राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-३१०६/२००६
(जिला फोरम/आयोग, कुशीनगर द्वारा परिवाद सं0-१७५/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-१०-२००६ के विरूद्ध)
मै0 महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा फाइनेंसियल सर्विसेज लि0, कारपोरेट आफिस सडाना हाउस, द्वितीय तल, ५७० पी0बी0 मार्ग, वर्ली, मुम्बई एवं लखनऊ ब्रान्च महिन्द्रा टावर्स, एच0ए0एल0 के सामने, लखनऊ द्वारा एक्जक्यूटिव लीगल आफीसर अनुज नारायण।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
निजामुद्दीन पुत्र मोहम्मद अली निवासी पिपरासी, पोस्ट पिपराजटामपुर, तहसील पडरोना, जिला कुशीनगर। ...........प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अदील अहमद विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्याय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- २७-१०-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग, कुशीनगर द्वारा परिवाद सं0-१७५/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-१०-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रत्यर्थी ने एक झूठा परिवाद प्रस्तुत किया था। उसने अपीलार्थी से लोन ले कर महिन्द्रा पिक-अप ट्रक यू0पी0 ०५७ ए ६०८३ खरीदा था। परिवादी का कथन है कि उसने परिवादी ने विपक्षी से ऋण लेकर एक महिन्द्रा पिक-अप, यू0पी0 ०५७ ए ६०८३, इंजन नं0-एसी १४ के ७२५१५, चेसिस नं0 १२ एल ५०४९८, दिनांक ३०-०१-२००१ को मै0 सरदार मोटर्स, बस्ती से क्रय किया। उक्त ऋण की किश्तें प्रत्येक माह परिवादी द्वारा अदा की जाती रही और अब तक कुल ४३३२००/- रू0 अदा किया जा चुका है जबकि विपक्षी द्वारा मात्र ४१८९४९/- रू0 ही दर्शित किया गया है और ६०७२८/- रू0 बकाया दिखाया जा रहा है। परिवादी का कथन है कि मात्र दो किश्तें ही अदा करनी शेष रह गयी थी कि दिनांक १९.१२.२००४ को बिना किसी सूचना के उक्त
-२-
वाहन परिवादी के दरवाजे से धमकी देकर विपक्षी द्वारा उठवा लिया गया, जिसका उपयोग विपक्षी कर रहा है। परिवादी की काफी क्षति हो रही है, चूंकि उक्त वाहन से प्रतिदिन ५००/- रू0 की आमदनी होती थी। अत: परिवादी ने उक्त वाहन का हिसाब किताब करके वापस दिलाये जाने व क्षतिपूर्ति के रूप में १७५०००/- दिलाये जाने हेतु वाद प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी का लिखित अभिकथन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी को २५००००/- रू0 की धनराशि फाइनेंस की गयी थी। उक्त फाइनेंस पर ७५०००/- रू0 १० प्रति वार्षिक फ्लैट दर से फाइनेंस चार्ज ५६२५/- रू0 सर्विस टैक्स अधिरोपित था। इस प्रकार कुल ३३०६२५/- रू0 की अदायगी परिवादी को ३५ मासिक किश्तों ९४४७/- रू0 की प्रतिमाह किश्त भुगतान करना था। इसके अतिरिक्त बीमा एवं परिवादी द्वारा किश्तों को भुगतान नहीं करने के कारण विपक्षी को वाहन अपने अधिकार में लेने पर हुए खर्च का भी भुगतान परिवादी को करना था। परिवादी का वाहन तीन बार उसके द्वारा अपने अधिकार में लिया गया परन्तु दो बार का ही भुगतान १४०००/- रू0 उसके द्वारा किया गया। विपक्षी का कथन यह है कि इस प्रकार परिवादी को कुल ४१२६९३/- रू0 का भुगतान करना था परन्तु उसने मात्र ३०३६४७/- रू0 का ही भुगतान किया है और किश्त की अदायगी परिवादी द्वारा नहीं किये जाने के कारण उसके द्वारा वाहन को अपने अधिकार में लिया गया और परिवादी द्वारा धनराशि अदा नहीं करने के कारण उक्त वाहन को विक्रय कर प्राप्त धनराशि का समायोजन बकाया धनराशि में कर लिया गया है। वाहन का विक्रय उसके द्वारा १७००००/- में विक्रय किया गया व कुल बकाया धनराशि १०९०४६/- का समायोजन करने के उपरान्त ६०९५४/- रू0 की अदायगी परिवादी को की जानी है। यह भी कहा गया है कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है तथा पक्षकारों के मध्य किसी प्रकार के विवाद का निस्तारण आर्बिट्रेशन व कैन्सिलिएशन एक्ट १९९६ के तहत मुम्बई क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आर्बीट्रेटर नियुक्त कर निस्तारण कराया जाना था। ‘’
