(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 761 /2018
(जिला उपभोक्ता फोरम, कुशीनगर द्वारा परिवाद संख्या-95/2013 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 09-02-2018 के विरूद्ध)
डा0 टी0 चॉंग, चॉंग डेण्टल क्लीनिक, रोडवेज बस स्टेशन के सामने, रामकोला रोड, पड़रौना, पोस्ट-पडरौना, तहसील-पडरौना, जिला कुशीनगर।
बनाम्
नूरजहॉं खातून पत्नी नासिर, सा0 उधो छपरा, पोस्ट-भुजौली बाजार, तहसील पडरौना, जिला कुशीनगर।
समक्ष :-
1- मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री बी0 के0 उपाध्याय।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 20-06-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित निर्णय
परिवाद संख्या-95/2013 नूरजहॉं खातून बनाम् डा0 टी0 चॉंग में जिला उपभोक्ता फोरम, कुशीनगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 09-02-2018 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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‘’आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’ परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी को रू0 50,000/- क्षतिपूर्ति के रूप में निर्णय तिथि से 45 दिनों के अंदर प्राप्त करावे। उक्त अवधि बीत जाने के बाद वाद संस्थित किये जाने की तिथि से भुगतान तक उक्त धनराशि पर 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज का भुगतान विपक्षी द्वारा परिवादिनी को किया जायेगा।’’
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी डा0 टी0 चॉंग ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री बी0 के0 उपाध्याय उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध परिवाद जिला फोरम, कुशीनगर के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का एक दॉंत खराब हो गया था जिसके इलाज के लिए वह अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं गयी। तब अपीलार्थी/विपक्षी ने दिनांक 15-05-2008 को लापरवाहीपूर्वक आपरेशन करते हुए उसके अच्छे दॉंत को भी निकाल दिया जिससे प्रत्यर्थी/परिवादिनी के मस्तिष्क पर असर पड़ा और पूरे शरीर में तथा सिर में दर्द होने लगा। तब अपीलार्थी/विपक्षी ने उससे बताया कि कुछ दिन में दर्द ठीक हो जायेगा और वह अपना इलाज कराती रहे। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी/विपक्षी से अपना इलाज कराती रही, परन्तु उसे कोई फायदा
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नहीं हुआ तब उसने दूसरे डाक्टर की सलाह पर पी0जी0आई0, लखनऊ में दिखाया तो उसका रोग कुछ दूर हुआ।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि पी0जी0आई0, लखनऊ द्वारा बताया गया कि गलत आपरेशन की वजह से खराब दॉंत के साथ अच्छे दॉंत को निकाले जाने के कारण यह समस्या पैदा हुई है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का इलाज में रू0 10,00,000/- खर्च हुआ है।
परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने कहा है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी से शिकायत की तो अपीलार्थी/विपक्षी ने उससे कहा कि जब तक उसका इलाज चलेगा वह लखनऊ आने का किराया देता रहेगा, लेकिन कुछ दिनों बाद अपीलार्थी/विपक्षी ने किराया देना बंद कर दिया। इस संबंध में उसने एक लिखित तहरीर भी दी है।
परिवाद पत्र के अनुसार विपक्षी की सेवा में कमी है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कररू0 10,00,000/- शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति के रूप में मांगा है।
अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि वह एक कुशल चिकित्सक है। दिनांक 15-05-2008 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी उसके यहॉं आई और बताया कि उसके दॉंत में दर्द है और दर्द के कारण उसे घबराहट भी है। तब उसने उसे दर्द, घबराहट व मल्टीबिटामिन की दवा पर्चें पर लिख दिया। उसके बाद वह उसके पास कभी नहीं आयी। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का यह कथन झूठ है कि उसे उसके द्वारा यह लिखकर दिया गया है कि वह उसे लखनऊ का किराया देता रहेगा। अपीलार्थी/विपक्षी ने लिखित कथन में यह भी कहा है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी का यह कथन गलत है कि लखनऊ के डाक्टर द्वारा बताया गया है कि खराब दॉंत के साथ अच्छे दॉंत को निकालने के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है।
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अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपना दॉंत दिखाने अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं गयी है। जिला फोरम ने अपने निर्णय
