Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/2038

Sri Hari Chandra - Complainant(s)

Versus

New Okhla Industrial Development Authority - Opp.Party(s)

Prateek Saxena

01 Apr 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/2038
( Date of Filing : 24 Oct 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Sri Hari Chandra
S/o Of Sri Pyare Lal 11/F-6 Lodhi Calony
New Delhi
...........Appellant(s)
Versus
1. New Okhla Industrial Development Authority
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 01 Apr 2024
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

(मौखिक)

अपील संख्‍या-2038/2011

श्री हरी चन्‍द पुत्र श्री प्‍यारे लाल

बनाम

न्‍यू ओखला इन्‍डस्‍ट्रीयल डवलपमेन्‍ट अथारिटी व एक अन्‍य

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 01.04.2024

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील इस न्‍यायालय के सम्‍मुख जिला उपभोक्‍ता              आयोग, गौतम बुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्‍या-281/2007 श्री हरी चन्‍द बनाम न्‍यू ओखला इन्‍डस्‍ट्रीयल डवलपमेन्‍ट अथारिटी व एक अन्‍य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.09.2011 के विरूद्ध योजित की गयी है।

प्रत्‍यर्थी प्राधिकरण के पूर्व अधिवक्‍ता के स्‍थान पर पूर्व तिथि दिनांक 17.11.2023 को श्री देवेश पाठक अधिवक्‍ता उपस्थित हुए थे। उनका वकालतनामा कार्यालय की आख्‍या अनुसार पत्रावली पर उपलब्‍ध है। अपीलार्थी व प्रत्‍यर्थीगण के अधिवक्‍तागण अनुपस्थित हैं। अपील विगत 13 वर्षों से इस न्‍यायालय के सम्‍मुख लम्बित है। पूर्व में लगभग 20 तिथियों पर विभिन्‍न आदेश पारित किये जाते रहे। अधिवक्‍तागण की अनुपस्थिति को दर्ज करते हुए मेरे द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा विपक्षी संख्‍या-1 प्राधिकरण की एक आवासीय योजना में विपक्षी संख्‍या-2 बैंक से 1,40,000/-रू0  का  ऋण  लेकर  आवंटन  हेतु

 

 

 

-2-

आवेदन किया। विपक्षी संख्‍या-1 प्राधिकरण द्वारा अपने पत्र दिनांक 18.01.2007 द्वारा परिवादी के बैंकर विपक्षी संख्‍या-2 को फ्लैट आवंटन की सूचना दी गयी, परन्‍तु विपक्षीगण द्वारा परिवादी को यह सूचना नहीं दी गयी कि फ्लैट दिनांक 18.01.2007 को परिवादी को आवंटित हो चुका है। विपक्षी संख्‍या-2 द्वारा परिवादी को अपने पत्र दिनांक 14.03.2007 के माध्‍यम से सूचना दी गयी कि उसके हक में भवन आवंटित हो गया है। अत: परिवादी दिनांक 15.03.2007 को नोएडा अथारिटी के कार्यालय में पहुँचा तथा स्‍वयं को आवंटित फ्लैट बन्‍धक करने की अनुमति चाही, जो उसे दिनांक 15.03.2007 को ही अनापत्ति प्रमाण पत्र के रूप में प्रदान कर दी गयी।

परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्‍या-2 की सलाह पर परिवादी द्वारा नोएडा अथारिटी से बकाया रकम अदा करने के लिए समय की प्रार्थना की गयी, जो अस्‍वीकार की गयी। परिवादी द्वारा नोएडा अथारिटी से दिनांक 07.04.2007 तक धन जमा करने की अनुमति चाही गयी चूँकि पत्र दिनांक 14.03.2007 को आवंटन के समय प्राप्‍त हुआ था। नोएडा अथारिटी द्वारा अपने पत्र दिनांक 30.04.2007 के माध्‍यम से परिवादी को सूचित किया गया कि परिवादी द्वारा जमा की गयी पंजीयन राशि जप्‍त कर ली गयी है। विपक्षीगण द्वारा आवंटन की शर्तों का उल्‍लंघन किया गया, अत: क्षुब्‍ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।

जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय में निम्‍न तथ्‍य विस्‍तृत रूप से उल्लिखित करते हुए मात्र परिवाद निरस्‍त ही नहीं किया वरन् परिवादी को आदेशित किया कि वह दोनों विपक्षीगण को वाद व्‍यय/हर्जाना के रूप में 5,000/-5,000/-रू0 भी अदा करे:-

 

 

 

-3-

''इस प्रकरण के तथ्य समान्‍यत: पक्षकारों को स्वीकार है। विवाद मात्र इस बिन्दु पर है कि पारिवादी को विपक्षी सं० 1 द्वारा निर्गत आवेंटन पत्र देरी से भेजा गया था जिसके परिणाम स्‍वरूप परिवादी फ्लैट के अवशेष मूल्‍य की व्यवस्था नहीं कर सका। देरी से भेजने की परिस्थिति को विपक्षी के पक्ष पर सेवा में कमी बताया है और परिवादी की ओर से यह कहा गया है कि 60 दिन की गिनती दिनांक 14-03-07 से की जानी चाहिए। विपक्षी सं01 नोएडा अथारिटी ने अपने प्रतिवाद पत्र के साथ परिवादी द्वारा आवंटन हेतु किये गये आवेदन की छाया प्रति प्रस्तुत की है। आवेदन के स्तम्भ सं० 3 में परिवादी ने जो डाक का पता दिया है वह यूको बैंक 5- पारलियामेन्ट स्ट्रीट नई दिल्ली लिखा हुआ है अर्थात विपक्षी का यही दायित्व था कि वह परिवादी को आवंटन पत्र की सूचना इस डाक के पते पर भेजता। परिवादी ने स्तम्‍भ सं० 04 में अपना स्थाई पता भी लिखा है परन्तु उसने पत्र व्यवहार के लिये अपना पता यूको बैंक -5 पालियामेन्ट स्ट्रीट नई दिल्ली बताया है अतः विपक्षी सं० 1 का कोई दायित्व परिवादी को आवंटन पत्र उसके स्थाई पते पर भेजने की आवश्‍यकता नहीं थी।

स्वंय परिवादी अपने परिवाद पत्र के पैरा 04 में यह स्‍वीकार करता है कि नोएडा अथारिटी ने आवंटन पत्र विपक्षी सं0 2 को भेजा था। आवंटन पत्र तो परिवादी के नाम ही जारी हुआ था। पता विपक्षी सं० 2 का आवासीय था चूँकि आवंटन पत्र परिवादी ने विपक्षी सं० 2 के पते पर मंगाया था। विपक्षी सं02 का कोई दायित्‍व परिवादी को आवंटन की सूचना देने का रहा हो, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। परिवादी ने ऐसी कोई साक्ष्‍य प्रस्तुत नहीं की जो यह दर्शाती हो कि विपक्षी सं0 2 का कोई दायित्‍व परिवादी को आवंटन की सूचना देने का था। जहाँ तक डाक का पता देने का ताल्लुक है वह स्‍वयं परिवादी का दायित्‍व था कि वह यह देखता कि उसके निर्गत आवंटन पत्र  विपक्षी सं0 2 के पते पर पहुंचा है या नहीं। परिवादी ने किसी स्‍थान पर यह नहीं बताया कि आवंटन पत्र विपक्षी सं० 2 पते पर किस तिथि को पहुँचा परिवादी यह अवश्य कहता है कि, आवंटन पत्र उसे दिनांक 14-3-07 को प्राप्त हुआ परन्तु इस कथन का कोई आशय कदापि नहीं हो सकता कि आवंटन पत्र दिनांक 14-3-07 को ही विपक्षी सं0 2 के पते पर पहुंचा था। परिवादी यह नहीं बताता कि उसने स्वंय डाक का पता विपक्षी सं० 2 का डाक का पता क्‍यों बताया है। ऐसा प्रतीत होता है कि परिवादी विपनी सं० 2 में या तो नौकरी करता है अथवा उसके आसपास कही रहता है अतः स्वंय परिवादी का दायित्व था कि वह दिनांक 14-3-07 से पहले ही अपने हक में निर्गत आवंटन पत्र की

 

 

 

