Uttar Pradesh

StateCommission

A/2006/714

Mahesh Kumar Saxena - Complainant(s)

Versus

New Okhla Industrial Development Authority - Opp.Party(s)

Sushil Kumar Sharma

30 Sep 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2006/714
( Date of Filing : 22 Mar 2006 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mahesh Kumar Saxena
a
...........Appellant(s)
Versus
1. New Okhla Industrial Development Authority
a
...........Respondent(s)
First Appeal No. A/2006/829
( Date of Filing : 03 Apr 2006 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. N O I D A
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Mahesh Kumar Saxena
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 30 Sep 2021
Final Order / Judgement

                                              सुरक्षि‍त

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                     

अपील संख्‍या- 829/2006

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गौतमबुद्ध नगर द्वारा परिवाद संख्‍या- 1080/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 08-02-2006 के विरूद्ध)

 

न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी मेन एमिनिस्‍ट्रेटिव बिल्डिंग सेक्‍टर-6 नोएडा, डिस्ट्रिक गौतमबुद्धनगर, (यू0पी0)

चीफ एक्‍जीक्‍यूटिव आफीसर।

                                                                                                                              अपीलार्थी

                              बनाम 

महेश कुमार सक्‍सेना, पुत्र श्री एस०एस० सक्‍सेना निवासी- बी-87, सेक्‍टर 23 नोएडा डिस्ट्रिक गौतमबुद्ध नगर, (यू0पी0)

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक शुक्‍ला

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित :   विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा

                 प्रत्‍यर्थी

                     अपील संख्‍या- 714/2006

महेश कुमार सक्‍सेना, पुत्र श्री एस०एस० सक्‍सेना निवासी- बी-87, सेक्‍टर 23 नोएडा डिस्ट्रिक गौतमबुद्ध नगर, (यू0पी0)

                                                                                                  .अपीलार्थी

                         बनाम

न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी मेन एमिनिस्‍ट्रेटिव बिल्डिंग सेक्‍टर-6 नोएडा, डिस्ट्रिक गौतमबुद्धनगर, (यू0पी0)

चीफ एक्‍जीक्‍यूटिव आफीसर।

                                                                                                   विपक्षी

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित :  विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक शुक्‍ला

 

मक्ष:-  

 माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य

 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

 

 

                                                                                                          2

 

दिनांक 02-11-2021

 

माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

                                                                                                            निर्णय

  प्रस्‍तुत अपील संख्‍या- 829/2006 अपीलार्थी न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी द्वारा परिवाद संख्‍या- 1080 सन् 2003 श्री महेश कुमार सक्‍सेना बनाम न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, गौतमबुद्ध नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 08-02-2006 के विरूद्ध धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है। जिला उपभोक्‍ता आयोग गौतमबुद्धनगर के उपरोक्‍त निर्णय के विरूद्ध अपील संख्‍या-714/2006 अपीलार्थी महेश कुमार सक्‍सेना द्वारा प्रस्‍तुत की गयी है।

 दोनों अपीलें एक ही निर्णय के विरूद्ध योजित की गयी हैं। अत: इन दोनों अपीलों का निस्‍तारण साथ-साथ किया जा रहा है। अपील संख्‍या- 829/2006 अग्रणी होगी।

 अपील संख्‍या- 829/2006 में संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि दिनांक 22-12-87 को मेसर्स इम्‍पीरियल प्‍लास्टिक्‍स एण्‍ड केमिकल्‍स ने एक भूखण्‍ड संख्‍या– बी-87 सेक्‍टर-23 में क्षेत्रफल 207 वर्ग मीटर आवंटित किया और विक्रय विलेख परिवादी के नाम से दिनांक 12-08-1988 को निष्‍पादित किया गया तथा दिनांक 16-08-1988 को उसका आधिपत्‍य परिवादी को दिया गया और तब से यह भूखण्‍ड परिवादी के आधिपत्‍य में है।

