राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील सं0- 403/2011
प्रतीक नयन मिश्रा बालिग पुत्र डा0 एस0एन0 मिश्रा निवासी मकान नम्बर 2/32-33 त्रिवेणी नगर मीरपुर कैण्ट कानपुर नगर।
.......अपीलार्थी
बनाम
1. नोकिया इण्डिया प्राइवेट लि0 द्वारा प्रबंध निदेशक, द्वितीय तल, कामर्शियल प्लाजा ‘’रेडिसन होटल’’ एन0एच0-8 महिपालपुर, नई दिल्ली-37.
2. बिग बाजार द्वारा प्रोप्राइटर/प्रबंधक ‘’रेव मोती’’ प्लाट नं0- 117/के/13 गुदैया रावतपुर क्रासिंग कानपुर नगर।
3. ‘’एपेक्स’’ नोकिया केयर सर्विस सेंटर द्वारा प्रोप्राइटर/प्रबंधक यू0जी0 ए-12, सोमदत्त प्लाजा, माल रोड कानपुर-01.
........प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रमेन्द्र वर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण सं0- 1 व 2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से उपस्थित : श्री अनिल कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 27.03.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 686/2008 प्रतीक नयन मिश्रा बनाम प्रबंध निदेशक, नोकिया इण्डिया प्रा0लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 11.02.2011 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’उपरोक्त कारणों से परिवादी द्वारा प्रस्तुत वाद विपक्षीगण के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय के 30 दिन के अन्दर परिवादी से मोबाइल सेट वापस प्राप्त कर मोबाइल सेट का मूल्य रू0 10,360/- उक्त समय के अन्दर अदा कर देवे।‘’
3. अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि उसने प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 से मोबाइल मॉडल नं0- 6233 एम0 दि0 07.10.2007 को रू0 10,360/- में क्रय किया था। क्रय करने के कुछ ही समय पश्चात मोबाइल का इयरपीस तथा स्पीकर में कट-कट की आवाज आने लगी और आवाज स्पष्ट सुनाई नहीं देती थी। मोबाइल के सम्बन्ध में एक वर्ष की गारण्टी दी गई थी। दि0 12.11.2007 को अपीलार्थी/परिवादी ने मोबाइल को ठीक करने के लिए दिया तथा सर्विस सेंटर द्वारा जॉब सीट भी जारी की गई और तकनीकी विशेषज्ञों ने बताया कि स्पीकर बदल दिया गया है, परन्तु मोबाइल सही तरीके से ठीक नहीं हुआ। पुन: दि0 18.12.2007 को भी सर्विस सेंटर में मोबाइल ठीक करने के लिए दिया। दि0 01.02.2008 को अपीलार्थी/परिवादी ने अपने मोबाइल को पुन: प्रत्यर्थी/विपक्षी सर्विस सेंटर में दिया और दि0 02.02.2008 को उसे वापस प्राप्त किया, लेकिन उक्त कमी दूर नहीं हुई। मोबाइल के बार-बार खराब होने के कारण अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 से मोबाइल सेट वापस करने के लिए कहा तो विपक्षी ने अपीलार्थी/परिवादी के साथ दुर्व्यवहार किया, जिससे व्यथित होकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत किया है।
4. प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 ने अपने जवाबदावा में अपीलार्थी/परिवादी के कथनों को अस्वीकार किया है। अपीलार्थी/परिवादी ने गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है। अत: परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
5. अपील में मुख्य रूप यह आधार लिए गए हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उक्त परिवाद स्वीकार करते हुए मात्र मोबाइल मूल्य दिलाया है जब कि उक्त राशि पर ब्याज भी दिलाया जाना आवश्यक था तथा वाद व्यय एवं मानसिक उत्पीड़न के लिए क्षतिपूर्ति की धनराशि हेतु कोई आदेश पारित नहीं किया गया है, जिसे दिलाया जाना आवश्यक है। अत: अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
6. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रमेन्द्र वर्मा तथा प्रत्यर्थी सं0- 3 के विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थीगण सं0- 1 व 2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
