित किये जाने का मामूली महत्व है। यह शर्त निर्देशीय प्रकृति की है आज्ञापक प्रकृति की नहीं है।
उपरोक्त उल्लेख व निष्कर्ष के आधार पर जिला फोरम ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2013(4) सी0पी0आर0 803 एस0सी0 नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम नितिन खण्डेलवाल के वाद में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर स्वीकार किये जाने योग्य है। अत: जिला फोरम ने बीमित धनराशि से 20 प्रतिशत की कटौती कर 80 प्रतिशत बीमित धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जाना उचित माना है और तदनुसार आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरुद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने चोरी की घटना की सूचना पुलिस और अपीलार्थी/बीमा कम्पनी दोनों को विलम्ब से दिया है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा निरस्त किये जाने हेतु उचित आधार है और ऐसा कर अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने सेवा में त्रुटि नहीं की है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश विधि विरुद्ध है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने चोरी की सूचना पुलिस और बीमा कम्पनी को तुरंत दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा अस्वीकार करने हेतु कोई उचित आधार नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
जिला फोरम ने अपने निर्णय और आदेश में यह उल्लेख किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी/विपक्षी ने जो पालिसी जारी की है उसमें पुलिस और बीमा कम्पनी को तुरंत सूचना दिये जाने की शर्त अंकित नहीं है और अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने यह दर्शित नहीं किया है कि बीमा पालिसी जारी करते समय अथवा बीमा प्रस्ताव के समय प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई दुर्घटना होने पर बीमा कम्पनी व पुलिस को अवगत कराये जाने हेतु सूचित किया गया था। अत: जिला फोरम ने तुरंत बीमा कम्पनी और पुलिस को सूचना न दिये जाने के आधार पर दावा पूर्ण रूप से निरस्त किया जाना जो उचित नहीं माना है उसे अनुचित और अवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। चोरी की घटना दि0 01.08.2011 की है। प्रत्यर्थी/परिवादी के अनुसार उसने तुरंत थाने में सूचना दिया, परन्तु पुलिस ने दि0 06.08.2011 को उसकी रिपोर्ट दर्ज की। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि थाने में प्रश्नगत वाहन की चोरी की रिपोर्ट घटना के पांच दिन बाद दर्ज की गई है। पुलिस ने वाद विवेचना प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना को फर्जी व बनावटी नहीं बताया है। अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने भी प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित वाहन की चोरी की घटना को फर्जी व बनावटी नहीं बताया है।
उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी प्रश्नगत वाहन का पंजीकृत स्वामी है और उसका वाहन अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमित था तथा बीमा अवधि में ही उसका वाहन चोरी हुआ है जिसकी रिपोर्ट प्रत्यर्थी/परिवादी ने थाने में दर्ज करायी है और पुलिस द्वारा विवेचना की गई है, परन्तु पुलिस द्वारा विवेचना में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित चोरी की घटना को फर्जी पाया जाना अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने दर्शित नहीं किया है और न ही बीमा कम्पनी की ओर से चोरी की घटना को फर्जी कहा गया है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0- 15611/2017 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य के वाद में तुरंत बीमा कम्पनी को सूचना दिये जाने की शर्त पर विचार करते हुए निम्न मत व्यक्त किया गया है:-
It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid grounds. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason for delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.
सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों एवं मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त वाद में प्रतिपादित सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूँ कि थाने में पुलिस रिपोर्ट दर्ज होने में जो पांच दिन का विलम्ब हुआ है उसका उचित कारण दर्शित किया गया है और पुलिस अथवा बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना दिये जाने के आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त किया जाना उचित नहीं है, फिर भी जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर बीमित धनराशि से 20 प्रतिशत की कटौती कर बीमित धनराशि दिलायी है, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम के निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं प्रस्तुत की है और जिला फोरम के निर्णय को चुनौती नहीं दी है।
अत: उपरोक्त विवेचना एवं सम्पूर्ण तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों तथा मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने जो नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर बीमित धनराशि से 20 प्रतिशत कटौती कर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा स्वीकार किया है उसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। जिला फोरम ने 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया है, जिसे उभयपक्ष कम कर 06 प्रतिशत किये जाने पर सहमत हैं। जिला फोरम ने जो 4,000/-रू0 मानसिक कष्ट व वाद व्यय के रूप में दिया है उसे भी अपास्त किये जाने हेतु उचित आधार है, क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादी को ब्याज दिया जा रहा है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश आंशिक रूप से संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह 3,24,000/-रू0 दि0 02.09.2011 से 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित जिला फोरम के निर्णय और आदेश के अनुसार अदा करे। जिला फोरम ने जो मानसिक कष्ट वेदना एवं वाद व्यय के रूप से 4,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान किया है उसे अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में अपीलार्थी द्वारा धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि 25,000/-रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारित करने हेतु प्रेषित की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0, कोर्ट नं0-1