जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
उम्मेदमल जैन पुत्र श्री पन्नालाल जी सिंघी,आयु - 80 वर्ष, निवासी- ढढ्ड़ा हवेली, कडक्का चैक, अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
भारत संघ जरिए मण्डल रेल प्रबन्धक, उत्तर पष्चिम रेल्वे, जयपुर ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 18/2015
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री उम्मेदमल जैन, प्रार्थी स्वयं
2.श्री विभौर गौड़,अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 21.09.2016
1. प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसने गाडी़ संख्या 12992 जयपुर -उदयपुर सुपरफास्ट से दिनंाक 14.10.2014 को जरिए टिकिट संख्या 44911922 के जयपुर से अजमेर की कोच संख्या डी-2 में यात्रा की । यात्रा के दौरान उसने पाया कि कोच के दोनांे ओर के षौचालयों में पानी नहीं है । अजमेर स्टेषन पर पहुंच कर उसने षिकायत संख्या 11180 दर्ज करवाई और पानी नही ंहोने की रेल्वे स्टेषन पर घोषणा भी करवाई ताकि कोच में पानी भरा जा सके और अजमेर से आगे की यात्रा करने वाले यात्रियों को कोई परेषानी न हो । प्रार्थी ने अप्रार्थी रेल्वे के विरूद्व पूर्व में भी षिकायतें मंच में प्रस्तुत की हंै । जिसमें रेल्वे के विरूद्व आदेष मंच द्वारा पारित किए गए हंै । प्रार्थी ने अप्रार्थी के इस कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना करते हुए परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी रेल्वे ने जवाब प्रस्तुत करते हुए प्रारम्भिक आपत्तियों में दर्षाया है कि परिवाद का वादकरण मंच के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न नहीं हुआ है और ना ही अप्रार्थी मंच के क्षेत्राधिकार में अवस्थित है । प्रार्थी ने अपने परिवाद में जिस कोच नम्बर का हवाला दिया है इस नम्बर का कोच प्रष्नगत गाड़ी में लगा ही नहीं था और प्रार्थी ने अनारक्षित टिकिट होते हुए आरक्षित कोच में यात्रा की है जो कानूनन वर्जित है । प्रार्थी ने अपने परिवाद में यह अंकित नहीं किया है कि उसने कोच की किस सीट संख्या पर बैठ कर यात्रा की । अतः प्रारम्भिक स्तर पर ही प्रार्थी का परिवाद निरस्त होने योग्य है । अपने पैरावाईज जवाब में इन्हीं तथ्यों को दोहराते हुए कथन किया है कि जयपुर से गाडी़ रवाना होने से पूर्व सभी कोचों में पानी भरा गया था । प्रार्थी ने गाड़ी रवानगी के समय अथवा यात्रा के दौरान मौके पर कोई षिकायत ट्रेन गार्ड अथवा कोच कंण्डक्टर को दर्ज नहीं करवाई और अजमेर स्टेषन पर पहुंच. कर प्रष्नगत षिकायत दर्ज करवाई है । प्रार्थी ने अप्रार्थी को हैरान परेषान करने के उद्देष्य से अनुचित लाभ प्राप्त करने की नियत से आधारहीन तथ्यों पर यह परिवाद पेष किया है । अपने अतिरिक्त कथन में दर्षाया है कि परिवाद के न्यायपूर्ण निस्तारण के लिए गहन साक्ष्य की आवष्यकता होने के कारण प्रकरण सुनने का क्षेत्राधिकार दीवानी न्यायालय को है । अन्त में परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में श्री विवेक रावत , वरिष्ठ वाणिज्य मण्डल प्रबन्धक, उत्तर पष्चिम रेल्वे, जयपुर का षपथपत्र पेष किया है ।
3. अप्रार्थी की ओर से दिनंाक 13.08.2015 को एक प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा 13(4) टप् उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 सपठित आदेष 19 नियम 2 एवं धारा 151 दण्ड प्रक्रिया संहिता का इस आषस का प्रस्तुत हुआ कि अप्रार्थी की ओर से प्रार्थी के परिवाद का जवाब प्रस्तुत करते हुए कथनों की सत्यता से इन्कार किया गया तथा यह विधिक आपत्ति प्रस्तुत की गई थी कि परिवाद के न्यायपूर्ण निस्तारण के लिए गहन साक्ष्य की आवष्यकता है । क्योंकि षपथपत्र के प्रति षपथपत्र की स्थिति में एवं परिवाद के समर्थन में जो षपथपत्र प्रस्तुत किया है, उसकी वास्तविकता स्पष्ट करने के लिए अप्रार्थी के उक्त षपथपत्र का प्रति परीक्षण किया जाना आवष्यक है । फलतः प्रार्थी को प्रतिपरीक्षा के लिए उपस्थित होने के लिए निर्देष देते हुए अप्रार्थी को प्रतिपरीक्षण की अनुमति दी जाए । इस संबंध में उन्हांेने विनिष्चय प्ट;2013द्धब्च्श्र 265;छब्द्ध ब्मससनसंत व्चमतंजवते ।