Uttar Pradesh

Faizabad

CC/16/2014

AKIL AHMAD - Complainant(s)

Versus

NEW INDIA ASSO. - Opp.Party(s)

12 Aug 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/16/2014
 
1. AKIL AHMAD
KARIM KHAN BARTAN SHOP 9/6/131CHOUK BISATKHAN
...........Complainant(s)
Versus
1. NEW INDIA ASSO.
BRANCH OFFICE 159, RIKABGANJ FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
    

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य


परिवाद सं0-16/2014


अकील अहमद पुत्र श्री छोट्टन खान, प्रोपराइटर मे0 करीमखान बरतन शाप 9/6/131, चैक बिसातखाना, परगना हवेली अवध तहसील, शहर डाकखाना एवं जिला फैजाबाद                              .................परिवादी     
                    बनाम


1-    शाखा प्रबन्धक, दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी, शाखा कार्यालय 159, रिकाबगंज फैजाबाद।
2-    क्षेत्रीय प्रबन्धक, दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी द्वारा शाखा प्रबंधक, शाखा कार्यालय 159, रिकाबगंज फैजाबाद                                 ...............विपक्षीगण                
निर्णय दिनाॅंक 12.08.2015    

 

                    
                        निर्णय 


    उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष

    परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध दुकान में हुए आगजनी से हुई क्षति तथा बीमा दावा की धनराशि दिलाये जाने हेतु योजित किया है।

    संक्षेप में परिवादी का परिवाद इस प्रकार है, कि परिवादी मे0 करीमखान बर्तन शाप 9/6/131, चैक, बिसातखाना, शहर डाकखाना एवं जिला फैजाबाद का अपने पिता  के  बाद से प्रोपराइटर व सहस्वामी है। परिवादी ने वित्तीय सहायता जरिये सी0 


                    (  2  )

02,सी0 लिमिट भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा फैजाबाद प्राप्त थी। बैंक के माध्यम से ही परिवादी की दूकान का बीमा दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी विपक्षी सं0-1 के द्वारा दि0 03.04.2012 को बीमा पालिसी नं0-4217014812060000006 कुल मु0 5,284=00 का प्रीमियम अदा करके किया गया था, जिसके अन्तर्गत अग्नि जनित क्षति से होने वाले समस्त प्रकार के नुकसान जैसे प्रथम श्रेणी भवन निर्माण की क्षतिपूर्ति तथा दूकान में स्थित माल व सामान आदि से होने वाली क्षति कुल मु0 14,38,000=00 समाहित थी। उक्त बीमा दि0 03.04.2012 को 03.37.07 बजे अपरान्ह से प्रारम्भ होकर दि0 02.04.2013 को अपरान्ह 11.59.59 बजे तक प्रभाावी एवं वैध था। दुर्भाग्यवश दि0 24.10.2012 को शहर के चैक क्षेत्र में दंगा और बलवा भड़कने के कारण चैक क्षेत्र की तमाम दूकानें लूटकर जला दी गयी जिनमें परिवादी की दूकान भी एक थी। आग अग्निशमन दल द्वारा बुझायी जा सकती इससे पहले ही सारा सामान जल कर खाक हो गया और पूरी दूकान तबाह हो गयी जिसमें परिवादी का लगभग 55 लाख रूपये का नुकसान हुआ। इसकी एफ0आई0आर0 भी दर्ज हुई तथा सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों की टीम के द्वारा भी परिवादी की हुई हानि का आकलन 55 लाख रूपये का किया गया। परिवादी की दूकान की आगजनी से हुई क्षति की क्षतिपूर्ति व बीमा दावा की राशि प्राप्त करने के लिए परिवादी ने विपक्षी सं0-1 के निर्देशानुसार समस्त औपचारिकताएं पूरी करके बीमा पालिसी की शर्तो के अनुसार कुल बीमा राशि मु0 14,38,000=00 प्राप्त करने हेतु आवेदन किया। किन्तु उक्त बीमाकर्ता कंपनी के द्वारा परिवादी को मु0 14,38,000=00 का भुगतान करने के बजाय केवल 3,97,971=00 का भुगतान अंतिम निस्तारण के रूप में किया गया। शेष बीमा राशि का भुगतान न करने का कोई कारण भी उक्त बीमा कम्पनी के द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया। परिवादी को उक्त राशि अपने ऋणदाता बैंक भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा फैजाबाद के दबाव में स्वीकार करना पड़ा, क्योंकि बैंक ने परिवादी का खाता एन0पी0ए0 घोषित कर दिया था और वसूली का बराबर दबाव बना रहा था।

    विपक्षीगण पर तामीली पर्याप्त मानी गयी और परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध एक पक्षीय किया गया। 
    
    परिवादी ने एक पक्षीय साक्ष्य दाखिल किया तथा दस्तावेजी साक्ष्य दाखिल किया।

    मैं पत्रावली में उपलब्ध समस्त साक्ष्य का अवलोकन किया। परिवादी ने अपनी दुकान का बीमा मु0 14,38,000=00 का करवाया था। बीमा पालिसी के अनुसार:-

                   (  3  )

1ए-  आगजनी से क्षति इमारत व निर्माण               738000=00     1476=00
1बी-  आगजनी से क्षति जिसमें धन तथा बहुमूल्य सामान     700000=00        1470=00
2-    दुकान में नकब लगाकर चोरी               700000=00        1750=00
3ए-    आवागमन में धन की क्षति                 15000=00        50=00
3बी-    व्यवसाय के दौरान काउन्टर में मौजूद धन          5000=00        50=00
3सी-    व्यवसाय के बाद आलमारी में रखा हुआ धन        1            50=00

इस प्रकार मु0 14,38,000=00 का दुकान का बीमा किया। परिवादी को विपक्षीगण ने मार्च 2013 को मु0 3,97,971=00 दुकान की क्षति के सम्बन्ध में बीमित धनराशि की अदायगी किया है, जिसे परिवादी ने पूर्ण सहमति से मु0 3,97,971=00 दि0 25.03.2013 को प्राप्त किया। मु0 3,97,971=00 घटाने के उपरान्त् परिवादी ने यह परिवाद मु0 10,40,029=00 की क्षतिपूर्ति के लिए दाखिल किया है। इसके साथ-साथ मानसिक क्षति ब्याज व वाद व्यय की माॅंग किया है। परिवादी ने अपने परिवाद में तथा साक्ष्य में कितने रूपये की बिल्डिंग में क्षति हुई तथा कितने धन की और बहुमूल्य वस्तुओं का नुकसान हुआ, इसको दर्शित नहीं किया है। बीमा पालिसी की धारा-2 के अनुसार नकब लगा करके कोई चोरी नहीं की गयी है। इस प्रकार परिवादी इसकी क्षतिपूर्ति नहीं प्राप्त कर सकता। इसी प्रकार धारा-3ए- के तहत पैसा ले जाते समय कोई लूट नहीं हुई। इस प्रकार यह धनराशि भी प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। धारा-3बी- के अनुसार व्यवसाय के दौरान जो काउन्टर में रूपये था इसके सम्बन्ध में भी परिवादी ने अपने साक्ष्य में नहीं कहा है। इसी प्रकार धारा-3सी- के अनुसार व्यवसाय के उपरान्त् आलमारी में कितना रूपया था इस सम्बन्ध मंे साक्ष्य में कुछ नहीं कहा है। केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट में मु0 1,32,000=00 कैश के रूप में व्यापारियों को देने हेतु दुकान में रखा था, लिखा है। इस प्रकार धारा-3सी- तथा 1बी- का यह रूपया माना जायेगा। साक्ष्य में स्पष्ट रूप से दुकान की कितनी क्षति हुई है। सामान की कितनी क्षति हुई है और कितना रूपया कैश जल गया है, स्पष्ट रूप से विवरण देना चाहिए। केवल परिवाद में यह कह देना कि पालिसी 14,38,000=00 की थी, वह बीमित धनराशि दिलाया जाय पर्याप्त नहीं है। परिवादी ने विपक्षीगण से मु0 3,97,971=00 पूर्ण सहमति से तथा पूर्ण सन्तुष्टि में प्राप्त किया है। इस धनराशि को प्राप्त करने के उपरान्त् परिवादी को परिवाद योजित करने का अधिकार नहीं रह जाता है। इस प्रकार मैं परिवादी के परिवाद में बल नहीं पाता हूॅं। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। 


                    (  4  )

                     आदेश

        परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। 

           (विष्णु उपाध्याय)           (माया देवी शाक्य)            ( चन्द्र पाल )            
               सदस्य                    सदस्या                   अध्यक्ष       
    
                    
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 12.08.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।


           (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)              ( चन्द्र पाल )
                सदस्य                 सदस्या                      अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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