Madhya Pradesh

Seoni

CC/39/2013

GAJIR AHMAD KURESI - Complainant(s)

Versus

NEW INDIA INSURANCE COMPANY LMT. JABALPUR - Opp.Party(s)

16 Jul 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)

 प्रकरण क्रमांक -39-2013                               प्रस्तुति दिनांक-01.05.2013


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

जमीर अहमद कुरैषी, वल्द महबूब अहमद,
आयु लगभग 46 वर्श, निवासी-एकता कालोनी
अकबर वार्ड सिवनी, तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।...........................................................आवेदक परिवादी।


                :-विरूद्ध-:      

           
(1)    प्रबंधक,
       न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड,
       दलसागर के सामने, भैरोगंज रोड
       सिवनी, जिला सिवनी (म0प्र0)।
(2)    प्रबंधक,
       फ्रानिटयर एस बजाज, जबलपुर रोड
       सिवनी (म0प्र0)।
(3)    प्रबंधक,
        बजाज आटो फायनेंस, बजाज फायनेंस
       लिमिटेड, पुरानी मुम्बर्इ पुणे रोड, पुणे
       (महाराश्ट्र)।............................................अनावेदकगण विपक्षीगण।    

                
                 :-आदेश-:
    
     (आज दिनांक-             को पारित)