परिवादी का नक्‍शा दिनांक 02-02-1994 को स्‍वीकृत हुआ और जब निर्माण कार्य हो रहा था तब श्री भूलेराम ने अतिरिक्‍त सिविल जज सप्‍तम गाजियाबाद के न्‍यायालय में एक निषेधाज्ञा वाद संख्‍या-232/1994 प्रस्‍तुत

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किया जिसमें कथित भूमि के साथ उपरोक्‍त भूखण्‍ड भी शामिल था जिसमें एकपक्षीय आदेश निर्गत हुआ। बाद में परिवादी के प्रार्थना-पत्र पर न्‍यायालय ने मकान का स्‍लेब पूरा करने की अनुमति दी।

अपीलार्थी ने अपना लिखित जवाब प्रस्‍तुत किया लेकिन वाद श्री भूलेराम के पक्ष में दिनांक 22-02-2000 को निर्णीत हुआ। अपीलार्थी ने इसके विरूद्ध एक अपील संख्‍या-60/2000 जिला जज गाजियाबाद के न्‍यायालय में प्रस्‍तुत किया जो अपर जिला जज गाजियाबाद द्वारा दिनांक 17-01-2003 को निरस्‍त हुआ। इसके विरूद्ध माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय में अपील विचाराधीन है।

प्रत्‍यर्थी ने छल-कपट और झूठे तथ्‍यों पर विद्वान जिला आयोग में वाद प्रस्‍तुत किया है जिसमें विद्वान जिला आयोग ने बिना अपीलार्थी के लिखित कथन और साक्ष्‍य के निर्णय सुनाया। विद्वान जिला आयोग इस तथ्‍य को समझने में असफल रहे कि इस भूखण्‍ड पर प्रत्‍यर्थी का कब्‍जा दिनांक       16-08-88 से है। विद्वान जिला आयोग ने यह निष्‍कर्ष दिया कि द्धादश अपर जिला जज के आदेश दिनांक 17-01-2003 के विरूद्ध माननीय उच्‍च न्‍यायालय में अपील विचाराधीन है जिसका अंतिम रूप से निस्‍तारण नहीं हुआ है। अत: यह मामला अंतिम रूप से निस्‍तारित हुआ नहीं माना जाएगा। विद्वान जिला आयोग ने गलत और विधि विरूद्ध तरीके से परिवाद स्‍वीकृत किया है साथ ही साथ 5,00,000/-रू० मानसिक उत्‍पीड़न के पक्ष में हर्जाना देने का आदेश दिया है। प्रश्‍नगत आदेश मनमाना, विधि विरूद्ध क्षेत्राधिकार से परे और नैसर्गिक न्‍याय के विरूद्ध है। सेवा में कोई कमी नहीं है और न ही कोई गलत संव्‍यवहार का प्रयोग किया गया है। संविदा का संतुलन अपीलार्थी के पक्ष में है अत: ऐसी स्थिति में वर्तमान अपील स्‍वीकार करते हुए प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 08-02-2006  को अपास्‍त किया जाए।

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हमने न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी की ओर से उपस्थित  विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक शुक्‍ला तथा परिवादी महेश कुमार सक्‍सेना की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा को सुना और पत्रावली का सम्‍यक रूप से परिशीलन किया।

हमने विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया।

विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में कहा है कि सिविल कोर्ट में चतुर्थ अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन गाजियाबाद के निर्णय दिनांक      22-02-2000 के अन्‍तर्गत भूलेराम को भूमि का काबिज मानते हुए उसके कब्‍जे में किसी प्रकार से संबंधित पक्षों को व्‍यवधान उत्‍पन्‍न करने से प्रतिबन्धित किया गया। नोएडा प्राधिकरण की ओर से उक्‍त निर्णय के विरूद्ध द्धादश अपर जिला जज गाजिगयाबाद के यहॉं अपील दायर की गयी जो दिनांक         17-01-2003 को निर्णीत हुयी। उक्‍त निर्णय में अपील व्‍यय सहित खारिज की गयी तथा अधीनस्‍थ न्‍यायालय के निर्णय व डिक्री दिनांकित 22-02-2000 को पुष्‍ट किया गया। फोरम द्वारा अपने अंतरिम आदेश दिनांक 28-03-2005 के अन्‍तर्गत विपक्षी से न्‍यायालय में लंबित विवाद की वर्तमान स्थिति  स्‍पष्‍ट करने की अपेक्षा की गयी तथा परिवादी से प्रश्‍नगत भूखण्‍ड पर निर्मित भवन एवं मांगी गयी क्षतिपूर्ति से संबंधित विवरण प्रस्‍तुत करने को कहा गया। विपक्षी प्राधिकरण की ओर से इस सम्‍बन्‍ध में अवगत कराया गया है कि अपर जिला जज गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय दिनांक 17-01-2003 की अपील  माननीय उच्‍च न्‍यायालय में विचाराधीन है। विपक्षी की ओर से इस प्रकार का कोई भी साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं हुआ है जिससे यह पुष्‍ट होता हो कि वर्तमान में प्रश्‍नगत भूमि पुर्नग्रहीत होकर प्राधिकरण को हस्‍तांतरित हो गयी है किन्‍तु यह

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सत्‍य है कि मामला अभी अंतिम रूप से निस्‍तारित नहीं हुआ है और परिवादी निर्माण कार्य करने के प्रति स्‍वतंत्र नहीं है।

विद्वान जिला आयोग ने आगे लिखा है कि जहॉं तक भूखण्‍ड के आवंटन तथा उसके विवाद से उत्‍पन्‍न हुई मानसिक पीड़ा का प्रश्‍न है उसका प्रतिकर भी विपक्षी नोएडा को परिवादी को भुगतान करना चाहिए। इसका आधार यह कि नोएडा ने याची के पक्ष में आवंटन वर्ष 1987 में किया और 1,17,990/-रू0 मूल्‍य प्राप्‍त किया और 12-08-1988 को पट्टा निष्‍पादित कर दिया। ये सब कार्यवाही यह प्रदर्शित करती है कि प्राधिकरण ने बगैर किसी जॉंच के अपनी भूमि न होते हुए आवंटित कर दी। इस भूमि पर विवाद वर्ष 1994 में शुरू हो गया तब भी विपक्षी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि उक्‍त्‍ भूमि के बारे में उसकी क्‍या स्थिति है और न ही याची को किसी प्रकार से कहीं और स्‍थापित करने का प्रयास किया। याची को जो सम्‍पत्ति आवंटित की गयी थी वह भूलेराम के नाम अंकित थी और उसका अधिग्रहण भी नहीं किया अर्थात वर्ष 1994 से वर्ष 2006 तक याची मानसिक व शारीरिक यंत्रणा झेल रहा है जो विपक्षी के कारण हुई। विपक्षी केवल विवादों में उलझा रहा है। सम्‍पत्ति का मूल्‍य निरंतर बढ़ रहा है और अपने हितो की रक्षा कर रहा है और सेवा में कमी को किसी प्रकार से स्‍वीकार करने को तैयार नहीं है, तथा याची को उसके कारण जो असुविधा हो रही है अर्थात मूल्‍य देने के उपरान्‍त भी याची उस सम्‍पत्ति का उपभोग नहीं कर पा रहा है और उपभोग न होने देने का कारण विपक्षी स्‍वयं है। विपक्षी मुकदमेबाजी तो कर रहा है परन्‍तु याची को कोई अनुतोष न तो प्रदान कर रहा है और न ही इस विवाद को बाहर करने का प्रयास कर रहा है। इस मानसिक यंत्रणा को जो निरंतर है और जिसका अंत नहीं हो रहा है क्‍योंकि विपक्षी ने अपनी स्थिति जाने बगैर ही उच्‍च न्‍यायालय

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में अपील कर दी है जिसका निर्णय याची के जीवनकाल में हो अथवा नहीं, ज्ञात नहीं है। इस प्रकार विपक्षी याची को 5,00,000/-रू0 की धनराशि मानसिक प्रताड़ना व शारीरिक कष्‍ट के भुगतान करने के उत्‍तरदायी है।