में उल्लेख किया है कि पेपर संख्या-6ग/3 विपक्षी और परिवादिनी के बीच समझौता भी इलाज के संबंध में किया गया है अत: जिला फोरम ने यह निष्कर्ष अंकित किया है कि विपक्षी द्वारा चिकित्सा शास्त्र का विशेष ज्ञान न होने पर भी चिकित्सा शास्त्र का उपयोग किया है जो असावधानी की श्रेणी में आता है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर आदेश पारित किया है जो ऊपर अंकित किया गया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश साक्ष्य और विधि के विरूद्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है और इस संदर्भ में स्पष्ट कथन अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने लिखित कथन में किया है, परन्तु जिला फोरम ने परिवाद में कालबाधा के संबंध में विचार नहीं किया है और कालबाधा के बिन्दु को निर्णीत किये बिना आदेश पारित किया है जो विधि विरूद्ध है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है जिसके आधार पर यह माना जाए कि अपीलार्थी/विपक्षी ने उसका दॉंत निकाला है और दॉंत निकालने में लापरवाही की है जैसा कि परिवाद पत्र में अभिकथित है।
मैंने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क पर विचार किया है।
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परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं दॉत दिखाने दिनांक 15-05-2008 को गयी है और तभी अपीलार्थी/विपक्षी ने उसका दॉंत निकाला है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी अपीलार्थी/विपक्षी के यहॉं इलाज के बाद कब पी0जी0आई0, लखनऊ गयी है यह परिवाद पत्र में उल्लिखित नहीं है। परिवाद वर्ष 2013 में कथित रूप से अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी का दॉंत लापरवाहीपूर्वक निकाले जाने की तिथि से करीब 05 वर्ष बाद प्रस्तुत किया है। अपीलार्थी/विपक्षी ने जिला फोरम के समक्ष अपने लिखित कथन में परिवाद कालबाधित होने का स्पष्ट कथन किया है, परन्तु जिला फोरम ने परिवाद में कालबाधा के संबंध में कोई विचार नहीं किया है।
जिला फोरम के निर्णय से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला फोरम के समक्ष पी0जी0आई0, लखनऊ का मेडिकल पर्चा, एम0आर0आई0 रिपोर्ट एवं पुलिस निरीक्षक कोतवाली, पडरौना को प्रस्तुत रिपोर्ट, रेल टिकट आदि प्रस्तुत किया है, परन्तु जिला फोरम ने उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त परिवाद में मियादबाधा के संबंध में कोई निष्कर्ष अंकित नहीं किया है।
धारा-24-ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत स्पष्ट प्राविधान है कि वाहहेतुक उत्पन्न होने के दो साल बाद प्रस्तुत परिवाद ग्रहण नहीं किया जायेगा। ऐसी स्थिति में परिवाद तब ग्रहण किया जायेगा। जब परिवादी विलम्ब के संबंध में फोरम को संतुष्ट कर देता है।
- -ए में यह भी प्राविधान है कि वादहेतुक उत्पन्न होने के दो साल बाद प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम विलम्ब क्षमा करने का कारण लिपिबद्ध किये बिना ग्रहण नहीं करेगा।
ऊपर अंकित तथ्यों से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध परिवाद वाद कारण उत्पन्न होने के दो साल बाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है परन्तु जिला फोरम ने वाद प्रस्तुत करने में हुए विलम्बके संबंध में विचार नहीं किया है और न
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ही विलम्ब क्षमा करने हेतु कारण लिपिबद्ध किया है। जिला फोरम ने मियादबाधा के संबंध में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा उठायी गयी आपत्ति पर भी विचार नहीं किया है। अत: यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने परिवाद धारा-24-ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के विपरीत ग्रहण कर आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है। ऐसी स्थिति में जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है और विधि की दृष्टि से कायम रहने योग्य नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त करते हुए पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित की जाती है कि जिला फोरम धारा-24-ए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद ग्रहण करने के संबंध में विचार करें और यदि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा विलम्ब का कारण दर्शित किया जाता है तो विधि के अनुसार विचार कर परिवाद ग्रहण करने के संबंध में स्पष्ट आदेश पारित करे। तदोपरान्त आवश्यकतानुसार परिवाद की अग्रिम कार्यवाही विधि के अनुसार किया जाना सुनिश्चित करें।
जिला फोरम द्वारापरिवाद में अग्रिम कार्यवाही करने के पूर्व प्रत्यर्थी/परिवादिनी को नोटिस भेजी जायेगी। अपीलार्थी/विपक्षी इस आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि के साथ दिनांक 05-08-2019 को जिला फोरम के समक्ष उपस्थित हो।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत जमा धनराशि रू0 25,000/- अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को वापस की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0