जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:-75/2012 उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-30.01.2012
परिवाद के निर्णय की तारीख:- 01.08.2023
Usman Ali aged about 40 years, S/o Shri Sofiyan, R/o Mohalla-Kishan Tola, Sandila, Hardoi. ...............Complainant.
Versus 1. Nissan Motors India Pvt. Ltd. Through its Appropriate Aughority, ASB Raman Towers, 37 & 38, Venkatnarayana Road, T-Nagar, Chennai.
2. Dream Nissan, Beeaar Auto Wheels India Pvt. Ltd. Sales & Service, Through its Appropriate Authority, Opp. Air Broadcasting Station, Faizabad Road, Chinhat, Lucknow.
3. Future Generali India Insurance Co. Ltd, Through its Appropriate Authority, 404, 4th Floor, Ratan Square Building, 20, Vidhan Sabha Marg, opp. Anand Motors, Lucknow.
................Opposite Parties.
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव।
विपक्षी संख्या 01 के अधिवक्ता का नाम:-नीरज कुमार।
विपक्षी संख्या 02 के अधिवक्ता का नाम:-श्री आर0के0 गुप्ता एवं श्री अशोक कुमार।
विपक्षी संख्या 03 के अधिवक्ता का नाम:- दिनेश कुमार एवं श्री आनन्द भार्गव।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-12 के अन्तर्गत दाखिल किया गया है।परिवाद पत्र में परिवादी ने अपनी गाड़ी की मरम्मत बिना कोई धनराशि लिये अथवा गाड़ी की पूरी कीमत 5,83,097.00 रूपये दिनॉंक 12.08.2011 से भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत ब्याज के साथ दिलाये जाने, 500.00 रूपये प्रतिदिन वर्कशाप का चार्ज के हिसाब से दिनॉंक 12.08.2011 से गाड़ी डिलीवरी तक 18 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करें। मानसिक व शारीरिक शोषण के लिये 1,00,000.00 रूपये तथा वाद व्यय के लिये 20,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिये विपक्षी संख्या 02 से माइक्रा कम्पनी से Nissan Micra-XVD मॉडल की कार 5,83,097.00 रूपये में दिनॉंक 10.08.2011 को क्रय किया। परिवादी ने अवगत कराया है कि उसने मैग्मा फिनक्राप लिमिटेड से गाड़ी क्रय करने हेतु 4,50,000.00 रूपये का लोन कुल 36 किश्तों में 15,500.00 रूपये ई0एम0आई0 देयता के साथ स्वीकृत कराया तथा शेष धनराशि 1,66,962.00 रूपये अपने पास से देकर गाड़ी क्रय कर ली गयी।
3. परिवादी ने विपक्षी संख्या 03 Future Generali India Insurance Co लखनऊ से वाहन का कंप्रेहेंसिव बीमा दिनॉंक 10.08.2011 से 09.08.2012 तक के लिये धनराशि 14,790.00 रूपये प्रीमियम के तौर पर देकर करवाया, जिसकी पालिसी संख्या-V1345799 है।
4. दुर्भाग्यवश दिनॉंक 12.08.2011 को लगभग 2.00 बजे दोपहर के समय परिवादी की कार हरदोई में दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। एक बच्चे को बचाने के प्रयास में गाड़ी स्लिप होकर एक गहरे गड्ढे में जिसमें पानी भरा था गिर जाती है। भगवान की दया से परिवादी की जान बच गयी व वह किसी तरह गड्ढे से बाहर अन्य लोगों की सहायता लेकर निकला तथा टोलफ्री नम्बर 18000094080 पर विपक्षी संख्या 01 एवं 02 को अवगत कराया।