7. प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा द्वारा मौखिक रूप से यह तर्क दिया गया कि अपीलार्थी प्रश्नगत मोबाइल को एक लम्बे समय से इस्तेमाल कर रहा है तथा उसे मोबाइल फोन ठीक कराकर भी दिया गया था। इस कारण मोबाइल फोन का प्रयोग अपीलार्थी/परिवादी द्वारा किए जाने के कारण उसे मोबाइल का मूल्य दिलवाया जाना पर्याप्त है। इसके अतिरिक्त कोई धनराशि दिलवाये जाने का औचित्य प्रतीत नहीं होता है।
8. जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय दिनांकित 11.02.2011 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी/परिवादी को 16.06.2008 को बनाये गए जाब कार्ड के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि उक्त मोबाइल पूर्ण संतुष्टि के आधार पर प्राप्त कराये जाने के सम्बन्ध में कोई अंकन नहीं है। इस आधार पर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह माना गया कि मोबाइल उचित रूप से पूर्ण संतुष्टि पर बनाया नहीं बनाया गया था तथा परिवाद के विपक्षीगण सं0- 1 व 3 जो नोकिया इंडिया प्रा0लि0 कम्पनी से सम्बन्ध रखते हैं वे जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए थे। इस आधार पर मोबाइल का मूल्य अपीलार्थी/परिवादी को दिलवाया गया, किन्तु इस पर कोई ब्याज नहीं दिलवाया गया था। किसी भी धनराशि को न्यायालय/अधिकरण द्वारा दिलवाये जाने पर यह तथ्य अवश्य विचार में लेना चाहिए कि धनराशि जिस तिथि पर ड्यू होती है उस तिथि तथा आज्ञप्त की तिथि के मध्य की मुद्रास्फीति को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि धनराशि का मूल्य ड्यू होने की तिथि एवं आज्ञप्त होने की तिथि पर भिन्न-भिन्न होगा। इस बिन्दु पर इंग्लिश निर्णय Mallet Vs. Mc. Monagle (1970-AC Page 166) में Hon’ble Lord Diplock ने मुद्रास्फीति के सम्बन्ध में धनराशि आज्ञप्त करने के सम्बन्ध में दिए हैं जो निम्नलिखित प्रकार से है:-
“…….to leave out of account the risk of further inflation…… On the Other hand………money should be treated as retaining its value at the date of judgment and in calculating the present value of annual payments which would have been recevied in future years interest rates appropriate to times of stable currency such as four per cent to five per cent should be adopted.”
9. अत: उक्त धनराशि में उस समय तक का ब्याज जोड़ा जाना उचित है, जब अपीलार्थी/परिवादी को वास्तविक अदायगी की गई थी अथवा की जायेगी। ब्याज अधिनियम की धारा 2 व 3 को दृष्टिगत करते हुए वर्तमान ब्याज धनराशि पर प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा अदा की गई अथवा की जाने वाली धनराशि रू0 10,360/- की अदायगी तक वाद योजन की तिथि से 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज दिलवाया जाए, चूँकि ब्याज दिलाया जा रहा है अत: अन्य कोई धनराशि दिलवाये जाने का औचित्य प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश संशोधित करते हुए अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
10. अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश संशोधित करते हुए प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि यदि प्रश्नगत निर्णय व आदेश में आदेशित धनराशि 10,360/-रू0 अपीलार्थी/परिवादी को अदा कर दिया गया हो तो उस धनराशि पर वाद योजन की तिथि से अदायगी तक 06 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी अदा करें। यदि प्रश्नगत निर्णय व आदेश में आदेशित धनराशि 10,360/-रू0 की अदायगी नहीं की गई है तो प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण द्वारा उक्त धनराशि 10,360/-रू0 मय 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज वाद योजन की तिथि से अदायगी तक अपीलार्थी/परिवादी को अदा करें।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3