Final Order / Judgement | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षी से उसे एफ0डी0आर0आई0 का स्वत: रिन्यूवल न करके पहुँचाऐ गऐ नुकसान की धनराशि 40,000/- रूपया दिलाई जाय। क्षतिपूर्ति की मद में 50,000/- रूपया और परिवाद व्यय की मद में 11,000/-रूपया परिवादिनी ने अतिरिक्त मांगे हैं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 02/1/2010 को परिवादिनी ने विपक्षी से 2,50,000/- रूपया की एक एफ0डी0आर0आई0 बनवाई थी, ब्याज की दर 9.25 प्रतिशत वार्षिक थी। परिवादिनी को विपक्षी ने बताया था कि नियत तिथि के बाद यह एफ0डी0आर0आई0 स्वत: नवीनीकृत हो जाऐगी और इस पर प्रचलित दर से ब्याज दिया जायेगा। दिनांक 02/1/2013 को यह एफ0डी0आर0आई0 मैच्योर हो गई। परिवादिनी इस विश्वास में रही कि इसका स्वत: रिन्यूवल हो गया होगा। दिनांक 02/1/2013 को परिवादिनी विपक्षी बैंक में गई। जानकारी करने पर बैंक ने उसे बताया कि उसकी एफ0डी0आर0आई0 का नवीनीकरण नहीं हुआ जिसके लिए बैंक को खेद है। परिवादिनी के अनुसार बैंक द्वारा परिपक्वता की तिथि 02/1/2013 से उसकी एफ0डी0आर0आई0 का स्वत: नवीनीकरण न करके सेवा में कमी की है। विपक्षी बैंक ने एफ0डी0आर0आई0 मैच्योरिटी पर अर्थात् दिनांक 02/1/2013 को परिपक्वता राशि परिवादिनी के बचत खाते में डाल दी और दिनांक 02/1/2013 के बाद बचत खाते का ब्याज दिया। परिवादिनी ने विपक्षी को नोटिस दिलवाया जिसका विपक्षी की ओर से उत्तर दिनांकित 9/8/2014 परिवादिनी को प्राप्त हुआ जिसमें बैंक ने यह स्वीकार किया कि एफ0डी0आर0आई0 स्वत: नवीनीकृत नहीं की गई थी और परिपक्वता की तिथि के बाद इस पर बचत खाते का ब्याज दिया गया। परिवादिनी के अनुसार फार्म भरते समय उसे बताया गया था कि धनराशि आटो रिन्यूवल होती रहेगी, किन्तु विपक्षी ने ऐसा नहीं किया। उसने विपक्षी से परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवादिनी ने परिवाद के समर्थन में अपना शपथ पत्र कागज सं0-3/5 दाखिल किया जिसके साथ उसने परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित एफ0डी0आर0आई0, विपक्षी को भिजवाऐ गऐ कानूनी नोटिस, इसे भेजने की डाकखाने की रसीद तथा विपक्षी की ओर से प्राप्त जबाव नोटिस की फोटो प्रतियों को दाखिल किया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/6 लगायत 3/8 हैं।
- विपक्षी की ओर से बैंक के शाखा प्रबन्धक के शपथ पत्र से समर्थित प्रतिवाद पत्र कागज सं0-6/1 लगायत 6/4 दाखिल हुआ जिसमें यह तो स्वीकार किया गया कि दिनांक 02/1/2010 को विपक्षी द्वारा 2,50,000/- रूपये की एफ0डी0आर0आई0 35 माह की अवधि हेतु बनवाई गई थी जिसकी परिपक्वता तिथि 02/1/2013 थी, किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया। अतिरिक्त कथनों में कहा गया कि परिवादिनी को परिवाद दायर करने का कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं हुआ। प्रश्नगत एफ0डी0आर0आई0 परिवादिनी और उसके पति वीरेन्द्र कुमार सारस्वत के संयुक्त नाम से बनवाई गई थी जबकि परिवाद केवल परिवादिनी द्वारा अकेले दायर किया गया है, परिवाद में वीरेन्द्र कुमार सारस्वत आवश्यक पक्षकार है, उन्हें पक्षकार न बनाऐ जाने के कारण परिवाद में आवश्यक पक्षकार के असंयोजन का दोष है। अग्रेत्तर कथन किया गया कि एफ0डी0आर0आई0 की परिपक्वता तिथि 02/1/2013 को परिपक्वता राशि परिवादिनी के