5. विपक्षी संख्या 02 सूचना प्राप्त होने के बाद उस स्थान पर गया और गाड़ी मरम्मत के लिये दिनॉंक 18.08.2011 को वर्कशाप पर ले गया, तथा गाड़ी का इंस्पेक्शन भी दिनॉंक 18.08.2011 को कराया। विपक्षी संख्या 02 द्वारा गाड़ी का क्लेम नम्बर CV-136023 द्वारा इन्श्योरेंस कम्पनी को भेजा गया। विपक्षी ने परिवादी से लगभग एक माह में गाड़ी पूरी तरह बनाने का आश्वासन दिया गया। एक माह के अन्दर वाहन की मरम्मत नहीं की गयी। विपक्षी संख्या 02 से पूछने पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया। कई बार प्रयास करने के बाद भी विपक्षी संख्या 02 से कोई संतोषजनक उत्तर न प्राप्त होने के बाद परिवादी विपक्षी संख्या 03 के यहॉं गया तो बताया गया कि आपका क्लेम रैपुडियेट कर दिया गया है, परन्तु कोई अभिलेख नहीं दिया गया। जब सभी प्रयास विफल हो गए तब थकहार कर परिवादी ने अधिवक्ता के माध्यम से एक विधिक नोटिस दिनॉंक 03.12.2011 को रजिस्टर्ड डाक से विपक्षी संख्या 02 /03 को भेजी गयी। उसके पश्चात विपक्षी संख्या 02 ने दिनॉंक 04.01.2012 को एक पत्र भेजा।
6. पॉंच माह व्यतीत होने के बाद भी विपक्षीगणों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी न तो गाड़ी की मरम्मत करायी गयी और न ही कोई सूचना दी गयी। परिवादी द्वारा नये वाहन का प्रयोग भी विपक्षीगणों की लापरवाही के कारण नहीं कर सका। परिवादी प्रतिमाह वाहन की किश्त अदा कर रहा है उसे वित्तीय हानि हो रही है। वाहन आज तक वर्कशाप में खड़ा है। परिवादी 500.00 रूपये प्रतिदिन आवश्यक कार्य हेतु किराए के वाहन पर व्यय कर रहा है।
7. विपक्षी संख्या 02 तथा 03 की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह निर्धारित एक माह के अन्दर गाड़ी मरम्मत करके देते परन्तु ऐसा नहीं किया गया है। कहीं न कहीं से विपक्षी संख्या 01 भी जिम्मेदार है। कॉज ऑफ एक्शन दिनॉंक 20.09.2011 को ही उत्पन्न हो गया जिस दिन एक माह के अन्दर वाहन रिपेयर करके नहीं दिया गया। इस प्रकार हर दृष्टि से यह प्रमाणित हो जाता है कि विपक्षीगणों द्वारा परिवादी के साथ सेवा में अत्यन्त कमी तथा अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनायी गयी है।
8. विपक्षी संख्या 01 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया कि वह वाहन निर्माता कम्पनी है जो वाहन का निर्माण करती है। परिवादी द्वारा अपने परिवाद में वाहन निर्माण में तकनीकी त्रुटि/कमी के संबंध में शिकायत नहीं की है। अत: इस प्रकरण से विपक्षी संख्या 01 का कोई संबंध नहीं है। उसे वाद से मुक्त किया जाए।
9. विपक्षी संख्या 02 का कथानक है कि वह परिवादी के वाहन को मरम्मत कराने के लिये तैयार है और परिवादी जैसे ही मरम्मत के स्टीमेट का आधा पैसा जमा करा देगा उसके वाहन की मरम्मत कर दी जायेगी। शेष आधा पैसा वह मरम्मत के बाद वाहन की डिलीवरी लेते समय अदा कर देगा। चॅूंकि विपक्षी संख्या 03 द्वारा दुर्घटनाग्रस्त वाहन का क्लेम देने से मना करते हुए क्लेम को दिनॉंक 21.09.2011 को रैपुडिएट कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में वह इस्टीमेंटेड कास्ट 3,17,299.00 रूपये प्राप्त करके ही गाड़ी मरम्मत कराने के लिये जिम्मेदार होगा। क्लेम रैपुडिएट होने के कारण वह वाहन की मरम्मत नि:शुल्क नहीं कर पाएगा।
10. विपक्षी संख्या 03 इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा यह अभिकथन प्रस्तुत किया गया कि:-
a-परिवादी द्वारा अपने नए वाहन इंजन संख्या K0KA422D003755 Chassis No-MDHFCUK 13B3005748 निशान मोटर्स का इन्श्योरेंस दिनॉंक 10.08.2011 से 09.08.2012 तक के लिये कराया गया था।
b- इन्श्योरेंस पालिसी एम0वी0 एक्ट के तहत पालिसी नम्बर V1345799 परिवादी को दी गयी थी।
c- पालिसी का क्लेम संख्या CV136023 द्वारा इन्श्योरेंस कम्पनी को भेजा गया था, परन्तु इंश्योर्ड का दुर्घटना के समय पंजीकरण नहीं था।
