जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-78/2009
जय प्रकाष तिवारी पुत्र उमाषंकर तिवारी डाइरेक्टर सेन्ट्रल एकेडमी अमानीगंज फैजाबाद।
.............. परिवादी
बनाम
नेषनल इंष्योरेन्स कंपनी लिमिटेड षाखा फैजाबाद द्वारा षाखा प्रबन्धक। ............. विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 16.05.2015
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने वाहन संख्या यू पी 51 एफ 2444 मारुति कार पंजाब नेषनल बैंक षाखा साहबगंज से वित्तीय सहायता प्राप्त कर के खरीदी थी। उक्त कार का बीमा विपक्षी द्वारा किया गया था जिसका पालिसी संख्या 9958114 है तथा बीमा की वैधता दिनांक 03.05.2005 से 02.05.2006 तक थी। परिवादी की उक्त कार दिनांक 09.10.2005 को समय 03.30 बज गोरखपुर से चोरी हो गयी वाहन के कागजात वाहन की डिग्गी में रखे थे। वाहन को काफी तलाष किया और वाहन न मिलने पर तत्काल चोरी की सूचना पुलिस कन्ट्रोल रुम को दी। उसका प्रार्थना पत्र मु.अ.सं. 1379/05 अन्तर्गत धारा 379 थाना कैण्ट गोरखपुर में दर्ज हुआ। दिनांक 19.10.2005 को विपक्षी के कार्यालय में प्रष्नगत वाहन के चोरी की सूचना दी और सभी औपचारिकतायें पूरी की तथा क्लेम का आवेदन किया। उक्त प्रार्थना पत्र देने के उपरान्त परिवादी विपक्षी के चक्कर सन 2005 से लगा रहा है, मगर विपक्षी के कार्यालय द्वारा कोई संतोश जनक उत्तर नहीं दिया और न ही क्लेम का भुगतान किया। बाध्य हो कर परिवादी ने विपक्षी को दिनांक 11.04.2007 को अपने अधिवक्ता द्वारा एक विधिक नोटिस दिया जो विपक्षी पर दिनांक 12-04-2007 को तामील हुआ मगर विपक्षी ने परिवदी को उक्त नोटिस को कोई उत्तर नहीं दिया और न ही बीमा क्लेम का कोई भुगतान ही किया। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादी को विपक्षी से परिवादी की मारुति कार यू पी 51 एफ 2444 का बीमा क्लेम रुपये 1,69,342/-, वाहन के चोरी होने की तिथि से 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज, क्षतिपूर्ति रुपये 50,000/- तथा परिवाद व्यय दिलाया जाय।
विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी की कार का बीमा होना स्वीकार किया है एवं एफ0आई0आर0 कराना भी स्वीकार किया है किन्तु एफ0आई0आर0 की सत्यता पर संदेह व्यक्त किया है। उत्तरदाता ने परिवादी को दिनांक 16-10-2006 को पत्र लिखा कि वह सरेंडर सर्टिफिकेट और कम्पनी के नाम व्हीकिल ट्रांसफर, वाहन की चाभियां, लैटर आफ सब्रोगेषन, डिस्चार्ज वाउचर व मूल पालिसी दे दें अन्यथा क्लेेेेम पत्रावली बंद कर दी जायेगी, जिसका परिवादी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उत्तरदाता ने विपक्षी बैंक को दिनांक 19.12.2006 को एक पत्र लिखा और कहा कि यदि वाहन का ट्रांसफर बीमा कम्पनी के नाम होगा तथा हाइपोथिकेषन इन्डोर्समंेट आर.