RAMESH CHANDRA filed a consumer case on 15 Jan 2015 against NIC in the Churu Consumer Court. The case no is 177/2013 and the judgment uploaded on 18 May 2015.
प्रार्थी की ओर से श्री जगदीश रावत अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थीगण की ओर से श्री धीरेन्द्र सिंह अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में तर्क दिया कि चूंकि प्रार्थी की दिनांक 23.10.2012 को निधन हो गया था। जिसके विधिक वारिसान निर्धारित समयावधि में पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं हुये इसलिए परिवाद अबेट हो चूका है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। प्रार्थी अधिवक्ता ने अप्रार्थीगण अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि प्रार्थी के विधिक वारिसान के द्वारा पत्रावली पर दिनांक 31.10.2013 को कायममुकाम रिकाॅर्ड पर लिये जाने का प्रार्थना-पत्र मय शपथ-पत्र प्रस्तुत किया जा चूका है और कायममुकाम का प्रार्थना-पत्र पत्रावली पर आने के बाद परिवाद को अबेट के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।
वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रार्थी रमेशचन्द्र की दिनांक 23.10.2012 को मृत्यु हो चूकी थी और रमेशचन्द्र के विधिक वारिसान के द्वारा प्रार्थना-पत्र इस मंच में दिनांक 31.10.2013 को अर्थात् मृत्यु के एक वर्ष बाद प्रस्तुत किया है व दिनांक 23.12.2013 को कायममुकाम प्रार्थना-पत्र के समर्थन में शपथ-पत्र प्रस्तुत किये है। विधि अनुसार परिवाद में प्रार्थी की मृत्यु होने पर उसके विधिक वारिसान के द्वारा मृत्यु की दिनांक के 90 दिवस के अन्दर-अन्दर कायममुकाम हेतु प्रार्थना-पत्र पेश किया जाना आवश्यक है। परन्तु वर्तमान प्रकरण में रमेशचन्द्र के वारिसान द्वारा कायममुकाम का प्रार्थना-पत्र प्रार्थी की मृत्यु के एक वर्ष बाद प्रस्तुत किया है और प्रार्थना-पत्र की देरी हेतु जो आधार प्रस्तुत किया है। उसके समर्थन में कोई साक्ष्य पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं की ना ही कायममुकाम प्रार्थना-पत्र की देरी को क्षमा करने हेतु कोई अलग से प्रार्थना-पत्र पत्रावली पर प्रस्तुत किया। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 13 उपधारा 7 के अनुसार प्रार्थी की मृत्यु पर सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 22 के प्रावधान पूर्णत लागू होते है। इसलिए उपरोक्त विवेचन के अनुसार परिवाद अबेट हो चूका है। प्रार्थी अधिवक्ता ने बहस के दौरान इस मंच का ध्यान 2014 डी.एन.जे. 4 पेज 1437 राजस्थान हाई कोर्ट एल.आर. आॅफ भूरालाल बनाम स्टेट आॅफ राजस्थान एण्ड अदर्स तथा 2009 डी.एन.जे. 2 पेज 623 राजस्थान हाई कोर्ट महेन्द्र एण्ड अदर्स बनाम एल.आर. आॅफ रावताराम एण्ड अदर्स न्यायिक दृष्टान्तों की ओर ध्यान दिलाया जिनका सम्मान पूर्वक अवलोकन किया गया। उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से भिन्न होने के कारण चस्पा नहीं होते है क्योंकि प्रार्थी ने कायममुकाम अभिलेख पर लेने हेतु देरी के लिए कोई प्रार्थना-पत्र पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया ना ही देरी हेतु कोई युक्तियुक्त साक्ष्य पत्रावली पर प्रस्तुत की। माननीय उच्चतम न्यायालय ने 2 सी.पी.जे. 2009 पेेज 29 में यह मत दिया कि स्पउपजंजपवद ंेचमबज दवज बवदेपकमतमक इल ब्वदेनउमत थ्वतं ंसजीवनही ेचमबपपिब चसमं जव जीपे मििमबज जंाम इल इंदाण् उपरेाक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी के दृष्टिगत मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद अबेट हो चूका है। इसलिए प्रार्थी का परिवाद अबेट (उपशमन) होने के आधार पर अप्रार्थीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।
अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण व्यय स्वंय अपना-अपना वहन करेंगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।
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