विद्वान जिला आयोग ने इसी आधार पर निम्‍न आदेश पारित किया है-

"उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर फोरम का आदेश है कि विपक्षी नोएडा प्राधिकरण परिवादी श्री महेश कुमार सक्‍सेना मूल आवंटी को क्षेत्रफल के समतुल्‍य आवासीय भूखण्‍ड निकटवर्ती सेक्‍टर में उपलब्‍धता के अनुसार आज से दो माह की अवधि में उक्‍त भूखण्‍ड के स्‍थान पर आवंटित करें जिसका मूल्‍य तत्‍कालीन आवंटित भूखण्‍ड के समतुल्‍य होगा। मानसिक यंत्रणा और शारीरिक कष्‍ट के लिए 5,00,000/- उक्‍त अवधि में विपक्षी याची को भुगतान करे तथा वाद व्‍यय के रूप में 2000/-रू० भी विपक्षी से याची पाने का अधिकारी है। फोरम के आदेश का अनुपालन न होने की स्थिति में याची विपक्षी से 5,00,000/-रू० की धनराशि पर 4 प्रतिशत ब्‍याज प्रार्थना पत्र के दिनांक से भुगतान होने के दिनांक तक पाने का अधिकारी होगा।"

इस आदेश से व्‍यथित होकर अपीलार्थी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

हमने द्धादस अपर जिला जज गाजियाबाद द्वारा सिविल अपील संख्‍या-60/2000 न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी बनाम एन०सी० गोयल के मामले में पारित निर्णय दिनांक 17-01-2003 का अवलोकन किया।

विद्वान अपीलीय न्‍यायालय ने इस मामले में कहा है कि धारा-122/बी की कार्यवाही खारिज हुयी और चॅूकि विवादित भूमि ग्राम सभा की नहीं थी अत: नोएडा को उसमें आवंटन करने का कोई अधिकार नहीं था। अब वादी ही विवादित भूमि का मालिक काबिज है और यदि वादी को विवादित भूमि का स्‍वामी न माना जाए तब भी राजकीय सम्‍पत्ति  पर किसी व्‍यक्ति के काबिज

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होने की स्थिति में विधिक प्रक्रिया का अनुसरण करके उसका अधिपत्‍य समाप्‍त किया जा सकता है। राजस्‍व अभिलेखों में वादी का नाम दर्ज है और उसका कब्‍जा बतौर घेर सिद्ध है। अपीलीय न्‍यायालय ने आगे लिखा है कि अपील के आधारों पर जाने से पहले मैं अधीनस्‍थ न्‍यायालय में पक्षकारों के केस का संक्षिप्‍त विवरण आवश्‍यक पाता हूँ। वादी प्रत्‍यर्थी भूलेराम पुत्र हरलाल का अपने वाद पत्र में संक्षिप्‍त कथन था कि विवादित भूमि का पुराना नम्‍बर-810 रकबा 1-9-0 स्थित ग्राम चौड़ा सादपुर परगना तहसील दादरी जिला गाजियाबाद खेवट नम्‍बर-1 मुहाल भदीया का है, जिसे इस खेवट के अन्‍य नम्‍बरान के साथ वादी के बाबा छज्‍जू ने बजरिये बैनाम 1934 में उसके पूर्व मालिक से क्रय किया था और तब ही से वादी का बाबा छज्‍जू समस्‍त खावेट के साथ उक्‍त खसरा नम्‍बर का मालिक था। छज्‍जू के दो पुत्र शिवलाल व हरलाल पिता वादी थे। सन 1955 की कार्यवाही चकबंदी में शिवलाल व हरलाल का बंटवारा हो गया और विवादित खसरा नम्‍बर 810 रकबा -1-9-0 हरलाल पिता वादी के हिस्‍से में आया और पिता वादी हरलाल की मृत्‍यु के बाद वादी विवादित नम्‍बर का तन्‍हा मालिक व काबिज चला आ रहा है। चॅूंकि प्रत्‍यर्थीगण संख्‍या 8 व 9 उसके सगे भाई हैं, अत: न्‍यायालय के आदेशानुसार उन्‍हें पक्षकार बनाया गया किन्‍तु उनके खिलाफ कोई अनुतोष नहीं चाहा। विवादित खसरा नं 810 का नया नम्‍बर कार्यवाही चकबन्‍दी में 469 रकबा 1-9-0 हो गया जिसमें वादी का खाता बना हुआ है। कागजात माल में बदस्‍तूल वादी के पिता का नाम दर्ज चला आता है तथा जमीदार खात्‍मा के समय भी वादी के पिता व ताऊ की काश्‍त में था जो कभी ग्राम सभा में निहित नहीं हुआ। विवादित भूमि के सन्‍दर्भ में न्‍यायालय तहसीलदार सिकन्‍दराबाद के यहॉं वाद संख्‍या 1544 अन्‍तर्गत धारा-122 बी उत्‍तर प्रदेश जमीदार खात्‍मा एवं भूमि सुधार अधिनियम चला जिसमें पिता

