Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/110/2011

TILAKU - Complainant(s)

Versus

NEW INDIA INSURANCE CO.LTD. - Opp.Party(s)

RAMPYARE PAPA

08 Jan 2019

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum
Azamgarh(U.P.)
 
Complaint Case No. CC/110/2011
( Date of Filing : 03 Nov 2011 )
 
1. TILAKU
AZAMGARH
...........Complainant(s)
Versus
1. NEW INDIA INSURANCE CO.LTD.
AZAMGARH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE KRISHNA KUMAR SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 08 Jan 2019
Final Order / Judgement

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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 110 सन् 2011

   प्रस्तुति दिनांक 22.04.2013

                                     निर्णय दिनांक  08.01.2019

तिलकू पुत्र भगेलू उम्र लगभग 65 साल साकिनान मौजा- कोईरियापार तप्पा- नदवासराय, परगना- मुहम्दाबाद, तहसील- सदर, जनपद- मउनाथभंजन।..................................................................परिवादी।

बनाम

  1. शाखा प्रबन्धक यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा कार्यालय करहा जनपद मऊ।
  2. मण्डलीय प्रबन्धक नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड जरिए शाखा प्रबन्धक नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड शाखा कार्यालय ठण्डी सड़क राहुल नगर मड़या आजमगढ़।

..................................................................................विपक्षीगण।

उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव

 

  •  

अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा करहा जनपद मऊ से ट्रैक्टर खरीदने हेतु लोन लिया था और 4,50,000/- रुपये में 2006 में ट्रैक्टर खरीदा गया। विपक्षी संख्या 01 द्वारा उक्त ऋण खाते की धनराशि को प्रिजर्व करने के सन्दर्भ में परिवादी के उक्त खाते से प्रीमियम खाते की धनराशि आहरित कर उक्त ट्रैक्टर के ऋण से सम्बन्धित बीमा लगातार प्रत्येक वर्ष कराती रही। दिनांक 08.02.2007 को दुर्भाग्यवश ट्रैक्टर चोरी हो गया। जिसकी सूचना थाने में दी गयी। परिवादी को विश्वास था कि विपक्षी संख्या 01 द्वारा विपक्षी संख्या 02 से बीमा के परिप्रेक्ष्य में सम्पूर्ण ऋण धनराशि ऋण खाते में समायोजित कर ऋण खाते को बन्द कर दिया गया होगा, लेकिन उस वक्त उसे आश्चर्य हुआ कि बैंक द्वारा परिवादी को वसूली हेतु पुनः एक नोटिस दिनांक 29.01.2011 को प्राप्त हुई। तुरन्त परिवादी बैंक गया तो उसे जानकारी हुई कि उक्त ऋण खाते से तथाकथित ट्रैक्टर का बीमा सन् 2010 तक प्रत्येक वर्ष लगातार ऋण खाते से बीमा की प्रीमियम

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आहरित करते हुए करायी जाती रही है। जबकि उक्त ट्रैक्टर माह फरवरी, 2007 में ही चोरी हो गया था, जिसकी जानकारी भी विपक्षीगण को थी। उसके बावजूद भी विपक्षीगण ने घोर लापरवाही किया। परिवादी ऋण खाते को बन्द करने हेतु विपक्षी संख्या 01 से सम्पर्क किया, लेकिन विपक्षी द्वारा आजतक उक्त ऋण खाता को बन्द नहीं कराया गया और लगातार उसे माह जनवरी, 2011 से आजतक हैरान व परेशान किया जा रहा है। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या 01 से प्राप्त किए गए ऋण जो ट्रैक्टर खरीदने हेतु लिया था, चोरी हो जाने के कारण बीमित राशि का उसमें समायोजित कर खाता बन्द कर दिया जाए।

परिवादी द्वारा परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

परिवादी ने प्रलेखीय साक्ष्य में पंजीयन प्रमाणपत्र , लिए गए ऋण का विवरण, न्यायालय अपर मुख्य दण्डाधिकारी का आदेश, विधिक नोटिस, ऋण खाते का विवरण तथा रसीद रजिस्ट्री प्रस्तुत किया है।

विपक्षी संख्या 02 द्वारा कागज संख्या 10 जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है। विशेष कथन में विपक्षी संख्या 02 ने यह कहा है कि परिवादी को यह परिवाद दाखिल करने का कोई अधिकार हाशिल नहीं था। परिवादी ने परिवाद पत्र के धारा-3 में उल्लेख किया है कि विपक्षी संख्या 01 द्वारा प्रीमियम की धनराशि खाते से आहरित करके ट्रैक्टर के ऋण से सम्बन्धत बीमा लगातार प्रत्येक वर्ष कराया जाता रहा है। परन्तु परिवादी द्वारा अपने कथन में कहीं भी उक्त बीमा का उल्लेख नहीं किया गया है कि उक्त बीमा हम विपक्षी संख्या 02 के यहाँ से ही कराया जाता रहा है। परिवादी द्वारा बैंक स्टेटमेन्ट चार्ट दिनांक 30.03.2006 ईo से दिनांकित 08.03.2011 से बिल्कुल स्पष्ट होता है कि कथित चोरी की घटना दिनांक 08.02.2007 के दिन परिवादी का चोरी हुआ ट्रैक्टर

3

यू.पी.54एफ./8969 बीमाकृत नहीं रहा है। प्रस्तुत बैंक स्टेटस से यह भी स्पष्ट नहीं होता है कि उक्त ट्रैक्टर का बीमा विपक्षी संख्या 02 द्वारा किया गया था। परिवादी का ट्रैक्टर चोरी होने के सम्बन्ध में वह क्लेम प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। ट्रैक्टर चोरी होने की कोई सूचना विपक्षी को नहीं दी गयी। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद में न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 04.07.2010 के अवलोकन से बिल्कुल स्पष्ट होता है कि परिवादी के उक्त ट्रैक्टर के चोरी होने की घटना वर्ष 2009 में अपराध संख्या 284/2009 पंजीकृत हुआ, जिसमें विवेचक ने चोरी के सम्बन्ध में पर्याप्त साक्ष्य न पाये जाने के कारण अपनी अन्तिम रिपोर्ट लगा दी। परिवादी ने उसमें कोई आपत्ति नहीं किया। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र में कहीं ऐसा कथन नहीं किया गया है, जिससे स्पष्ट हो सके कि कथित चोरी की घटना दिनांक 08.02.2007 के समय परिवादी के ट्रैक्टर का बीमा बैंक अथवा परिवादी द्वारा कराया गया था न ही ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है जिससे स्पष्ट हो सके कि परिवादी का उक्त ट्रैक्टर कथित चोरी के समय बीमाकृत था और उसका बीमा विपक्षी संख्या 02 द्वारा किया गया था। परिवादी द्वारा प्रस्तुत बैंक के स्टेटमेन्ट चार्ट से बिल्कुल स्पष्ट होता है कि परिवादी के ट्रैक्टर की चोरी हुई ही नहीं थी। मात्र परिवादी मनगढ़न्त एवं बेबुनियादी आधारों पर कथित चोरी की घटना का कथन कर माननीय फोरम के माध्यम से बैंक विपक्षी संख्या 01 द्वारा दिए गए ट्रैक्टर लोन की अदायगी से स्वयं बचना चाहता है और बैंक के ऋण की अदायगी विपक्षी संख्या 02 से कराना चाहता है। परिवादी द्वारा कथित चोरी के बाबत विपक्षी संख्या 02 को कभी भी सूचना नहीं दी गयी। परिवाद कालबाधित है। स्टेटमेन्ट चार्ट से स्पष्ट होता है कि ट्रैक्टर का बीमा दिनांक 11.06.2008, 16.09.2009 व 29.09.2010 को हुआ था। इससे स्पष्ट है कि ट्रैक्टर 08.02.2007 को चोरी नहीं हुई थी। उक्त ट्रैक्टर परिवादी के पास वर्ष 2010 तक रहा। अतः परिवाद खारिज किया जाए।

 

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विपक्षी संख्या 02 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत कर यह कहा गया है कि परिवाद पत्र के पैरा 01 का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। परिवाद पत्र के धारा-2 के बारे में विपक्षी संख्या 01 का कथन है कि परिवादी व एक अन्य व्यक्ति श्री दयानन्द तिवारी ने संयुक्त रूप से ट्रैक्टर व उसके साधन खरीदने हेतु विपक्षी संख्या 01 के यहां से ऋण दिनांक 31.03.2006 को 4,50,000/- रुपया लिया था। जिसका ऋण खाता संख्या 418706040001157 है। जवाबदावा में परिवाद पत्र के अन्य कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि परिवाद बेबुनियाद है। विपक्षी संख्या 01 की शाखा कार्यालय जनपद मऊ में है और सम्पूर्ण वाद कारण मऊ में ही उत्पन्न हुआ था। अतः इस फोरम को परिवाद पत्र विचार करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी एवं श्री दयानन्द तिवारी पुत्र स्वo लोचन तिवारी निवासी- हिकमा, पोस्ट- कोपागंज, जिला- मऊ ने संयुक्त एच.एम.टी. ट्रैक्टर व इसके अन्य साधन खरीदने हेतु हम विपक्षी संख्या 01 बैंक से दिनांक 31.03.2006 को 4,50,000/- रुपया का ऋण लिया था, जिसकी अदायगी 17 अर्धवार्षिक किश्तों में किया जाना था। जिसकी पहली किश्त माह जनवरी 2007 में देय थी तथा उसके बाद प्रत्येक 06 माह बाद किश्तें देय थीं। परिवादी एवं दयानन्द तिवारी ने विपक्षी संख्या 01 से ऋण की अदायगी सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में वचन पत्र, हाइपोथिकेशन एग्रीमेन्ट व अपनी अचल सम्पत्तियों का साधारण बन्धकनामा आदि हस्ताक्षरित व निष्पादित किया था। मुख्य ऋणीगण द्वारा वित्तपोषित ट्रैक्टर का बीमा कराकर हमारी शाखा में बीमा पॉलिसी प्रस्तुत करना था, परन्तु जिसने ऋण लिया था उनके अनुरोध पर शाखा द्वारा मुख्य ऋणीगण के खाता से रुपया 8,078/- नामे कर नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड शाखा मऊनाथभंजन जिला मऊ से वित्तपोषित ट्रैक्टर का बीमा कराया था, जिसका कवर नोट संख्या 213074 है तथा जो दिनांक 17.04.2006 से दिनांक 16.04.2007 तक प्रभावी था। परिवादी एवं दयानन्द

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तिवारी खरीदे गए ट्रैक्टर की पंजीयन संख्या यू.पी.54एफ./8986 थी। परिवादी व दयानन्द तिवारी ने बैंक की कोई भी किश्त जमा नहीं किया, बल्कि समय-समय पर अनुरोध करके अपने वित्तपोषित ट्रैक्टर का बीमा ऋण खाते से करवाते रहे। लिए गए ऋण की वसूली हेतु समय-समय पर सूचना दी जा रही थी। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के जरिए प्रेषित नोटिस दिनांक 30.08.2011 के जरिए पहली बार विपक्षी संख्या 01 को सूचित किया गया कि उसका ट्रैक्टर वर्ष 2007 में चोरी हो गया था जिसके सम्बन्ध में धारा 156(03) जाब्ता फौजदारी के अधीन प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने पर माननीय न्यायालय के आदेश से प्राथमिकी दर्ज हुई थी। उसमें जाँच हुई और दिनांक 14.07.2010 को एफ.आर. जो दिखाया था वह स्वीकार किया गया था तथा कानूनी नोटिस प्राप्त करने के उपरान्त विपक्षी संख्या 01 द्वारा 20.09.2011 को जरिए परिवादी को शाखा में बुलाया गया और किश्तों की अदायगी हेतु अनुरोध किया गया जिसे पाने के बाद परिवादी ने बिना अपने सहकर्जदार श्री दयानन्द तिवारी को पक्षकार बनाए अकेले ही यह परिवाद पत्र प्रस्तुत कर दिया है। वसूली हेतु राजस्व अधिकारी द्वारा परिवादी पर दबाव दिए जाने पर परिवादी ने इस याचिका के कथनों के आधार पर बैंक के वसूली प्रमाणपत्र को चुनौती देते हुए माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष सिविल मिस. रिट पेटीशन संख्या सी.15701/2013, तिलकू बनाम यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया आदि दायर किया जिसमें दिनांक 19.03.2013 को बाद सुनवाई फरीकैन माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 19.03.2013 को निर्णय पारित किया और कहा गया कि परिवादी ने इन्श्योरेन्स कम्पनी के विरूद्ध मुकदमा उचित न्यायालय में दाखिल कर सकता है। परिवादी व उसके सहकर्जदार बैंक के डिफाल्टर हैं। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 19.03.2013 के प्रकाश में यह परिवाद रेसजुडिकेटा एवं प्रीन्सिपिल ऑफ हॉयरेरकी से बाधित है। परिवादी पब्लिक मनी का भुगतान नहीं करना चाहता है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।

 

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विपक्षी संख्या 01 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में बैंक द्वारा ज्वाइंट इंडिविजुअल द्वारा लिए गए ऋण का प्रमाणपत्र, हाइपोथिकेशन एग्रीमेन्ट, बैंक द्वारा लेटर यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया शाखा की छायाप्रति, शिव शक्ति इण्टरप्राइजेज के बिल की छायाप्रति दो किश्तों में, नेशनल इन्श्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड का इन्श्योरेन्स प्रमाणपत्र जो कि दिनांक 17.04.2006 से दिनांक 16.04.2007 तक था, बन्धक विलेख, ऋण वसूली की नोटिस की छायाप्रति दो किश्तों में, विधिक नोटिस की छायाप्रति, तिलकू को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, सर्टिफिकेट ऑफ रिकवरी की छायाप्रति, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश की छायाप्रति, ऋण के सम्बन्ध में चार्ट जो बैंक द्वारा प्रस्तुत किया गया है। बैंक की ओर से तिलकू को लिखे गए पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है।

सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रलेखीय साक्ष्य कागज संख्या 6/3 के अवलोकन से यह जाहिर हो रह है कि ऋण दो व्यक्तियों तिलकू और दयानन्द तिवारी ने लिया था। उक्त ऋण की कीमत 4,50,000/- रुपया थी, लेकिन परिवाद केवल तिलकू पुत्र भगेलू के द्वारा ही दाखिल किया गया है। दूसरे ऋणी दयानन्द तिवारी द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत नहीं किया गया है। कागज संख्या 6/3 के अवलोकन के उपरान्त यह सिद्ध हो रहा है कि दोनों ऋणी का दायित्व इस प्रकार का है कि उन्हें अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। बिना दयानन्द तिवारी को पक्षकार बनाए परिवादी तिलकू को याचित अनुतोष प्राप्त नहीं हो सकता है।

उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से यह परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।

 

 

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आदेश

परिवाद खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                    (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 

                        दिनांक 08.01.2019

यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

राम चन्द्र यादव                  कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                   (सदस्य)                          (अध्यक्ष)

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE KRISHNA KUMAR SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV]
MEMBER

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