सी. से हटेगा तभी बीमा कम्पनी क्लेम की धनराषि का भुगतान करेगी। परिवादी ने इस सम्बन्ध मेें कोई कार्यवाही नहीं की, इसलिये परिवादी बीमा क्लेम नहीं प्राप्त कर सकता था। इसी बीच दिनांक 22.01.2007 को उत्तरदाता के मण्डलीय कार्यालय में श्री राज कुमार गंजूर ने एक षिकायती पत्र दिया कि परिवादी ने एक फर्जी रिपोर्ट लिखा कर अपनी कार का बीमा क्लेम पाने का प्रयास किया है और प्रमाणों के साथ कूट रचना की है। इस षिकायत पर उत्तरदाता ने जांच कराई तो पाया कि परिवादी ने दिनांक 10.10.2005 को कार चोरी की झूठी रिपोर्ट लिखवाई एवं दिनांक 24.10.2006 को एक षपथ पत्र व दिनांक 19.10.2006 को एक सिक्योरिटी बाण्ड न्यायालय द्वितीय अपर जिला जज फैजाबाद महोदय के यहां दिया कि मारुति कार संख्या यू पी 51 एफ 2244 का वह स्वामी है और कार को बन्धक के रुप में न्यायालय को दे रहा है और उसे न तो ट्रांसफर करेगा और न ही उसमें कोई परिवर्तन करायेगा। इस से यह प्रमाणित हो गया कि परिवादी गलत ढं़ग से कूट रचित तथ्यों पर क्लेम ले रहा है। उत्तरदाता ने थाना कैण्ट गोरखपुर व न्यायालय अपर जिला जज द्वितीय महोदय को इन तथ्यों से अवगत करा दिया है। इस प्रकार यह प्रमाणित है कि उत्तरदातागण ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
बहस के समय परिवादी उपस्थित नहीं, परिवादी को बहस के लिये मौका दिया गया मगर परिवादी की ओर से निर्णय के पूर्व तक किसी ने बहस नहीं की। विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना एवं पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया तथा गुण दोश के आधार पर निर्णय किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी के सादे वाउचर पर रुपये 1,69,342/- भर कर अपने हस्ताक्षर किये हुए है की छाया प्रति, बीमा कम्पनी के पत्र दिनांक 16.10.2006, 11.08.2006, 28-06-2006 की छाया प्रतियां, सब्रोगेषन लेटर की छाया प्रति, बीमा कम्पनी के पत्र दिनांक 31.03.2006, 15.06.2006 जो कम्पनी ने अपने मण्डलीय प्रबन्धक दिल्ली को लिखे है की छाया प्रतियां, परिवादी के पत्र दिनांक 24.05.2006 की छाया प्रति, परिवादी के पत्र दिनांक 21.02.2006 की छाया प्रति तथा परिवादी द्वारा बैंक को लिखे गये पत्र दिनांक 19.10.2005 की छाया प्रति दाखिल की हैं जो षामिल पत्रावली हैं। विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन, ए0पी0 सराफ षाखा प्रबन्धक का षपथ पत्र, बीमा कम्पनी के पत्र दिनांक 16.10.2006, 19.10.2006 की छाया प्रतियां, राजकुमार गंजूर के षिकायती पत्र दिनंाक 09.01.2007 की छाया प्रति, बीमा कंपनी के जांचकर्ता अविनाष कुमार श्रीवास्तव पुत्र ष्यामा चरण राम श्रीवास्तव का षपथ पत्र, बीमा कंपनी के जांचकर्ता अविनाष कुमार श्रीवास्तव पुत्र ष्यामा चरण राम श्रीवास्तव की जांच रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति, वाहन के पंजीकरण प्रमाण पत्र की प्रमाणित छाया प्रति, परिवादी एवं राज कुमार गंजूर के मध्य विचाराधीन वाद में जो न्यायालय द्वितीय अपर जिला जज फैजाबाद में लंबित वाद में परिवादी द्वारा दाखिल षपथ पत्र दिनांक 24.10.2006 एवं 14.09.2006 तथा सिक्योरिटी बाण्ड दिनांक 14.09.2006 की छाया प्रतियां एवं राजकुमार गंजूर के षिकायती पत्र दिनांक 14.09.2007 की प्रमाणित छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षी द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि परिवादी ने फर्जी प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखा कर विपक्षी को धोखा दिया है और न्यायालय को भी गुमराह किया है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 16.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष