(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 2299/2013
(जिला उपभोक्ता आयोग, गोण्डा द्वारा परिवाद संख्या- 11/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04-09-2013 के विरूद्ध)
1- सहारा इण्डिया परिवार, सेक्टर आफिस, गोण्डा द्वारा ब्रांच मैनेजर।
2- दि जोनल चीफ, सहारा इण्डिया राष्ट्रीय सहारा काम्पलेक्स, पार्क रोड, गोरखपुर।
3- सहारा इण्डिया परिवार, मुकुट काम्पलेक्स रकाबगंज फैजाबाद।
4- चेयरमैन, कमाण्ड आफिस, सहारा इण्डिया भवन, कपूरथला काम्पलेक्स, लखनऊ।
अपीलार्थीगण
बनाम
1- श्रीमती निर्मला गुप्ता, पत्नी स्व0 श्री अशोक कुमार गुप्ता, निवासी- आर्यानगर पी०ओ० उतरौला जिला बलरामपुर।
2- नेशनल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 द्वारा डिवीजनल मैनेजर, डिवीजन आफिस IV, 43 हजरतगंज लखनऊ उ०प्र०।
प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी की ओर से : विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव
प्रत्यर्थी सं०1 की ओर से : विद्वान अधिवक्ता श्री संतोष कुमार गुप्ता
प्रत्यर्थी सं०2 की ओर से : विद्वान अधिवक्ता सुश्री रेहाना खान
दिनांक- 12-11-2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, परिवाद संख्या- 11 सन् 2012 निर्मला गुप्ता बनाम शाखा प्रबन्धक, सहारा इण्डिया परिवार, सेक्टर कार्यालय गोण्डा व चार अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, गोण्डा द्वारा पारित निर्णय और
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आदेश दिनांक 04-09-2013 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
विद्वान जिला फोरम/आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया है कि अंकन 2,00,000/-रू० का भुगतान 07 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से परिवादिनी को अदा किया जाए। अंकन 2000/-रू० वाद व्यय एवं अंकन 1000/-रू० मानसिक कष्ट हेतु भी परिवादिनी को अदा करने के लिए आदेशित किया गया है।
परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पति मृतक अशोक कुमार गुप्ता द्वारा विपक्षीगण के यहॉं दिनांक 12-04-2003 को सहारा इण्डिया परिवार की रजत योजना के अन्तर्गत 1000/-रू० जमा किये गये थे। बीमा धारक की मृत्यु दिनांक 07-03-2008 को दुर्घटना के कारण हो गयी। पालिसी की शर्त के अनुसार धनराशि जमा करने की तिथि से 04 वर्ष के अन्तर्गत मृत्यु हो जाने पर अंकन 2,00,000/-रू० देय होते हैं। परिवादिनी मृतक की नामिनी है, इसलिए वह अंकन 2,00,000/-रू० प्राप्त करने की अधिकारी है।
विपक्षी संख्या-5 का कथन है कि सहारा इण्डिया परिवार का प्रस्ताव दिनांक 08-02-2005 स्वीकार नहीं किया गया था। दिनांक 07-03-2005 के पत्र द्वारा सूचित कर दिया गया था। विपक्षी संख्या-1 ता 4 का कथन है कि प्रीमियम की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए विपक्षी संख्या-5 ने पालिसी जारी की थी इसलिए विपक्षी संख्या-5 क्षतिपूर्ति को अदा करने के लिए उत्तरदायी है।
दोनों पक्षकारों के साक्ष्यों पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि विपक्षी संख्या-5 का दायित्व
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केवल 50,000/-रू० के भुगतान लिए था। विपक्षी संख्या-5 ने दिनांक 09-02-2010 को 50,000/-रू० का भुगतान सहारा इण्डिया को कर दिया है परन्तु इस धनराशि का भुगतान परिवादिनी को नहीं किया गया है। तदनुसार उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया है।
इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय तथ्य एवं विधि के विरूद्ध है। मृतक श्री अशोक कुमार गुप्ता द्वारा कभी-भी पालिसी प्राप्त नहीं की गयी है उसने केवल 1000/-रू० जमा किया था और यह राशि अचल सम्पत्ति के आवंटन के लिए जमा की गयी थी। अपने ग्राहकों का हित लाभ सुनिश्चित करने के लिए अपीलार्थी द्वारा एक वर्ष की कंटेजेंसी पालिसी दिनांक 05-09-2007 से दिनांक 04-09-2008 तक के लिए प्राप्त की गयी थी जिसमें दुर्घटना मृत्यु लाभ भी जमाकर्ता को प्रदान किया गया था। प्रीमियम का भुगतान अपीलार्थी द्वारा किया जाना था। दुर्घटना के कारण मृत्यु के समय यह पालिसी अस्तित्व में थी। परिवादिनी का आवेदन प्राप्त होने पर उसका क्लेम तुरन्त