द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, बीमित उसके वाहन-पल्सर मोटरसायकिल क्रमांक-एम0पी0 22ए.सी.2048 के दिनांक-23.07.2012 को चोरी हो जाने के पष्चात पेष बीमा क्लेम, फरवरी-2013 में अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा अस्वीकार कर दिये जाने को और अनावेदक क्रमांक-2 और 3 द्वारा वाहन के फायनेंस की राषि की मांग को अनुचित बताते हुये, अनावेदक क्रमांक-1 से क्लेम राषि दिलाने व तब-तक वाहन के षेश फायनेंस किष्तों की मांग अनावेदकों द्वारा न किये जाने व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)         मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने उक्त वाहन, अनावेदक क्रमांक-2 से खरीदा था, वाहन क्रय करने के लिए राषि अनावेदक क्रमांक-3 से फायनेंस कराया था और अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी के द्वारा वाहन को दिनांक-22.2.2012 से 21.02.2013 तक की अवधि के लिए बीमित किया गया था, जिसकी बीमा पालिसी क्रमांक-4505 0231110100014965 रही है। यह भी विवादित नहीं कि-परिवादी के पुत्र- जावेद अहमद द्वारा, दिनांक-25.07.2012 को पुलिस थाना, सिवनी में इस आषय की रिपोर्ट की गर्इ थी कि-दिनांक-23.07.2012 को दिन के करीब डेढ़ बजे उक्त मोटरसायकिल बिना नंबर की धूमा के आगे जबलपुर की ओर बंजारी घाटी में खड़ी कर, परिवादी पास में ही पेषाब करने लगा, गाड़ी में चाबी लगी थी, तभी तीन अज्ञात नकाबपोष मोटरसायकिल से आये और परिवादी की मोटरसायकिल चालू कर चुरा कर ले गये। यह भी विवादित नहीं कि-अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी द्वारा, परिवादी के क्लेम बाबद परिवादी द्वारा अपने उक्त संपतित की सुरक्षा में लापरवाही किये जाने को बीमा षर्तों का उल्लघंन होना बताते हुये, परिवादी से सात दिन के अंदर स्पश्टीकरण दिनांक-14.02.2013 के पत्र के द्वारा, बीमा कम्पनी द्वारा चाहा गया व परिवादी द्वारा कोर्इ जवाब न दिये जाने पर, दिनांक-30.03.2013 के पत्र के द्वारा, परिवादी के क्लेम को अस्वीकार कर दिये जाने की सूचना भेजी गर्इ।  
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- अनावेदक क्रमांक-3 से उक्त वाहन खरीदे जाने बाबद 54045-रूपये फायनेन्स परिवादी ने प्राप्त किया था और ऋण राषि की अदायगी बाबद 2463-रूपये की मासिक किष्त अदा की जानी थी, जो कि-मार्च-2013 तक परिवादी ने किष्तों का भुगतान किया, दिनांक-23.07.2012 को परिवादी का पुत्र जो जबलपुर में पढ़ता है, वह उक्त मोटरसायकिल से जबलपुर जा रहा था, रास्ते में धूमा के आगे बंजारी घाटी के पास जब वह मोटरसायकिल खड़ी कर, सड़क किनारे पेषाब कर रहा था, तभी तीन अज्ञात व्यकित बिना नंबर की मोटरसायकिल, डिस्कवर में आये, उसमें से एक व्यकित परिवादी की मोटरसायकिल उठाकर स्टार्ट करके ले गया, आवेदक का पुत्र उनकी काफी तलाष करता रहा, पर मोटरसायकिल नहीं मिली, तो पुलिस थाना-धूमा में रिपोर्ट दर्ज करार्इ थी, परिवादी द्वारा, अनावेदकगण को वाहन चोरी की सूचना दी गर्इ, किन्तु अनावेदक क्रमांक-1 ने क्लेम राषि भुगतान से इंकार कर दिया। अनावेदक क्रमांक-3 फायनेन्स कम्पनी को भी गाड़ी चोरी हो जाने के बाद भी मार्च-2013 तक किष्तों का भुगतान किया गया, जो कि-क्लेम राषि का भुगतान न कर, अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है, अनावेदक क्रमांक-2 व 3 के द्वारा, वाहन खरीदी के ऋण की किष्तों की राषि जमा करने के लिए दवाब डाला जा रहा है। 
(4)        अनावेदक क्रमांक-2 के जवाब का सार यह है कि-वह वाहन का विक्रेता है, वाहन के ऋण की किष्त की मांग अनावेदक क्रमांक-3 के द्वारा की जा रही है, तो अनावेदक क्रमांक-2 से मामले का कोर्इ संबंध नहीं है। 
(5)        अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी के जवाब का सार यह है कि-परिवादी द्वारा, दिनांक-12.02.2013 को बीमा कम्पनी के षाखा कार्यालय अनावेदक क्रमांक-1 को पत्र के द्वारा, वाहन चोरी हो जाने की सूचना दी गर्इ और सूचना के उपरांत आवेदक ने क्षतिपूर्ति का बीमा दावा पेष किया था, जो कि-पुलिस थाना में रिपोर्ट लिखाने में किये गये विलम्ब और अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी को सूचना देने में हुये विलम्ब का कोर्इ स्पश्टीकरण नहीं दिया गया है, जबकि-समय पर पुलिस में रिपोर्ट लेख करार्इ गर्इ होती, तो घटना स्थल के आगे-पीछे पुलिस चौकी पर वाहन चोर को तुरंत पकड़ा जा सकता था, जो कि-परिवादी की लापरवाही के कारण यह नहीं हो सका। परिवादी के पेष दस्तावेजों से यह भी स्पश्ट है कि-यात्रा के दौरान मोटरसायकिल के पोस में चाबी लगी सिथति में ही रास्ते में परिवादी के पुत्र द्वारा खड़ा कर दिया गया, जो वाहन की सुरक्षा के प्रति घोर लापरवाही है, जिसके संबंध में परिवादी को नोटिस भी दिनांक-14.02.2013 को प्रेशित किया गया था, लेकिन परिवादी द्वारा कोर्इ स्पश्टीकरण न देने पर, दिनांक-30.03.2013 के पत्र के द्वारा क्लेम निरस्ती की सूचना परिवादी को भेज दी गर्इ, जो कि-पालिसी की षर्त में यह प्रावधान रहा है कि-बीमित वाहन को बीमा धारक हानि और क्षति से बचाने और उसे सक्षम सिथति में बनाये रखने के लिए उचित कदम उठायेगा। और परिवादी के पुत्र ने स्वयं रिपोर्ट में लिखाया है कि-उसने चाबी वाहन में ही लगी छोड़ दी थी और चोरी हो जाने के दो दिन बाद दिनांक-25.07.2012 को थाना में रिपोर्ट दर्ज कराया, इसलिए वाहन को क्षति से बचाने का कोर्इ उपाय नहीं किया गया और विलम्ब से जो रिपोर्ट दर्ज करार्इ गर्इ है, वह विष्वसनीय नहीं, जो कि-बीमा षर्तों के उल्लघंन किये जाने से दावा निरस्त किया गया है।
(6)        अनावेदक क्रमांक-3 की ओर से कोर्इ जवाब मामले में पेष नहीं।
(7)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह है कि:-
        (अ)    क्या अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के
            बीमा क्लेम को अस्वीकार कर दिया जाना और
            अनावेदक क्रमांक-3 वाहन के फायनेन्स कम्पनी 
            द्वारा, ऋण की बकाया किष्तों की मांग किया 
            जाना अनुचित होकर, परिवादी के प्रति की गर्इ
            सेेवा में कमी है?
        (ब)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(8)        जहां-तक अनावेदक क्रमांक-2 का प्रष्न है, तो वह मात्र परिवादी को उक्त कथित वाहन, मोटरसायकिल का विक्रेता है, जिसे मामले में अनावष्यक रूप से पक्षकार बनाया गया है और अनावेदक क्रमांक-3 कथित वाहन क्रय करने हेतु परिवादी को ऋण प्रदान करने वाला फायनेन्सर है, तो वाहन के चोरी या खुर्दबुर्द हो जाने और परिवादी को बीमा क्लेम प्राप्त न होने जैसे आधारों पर, परिवादी ऋण अदायगी की किष्तों से कोर्इ छूट प्राप्त करने का अधिकार रखता हो, ऐसा कोर्इ आधार परिवाद में या किसी दस्तावेज में नहीं दर्षाया गया है, तो अनावेदक क्रमांक-3 को भी परिवादी ने मामले में अनावष्यक रूप से पक्षकार बनाया है। और अनावेदक क्रमांक-3 के द्वारा ऋण किष्त की मांग किया जाना कोर्इ सेवा में कमी की श्रेणी में नहीं आता है, तो अनावेदक क्रमांक-2 और 3 के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं की गर्इ है।
(9)        अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से पेष उक्त बीमा पालिसी षर्तों की प्रति प्रदर्ष आर-5 टूविलर पैकेज पालिसी के खण्ड कन्डीषन्स (षतोर्ंं) की कणिडका-4 में बीमाधारी के उपर यह दायित्व अधिरोपित किया गया था कि-वह या उसका कोर्इ ड्रायवर या कर्मचारी वाहन को किसी क्षति या हानि से सुरक्षित रखने के लिए सभी युकितयुक्त कदम उठायेगा और उचित सावधानी लिये बिना वाहन को अनारक्षित नहीं छोड़ा जायेगा, जो कि-स्वयं परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-1 की प्रथम सूचना रिपोर्ट जो कि- कथित घटना के समय उक्त वाहन, मोटरसायकिल चलाने वाले परिवादी के पुत्र द्वारा लेख करार्इ गर्इ है, उसमें ही यह स्पश्ट वर्णित है कि-वह वाहन, मोटरसायकिल को रोड के किनारे खड़ा करके और उसमें चाबी लगी छोड़कर लघुषंका के लिए चला गया और इस बीच तीन अज्ञात व्यकित मोटरसायकिल से आये और वाहन स्टार्ट करके चोरी करके ले गये, जो कि-उक्त का कोर्इ खण्डन भी परिवाद व परिवादी की ओर से पेष परिवादी के पुत्र के षपथ-पत्र में नहीं है। प्रदर्ष सी-1 की उक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट से यह भी स्पश्ट है कि-कथित वाहन में रजिस्ट्रेषन नंबर भी नहीं लिखा था, बिना नंबरी गाड़ी चोरी होना कही जा रही है, अर्थात वाहन में तत्काल दर्षमान पहचान हेतु नंबर प्लेट होना चाहिये, वह उपाय भी वाहन खरीदी के चार-पांच माह बाद भी नहीं किया गया और प्रदर्ष सी-1 की प्रथम सूचना रिपोर्ट से यह भी प्रकट है कि-दिनांक-23.07.2012 के दोपहर डेढ़ बजे की घटना होना कही जाती है, फिर भी दो दिन विलम्ब के पष्चात पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट लेख करार्इ गर्इ और रिपोर्ट में विलम्ब का कारण, मोटरसायकिल तलाष करना जो दर्षाया गया है, उसके लिये कोर्इ आधार संभव नहीं, जबकि-रिपोर्ट, वाहन के गुमने की नहीं, बलिक वाहन, परिवादी के पुत्र के सामने चुरा कर ले जाने की रही है, तो चोरी हुआ वाहन खोजने के लिए पुलिस तत्काल सक्रिय हो सके, ऐसा करने के लिए तत्काल रिपोर्ट करने का उपाय भी नहीं किया गया। 
(10)        अनावेदक क्रमांक-1 की ओर से प्रदर्ष आर-2 के रूप में परिवादी द्वारा, वाहन चोरी बाबद दिनांक-29.07.2012 का लिखित सूचना- पत्र की प्रति पेष की गर्इ है, जिसमें दिनांक-12.02.2013 की पावती लेख है और परिवादी, परिवाद में इस संबंध में मौन है कि-उसने वास्तव में कब अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी षाखा को वाहन चोरी हो जाने की लिखित सूचना प्रदान किया था। और इस तरह परिवादी द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी को वाहन चोरी की तत्काल सूचना न देकर, विलम्ब किया जाना भी स्पश्ट है। प्रदर्ष आर-3 का पत्र जिसे परिवादी ने भी प्रदर्ष सी-7 के रूप में पेष किया है, उससे यह स्पश्ट है कि-दिनांक-14.02.2013 के उक्त पत्र के द्वारा, बीमा कम्पनी ने संपतित की सुरक्षा में लापरवाही से गाड़ी में चाबी लगाकर रखने के कारण जो की गर्इ, उक्त संबंध में स्पश्टीकरण चाहा था और कोर्इ स्पश्टीकरण पेष न होने पर, दिनांक-30.03.2013 के सूचना-पत्र प्रदर्ष आर-4 के द्वारा क्लेम अस्वीकार करना सूचित किया।  
(11)        न्यायदृश्टांत-2013 (भाग-2) सी0पी0जे0 578 (राश्ट्रीय आयोग) जगदीष प्रसाद बनाम आर्इ.सी.आर्इ.सी.आर्इ. लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी वाले मामले में माननीय राश्ट्रीय आयोग ने वाहन को अनारक्षित व लाक किये बिना सड़क के किनारे खड़े कर दिये जाने को और चाबी वाहन में ही लगी छोड़ देने को वाहन के सुरक्षा के दायित्व बाबद वाहन के स्वामीड्रायवर के द्वारा की गर्इ घोर उपेक्षा होना माना है और वाहन के चोरी होने की सूचना बीमा कम्पनी को तत्काल न दिये जाने को भी बीमित के द्वारा की गर्इ बीमा षर्तों का उल्लघंन मानते हुये, क्लेम अस्वीकृति को हस्तक्षेप योग्य न होना निर्धारित किया है।
(12)        इसी तरह न्यायदृश्टांत-2013 (भाग-2) सी0पी0जे0 481 (एन0सी0) सतीश बनाम युनार्इटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, 2013 (भाग-1) सी0पी0जे0 71 (एन0सी0) वीरेन्दर कुमार अनाम न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी, 2013 (भाग-1) सी0पी0जे0 69 (एन0सी0) जोगिन्दर सिंह बनाम न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी और 2012 (भाग-4) सी0पी0जे0 441 (एस0सी0) न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड विरूद्ध त्रिलोचन जाने एवं 2013 (भाग-2) सी0पी0आर0 517 (एन0सी0) लखनपाल बनाम युनार्इटेड इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी के मामलों में पूर्व प्रतिपादनाओं को पुन: पुश्ट किया गया है कि-बीमित वाहन के चोरी होने के आधार पर, बीमा क्लेम के संबंध में तत्काल पुलिस को सूचना दिया जाना एवं बीमा कम्पनी को सूचित किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है और पुलिस या बीमा कम्पनी को विलम्ब से सूचना दिये जाने से क्लेम भुगतान करने वाले बीमा कम्पनी का वाहन को खोज सकने की कार्यवाही करने बाबद महत्वपूर्ण अधिकार प्रभावित होता है और इसलिए तत्काल सूचना की बीमा षर्त का उल्लघंन के आधार पर, क्लेम अस्वीकृति अनुचित नहीं।
(13)        प्रस्तुत मामले में वाहन चलाने वाले परिवादी के पुत्र के द्वारा, वाहन की चोरी से क्षति होने से रोकने बाबद समुचित युकितयुक्त संपतित की सुरक्षा के उपाय नहीं किये गये, रास्ते में लघुषंका के लिए जाते समय वाहन को न केवल बिना देखरेख के छोड़ा गया, बलिक वाहन को लाक भी नहीं किया गया और यहां-तक की वाहन में चाबी लगी रहने दी। और इस तरह वाहन में चाबी लगी होना निषिचत रूप से वाहन चलाने वाले परिवादी के पुत्र की ऐसी लापरवाही रही है, जो स्वयं चोरी की घटना को आमंत्रित करती है, तो वाहन की सुरक्षा को नजरअंदाज कर, बीमा षर्त का उल्लंघन किया गया और उक्त के पष्चात भी चोरी की घटना की पुलिस को दो दिन के अनुचित विलम्ब के साथ रिपोर्ट की गर्इ, जबकि-बीमा कम्पनी को कर्इ दिन बाद वाहन चोरी जाने की सूचना दी गर्इ। इस तरह परिवादी-पक्ष पूरी तरह संपतित की सुरक्षा बाबद घोर लापरवाह रहा है और उसने बीमा षर्तों का पालन न कर उल्लघंन किया है। फलत: अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के क्लेम को अस्वीकार किया जाना किसी भी तरह अनुचित नहीं है और इसलिए अनावेदक क्रमांक-1 ने, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी नहीं किया है। तब अनावेदकों द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है। 
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):- 
(14)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
        (अ)    परिवादी का यह परिवाद स्वीकार योग्य न होने से
            निरस्त किया जाता है।
        (ब)    परिवादी स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और
            अनावेदक क्रमांक-1 व 2 को कार्यवाही-व्यय के रूप
            में 1-1 हजार रूपये कुल-2,000-रूपये (दो हजार
            रूपये) आदेष दिनांक से तीन माह की अवधि के अंदर
            अदा करेगा।
            
   मैं सहमत हूँ।                                     मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
         सदस्य                                                   अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         

       (म0प्र0)                                                     (म0प्र0)

                        

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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