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वादी का कब्‍जा जायद  12 साल माना गया तथा नोटिस अन्‍तर्गत धारा 122 बी वापस किया तब जाकर कार्यवाही समाप्‍त हुयी। विवादित भूमि न कभी राज्‍य सरकार द्वारा अर्जित की गयी और न कब्‍जा लिया गया।

अधीनस्‍थ न्‍यायालय ने कहा है कि वादी पूर्वजों के जमाने से बतौर घेर इस्‍तेमाल करता चला आ रहा है और घेर भवन की परिभाषा में आता है और विवादित भूमि परिवादी की भूमि है। यदि भूमि नोएडा के विकसित क्षेत्र में स्थि‍त है तो निर्माण के लिए आवश्‍यक अनुमति नोएडा अथारिटी से लेनी होगी। चॅूकि जमीन नोएडा ग्राम सभा की नहीं थी अत: नोएडा को जमीन आवंटन करने का अधिकार नहीं था। अपीलीय न्‍यायालय ने अपीलार्थी की अपील दिनांक 17-01-2003 को खारिज कर दी और यह माना कि वादी का ही कब्‍जा राजस्‍व भवन पर है न कि नोएडा अथारिटी का। यहॉं पर यह कहना समीचीन होगा कि अपीलीय न्‍यायालय के आदेश के विरूद्ध अपील माननीय उच्‍च न्‍यायालय में लम्बित है। माननीय उच्‍च न्‍यायालय का कोई ऐसा आदेश प्रस्‍तुत नहीं किया गया है जिससे यह निष्‍कर्ष निकल सके कि वह अपील अंतिम रूप से निस्‍तारित हो गयी है।

अपील संख्‍या-714/2006  में अपीलार्थी का कथन है कि विद्वान जिला आयोग ने अपीलार्थी/परिवादी के भूखण्‍ड को नहीं देखा। विद्वान जिला आयोग ने विपक्षी को 8,50,000/-रू० वापस करने का आदेश न देकर त्रुटि कारित की है साथ ही निर्माण से संबंधित लागत 5,00,000/-रू० और अपीलार्थी/परिवादी द्वारा 108 माह तक किराए के मकान में रहने संबंधी किराया, 3,00,000/-रू०, भूलेराम बनाम एन०सी० गोयल में परिवाद व्‍यय खर्च के रूप में 25,000/-रू० कुल 8,25,000/-रू० अदा करने का आदेश नहीं दिया है। इसके अतिरिक्‍त वाद व्‍यय का खर्च 11,000/-रू० अदा करने का आदेश देना चाहिए था।

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विद्वान जिला आयोग का प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश विधि विरूद्ध है। अत: अपील स्‍वीकार करते हुए मांगा गया अनुतोष प्रदान किया जाए।

