Rajasthan

Ajmer

CC/363/2013

BIRDICHAND PALIWAL - Complainant(s)

Versus

NEW INDIA INS - Opp.Party(s)

ADV AVRAKESH KUMAR PALIWAL

16 Dec 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/363/2013
 
1. BIRDICHAND PALIWAL
AJMER
...........Complainant(s)
Versus
1. NEW INDIA INS
AJMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Vinay Kumar Goswami PRESIDENT
  Naveen Kumar MEMBER
  Jyoti Dosi MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 16 Dec 2016
Final Order / Judgement

जिला    मंच,     उपभोक्ता     संरक्षण,         अजमेर

वरदीचन्द्र  पुत्र श्री उदयराम जी खारोल, उम्र- वयस्क, निवासी- राजपुरा(दरीबा) तहसील- रेलमगरा, जिला-राजसमन्द (राजस्थान)

                                                -         प्रार्थी
                            बनाम

दी न्यू इण्डिया  एष्योरेंस क.लि. जरिए षाखा प्रबन्धक, षाखा कार्यालय, अजमेर षांति मेंषन कोतवाली स्कीम  खाईलैण्ड, अजमेर ।  
                                                    -   अप्रार्थी 
  

                 परिवाद संख्या 363/2013

                            समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी       अध्यक्ष
2. नवीन कुमार               सदस्य

                           उपस्थिति
                  1.श्री अविनाष षर्मा, अधिवक्ता, प्रार्थी
                  2.श्री राजेष जैन,अधिवक्ता अप्रार्थी 

                              
मंच द्वारा           :ः- निर्णय:ः-      दिनांकः-10.01.2017
 
1.             संक्षिप्त तथ्यानुसार  प्रार्थी का वाहन टवेरा  गाड़ी संख्या आर.जे.30.यू.ए.08090 जो अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां बीमित था का, दिनांक 1.9.2009 को दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर दुर्घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 234/2009 दिनांक 2.9.2009 को  पुलिस थाना- रोहट, जिला-पाली में दर्ज करवाई  गई । तत्पष्चात्  अप्रार्थी बीमा कम्पनी को सूचित किए जाने पर उनके निर्देषानुसार रेलन मोटर्स, अजमेर में वाहन की मरम्मत करवाई और मरम्मत में खर्च हुई राषि रू. 3,15,557/- का क्लेम समस्त औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए पेष किया । जिसे अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने अपने पत्र दिनांक 22.1.2.2009 के क्लेम  खारिज कर दिया । अप्रार्थी बीमा कम्पनी के इस कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में  प्रार्थी ने स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।  
2.    अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने जवाब प्रस्तुत कर प्रारम्भिक आपत्ति में दर्षाया है कि कथित दुर्घटना प्रथम सूचना रिपोर्ट के अनुसार दिनंाक 1.9.2009 को घटित हुई है  जबकि परिवाद समयावधि बाहर प्रस्तुत किया गया है जो प्रथम दृष्टया खारिज होने योग्य है । आगे पैरावाईज जवाब में  कथन किया है कि बरवक्त दुर्घटना वाहन चालक षराब के नषे में था इसलिए पुलिस ने संबंधित चालक के विरूद्व एमवी एक्ट की धारा 185 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की तथा और उक्त धारा के तहत ही न्यायालय में चालान पेष किया । वाहन चालक ने सक्षम न्यायालय में अपना जुर्म भी स्वीकार कर लिया ।  बावजूद तकाजों के प्रार्थी द्वारा वाहन की आर.सी व चालक का ड्राईविंग लाईसेन्स  प्रस्तुत नहीं किया । अपने अतिरिक्त कथन में उत्तरदाता ने दर्षाया है कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन का सर्वेयर श्री के.एल. गंुजल ने  सर्वे कर  रू. 2,75,895/- की क्षति आंकलित की। किन्तु आंकलित राषि का भुगतान प्रार्थी द्वारा मूल आर.सी. डी.एल आदि दस्तावेजात प्रस्तुत नहीं करने  व बरवक्त दुर्घटना  चालक द्वारा षराब का सेवन किए जाने  से बीमा पाॅलिसी की ष्षर्तों व एमवी एक्ट के प्रावधानों के उल्लंघन के कारण भुगतान नहीं कर क्ल्ेम खारिज किया गया और इसकी सूचना प्रार्थी को प्रेषित कर दी गई । इस प्रकार उनके स्तर पर कोई सेवा में कमी कारित नहीं की गई । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में श्री बी.एल.मानावत, वरिष्ठ मण्डल प्रबन्धक ने अपना ष्षपथपत्र पेष किया है ।  
3.    उभय पक्षकारान ने अपने अपने पक्ष कथन को बहस में तर्क के रूप में दोहराया है । हमने सुना, रिकार्ड देखा।
4.    अप्रार्थी की ओर से आपत्ति ली गई है कि परिवाद समय अवधि के बाहर प्रस्तुत किया गया है क्येांकि कथित दुर्घटना दिनंाक 1.09.2009 को घटित होना बताया गया है वह परिवाद दिनंाक 8.7.2013 को प्रस्तुत हुआ है । प्रार्थी ने हालांकि अप्रार्थी की इस प्रारम्भिक आपत्ति के बाद दिनंाक 22.5.2015 को मियाद अधिनियम की धारा 5 के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र मय षपथपत्र प्रस्तुत करते हुए परिवाद  प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब का कारण बीमा कम्पनी द्वारा  लम्बे समय तक  क्लेम प्रकरण लम्बित  रखते हुए क्लेम खारिज  किया जाना एवं जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, राजसमन्द द्वारा उक्त  परिवाद में उनके समक्ष प्रस्तुत  परिवाद पर पूर्ण विचारण के लिए लम्बित रखने के बाद क्षेत्राधिकार के आधार पर परिवाद का लौटाया जाना रहा है । इस संबंध में  प्रार्थी की ओर से स्वयं का षपथपत्र पेष हुआ है ।  
5.    यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ने प्रष्नगत वाहन से दुर्घटना घटित होने के बाद सर्वप्रथम दिनंाक 22.6.2010 को स्थायी लोक अदालत, राजसमन्द  में याचिका संख्या 08/2010 प्रस्तुत की है तथा यह याचिका  विद्वान स्थायी लोक अदालत, राजसमन्द द्वारा आदेष दिनंाक 28.2.2012 को सक्षम न्यायालय अथवा मंच में पेष करने हेतु लौटाया गया है ।  उक्त परिवाद पर स्थायी लोक अदालत ने  अब तक की गई सद्भावनापूर्वक कार्यवाही में लगे समय को परिसीमा  अधिनियम , 1963 की धारा 14 के अन्तर्गत निर्धारित  कुल अवधि में से  अपवर्जित किए जाने के आदेष दिए है । यह बडे़ खेद का विषय है कि  प्रार्थी द्वारा उकत स्थायी लोक अदालत, राजसमन्द के समक्ष  किए गए परिवाद बाबत् तथ्यों का कोई खुलासा नहीं किया है । पत्रावली में  उपलब्ध जिला मंच, राजसमन्द के आदेष दिनंाक 14.5.2013 के अनुसार प्रार्थी ने उक्त मंच के समक्ष दिनंाक 18.5.2012 को इसी मामले से संबंधित परिवाद प्रस्तुत किया है तथा उक्त मंच द्वारा दिनंाक 14.5.2013 को क्षेत्राधिकार के अभाव में खारिज किया गया है तथा परिवाद को सक्षम न्यायालय/ मंच में प्रस्तुत करने हेतु लौटाए जाने का आदेष दिया है । प्रार्थी ने इस मंच के समक्ष दिनंाक 8.7.2013 को यह परिवाद पुनः प्रस्तुत किया है ।  इस प्रकार प्रार्थी द्वारा स्थायी लोक अदालत , राजसमंद  व उपभोक्ता मंच, राजसमन्द के समक्ष इन्हीं तथ्यों से संबंधित परिवाद प्रस्तुत करने व उक्त अदालत/ मंच द्वारा परिसीमा को सुरक्षित रखते हुए सक्षम न्यायालय/मंच में प्रस्तुत करने हेतु दिए गए निर्देषों के प्रकाष में यह परिवाद परिसीमा के अन्तर्गत प्रस्तुत करना पाया जाता है ।  
6.    अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने प्रार्थी का परिवाद अपने पत्र दिनंाक 
22.12.2009 के द्वारा खारिज  करते हुए इसका कारण प्रार्थी द्वारा  बीमा कम्पनी द्वारा पत्र दिनंाक 4.12.2009 के जरिए  चाही गई जानकारी बाबत्  रजिस्ट्रेषन प्रमाण  पत्र/ ड्राईविंग लाईसेंस , प्रथम सूचना रिपोर्ट, फौजदारी वाद से संबंधित पेपर  प्रस्तुत नहीं करने के कारण व दुर्घटना  के समय  ड्राईवर द्वारा  षराब का सेवन  करते हुए  वाहन को चलाया जाना, जो कि बीमा पाॅलिसी की षर्तो का उल्लंघन था, के आधार पर निरस्त किया है । 
7.    प्रष्न यह है कि क्या प्रार्थी द्वारा क्लेम प्रस्तुत करते समय रजिस्ट्रेषन प्रमाण  पत्र/ ड्राईविंग लाईसेंस , प्रथम सूचना रिपोर्ट, फौजदारी वाद से संबंधित पेपर  बावजूद स्मरण पत्र के बीमा कम्पनी को प्रस्तुत नहीं किए ?  क्या वाहन चलाते समय वाहन चालक नषे में था? और ऐसा किया जाना क्या बीमा पाॅलिसी की षर्तो का उल्लंघना माना जाएगा ? 
8.    प्रार्थी की ओर से बहस में तर्क प्रस्तुत किया गया है कि दुर्घटना के बाद क्लेम के साथ साथ समस्त पत्र आदि प्रस्तुत कर दिए थे  तथा बार बार सम्पर्क किए जाने के बावजूद क्लेम स्वीकृत नहीं किया गया व  वाहन में हुए मरम्मत में खर्च हुई  समस्त राषि प्रार्थी द्वारा  वहन की गई है । दुर्घटना के संबंध में उसके वाहन चालक ने  षराब का सेवन नहीं किया था और  न ही पुलिस द्वारा उसका कोई मेडिकल करवाया गया । जिसमें किसी निष्चित मात्रा में ऐसे किसी मादक पदार्थ के सेवन की बात सामने आई हो, जिसके कारण वाहन के चालक के द्वारा नियन्त्रण खोने की स्थिति  पैदा हुई हो । 
9.    यहां यह उल्लेखनीय है कि पत्रवली में उपलब्ध  प्रथम सूचना रिपोर्ट, पुलिस द्वारा अनुसंधान की समस्त कार्यवाहियां व अन्त में पुलिस थाना, रोहट, जिला-पाली द्वारा अभियुक्त भैरूलाल के खिलाफ अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट(साम्प्रदायिक दंगा मामले)  मंे धारा 279, 337 भारतीय दण्ड संहिता एवं धारा 185 मोटरयान दुर्घटना  अधिनियम  के तहत प्रस्तुत चालान व अभियुक्त द्वारा धारा 185  मोटरयान दुर्घटना अधिनियम के अन्तर्गत जुर्म स्वाकारोक्ति व तदानुसार उक्त अपराध का दोषी पाए जाने के फलस्वरूप दण्डित  करते हुए दी गई सजा को  ध्यान में रखते हुए यह सिद्व रूप से प्रकट होता है कि वक्त दुर्घटना  प्रष्नष्गत वाहन का चालक षराब के नषे में था तथा  जो बीमा पाॅलिसी की षर्तों  के उल्लंघन के कृत्य की तारीफ में आता है ।  प्रार्थी द्वारा वाहन की  पाॅलिसी लिया जाना विवादित नहीं है किन्तु उसने प्रष्नगत वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने पर बीमा कम्पनी को कब सूचित किया, ऐसा उसके परिवाद अथवा ष्षपथपत्र से कहीं स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होता है ।  उसने अपने अधिवक्ता के माध्यम से बीमा कम्पनी को नोटिस भी देना बताया है किन्तु उपलब्ध नोटिस में न तो नोटिस भेजने की कोई तिथि अंकित है और ना ही इसमें वह तिथि  बताई गई है जो उनके द्वारा बीमा कम्पनी को क्लेम प्रस्तुत करने अथवा सूचित करने से संबंधित हो । इस प्रकार उसने बीमा कम्पनी को दुर्घटना के बाद तुरन्त ही सूचित कर दिया हो, ऐसा  भी उसकी ओर से सिद्व नहीं हुआ  है ।  नियमानुसार बीमा कम्पनी को दुर्घटना घटित होने के 48 घण्टे के अन्दर अन्दर सूचित किया जाना आवष्यक है जब तक की अन्यथा स्थिति  उत्पन्न न  हो गई हो । इसके अलावा प्रार्थी ने बीमा कम्पनी को उनके द्वारा चाहे गए प्रलेख यथा रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र ड्राईविंग लाईसेन्स,  फौजदारी केस से संबंधित पेपर भी  भिजवा दिए  हो, यह भी प्रार्थी सिद्व नहीं कर पाया है । 
10.    कुल मिलाकर सार यह है कि जिस प्रकार बीमा कम्पनी ने उपरोक्त आधारों को ध्यान में रखते हुए प्रार्थी के क्लेम को खारिज किया है, में किसी प्रकार की कोई सेवा में कमी सामने नहीं आई है । मंच की राय में परिवाद अस्वीकार किया जाकर खारिज होने योग्य है एवं आदेष है कि 
                       -ःः आदेष:ः-
11.            प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार  किया जाकर  खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
            आदेष दिनांक 10.01.2016   को  लिखाया जाकर सुनाया गया 


 (नवीन कुमार )                                (विनय कुमार गोस्वामी )
      सदस्य                                                अध्यक्ष    
           
 


 

 

 


    

 
 
[ Vinay Kumar Goswami]
PRESIDENT
 
[ Naveen Kumar]
MEMBER
 
[ Jyoti Dosi]
MEMBER

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