बचत खाते में डाल दी गई। परिवादिनी का यह कथन असत्य है कि परिपक्वता की तारीख अर्थात् 02/1/2013 को वह बैंक आई थी और उसने एफ0डी0आर0आई0 के स्टेट्स के बारे में कोई पूछताछ की थी बल्कि सही बात यह है कि वह दिनांक 19/6/2014 को बैंक आई और उसने पूरी राशि की एफ0डी0आर0आई0 बनाने का अनुरोध किया जिस पर दिनांक 02/1/2013 से 18/6/2014 तक की अवधि का बचत खाते पर देय ब्याज जोड़ते हुऐ 3,48,128/-रूपये की एक वर्ष के लिए एफ0डी0आर0आई0 दिनांक 19/6/2014 को बना दी गई इस पर परिवादिनी ने कोई आपत्ति नहीं की। यह भी कहा गया कि परिवादिनी की ओर से प्राप्त कानूनी नोटिस का सही जबाव परिवादिनी को भेज दिया गया था। इन कथनों के अतिरिक्त यह कहते हुऐ कि को-आपरेटिव एक्ट के प्रावधानों के अनुसार फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- परिवादिनी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-13/1 लगायत 13/4 दाखिल किया जिसके साथ उसने परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित एफ0डी0आर0आई0 बनवाने हेतु भरे गऐ फार्म तथा विपक्षी की ओर से प्राप्त जबाब नोटिस की फोटो प्रतियों को बतौर संलग्नक दाखिल किया, यह संलग्नक पत्रावली के कागज सं0-13/5 व 13/6 हैं। परिवादिनी के समर्थन में उसके पिता श्री जय किशन दुबे ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-14/1 लगायत 14/3 दाखिल किया जिसके साथ उसने अपनी 3 एफ0डी0आर0 की फोटो प्रतियों को बतौर संलग्नक दाखिल किया, यह संलग्नक पत्रावली के कागज सं0-14/4 लगायत 14/6 हैं।
- विपक्षी की ओर से विपक्षी बैंक के शाखा प्रबन्धक श्री जगदीश प्रसाद ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-16/1 लगायत 16/9 दाखिल किया।
- फोरम के आदेशों के अनुपालन में विपक्षी बैंक ने परिवादिनी द्वारा परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित एफ0डी0आर0आई0 बनवाने हेतु भरे गऐ फार्म की फोटो प्रति कागज सं0-11/2 दाखिल की।
- परिवादिनी और विपक्षी ने अपनी-अपनी लिखित बहस दाखिल की।
- हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि दिनांक 02/1/2010 को परिवादिनी के अनुरोध पर 2,50,000/-रूपये की एफ0डी0आर0आई0 परिवादिनी और उसके पति श्री वीरेन्द्र कुमार सारस्वत के नाम संयुक्त रूप से 36 माह की अवधि हेतु 9.25 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से विपक्षी बैंक द्वारा बनाई गई थी। विपक्षी बैंक में परिवादिनी का एक बचत खाता भी है एफ0डी0आर0आई0आई0 की परिपक्वता तिथि दिनांक 02/1/2013 थी। यह भी विवादित नहीं है कि दिनांक 02/1/2013 को एफ0डी0आर0आई0 के मैच्योर होने पर उसकी परिपक्वता राशि विपक्षी बैंक ने परिवादिनी के खाते में जमा कर दी जो दिनांक 19/6/2014 तक बचत खाते में ही जमा रही। दिनांक 19/6/2014 को परिवादिनी के नाम पुन: एक एफ0डी0आर0आई0 एक वर्ष की अवधि के लिए बनाई गई जिसकी परिपक्वता तिथि 18/6/2015 थी।
- परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि दिनांक 02/1/2010 को एफ0डी0आर0आई0 बनवाते समय उसे एफ0डी0आर0आई0 के आटो रिन्यूवल की सुविधा विपक्षी ने दी थी इसके बावजूद दिनांक 02/1/2013 को एफ0डी0आर0आई0 मैच्योर होने पर विपक्षी ने एफ0डी0आर0आई0 को अग्रेत्तर अवधि के लिए आटो रिन्यूवल नहीं किया बल्कि परिपक्वता राशि परिवादिनी के बचत खाते में डाल दी और इस प्रकार परिवादिनी को एफ0डी0आर0आई0 पर देय और बचत खाते पर मिलने वाले ब्याज के अन्तर का नुकसान हुआ जिसकी जिम्मेदारी विपक्षी की है। एफ0डी0आर0आई0 के आवेदन हेतु परिवादिनी द्वारा भरे गऐ फार्म की नकल कागज सं0-11/2 के इंगित अंश ‘’ ए ’’ की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ यह भी कहा गया कि फार्म भरते समय परिवादिनी ने ‘’ सावधि पुर्न निवेश ’’ के कालम का आप्शन चुना था। ऐसी दशा में एफ0डी0आर0आई0 आटो रिन्यूवल द्वारा न किया जाना सेवा में कमी है।
- विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रत्युत्तर में तर्क दिया कि परिवादिनी का यह कथन असत्य है कि एफ0डी0आर0आई0 के फार्म कागज सं0-11/2 भरते समय उसने एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण का आप्शन भरा था। उन्होंने फार्म 11/2 के इंगित अंश ‘’ बी ‘’ की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया और कहा कि परिवादिनी एफ0डी0आर0आई0 पुर्न नवीनीकरण का कालम भरा ही नहीं था। इस प्रकार विपक्षी को एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण के निर्देश नहीं थे अत: एफ0डी0आर0आई0 का पुर्न नवीनीकरण न करके विपक्षी ने न तो सेवा में कमी की और न ही कोई त्रुटि की। उन्होंने फार्म के इंगित अंश ‘’ ए ‘’ पर उल्लिखित ‘’ सावधि पुर्न निवेश जमा खाता ‘’ के सन्दर्भ में कहा कि यह खाते का एक प्रकार है इसका तात्पर्य कदापि एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण से नहीं लगाया जा सकता। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह भी कहा गया कि उ0प्र0 को-आपरेटिव सोसाईटी एक्ट, 1965 की धारा-70 की व्यवस्थानुसार मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार फोरम को नहीं है। उन्होंने परिवाद में आवश्यक पक्षकार के असंयोजन का भी दोष बताया और कहा कि एफ0डी0आर0आई0 परिवादिनी और उसके पति के संयुक्त नाम से बनी थी जबकि परिवाद में परिवादिनी ने अपने पति को पक्षकार नहीं बनाया है।
- दोनों पक्षों की ओर से प्रस्तुत तर्कों और पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री और अभिलेखों के अवलोकन से हम विपक्षी की ओर से दिऐ गऐ तर्कों में बल पाते हैं।
- परिवादिनी और उसके पति ने परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित एफ0डी0आर0आई0 बनवाने हेतु जो फार्म भरा था, उसकी नकल पत्रावली का कागज सं0-11/2 है। यह नकल फोरम के आदेश पर विपक्षी ने दाखिल की है। इस फार्म के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादिनी और उसके पति ने 36 माह की अवधि के लिए एफ0डी0आर0आई0 बनाने को विपक्षी से अनुरोध किया था, किन्तु एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण का खाना उन्होंने ब्लैंक रखा जैसा कि फार्म के इंगित अंश ‘’ बी ‘’ के अवलोकन से प्रकट है। इस तरह जब बैंक को एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण के निर्देश ही नहीं थे तो बैंक परिपक्व होने पर एफ0डी0आर0आई0 को स्व स्तर से पुर्न नवीनीकृत करने हेतु बाध्य नहीं था। फार्म में इंगित अंश ‘’ ए ’’ का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि परिवादिनी और उसके पति ने बैंक को एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण हेतु निर्देशित कर रखा था।