हमने उभय-पक्ष को सुना एवं पत्रावली का सम्‍यक रूप से अवलोकन किया ।

हमने जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय का अवलोकन किया।

इस मामले से संबंधित एक अन्‍य अपील, अपील संख्‍या 829/2006 भी इसी न्‍यायालय में इसी वाद के साथ निस्‍तारित की जा रही है जो नोएडा अथारिटी द्वारा महेश कुमार के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है जिसमें प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश को अपास्‍त करने की याचना की गयी है। इन दोनों अपीलों का निस्‍तारण एक साथ किया जा रहा है।

वर्तमान मामले में यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि प्रश्‍नगत भूखण्‍ड को आवंटित करने का अधिकार नोएडा अथारिटी के पास नहीं था फिर भी उसने इसे आवंटित किया और भूलेराम ने अपने स्‍वामित्‍व के अभिलेखों को दीवानी न्‍यायालय में दिखाते हुए मूल वाद और प्रथम अपील में सफलता प्राप्‍त किया। नोएडा अथारिटी द्वारा इसकी अपील माननीय उच्‍च न्‍यायालय में प्रस्‍तुत की गयी है जिसका कोई निर्णय प्रस्‍तुत नहीं किया गया है। वर्तमान मामले में अपीलार्थी महेश कुमार सक्‍सेना को 1987 में भूखण्‍ड आवंटित हुआ है और उसने 1,17,990/-रू० का भुगतान भी कर दिया था। दिनांक 16-08-88 को भूखण्‍ड का कब्‍जा भी दे दिया गया। दिनांक 02-02-1994 को निर्माण संबंधी मानचित्र भी स्‍वीकृत हो गया और जब परिवादी ने निर्माण कार्य शुरू किया तब सिविल जज सप्‍तम गाजियाबाद ने भूलेराम के पक्ष में स्‍थगन आदेश पारित किया उसमें तृतीय पक्ष के नाम निर्णय पारित किया जा चुका है जो अपील में यथावत रहा।  यह स्‍पष्‍ट हो गया कि 1987 में भूखण्‍ड आवंटित किया और

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दिनांक 12-08-88 को संबंधित पट्टा प्रलेख का निष्‍पादन भी हो गया। अत: अगस्‍त के महीने को छोड़ दे तब दिनांक 01-08-88 से जो भी क्षति परिवादी को हुयी उसको अदा करने हेतु नोएडा प्राधिकरण उत्‍तरदायी होगा। यहॉं पर ऐसा प्रतीत होता है कि नोएडा प्राधिकरण ने भूखण्‍ड आवंटित करने के पूर्व 25 साल और 12 साल के रेवन्‍यू का अवलोकन नहीं किया अन्‍यथा ऐसी स्थिति नहीं आती । यदि रेवन्‍यू के अभिलेख में तृतीय पक्ष का नाम अंकित है तब नोएडा अथारिटी को कहीं से अधिकार प्राप्‍त नहीं था कि वह इस भूखण्‍ड का आवंटन अपने स्‍तर से करता।

परिवादी महेश कुमार सक्‍सेना ने निम्‍नलिखित अनुतोष मांगा है-

  • परिवादी को प्राधिकरण द्वारा सेक्‍टर 23 अथवा किसी नजदीकी सेक्‍टर में 207 वर्ग मीटर का कार्नर प्‍लाट बिना किसी अतिरिक्‍त खर्चे के आवंटित किया जाए।

ब- परिवादी को उसके प्‍लाट नं० बी-87 सेक्‍टर 23, नोएडा पर मौजूदा निर्माण की कीमत रूपये 8,50,000/-रू० विपक्षी से दिलाया जाए।

स- परिवादी द्वारा विपक्षी की लापरवाही से विभिन्‍न मदों में किये गये व्‍यय नुकसान रू० 8,25,000/-(जिसका वर्णन परिवाद पत्र की धारा-19 में दिया गया है, को विपक्षी से 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित वापस दिलाया जाए।

द- परिवादी को विपक्षी से मानसिक यातना एवं सामाजिक क्षतिपूर्ति हेतु रूपये 50,000/-रू० दिलाया जाए।

व- परिवादी को विपक्षी से कानूनी व्‍यय के मद में 11,000/-रू० दिलाया जाए।

 

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र- अन्‍य कोई अनुतोष जो माननीय फोरम परिवादी के हक में उचित समझे विपक्षीगण के विरूद्ध आदेशित किया जाए।

      वर्तमान मामले में अपीलार्थी न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी द्वारा एक ऐसे भूखण्‍ड को आवंटित किया गया है जो सरकारी अभिलेखों में किसी अन्‍य के नाम से अंकित है। अत: जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय को अपास्‍त करने का कोई औचित्‍य नहीं है। अपील संख्‍या 714/2006 में परिवादी महेश कुमार सक्‍सेना ने यह तर्क लिया कि उसे नोएडा अथारिटी द्वारा एक भूखण्‍ड आवंटित किया गया और जब उसका नक्‍शा स्‍वीकृत किया गया तब उसका कार्य दीवानी न्‍यायालय के आदेश से रोका गया क्‍योंकि उक्‍त भूखण्‍ड किसी भूलेराम के नाम से राजकीय अभिलेखों में अंकित था। परिवादी ने लिखा है कि जब स्‍वीकृत मानचित्र के आधार पर भवन निर्माण कार्य में स्थिति छत डालने की आ गयी तब भूलेराम द्वारा दीवानी न्‍यायालय में वाद दायर किया गया और उसका निर्माण कार्य रोक दिया गया और यह 1994 से आज तक रूका हुआ है। विद्वान जिला आयोग ने इस तथ्‍य को संज्ञान में नहीं लिया कि निर्माण कार्य में उसका कुल कितना खर्च हुआ है।

       परिवादी ने लिखा है कि उसने जो निर्माण कराया उस पर 8,50,000/-रू० खर्च हुआ, जो सम्‍भव नहीं है क्‍योंकि उस मकान की छत भी नहीं पड़ी थी और यह धनराशि अत्‍यधिक है। इस मद में वह दो लाख रूपये पाने का अधिकारी है। परिवादी ने इस भूखण्‍ड के सम्‍बन्‍ध में लिखा है कि 17,990/-रू० जमा किया है और दिनांक 12-08-88 को पट्टा प्रलेख  का निष्‍पादन भी हो गया। निर्माण कराते समय वर्ष 1994 में दीवानी वाद के कारण निर्माण कार्य स्‍थगित हुआ है। इसी बीच भूमि की कीमतें लगातार बढ़ रही है और न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी का यह दायित्‍व है कि वह इस भूखण्‍ड

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के बदले उसी क्षेत्रफल का दूसरा भूखण्‍ड परिवादी को प्रदान करे जिसके सम्‍बन्‍ध में कहीं कोई दावा न चल रहा हो और जो राजयकीय अभिलेखों में 25 साला और 12 साला अभिलेखों के अन्‍तर्गत साफ आफर सुथरी प्रकृति का हो।

     यह भी स्‍पष्‍ट है कि परिवादी इस दीवानी वाद के चलते लगातार मानसिक यंत्रणा से घिरा रहा है। अत: इस मद में जो धनराशि दी गयी है वह अत्‍यधिक कम है। परिवादी ने यह भी कहा है कि वह 3,500/-रू० मासिक किराये पर रहा है जबकि यह मामला वर्ष 2003 का है, वर्तमान समय में उस क्षेत्र में मकान के किराए की दर भी 15,000/-रू० से कम नहीं है और परिवादी ने इस सम्‍बन्‍ध में कोई स्‍पष्‍ट कथन नहीं किया है परन्‍तु अनुतोष (र) में कहा है कि अन्‍य कोई अनुतोष जो माननीय फोरम परिवादी के हक में उचित समझे विपक्षीगण के विरूद्ध आदेशित किया जाए। विद्वान जिला आयोग ने इन तथ्‍यों पर ध्‍यान नहीं दिया। अत: जिला आयोग का प्रश्‍नगत निर्णय संशोधित होने योग्‍य है।

 जिला आयोग ने अपने आदेश में कहा है कि "उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर फोरम का आदेश है कि विपक्षी नोएडा प्राधिकरण परिवादी श्री महेश कुमार सक्‍सेना मूल आवंटी को क्षेत्रफल के समतुल्‍य आवासीय भूखण्‍ड निकटवर्ती सेक्‍टर में उपलब्‍धता के अनुसार आज से दो माह की अवधि में उक्‍त भूखण्‍ड के स्‍थान पर आवंटित करें जिसका मूल्‍य तत्‍कालीन आवंटित भूखण्‍ड के समतुल्‍य होगा। "

यह निष्‍कर्ष उचित है और इसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है। इसके अतिरिक्‍त परिवादी निम्‍नलिखित अन्‍य अनुतोषों को पाने का अधिकारी होगा।

 

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(1) विपक्षी  न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी को आदेशित दिया जाता है कि वह परिवादी को दिनांक 01-01-1995 से भुगतान की तिथि तक उसे भूखण्‍ड के आवंटन की तिथि तक प्रत्‍येक माह के किराये के रूप में 10,000/-रू० का भुगतान करेंगे।

(2) निर्माणाधीन भवन पर व्‍यय की गयी कुल धनराशि 2,00,000/-रू० का भुगतान प्राधिकरण परिवादी को करे जिस पर दिनांक 01-01-1995 से 10 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी देय होगा।

(3) मानसिक यंत्रणा और शारीरिक कष्‍ट के लिए 50,000/- देने के लिए प्राधिकरण को आदेशित किया जाता है और इस धनराशि पर दिनांक        01-01-98  से 10 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज देय होगा।  

प्राधिकरण विभिन्‍न वादों की पैरवी के सम्‍बन्‍ध में कुल 2,50,000/- भी परिवादी को अदा करे जिस पर दिनांक 01-01-1995 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज भी देय होगा।

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील संख्‍या 829/2006 निरस्‍त होने योग्‍य है और अपील संख्‍या 714/2006 आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।                                                                            

आदेश

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील संख्‍या 829/2006 निरस्‍त की जाती है और अपील संख्‍या 714/2006 आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित आदेश को निम्‍न प्रकार से संशोधित करते हुए विपक्षी न्‍यू ओखला इ‍ण्‍डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी को आदेशित किया जाता है कि वह आदेश का अनुपालन इस अपील में हुये निर्णय से 30 दिन के अन्‍दर करना सुनिश्चित करें अन्‍यथा की स्थिति में आदेशित की गयी धनराशि पर 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज देय होगा।

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        (1) यह कि‍ विपक्षी परिवादी को दिनांक 01-01-1995 से भुगतान की तिथि तक भूखण्‍ड के आवंटन की तिथि तक प्रत्‍येक माह के किराये के रूप में 10,000/-रू० का भुगतान करेंगे।

(2) यह कि विपक्षी परिवादी को निर्माणाधीन भवन पर व्‍यय की गयी कुल धनराशि 2,00,000/-रू० का भुगतान दिनांक 01-01-1995 से 10 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ करेंगे।

(3) यह कि विपक्षी परिवादी को मानसिक यंत्रणा और शारीरिक कष्‍ट के लिए 50,000/- का भुगतान दिनांक 01-01-98  से 10 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ करेंगे।    

विपक्षी प्राधिकरण विभिन्‍न वादों की पैरवी के सम्‍बन्‍ध में कुल 2,50,000/- भी परिवादी को अदा करेंगे जिस पर दिनांक 01-01-1995 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज भी देय होगा।

      वाद व्‍यय पक्षकारों पर।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

(सुशील कुमार)                                            (राजेन्‍द्र सिंह)            

      सदस्‍य                                                       सदस्‍य

 

      निर्णय आज दिनांक- 02-11-2021 को खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित/दिनां‍कित होकर उद्घोषित किया गया।

 

(सुशील कुमार)                                            (राजेन्‍द्र सिंह)            

      सदस्‍य                                                        सदस्‍य

 

कृष्‍णा–आशु0 कोर्ट-2

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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