ेेवबपंजपवद व िप्दकपं - ।दत टे छपअमकपतं ैींतउं - व्तेए प्;2008द्धब्च्श्र 109;छब्द्ध डंजीनतं डंीजव डपेजतल टे ठपदकमेीूंत श्रीं ;क्तण्द्ध - ।दतण् प्रस्तुत किए है । प्रार्थी पक्ष की ओर से इस प्रार्थना पत्र का कोई लिखित में उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया व बहस की गई । उनका तर्क रहा है कि प्रार्थना पत्र मात्र परिवाद को देरीना करने के आषय से प्रस्तुत किया गया है । प्रतिपरीक्षा की कोई आवष्यकता नहीं है । प्रस्तुत विनिष्चय अप्रार्थी को कोई सहायता नहीं पहुचातंे है । प्रार्थना पत्र खारिज किया जाना चाहिए । इसके साथ ही उन्होने मूल परिवाद में अपनी पुरजोर दलीलों में तर्क प्रस्तुत किया है कि उसके द्वारा वैध रूप से यात्रा करने के दौरान कोच में पानी नहीं होने पर इस आषय की अजमेर स्टेषन पर षिकायत दर्ज करवाई गई एवं उद्घोषणाा करवाए जाने के बावजूद उसे हुई असुविधा के लिए अप्रार्थी को सेवा में दोषी करार दिया जाना चाहिए ।
4. अप्रार्थी ने खण्डन में तर्क प्रस्तुत किया कि चूंकि प्रार्थी के षपथपत्र में अंकित तथ्यों के खण्डन में उनकी ओर से विधिक आपत्ति प्रस्तुत की गई है । अतः न्यायपूर्ण निस्तारण के लिए गहन साक्ष्य की आवष्यकता को ध्यान में रखते हुए एवं ष्षपथपत्र के प्रति ष्षपथपत्र की स्थिति के प्रकाष में प्रार्थी से प्रतिपरीक्षा की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए । मूल परिवाद की बहस में उनका प्रमुख रूप से तर्क रहा था कि परिवाद का कारण इस मंच के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न नहीं हुआ है । प्रार्थी ने जिस कोच का उल्लेख किया है उक्त दिवस को इस गाड़ी में इस नम्बर का कोई कोच नहीं था । स्वयं प्रार्थी ने द्वितीय श्रेणी के आरक्षित कोच डी-2 में यात्रा करना अंकित किया है । आरक्षित कोच में बिना आरक्षण यात्रा करना कानूनन वर्जित है । गाड़ंी के जयपुर से रवाना होने के साथ ही जयपुर में समस्त कोचों में पानी भरा गया था । प्रार्थी ने गाडी रवानगी के समय अथवा यात्रा के दौरान मौके पर ट्रेन गार्ड अथवा कोच कण्टक्टर से कोई षिकायत नही ंकी । यात्रा समाप्ति पर अजमेर स्टेषन पर षिकायत दर्ज करवाई गई । षिकायत पष्चात्वर्ती सोच व दुराषय से ग्रसित व मनगढन्त तथा असत्य है । अन्त में उनका प्रमुख रूप से तर्क रहा है कि परिवाद इन्हीं तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए खारिज किए जाने योग्य है ।
5. जहां तक उपरोक्त वर्णित प्रार्थना पत्र के अन्तर्गत प्रार्थी को प्रतिपरीक्षा के लिए निर्देषित किए जाने का प्रष्न है , हस्तगत परिवाद में विवाद एवं तथ्य इस प्रकार के नहीं है कि इनमें गहन साक्ष्य की आवष्यकता हो तथा इस हेतु षपथपत्र पर प्रतिषपथपत्र की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अप्रार्थी को प्रार्थी से प्रतिपरीक्षा का अवसर प्रदान किया जाए । जो विनिष्चय प्रस्तुत हुए हैं, तथ्यों की भिन्नता में ये अप्रार्थी के लिए सहायक नहीं है । उपरोक्त डंजीनतं डंीजव डपेजतल टे ठपदकमेीूंत श्रीं ;क्तण्द्ध - ।दतण् वाले मामले में एक्सपर्ट की राय के संबंध में ष्षपथपत्र का प्रष्न निहित था जबकि ब्मससनसंत व्चमतंजवते ।ेेवबपंजपवद व िप्दकपं - ।दत टे छपअमकपतं ैींतउं - व्तेए वाले मामले में टैलीकाॅम सर्विसेज के संबंध में जटिल विवाद अन्तर्निहित था ।
6. जहां तक क्षेत्राधिकार बाबत् आपत्ति का प्रष्न है, प्रार्थी ने जयपुर से अजमेर की यात्रा की है व इस आषय का रेल्वे टिकिट प्रस्तुत किया है । उसने अपनी यात्रा अजमेर में समाप्त करते हुए पानी नहीं आने बाबत् षिकायत अजमेर रेल्वे स्टष्ेान पर दर्ज करवाई है । अतः वादकरण अजमेर न्याय क्षेत्र में घटित होने के कारण इस मंच को सुनवाई का क्षेत्राधिकार है । इस संबंध में की गई आपत्ति एतद् द्वारा निरस्त की जाती है ।