- एफ0डी0आर0आई0 दिनांक 02/1/2013 को मैच्योर हुई। परिवादिनी ने अपने साक्ष्य शपथ पत्र के पैरा सं0-6 में यह कहा है कि परिपक्वता की तिथि अर्थात् 02/1/2013 को एफ0डी0आर0आई0 का स्टेट्स जानने के लिए वह बैंक आई थी जहॉं उसे पता चला कि उसकी एफ0डी0आर0आई0 का बैंक ने पुर्न नवीनीकरण नहीं किया है। यधपि विपक्षी की ओर से इस बात से इन्कार किया गया है कि दिनांक 02/1/2013 को परिवादिनी बैंक आई थी, किन्तु यदि परिवादिनी का यह कथन सही मान भी लिया जाय कि दिनांक 02/1/2013 को वह बैंक में आई थी और उसे पता चल गया था कि बैंक ने एफ0डी0आर0आई0 को पुर्न नवीनीकृत नहीं किया है तो उसी दिन वह उसका पुर्न नवीनीकरण करा सकती थी, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। इसके विपरीत लगभग डेढ़ वर्ष बाद दिनांक 19/6/2014 को बैंक जाकर उसने एक वर्ष के लिए एफ0डी0आर0आई0 पुन: बनवाई। परिवादिनी के उक्त आचरण से प्रकट है कि विपक्षी पर एफ0डी0आर0आई0 के पुर्न नवीनीकरण न करने सम्बन्धी जो आरोप वह लगा रही है वे आधारहीन एवं मिथ्या हैं।
- परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादिनी के पिता श्री जगदीश प्रसाद के शपथ पत्र को इंगित करते हुऐ तर्क दिया कि श्री जगदीश प्रसाद के शपथ पत्र में उल्लिखित सभी एफ0डी0आर0 परिपक्वता तिथि निकलने के बाद भी विपक्षी बैंक ने परिपक्वता तिथि से ही पुर्न नवीनकृत की थीं जबकि परिवादिनी के मामले में विपक्षी ने ऐसा नहीं किया। परिवादिनी पक्ष के अनुसार विपक्षी के उक्त कृत्य विभेदकारी हैं। हम परिवादिनी की ओर से दिऐ गऐ इन तर्को से भी सहमत नहीं है। श्री जगदीश प्रसाद ने अपने शपथ पत्र में जिन एफ0डी0आर0 का उल्लेख किया है वे सभी वर्ष 2014 में परिपक्व हुई थीं। विपक्षी की ओर से साक्ष्य शपथ पत्र के पैरा सं0-18 में यह स्पष्ट कथन किया गया है कि विपक्षी बैंक में एफ0डी0आर0 के आटो रिन्यूबल का प्राविधान दिनांक 16/12/2013 से लागू हुआ, इससे पहले बैंक में आटो रिन्यूबल की सुविधा नहीं थी। परिवादिनी की एफ0डी0आर0आई0 आटो रिनयूवल की सुविधा बैंक में लागू होने से पहले परिपक्व हुई थी जबकि परिवादिनी के पिता की एफ0डी0आर0आई0 बैंक में आटो रिन्यूवल की सुविधा लागू होने के बाद मैच्योर हुई ऐसी दशा में परिवादिनी की एफ0डी0आर0आई0 को आटो रिन्यूवल न करके और उसके पिता की एफ0डी0आर0आई0 परिपक्वता की तिथि से रिन्यूवल करके विपक्षी बैंक ने कोई गलत काम नहीं किया और न ही कोई विभेदकारी व्यवहार किया।
- परिवाद के पैरा सं0-1 में उल्लिखित एफ0डी0आर0आई0 परिवादिनी और उसके पति के संयुक्त नाम से थी। परिवादिनी ने अपने पति को परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया है। इस प्रकार परिवाद आवश्यक पक्षकार के असंयोजन से दूषित है।
- वीरेन्द्र जैन बनाम अल्कनन्दा को-आपरेटिव हासिंग सोसाईटी, 2013 (9) एस0सी0सी0 पृष्ठ-383 की निर्णयज विधि में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्थानुसार उ0प्र0 को-आपरेटिव सोईटीज एक्ट में धारा-70 के प्राविधान के वि|मान होने के बावजूद फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवाद खारिज किया जाता है। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
23.07.2016 23.07.2016 23.07.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 23.07.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
23.07.2016 23.07.2016 23.07.2016 | |