d- एम0वी0 एक्ट 1988 की धारा-39 के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि कोई भी वाहन बिना पंजीकृत हुए किसी भी सार्वजनिक स्थल पर किसी व्यक्ति, ऑनर द्वारा चलाकर नहीं ले जाया जा सकता है।
e- सेन्ट्रल मोटर व्हीकल्स एक्ट 1989 के नियम 42 में यह प्रावधान है कि कोई वाहन डीलर/विक्रेता वाहन क्रेता को बिना वाहन अस्थायी या स्थायी रूप से पंजीकृत कराए गाड़ी की डिलीवरी नहीं कर सकता है।
11. उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर बीमा कम्पनी द्वारा अपने पत्र दिनॉंक 21.09.2011 द्वारा वाहन दुर्घटना क्लेम को सर्वेयर रिपोर्ट के आधार पर रैपुडिएट कर दिया गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि मामले में मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 39 तथा सेन्ट्रल मोटर व्हीकल एक्ट के नियम 42 का उल्लंघन किया गया है। डीलर द्वारा बिना वाहन पंजीकरण के परिवादी को सुर्पुद कर दिया गया।
12. परिवादी ने अपने कथानक के समर्थन में शपथ पत्र तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में पत्र, इन्श्योरेंस पालिसी, व्हीकल इनीसियल, नोटिस, लेटर आदि दाखिल किया गया है। विपक्षीगण द्वारा शपथ पत्र एवं पालिसी के अभिलेख, पत्राचार व रैपुडिएट लेटर प्रस्तुत किये हैं।
13. मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
14. परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत योजित परिवाद में दो तथ्यों को साबित किया जाना आवश्यक है। प्रथम परिवादी का उपभोक्ता होना तथा दूसरा विपक्षी द्वारा परिवादी की सेवा में कमी की गयी हो। परिवाद के तथ्यों को साबित करने का भार परिवादी के ऊपर है।
15. परिवाद पत्र के कथनों को साबित करने का दायित्व परिवादी के ऊपर है। परिवादी के जहॉं तक उपभोक्ता होने का प्रश्न है, परिवादी के कथानक के अनुसार परिवादी ने दिनॉंक-10.08.2011 को 5,83,096.00 रूपये में गाड़ी क्रय किया था जिसका कंप्रेहेंसिव बीमा दिनॉंक 10.08.2011 से 09.08.2012 तक के लिये धनराशि 14,790.00 रूपये वार्षिक प्रीमियम के तौर पर देकर करवाया, जिसकी पालिसी संख्या-V1345799 है।
16. दुर्भाग्यवश दिनॉंक 12.08.2011 को लगभग 2.00 बजे दोपहर के समय परिवादी की कार हरदोई में दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। एक बच्चे को बचाने के प्रयास में गाड़ी स्लिप होकर एक गहरे गड्ढे में जिसमें पानी भरा था गिर जाती है। भगवान की दया से परिवादी की जान बच गयी व वह किसी तरह गड्ढे से बाहर अन्य लोगों की सहायता लेकर निकला तथा टोलफ्री नम्बर 18000094080 पर विपक्षी संख्या 01 एवं 02 को अवगत कराया उसके उपरांत विपक्षीगण द्वारा गाड़ी को मरम्मत हेतु वर्कशाप पर ले जाया गया तथा विपक्षी संख्या 02 द्वारा क्लेम नम्बर CV-136023 इन्श्योरेंस कम्पनी को भेजा गया। विपक्षी ने परिवादी को एक माह में गाड़ी बनाने का आश्वासन दिया, परन्तु दिये गये समय पर गाड़ी की मरम्मत नहीं की गयी। विपक्षी संख्या 02 से पूछने पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया। कई बार प्रयास करने के बाद भी विपक्षी संख्या 02 से कोई संतोषजनक उत्तर न प्राप्त होने के बाद परिवादी विपक्षी संख्या 03 के यहॉं गया तो बताया गया कि आपका क्लेम रैपुडियेट कर दिया गया है, परन्तु कोई अभिलेख नहीं दिया गया।
17. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि प्रस्तुत क्लेम को विपक्षी संख्या 03 द्वारा रैपुडिएट किया गया। रैपुडिएशन लेटर से विदित है कि कागजात नहीं दिये गये थे। अत: प्रस्तुत वाहन का पंजीकरण नहीं कराया गया था, जबकि किसी वाहन का पंजीकरण नहीं रहता है तो उस वाहन का बीमा होने पर भुगतान नहीं किया जाता है। इन्श्योरेंस कम्पनी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया तथा मोटर व्हीकल एक्ट की धारा-42 की ओर यह ध्यान आकर्षित कराया गया और यह कहा गया कि No holder of a trade certificate shall deliver a motor vehicle to a purchaser without registration, whether temporary or permanent. अर्थात यह व्यवस्था की गयी है कि टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन के बिना वाहन की डिलीवरी न करे और बिना टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन के वाहन का संचालन नहीं किया जायेगा। मोटर व्हीकल्स एक्ट की धारा 47 की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया कि धारा 47 (1) में फार्म 20 में यह व्यवस्था की गयी है कि पंजीकरण अथारिटी द्वारा एक सप्ताह में विधिक इन्श्योंरेस के साथ वाहन का टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन कराया जायेगा।
18. यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि परिवादी द्वारा वाहन ड्रीम निशान बियर ऑटो व्हील्स इण्डिया प्रा0लि0 फैजाबाद रोड, चिनहट लखनऊ से क्रय किया गया है, और विक्रय विलेख के अवलोकन से विदित है कि जिस व्यक्ति को गाड़ी बेची गयी है यानी की उस्मान अली को उक्त गाड़ी क्रय होने के संबंध में अपना पता हरदोई का होना दर्शाया गया है, तथा हरदोई के पते के आधार पर ही संबंधित वाहन का बीमा कम्पनी द्वारा इन्श्योर्ड किया गया है। अत: खरीददार दूसरे जनपद का रहने वाला है और दूसरे जनपद के पते पर ही इन्श्योरेंस किया गया है, तथा उसी जनपद में ही वाहन का पंजीकरण कराया गया है।
19. मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत यह कि जिस जिले में वाहन का संचालन किया जाना होता है वहीं पर गाड़ी का नम्बर पंजीकृत कराना पड़ता है। परिवादी द्वारा वाहन लखनऊ से क्रय किया जाना दर्शाया गया है तथा स्थयी पता हरदोई का दिया गया है। गाड़ी का पंजीकरण तथा इन्श्योरेंस में पता भी हरदोई का दर्शाया गया है यानी कि उक्त वाहन का संचालन हरदोई जिले में कराया जाना है या कराया जाएगा।
20. बीमा कम्पनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि सेन्ट्रल मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत वैध इन्श्योरेंस के साथ टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट गाड़ी को रोड पर लाते समय लिया जाए। मोटर व्हीकल एक्ट-42 के तहत यह डीलर का दायित्व है कि वाहन की क्रेता को डिलीवर करते हुए वह उसे स्थायी या अस्थायी पंजीयन कराकर प्रदत्त कराये। अर्थात यह डीलर का कर्तव्य है कि वाहन को प्रदत्त कराने के समय देखे कि अस्थायी रूप से उसका पंजीयन हुआ अथवा नहीं। इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा बीमा 10.08.2011 से लेकर 09.08.2012 तक जो कि सायँ 5.10 बजे से लागू होना दर्शाया गया है। यानी कि 10.08.2011 को शाम 5.00 बजे संबंधित वाहन का बीमा किया गया है। विक्रय विलेख के परिशीलन से विदित है कि विक्रय की तिथि 10.08.2011 दर्शायी गयी है। अर्थात गाड़ी 10.08.2011 को बेची गयी है। जैसा कि परिवादी का कथानक भी है और उसी तिथि से वाहन बीमित है।
21. किसी भी वाहन का बीमा सुरक्षा की दृष्टि से कराया जाता है जिससे कि वह स्वयं और बाहरी व्यक्ति भी अगर दुर्घटना हो जाए तो वह सुरक्षित रहे। इस सिलसिले में वाहन कर्ता द्वारा वाहन बीमा के लिये मुबलिग 14790.00 का प्रीमियम अदा किया गया है। सेन्ट्रल मोटर व्हीकल एक्ट के नियम 42 के तहत उसे डीलर द्वारा पंजीकरण टेम्परेरी नहीं बनाकर दिया और उसे गाड़ी को बाहर ले जाने के लिये टोकन प्रदत्त कराया होगा तभी यह गाड़ी क्रेता शोरूम से ले जाता है जिसकी एक दिन बाद दुर्घटना हो जाती है। डीलर द्वारा यह उपेक्षित कार्य किया गया है उसके द्वारा अस्थायी या स्थायी रूप से वाहन का पंजीयन कराये बिना उसने वाहन क्रेता को दे दिया और वह उसे लेकर बाहर चला आया और 12 तारीख को अपने गृह जनपद हरदोई जाने के रास्ते में वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है।
22. परिवादी का कथानक है कि उसने अपने शपथ पत्र में उल्लेख किया है, कि विपक्षी द्वारा कोई भी शपथ पत्र इस आशय से नहीं दिया गया कि संबंधित वाहन की दुर्घटना लखनऊ से हरदोई जाने के रोड के अलावा किसी अन्य जिले के जाने के रास्ते में हुई हो और गाड़ी क्रय भी हरदोई के पते पर की गयी है और इन्श्योरेंस भी हरदोई के पते पर किया गया है। गाड़ी का वाहन पंजीयन भी हरदोई के पते पर किया जाना है। अर्थात वह जब हरदोई पहुँचता है तो उसका पंजीयन अवश्य होगा और वह इन्श्योर्ड पते (स्थायी) पर ही जा रहा था न कि अन्यत्र किसी जगह। अगर किसी अन्यत्र जगह जाता तो प्रक्रिया दूसरी होती। चॅूंकि वह जब गृह जनपद जा रहा है अत: इसकी परिस्थिति अलग है। रास्ते में ही जाते समय वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में गाड़ी का पंजीयन प्रमाण पत्र नहीं बन पाता है। क्योंकि जब तक वह हरदोई नहीं पहुँचता है तबतक पंजीकरण नहीं बन सकता था।
23. मोटर वाहन अधिनियम के तहत किसी मोटर यान का अगर पंजीयन नहीं है तो वह एक पैनल क्लाज है, जिसका अभिप्राय यह होता है कि वह अर्थदण्ड से दण्डित किये जाने की व्यवस्था है। जिस स्थान में पैनल क्लाज में प्रोविजन हो और पंजीयन प्रमाण पत्र निर्गत करने का अवसर भी न हो अर्थात निर्गत करना संभव भी न हो तो वैसी दृष्टि में पंजीयन का न होने के आधार पर सिर्फ रैपुडिएशन ही करना यह विधि सम्मत नहीं है। प्रारम्भिक रूप से भी डीलर की त्रुटि थी क्योंकि बिना आर0सी0 कराये वाहन क्रेता को क्यों दिया।
24. यदि प्रारम्भिक उपेक्षा नहीं हुई तो भी इस दुर्घटना के हो जाने के बावजूद भी इन्श्योरेंस कम्पनी को नियमित भुगतान कराना बनता है। इसलिये मेरे विचार से जो भी क्षतिपूर्ति होगी बतौर बीमा होने के कारण परिवादी को इन्श्योरेंस कम्पनी अदा करेगी। उस धनराशि में से 1,00,000.00 रूपये प्रारम्भिक गलती करने वाले डीलर को भी देना पड़ेगा क्योंकि उनकी ओर से प्रारम्भिक उपेक्षा की गयी है। विपक्षी नियमानुसार भुगतान करना सुनिश्चित करें। परिवाद पत्र के उपर्युक्त तथ्यों से प्रमाणित होता है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है। अत: परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, विपक्षी संख्या 03 को निर्देशित किया जाता है कि वह बीमित एश्योर्ड (IDV) धनराशि का भुगतान परिवादी को परिवाद योजित किऐ जाने की तिथि से 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करें, तथा मुबलिग 1,00,000.00 (एक लाख रूपया मात्र) की धनराशि विपक्षी संख्या 02 को अदा करनी होगी। मानसिक, शारीरिक शोषण के लिये मुबलिग 20,000.00 (बीस हजार रूपया मात्र) एवं वाद व्यय के लिए मुबलिग 10,000.00 (दस हजार रूपया मात्र) निर्णय की तिथि से 45 दिन के अन्दर अदा करेंगें। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:-01.08.2023