अपीलार्थी के अनुसार इस सम्बन्ध में दिया गया निर्णय विधि विरूद्ध और तथ्यों के विपरीत है। प्रत्यर्थी द्वारा कई अवसरों पर किश्तें जमा नहीं की गई हैं। विद्वान जिला फोरम ने यह आदेश दिया है कि – ‘’ परिवादी का परिवाद तदनुसार स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि उक्त वाहन की बीमित धनराशि
-३-
३४५०००/- रू0 मार्केट वैल्यू १० प्रतिशत डैप्रिसियेशन निकालकर, शेष धनराशि में बकाया दो किश्तों का समायोजित कर जो धनराशि निकलती है, उसका भुगतान परिवादी को गाड़ी की कीमत के रूप में करें। परिवादी को जो नुकसान वाहन के न चलने से हुआ है, उसके मद में ३००/- रू0 प्रतिदिन की दर से गाड़ी खींचने की तिथि १९.१२.२००४ से वास्तविक भुगतान की तिथि तक परिवादी को विपक्षी अदा करे। वाद व्यय के रूप में १०००/- रू0 भी विपक्षी से परिवादी प्राप्त करने का अधिकारी है। ‘’
इस मामले में विद्वान जिला फोरम ने कहा है कि दो किश्तों का भुगतान शेष होना कहा गया है और इसका भुगतान न होने पर विपक्षी द्वारा उक्त वाहन को खींच लिया गया और मनमाने तरीके से बिना परिवादी को सूचित किए बेच दिया गया। विपक्षी ने अपने लिखित कथन में कहा है कि विपक्षी उत्तरदाता सं0-२ की हैसियत वाहन के प्रति वाहन स्वामी की है, जब तक कि परिवादी सम्पादित अनुबन्ध की शर्त के तहत सम्पूर्ण मासिक किश्त/किराए का भुगतान विपक्षी उत्तरदाता सं0-२ को नहीं कर देता है और वाद प्रस्तुत करते समय परिवादी मात्र वाहन का किराएदार था। विपक्षी ने अपने लिखित कथन में कहा है कि परिवादी द्वारा किश्तों का भुगतान न किए जाने के कारण विपक्षी उत्तरदाता को वाहन को अधिकार में लेने में आए खर्चे का भुगतान भी करना था। परिवादी द्वारा वाहन किश्तों की अदायगी न किए जाने के कारण ०३ बार कब्जे में लिया गया और परिवादी ने ०२ बार के खर्चे का भुगतान भी किया। विपक्षी ने यह भी लिखा है कि उसने वाहन को १,७०,०००/- रू० में बेचा और कुल बकाया धनराशि का समायोजन करने के उपरान्त विपक्षी को ६०,९५४/- रू० परिवादी द्वारा दिया जाना है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
पत्रावली में वाहन के नीलाम किए जाने के सम्बन्ध में कोई ज्ञापन समाचार पत्रों का दिखाई नहीं दिया। अपीलार्थी ने यह कहा कि प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्धहै और अपास्त किए जाने योग्य है। विद्वान जिला फोरम के निर्णय से स्पष्ट है कि वाहन ३,४५,०००/- रू० में बीमित था। यहॉं पर यदि विपक्षी ने वाहन अपने कब्जे लिया तब वाहन को नीलाम करने से पूर्व उसे समस्त औपचारिकताऐं पूरी करनी थीं।
-४-
नीलामी के सम्बन्ध में समाचार पत्रों में विज्ञापन देना था और इससे पहले परिवादी को लिखित रूप में सूचित भी करना था जो उसने नहीं किया और वाहन मात्र १,७०,०००/- रू० में बेच दिया। वाहन का मूल्यांकन बेचने से पहले क्या आर0टी0ओ0 कार्यालय से कराया गया था, इसका कोई भी उल्लेख पत्रावली पर नहीं है। किसी भी वाहन को नीलाम करने से पूर्व उसका अनुमानित मूल्य निकलवाया जाता है। सरकारी वाहन के सम्बन्ध में आर0टी0ओ0 इस कार्य के लिए अधिकृत होता है। वर्तमान मामले में वाहन के सम्बन्ध में उसके नीलाम के समय मूल्यांकन उसकी कम्पनी के वैल्यूअर द्वारा कराया जाना था, वह कराया गया अथवा नहीं, इसका कोई प्रमाण नहीं है।
इन समस्त परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त और विद्वान जिला फोरम के निर्णय का अवलोकन करने के पश्चात् हम इस मत के हैं कि विद्वान जिला फोरम का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है और उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तद्नुसार यह अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम/आयोग, कुशीनगर द्वारा परिवाद सं0-१७५/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १९-१०-२००६ की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,कोर्ट नं.-२.