Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/1291

O I Co - Complainant(s)

Versus

Nishi Saxena - Opp.Party(s)

Alok Kumar Singh

28 Nov 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/1291
( Date of Filing : 10 Jun 2013 )
(Arisen out of Order Dated 22/03/2013 in Case No. First Appeal No. C/2008/39 of District Shahjahanpur)
 
1. O I Co
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Nishi Saxena
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 28 Nov 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1291/2013

The Oriental Insurance Co. Limited

Versus  

Smt. Nishi Saxena W/O Late Ramesh Chandra Saxena & other

समक्ष:-                                                            

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

उपस्थिति:-

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक कुमार सिंह, विद्धान अधिवक्‍ता

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित: श्री तुषार अंचल, विद्धान अधिवक्‍ता

दिनांक :28.11.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.       परिवाद संख्‍या-39/2008, रमेश चन्‍द्र सक्‍सेना व अन्‍य बनाम दि ओरियन्‍टल इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 में विद्वान जिला आयोग, शाहजहॉंपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.03.2013 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

2.        जिला उपभोक्‍ता आयोग ने मृतक के इलाज पर खर्च राशि अंकन 1,19,629/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया है।

3.        परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार परिवादी (मृतक) द्वारा नागरिक सुरक्षा बीमा पॉलिसी दिनांक 24.11.2005 को प्राप्‍त की थी, जिसका नवीनीकरण दिनांक 23.11.2007 के लिए कराया गया था। दिनांक 15.12.2006 को स्‍कूटर फिसलने के कारण परिवादी के रीढ़ की हड्डी में चोट आ गयी। परिवादी (मृतक) द्वारा डॉक्‍टर वाई.के. सिंह के अस्‍पताल में दिनांक 15.12.2006 से 17.12.2006 तक इलाज कराया गया। इसके बाद दिनांक 18.12.2006 को बरेली रेफर कर दिया गया, जहां पर परिवादी का एम0आर0आई0 हुआ, इलाज चला, लेकिन कोई लाभ नहीं नहीं हुआ। इसके बाद दिनांक 27.12.2006 को न्‍यूरोलॉजिस्‍ट डॉक्‍टर विनय अग्रवाल को दिखाया गया, जिनके द्वारा लखनऊ मे डा0 डी0 के0 छाबड़ा को रेफर किया गया। दिनांक 28.12.2006 को विवेकानन्‍द पाली क्‍लीनिक अस्‍पताल में भर्ती कराया गया, जहां पर दिनांक 03.01.2007 को ऑपरेशन हुआ, इस दौरान इलाज में कुल 1,19,629/-रू0 खर्च हुए, जिसकी मांग बीमा कम्‍पनी से की गयी, परंतु बीमा कम्‍पनी ने यह कहते हुए क्‍लेम नहीं दिया कि दुर्घटना घटित नहीं हुई है।

4.        बीमा कम्‍पनी का कथन है कि परिवादी काफी लम्‍बे समय से बीमार चल रहा था। डिस्‍चार्ज स्लिप पर इलाज करने वाले डॉक्‍टर द्वारा लिखी गयी टिप्‍पणी से साफ है कि परिवादी पहले से बीमार था, जिस तिथि को दुर्घटना होना बताया गया, उस समय फालिज का दौरा पड़ा था। कम्‍पनी द्वारा नियुक्‍त जांचकर्ता द्वारा शील अस्‍पताल बरेली के डॉक्‍टर से पूछा तब ज्ञात हुआ कि परिवादी (मृतक) सवाईकल स्‍पाइन का इलाज काफी पहले से करा रहा था। बीमा कम्‍पनी द्वारा क्‍लेम खारिज करते हुए सेवा मे कोई कमी नहीं की गयी है।

5.         पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता  आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया है कि बीमा कम्‍पनी द्वारा गलत सूचना देने का तथ्‍य स्‍थापित नहीं है, इसलिए परिवादी (मृतक) इलाज में खर्च राशि की क्षतिपूर्ति के लिए अधिकृत है।

6.           बीमा कम्‍पनी की ओर से प्रस्‍तुत किये गये ज्ञापन में वर्णित तथ्‍यों तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि यथार्थ में स्‍कूटर के कारण दुर्घटना होने का तथ्‍य स्‍थापित नहीं है। दुर्घटना होने के पश्‍चात ही बीमा पॉलिसी के अंतर्गत क्षतिपूर्ति की राशि देय होती है, जबकि परिवादी के विद्धान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि दुर्घटना होने के कारण ही परिवादी (मृतक) घायल हुआ, इलाज कराया गया, इसलिए इलाज मे खर्च राशि की प्रतिपूर्ति के लिए बीमा कम्‍पनी उत्‍तरदायी है।

7.         दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍ता की बहस सुनने तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं अभिवचनों के अवलोकन करने के पश्‍चात इस अपील के विनिश्‍चय के लिए यह विनिश्‍चायक बिन्‍दु उत्‍पन्‍न होता है कि क्‍या यथार्थ में दुर्घटना घटित हुई है, यदि हॉं तब प्रभाव, यदि न तब प्रभाव?