प्रत्यर्थी संख्या-2 के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया था तथा अंकन 10,000/-रू० क्रेडिट मूल्य 6,100/-रू० कुल 16,100/-रू० परिवादिनी को दे दिये गये थे परन्तु प्रत्यर्थी संख्या-2 ने केवल 50,000/-रू० का भुगतान किया जिसे प्रत्यर्थी संख्या-1 ने प्राप्त नहीं किया। यह भी उल्लेख किया गया है कि अंकन 50,000/-रू० परिवादिनी को प्राप्त भी करा दिये गये हैं। प्रत्यर्थी संख्या-2 द्वारा दुर्भावनावश क्लेम का विधिसम्मत निस्तारण नहीं किया गया है, जबकि इसी प्रकार की प्रकृति के अन्य केसों में क्लेम निस्तारित कर दिये गये हैं। प्रस्तुत केस में खाता खोलने के चार वर्ष के पश्चात खाताधारक की मृत्यु कारित हुयी है। प्रत्यर्थी संख्या-2 ने बीमा क्लेम स्वीकार भी किया है। परन्तु केवल 50,000/-
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रू० का भुगतान किया है। सहारा इण्डिया द्वारा सभी जमाकर्ताओं के लिए पालिसी प्राप्त की गयी है और प्रीमियम का भुगतान किया गया है। इसलिए विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त करते हुए प्रत्यर्थी संख्या-2 को आदेशित किया जाए कि वह पालिसी के अन्तर्गत देय क्लेम का भुगतान प्रत्यर्थी संख्या-1 को अदा करें।
हमने दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी एवं पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
इस योजना के अनुसार दस्तावेज संख्या- 38 है जिसके अनुसार चार वर्ष के पश्चात मृत्यु होने पर 2,00,000/-रू० देय है।
स्पेशल कंटेंजेंसी पालिसी एनेक्जर नं० 5 है जो सहारा इण्डिया के पक्ष में नेशनल इंश्योरेंश कम्पनी लि0 द्वारा जारी की गयी है। अंकन 2,00,000/-रू० की क्षतिपूर्ति के लिए 4,600 खाताधारकों के पक्ष में क्षतिपूर्ति के उद्देश्य से यह पालिसी प्राप्त की गयी है। पालिसी अवधि दिनांक 05-09-2007 से दिनांक 04-09-2008 है, जबकि खाताधारक की मृत्यु दिनांक 07-03-2008 को हुयी है। यानि पालिसी अवधि के दौरान खाता धारक की मृत्यु कारित हुयी है और इसके लिए एनेक्जर-5 में वर्णित पालिसी प्रत्यर्थी संख्या-2 से प्राप्त की गयी है। यह तथ्य भी साबित है कि खाता खोलने के चार वर्ष के पश्चात पालिसी धारक की मृत्यु हुयी है इसलिए खाताधारक की नामिनी अंकन 2,00,000/-रू० का बीमा क्लेम प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत है चॅूकि सहारा इण्डिया द्वारा पालिसी प्रदान की गयी है इसलिए बीमा कम्पनी इस धनराशि को अदा करने के लिए उत्तरदायी है। परन्तु बीमा कम्पनी की ओर से सहारा इण्डिया को एक पत्र दिनांक 07-03-2005 को लिखा गया जो एनेक्जर नं० 8 है। इस पत्र में उल्लेख है कि यदि खाता खोलने के एक वर्ष के पश्चात मृत्यु कारित होता है तब बीमा
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प्रस्ताव स्वीकार नहीं है परन्तु प्रस्तुत वाद में खाता धारक की मृत्यु चार वर्ष के पश्चात हुयी है इसलिए इस पत्र का कोई विपरीत प्रभाव परिवादिनी के क्लेम के लिए नहीं है। दस्तावेज संख्या-54 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मृतक अशोक कुमार गुप्ता के बीमा क्लेम के लिए 50,000/-रू० बीमा कम्पनी द्वारा स्वीकार किया गया है चॅूकि मृत्यु चार वर्ष पश्चात हुयी है इसलिए पालिसी की शर्त के अनुसार नामिनी को 2,00,000/-रू० प्रदान किया जाना था। अत: अपील इस आशय से स्वीकार होने योग्य है कि बीमा क्लेम विपक्षी संख्या-1 ता 4 द्वारा नहीं अपितु विपक्षी संख्या-5 द्वारा देय है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है और विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादिनी को देय बीमा क्लेम विपक्षी संख्या- 1 ता 4 द्वारा नहीं बल्कि विपक्षी संख्या-5 द्वारा देय होगा जिसका उल्लेख जिला उपभोक्ता मंच ने अपने निर्णय में किया है। जिला फोरम/आयोग द्वारा पारित शेष निर्णय की पुष्टि की जाती है।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
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निर्णय आज दिनांक- 12-11-2021 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित/दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
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कृष्णा–आशु0 कोर्ट-2