-4-

जानकारी रखता। परिवाद पत्र के पैरा-5 में परिवादी यह कहता है कि विपक्षी सं० 2 के पत्र दिनांक 14-3-07 से उसे आवंटन पत्र प्राप्त हुआ यदि परिवादी विपक्षी सं० 2 के पते पर नहीं रहता अथवा कार्य करने के लिये न आता तो उसे विपक्षी सं0 2 का दिनांक 14-3-07 का पत्र दिनांक 14-3-07 को ही प्राप्त नहीं हो सकता था। यह परिस्थिति पुनः यही प्रमाणित करती है कि दिनांक 14-3-07 का पत्र परिवादी ने विपक्षी सं0 2 से मिलकर साक्ष्य तैयार करने के उददेश्य से अपने हक में जारी करा लिया है और इस परिस्थिति का ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि दिनांक 14-3-07 से पहले आवंटन पत्र आने की परिवादी को कोई जानकारी नहीं थी।

परिवादी ने किसी स्थान पर यह नहीं कहा कि ऋण की शर्तों के अन्‍तर्गत विपक्षी सं० 2 का यह दायित्व था कि वह आवंटन पत्र आने की सूचना परिवादी को देगा यदि परिवादी और विपक्षी सं02 के मध्‍य ऐसा कोई अनुबन्ध रहा होता तब तो पहले से प्राप्त आवंटन पत्र को दिनांक 14-3-07 को हस्‍तगत करने के आधार पर विपक्षी सं० 2 के पक्ष पर सेवा में कमी हो सकती थी। परन्तु वर्तमान में विपक्षी सं० 2 के पक्ष पर सेवा में कमी का कोई प्रकरण प्रमाणित नहीं होता है।

ब्रोशर की शर्तों के अनुसार और परिवादी के आवेदन से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादी ने आवंटन के संदर्भ में नकद भुगतान योजना का विकल्प चुना था और यह भुगतान बकाया रकम का 60 दिन के अन्दर होना था जिसे परिवादी नहीं कर सका। ब्रोशर की शर्तों में यह भी स्‍पष्ट करती है कि 60 दिन के अन्दर भुगतान प्राप्त न होने पर पंजीयन की राशि जप्त हो जानी थी। इस फोरम को ऐसी समीक्षा करने का अधिकार नहीं कि 60 दिन की अवधि आवंटन पत्र प्राप्त होने की तिथि दिनांक 14-3-07 के उपरान्त प्रारम्‍भ मानी जायेगी। इस बिन्‍दु को निर्णीत कराने के लिये परिवादी को व्यवहार न्यायालय के समक्ष जाना चाहिए था। व्यवहार न्यायालय साक्ष्य की विस्तृत समीक्षा के आधार पर, इस बिन्दु पर निष्कर्ष दे पाता कि ब्रोशर की शर्तों के अनुसार 60 दिन की अवधि किस दिन से प्रारम्भ होगी। ब्रोशर की शर्तों के अनुसार परिवादी के आवंटन का निरस्तीकरण और पंजीयन राशि का जप्तीकरण निश्चित ही अनुबन्ध के अनुरूप है और आवंटन निरस्त करके तथा पंजीयन राशि जप्त करके, विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। इस प्रकार इस फोरम की राय में परिवादी ने जितनी की प्रार्थनाए इस फोरम से की है उनमें से कोई भी प्रार्थना स्वीकार होने योग्य नहीं पायी जाती है।''

 

 

 

 

-5-

मेरे द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के निर्णय में किसी प्रकार के कोई अ‍विधिक तथ्‍य नहीं पाये गये। तदनुसार अपील की लम्‍बन अवधि को दृष्टिगत रखते हुए व अपीलार्थी के अधिवक्‍ता की अनुपस्थिति पूर्व में व आज पुन: अनुपस्थिति को दृष्टिगत रखते हुए जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय मेरे द्वारा पूर्णत: उचित पाया जाता है, जिसमें किसी प्रकार के संशोधन की आवश्‍यकता नहीं है। जहॉं तक वाद व्‍यय के रूप में परिवादी द्वारा दोनों विपक्षीगण को 5,000/-5,000/-रू0 की धनराशि की देयता का प्रश्‍न है, उपरोक्‍त देयता समाप्‍त की जाती है।

तदनुसार प्रस्‍तुत अपील अन्तिम रूप से निस्‍तारित की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की  गयी  हो  तो  उक्‍त  जमा  धनराशि  अर्जित  ब्‍याज  सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

आशुलिपि‍क से अपेक्षा की जाती है कि‍ वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

     (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

अध्‍यक्ष

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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