8.          इस बिन्‍दु पर कोई विवाद नहीं है कि बीमाधारक द्वारा दुर्घटना से सुरक्षा के लिए नागरिक पॉलिसी प्राप्‍त की गयी थी, इसलिए दुर्घटना होने की स्थिति में ही बीमाधारक प्रतिपूर्ति के लिए अधिकृत है, यदि दुर्घटना के अलावा अन्‍य किसी कारण से क्षति कारित हुई है या कोई रोग विकसित हुआ है तब बीमा कम्‍पनी प्रतिपूर्ति के लिए उत्‍तरदायी नहीं है।

9.          परिवाद पत्र में दुर्घटना के संबंध में यह उल्‍लेख किया गया है कि दिनांक 15.12.2006 को स्‍कूटर के अगले पहिये के नीचे पत्‍थर आ जाने के कारण स्‍कूटर फिसल गया, जिसके कारण परिवादी (मृतक) स्‍कूटर सहित गिर गया और रीढ़ की हड्डी में चोट आ गयी। दुर्घटना का जो यह सामान्‍य सा तरीका दर्शाया गया है, इसमें रीढ़ की हड्डी में चोट आना प्राकृतिक रूप से सत्‍य प्रतीत नहीं होता है। स्‍कूटर के अगले पहिये के आगे पत्‍थर आने से यदि स्‍कूटर फिसलता है तब रीढ़ की हड्डी में चोट आने से पहले शरीर के उन भागों पर चोट आनी चाहिए, जो सड़क को छूते हैं और सड़क से रगड़ते हैं, परंतु परिवाद पत्र में रीढ़ की हड्डी के अलावा अन्‍य किसी भाग पर चोट आने का कोई उल्‍लेख नहीं है।

10.        परिवादी द्वारा जिन स्‍थलों पर इलाज कराया गया, वहां पर केवल रीढ़ की हड्डी के इलाज के लिए लिखा गया। रीढ़ की हड्डी के इलाज के अलावा शरीर के किसी अन्‍य भाग का इलाज कराने का कोई विवरण अंकित नहीं किया गया। यह स्थिति कदाचित ग्राह्य नहीं है कि स्‍कूटर से फिसलने के कारण शरीर के किसी अन्‍य भाग पर कोई चोट न पहुंची हो और केवल रीढ़ की हड्डी पर चोट है, जबकि स्‍कूटर फिसलने पर कोहनी, हथेली, घुटना तथा दायें या बायें हाथ का जिधर स्‍कूटर फिसला हो, अन्‍य शारीरिक भाग क्षतिग्रस्‍त होना आवश्‍यक है। अत: इन्‍वेस्‍टीगेटर की रिपोर्ट को इस परिस्थिति से ही बल मिलता है कि परिवादी (मृतक) ने दुर्घटना का सही विवरण प्रस्‍तुत नहीं किया, यह विवरण फर्जी एवं बनावटी प्रतीत होता है। इन्‍वेस्‍टीगेटर द्वारा भी अपनी रिपोर्ट में यही निष्‍कर्ष दिया है कि स्‍कूटर से दुर्घटना होने का कोई तथ्‍य स्‍थापित नहीं है। मरीज का इलाज प्रारंभ करने वाले प्रथम डॉक्‍टर द्वारा जो नुस्‍खा लिखा गया था, उसकी प्रति यदि प्रस्‍तुत की जाती तब जाहिर हो जाता कि दुर्घटना होने के कारण मरीज का अस्‍पताल में इलाज प्रारंभ किया गया। इस दस्‍तावेज को साबित करने का भार परिवादी (मृतक) पर था। चूंकि यह दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किया गया, इसलिए भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम की धारा 114 पुरातन एवं धारा 119 नूतन के अनुसार उपधारणा की जायेगी कि जो दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किया गया, वह उस व्‍यक्ति के खिलाफ था, जिसने कब्‍जे में होने के बावजूद दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किया।

11.        उपरोक्‍त विवेचना का निष्‍कर्ष यह है कि यथार्थ में स्‍कूटर से दुर्घटना होने का तथ्‍य साबित नहीं है, इसलिए पॉलिसी के अंतर्गत प्रतिपूर्ति के‍ लिए परिवादी (मृतक) या उसके उत्‍तराधिकारी अधिकृत नहीं है। रीढ़ की हड्डी का इलाज कराने के उद्देश्‍य से स्‍कूटर से दुर्घटना की कहानी विकसित की गयी है। तदनुसार जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

           अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्‍त किया जाता है।  

          उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण वापस की जाए।

 आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

         

(सुधा उपाध्‍याय)(सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

 

 

      संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2

  

 

 

 

 

         

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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