7. प्रार्थी का तर्क रहा है कि उसने जयपुर से अजमेर के दौरान आरक्षित कोच डी-2 कोच संख्या 692501 में यात्रा की । जबकि अप्रार्थी का तर्क है कि इस नम्बर का कोई कोच उक्त गाडी़ में लगा ही नहीं था । यदि उक्त डी-2 कोच में प्रार्थी ने आरक्षित कोच होते हुए अनारक्षित टिकिट से यात्रा की है तो वह अनाधिकृत यात्री माना जाएगा तथा नियमों के उल्लंघन का वह दोषी है । यहां यह उल्लेखनीय है कि कोच के नम्बर में अन्तर हो सकता है किन्तु प्रार्थी के इस बाबत् कथन कि उसने दिनांक 14.10.2014 को यात्रा की, हालांकि टिकिट भले ही अनारक्षित लिया हो हो एवं दिनांक 14.10.2014 को ही यात्रा के दिन अजमेर रेल्वे स्टेषन पर उतर कर लिखित में षिकायत करना व षिकायत में इस बात का उल्लेख करना इस तथ्य का परिचायक है कि उक्त तिथि को प्रार्थी ने सामान्य श्रेणी के टिकिट पर गाड़ी संख्या 12992 से जयपुर से अजमेर तक की यात्रा की है । कोच में पानी नहीं होने के संबंध में प्रार्थी का तर्क है कि उक्त कोच में पानी नहीं था तथा अजमेर रेल्वे स्टेषन उतरने पर उसने इस आषय की षिकायत की हैं । अप्रार्थी का तर्क है कि गाड़ी रवाना होने से पूर्व समस्त डिब्बो में पानी भर दिया गया था , इससे यह नहीं माना जा सकता है कि उक्त डिब्बों में पानी नही ंथा । अप्रार्थी की ओर से इस विवाद बिन्दु के समर्थन में कोई सम्पुष्टकारी साक्ष्य प्रस्तुत नही ंहुई है । उक्त समस्त खण्डनीय कथनों के मुकाबले प्रार्थी पक्ष के सषपथ कथन व उसके द्वारा इस आषय की षिकायत अधिक वजन रखती है । अतः यदि तत्समय उक्त कोच में पानी आ रहा था तथा प्रार्थी द्वारा ऐसी षिकायत की गई है तो अप्रार्थी रेल्वे विभाग के लिए यह अपेक्षित था कि वह उक्त षिकायत का निराकरण करते हुए अथवा स्पष्टीकरण देते हुए प्रार्थी को सूचित करता। उनके द्वारा उक्त षिकायत पत्र पर कोई कार्यवाही की गई हो, ऐसा प्रकट नही ंहोता है ।
8. स्वीकृत रूप से प्रार्थी ने अनारक्षित षिविर कोच में यात्रा की है। यदि वह अनारक्षित टिकिट के साथ आरक्षित कोच में सफर करता है तो वह अनाधिकृत यात्री मानते हुए उक्त कोच से हटाए जाने के काबिल था अथवा किराए में अन्तर की राषि प्राप्त कर आरक्षित कोच में यात्रा के लिए योग्य था । चूंकि उसने दिनांक 14.10.2014 को जयपुर से अजमेर के मध्य गाड़ी संख्या 12992 में यात्रा की है । अतः वह इस यात्रा के दौरान रेल प्रषासन द्वारा यात्रियों को निः षुल्क उपलब्ध करवाई गई सुविधाओं को पाने का हकदार था । चूंकि यात्रा के दौरान कोच के टायलेट में पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है जबकि अप्रार्थी का दायित्व था कि वह पानी की सुविधा उपलब्ध करवाता । चूंकि उसे यह सुविधा उपलब्ध नहीं हुई है व इस आषय की षिकायत किए जाने के बावजूद उसकी षिकायत का कोई निराकरण अथवा उत्तर तक अप्रार्थी द्वारा नहीं दिया गया है । अतः ऐसा करते हुए अप्रार्थी विभाग ने सेवा में कमी का परिचय दिया है । मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
:ः- आदेष:ः-
9. (1) प्रार्थी अप्रार्थी से मानसिक संताप व वाद व्यय के मद में राषि रू. 1000/- प्राप्त करने का अधिकारी होगा ।
(2) क्र.सं. 1 में वर्णित राषि अप्रार्थी प्रार्थी को इस निर्णय की दिनांक से दो माह के अन्दर अदा करें अथवा उक्त राषि डिमाण्ड ड््राफट से प्रार्थी के पते पर रजिस्टर्ड डाक से भिजवावें ।
(3) साथ ही अप्रार्थी रू. 5001/- राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष, जयपुर को भी अदा करें और इस राषि डिमाण्ड ड्राफट राज्य उपभोक्ता कल्याण कोष, जयपुर को देय इस निर्णय की दिनांक से दो माह के अन्दर इस मंच में जमा करावें ।
आदेष दिनांक 21.9.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष