Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/425/2014

Maheshwari Pandey - Complainant(s)

Versus

New Best Fancy Footwear - Opp.Party(s)

07 Dec 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/425/2014
 
1. Maheshwari Pandey
Gomtinagar
Lucknow
Uttar Pradesh
...........Complainant(s)
Versus
1. New Best Fancy Footwear
Nazirabad
lucknow
Uttar Pradesh
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vijai Varma PRESIDENT
 HON'BLE MR. Rajarshi Shukla MEMBER
 HON'BLE MRS. Anju Awasthy MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, लखनऊ।
वाद संख्या 425/2014

श्री माहेश्वरी पाण्डेय, आयु लगभग 40 वर्ष, 
निवासी- ई-3/285, विनय खंड-3, 
गोमती नगर, लखनऊ।
                                     ......... परिवादी
बनाम

   न्यू बेस्ट फैन्सी फुट वीयर,
         द्वारा प्रोपराइटर्स श्री रफात एवं श्री शानू,
         नजीराबाद, लखनऊ।                              
                                  ..........विपक्षी
उपस्थितिः-
श्री विजय वर्मा, अध्यक्ष।
श्रीमती अंजु अवस्थी, सदस्या।
श्री राजर्षि शुक्ला, सदस्य।
निर्णय
    परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से सैन्डिल का मूल्य रू.450.00, आने-जाने में हुए व्यय के रूप में रू.700.00, आर्थिक क्षति के रूप में रू.2,000.00, मानिसक क्षति के रूप में रू. 10,000.00, अधिवक्ता की फीस के रूप में रू.11,000.00 तथा वाद व्यय के रूप में रू.2,000.00 कुल रू.26,350.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
    संक्षेप में परिवादी का कथन है कि परिवादी एक सैंडिल खरीदने हेतु दिनांक 30.04.2014 को विपक्षी के यहां पहुंचा। परिवादी ने जो सैन्डिल पसंद किया उसका मूल्य विपक्षी ने रू.450.00 बताया। परिवादी ने जब ध्यान से देखा तो सैंडिल के तलवे पर उसका मूल्य रू.249.00 अंकित था। परिवादी ने विपक्षी से पूछा कि जब सैंडिल पर मूल्य    रू.249.00 अंकित है तो वह उसका मूल्य रू.450.00 क्यों बता रहा है तो विपक्षी ने कहा कि यह सैंडिल कोरिया से आयातित है और चूंकि विदेश से मंगाये गये सामान पर तमाम तरह के कर आदि अदा करने 

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होते हैं इसलिए दाम बढ़ाकर बेचना पड़ता है तथा यदि हम निर्धारित मूल्य पर बेचने लगे तो हमें घाटा हो जायेगा। विपक्षी ने परिवादी को यह भी कहा कि यदि 6 माह के अंदर सैंडिल में कोई विकृति या खराबी आती है तो विपक्षी परिवादी को नई सैंडिल देगा क्योंकि इस सैंडिल की 6 माह की गारंटी होती है। परिवादी ने विपक्षी की बातों से संतुष्ट होकर उसे रू.450.00 अदा किया और बिल की मांग की, परंतु विपक्षी ने यह कहते हुए बिल देने से मना कर दिया कि चूंकि बिल आदि देने पर सरकार को कर अदा करना पड़ता है और कागज व अभिलेख आदि के रख-रखाव का झंझट बढ़ जाता है इसलिए वह बिल किसी भी उपभोक्ता को नहीं देता है, परंतु विपक्षी दी हुई जबान से नहीं मुकरता है तथा ग्राहक की शिकायत दूर कर देता है और ग्राहक हमेशा उससे संतुष्ट रहता है। परिवादी ने विपक्षी से कहा कि यदि 6 माह के अंदर यानि गारंटी अवधि के दौरान अगर सैंडिल में कोई खराबी आती है तो परिवादी बिना किसी रसीद आदि के यदि विपक्षी के पास अपनी शिकायत लेकर आता है और यदि विपक्षी ने उस समय मना कर दिया तो परिवादी के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा जिस पर विपक्षी ने अपने विजिटिंग कार्ड के पीछे की गयी खरीद का विवरण लिख कर तथा अपने हस्ताक्षर करके परिवादी को दे दिया और कहा कि इसी को बिल समझ कर रखिये और यदि 6 माह के अंदर यानि गारंटी अवधि के दौरान अगर सैंडिल में कोई खराबी आती है तो उसे पुरानी सैंडिल बदल कर नई दे दी जायेगी। विपक्षी के उपरोक्त आश्वासन पर तथा हस्ताक्षरित विजिटिंग कार्ड देने पर परिवादी सैंडिल लेकर घर चला आया और उसका इस्तेमाल करने लगा। विपक्षी के यहां से खरीदी गयी सैंडिल की गुणवत्ता इतनी निम्न थी कि मात्र 4 दिन इस्तेमाल करने के बाद ही उसका सोल उखड़ गया। परिवादी दिनांक 15.05.2014 को जब सैंडिल बदलवाने हेतु विपक्षी के यहां गया तो विपक्षी ने सैंडिल बदलने से मना कर दिया और कहा कि वह केवल सैंडिल की मरम्मत करवा सकता है। परिवादी ने विपक्षी से बहुत निवेदन किया कि वह उसकी सैंडिल बदल दे, परंतु वह नहीं माना तब परिवादी सैंडिल की मरम्मत ही करवाने को सहमत हो गया जिस पर विपक्षी ने सैंडिल अपनी दुकान में रखवाकर परिवादी को अगले दिन आने को कहा। विपक्षी ने परिवादी को एक सप्ताह तक दौड़ाया और 

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उसने परिवादी को न ही सैंडिल बदल कर दी और न ही सैंडिल की मरम्मत ही करवाई। परिवादी ने दिनांक 23.05.2014 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी को एक रजिस्टर्ड विधिक नोटिस भेजी, परंतु परिवादी को न तो क्षतिपूर्ति का भुगतान किया गया और न ही कोई उत्तर प्रेषित किया जो विपक्षी द्वारा की गयी सेवा मंे कमी का द्योतक है। अतः परिवादी द्वारा यह परिवाद विपक्षी से सैन्डिल का मूल्य रू.450.00, आने-जाने में हुए व्यय के रूप में रू.700.00, आर्थिक क्षति के रूप में रू.2,000.00, मानिसक क्षति के रूप में रू. 10,000.00, अधिवक्ता की फीस के रूप में रू.11,000.00 तथा वाद व्यय के रूप में रू.2,000.00 कुल रू.26,350.00 मय 18 प्रतिशत ब्याज दिलाने हेतु प्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत किया गया है।
    विपक्षी को रजिस्टर्ड नोटिस भेजी गयी, परंतु कोई उपस्थित नहीं हुआ, अतः उनके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही आदेश दिनांक 08.09.2014 द्वारा की गयी।
    परिवादी की ओर से अपना शपथ पत्र मय 2 संलग्नक तथा ओरिजनल विजिटिंग कार्ड भी दाखिल किया गया। 
    परिवादी की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं था। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
    इस प्रकरण में परिवादी एक सैंडिल खरीदने दिनांक 30.04.2014 को विपक्षी के यहां पहुंचा जहां उसे रू.450.00 की सैंडिल पसंद आयी जबकि उसके तलवे पर उसका मूल्य रू.249.00 अंकित था। इस संबंध में विपक्षी से पूछने पर परिवादी को बताया गया कि यह सैंडिल कोरिया से आयातित है और विदेश से मंगाये गये सामान पर तमाम तरह के कर आदि अदा करने पड़ते हैं अतः उसे दाम बढ़ाकर बेचना पड़ता है। परिवादी को विपक्षी ने यह भी बताया कि इस सैंडिल पर 6 माह की गारंटी है और यदि कोई परेशानी इस सैंडिल में 6 माह में आती है तो वह इसे बदलकर नयी सैंडिल देगा जिस पर परिवादी ने उक्त सैंडिल रू.450.00 में खरीद ली, परंतु विपक्षी द्वारा बिल नहीं दिया गया और इस संबंध में पूछने पर बताया गया कि वह बिल नहीं दे सकता क्योंकि बिल देने पर कर अदा करना पड़ता है और कागज व अभिलेख आदि के रख-रखाव का झंझट बढ़ जाता है जिस पर परिवादी ने कहा कि अगर सैंडिल में कोई खराबी आ गयी और उसके पास बिल भी नहीं 

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होगा तो उसके पास कोई विकल्प नहीं बचेगा तब विपक्षी ने अपने विजिटिंग कार्ड के पीछे की गयी खरीद का विवरण लिखकर तथा अपने हस्ताक्षर करके दे दिया और कहा कि इसी को बिल समझ कर वह रखे। मात्र 4 दिन इस्तेमाल करने के बाद उपरोक्त सैंडिल का सोल उखड़ गया। परिवादी दिनांक 15.05.2014 को सैंडिल बदलवाने के लिए विपक्षी के पास गया तो विपक्षी ने मना कर दिया और कहा कि वह केवल सैंडिल की मरम्मत करवा सकता है तब परिवादी ने मरम्मत के लिए सैंडिल विपक्षी के यहां छोड़ दी। इसके पश्चात् परिवादी को विपक्षी ने एक सप्ताह तक दौड़ाया और परिवादी को न ही सैंडिल बदलकर दी और न ही उसकी मरम्मत करायी। परिवादी द्वारा विपक्षी द्वारा दिये गये ओरजिनल विजिटिंग कार्ड को दाखिल किया गया है जिसके पृष्ठ भाग में एक सैंडिल साइज 7 रू.450.00 अंकित होने के साथ-साथ 6 माह वारंटी तिथि 30.04.2014 सहित अंकित है। परिवादी का यह कथन है कि कोई रसीद न देकर यह विजिटिंग कार्ड यह कहकर दिया गया था कि इसी को बिल समझकर वह रखे और यदि 6 माह में कोई खराबी सैंडिल में आती है तो उसे बदलकर नयी सैंडिल दी जाएगी। उक्त विजिटिंग कार्ड से स्पष्ट है कि परिवादी ने विपक्षी के यहां से एक सैंडिल दिनांक 30.04.2014 को रू.450.00 में खरीदा था जिस पर 6 माह की वारंटी थी। परिवादी की ओर से संलग्नक सं0 2 के रूप मंे विधिक नोटिस की प्रति दाखिल की गयी है जिससे स्पष्ट होता है कि उसके द्वारा दिनांक 23.05.2014 को एक नोटिस विपक्षी को दी गयी थी। फोरम में परिवाद दायर होने के उपरांत विपक्षी को रजिस्टर्ड नोटिस भेजी गयी, परंतु कोई उपस्थित नहीं हुआ, अतः उनके विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही आदेश दिनांक 08.09.2014 द्वारा की गयी। परिवादी की ओर से अपना शपथ पत्र दाखिल करके परिवाद के कथनों का समर्थन किया गया है। विपक्षी की ओर से न तो कोई उपस्थित हुआ न लिखित कथन दाखिल किया गया और न ही प्रति शपथ पत्र दाखिल करके परिवादी के कथनों का खंडन किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा दाखिल अभिलेखों एवं शपथ पत्र पर कहे गये कथनों पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। अतः यह स्पष्ट है कि विपक्षी द्वारा एक खराब सैंडिल परिवादी को विक्रय की गयी और उसकी मरम्मत भी नहीं की गयी। इसके अतिरिक्त विपक्षी 

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द्वारा सैंडिल पर अंकित कीमत से अधिक कीमत भी वसूल की गई। इसके अतिरिक्त विपक्षी द्वारा परिवादी को कोई बिल भी नहीं दिया गया और बिल न देने का जो कारण दर्शाया गया है वह पूर्णतः गलत था। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विपक्षी द्वारा न केवल अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनायी गयी, अपितु उसके द्वारा सेवा में कमी भी की गयी। परिणामस्वरूप, परिवादी विपक्षी से सैंडिल का मूल्य मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकरी है। साथ ही इस संबंध में उसे जो मानसिक एवं शारीरिक कष्ट हुआ है उसके लिए वह क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय भी प्राप्त करने का अधिकारी है।
आदेश
    परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को रू.450.00 (रूपये चार सौ पचास) मय 9 प्रतिशत ब्याज परिवाद दाखिल करने की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक अदा करें।
साथ ही विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू.2,000.00 (रूपये दो हजार मात्र) तथा वाद व्यय के रूप में रू.2,000.00 (रूपये दो हजार मात्र) भी अदा करें।
    विपक्षी उपरोक्त आदेश का अनुपालन एक माह में करें।

(राजर्षि शुक्ला)        (अंजू अवस्थी)            (विजय वर्मा)
    सदस्य                सदस्य                अध्यक्ष

दिनांकः  7 दिसम्बर,    2015    

 
 
[HON'BLE MR. Vijai Varma]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Rajarshi Shukla]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Anju Awasthy]
MEMBER

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