(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2654/2006
The Oriental Insurance Company, Through its Deputy General Manager,
Versus
Nem Singh, aged about not known & others
Both respondent no 1 & 2 are sons of Late Sri Sadhan Singh
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री ए0के0 सिंह, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री आर0के0 मिश्रा, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :05.02.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-223/2003, नेम सिंह व अन्य बनाम दि ओरियण्टल इं0कं0लि0 में विद्वान जिला आयोग, मैनपुरी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 21.07.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. जिला उपभोक्ता मंच ने बीमित वाहन की चोरी होने पर बीमित मूल्य अदा करने का आदेश अपीलार्थी बीमा कम्पनी के विरूद्ध पारित किया है।
3. अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि जिस वाहन का बीमा किया गया था, वह वाहन सं0 यू0पी0 75 सीबी-6586 तीन व्यक्तियों के नाम पंजीकृत था। ट्रैक्टर चोरी होने के पश्चात साधन सिंह के वारिसों द्वारा उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया, जबकि सभी संयुक्त ट्रैक्टर मालिकों के लिए बीमा पॉलिसी जारी की गयी थी। विद्धान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि वाहन 1998 में क्रय किया गया था, जबकि चोरी दिनांक 13.10.2001 में हुआ है, इसलिए वाहन का प्रयोग करने के कारण मूल्य में जो ह्रास हुआ है, उसकी कटौती के पश्चात बीमा राशि अदा की जानी चाहिए।
4. उपरोक्त दोनों तर्कों में प्रथम तर्क के संबंध में इस पीठ का यह मत है कि बीमा पॉलिसी के अंतर्गत कोई भी हित लाभ प्राप्त करते हुए व्यक्ति उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत कर सकता है, इसके लिए उन सभी व्यक्तियों को पक्षकार बनाना आज्ञात्मक नहीं है, जिनका नाम बीमा पॉलिसी में अंकित है यद्यपि शेष व्यक्तियों को बीमा पॉलिसी के अंतर्गत प्राप्त होने वाले लाभ में अपना शेयर सक्षम न्यायालय के माध्यम से प्राप्त करने का अधिकार सुरक्षित रहेगा, परंतु उनके द्वारा बीमा पॉलिसी से स्वतंत्र रूप से किसी अन्य उपभोक्ता परिवाद को प्रस्तुत करते हुए क्लेम प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा, इसलिए इस तर्क में वैधानिक बल नहीं है कि बीमाधारक मे से किसी एक की वारिसों द्वारा उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है या बीमा क्लेम देय नहीं है।
5. अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि वर्ष 1998 में क्रय किये गये ट्रैक्टर का प्रयोग तीन वर्षों तक किया जा चुका है। 2001 में यह ट्रैक्टर चोरी हुआ, इसलिए 15 प्रतिशत ह्रास मूल्य की कटौती किया जाना उचित है तदनुसार बीमा राशि अंकन 2,40,000/-रू0 में से 15 प्रतिशत कटौती करने के पश्चात अवशेष राशि 2,04,000/-रू0 बतौर क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश देना उचित है। इसी प्रकार ब्याज 09 प्रतिशत के स्थान पर 07 प्रतिशत किया जाना उचित है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि अपीलार्थी, बीमा राशि अंकन 2,40,000/- में से 15 प्रतिशत कटौती करने के पश्चात अवशेष राशि अंकन 2,04,000/-रू0 बतौर क्षतिपूर्ति परिवादी को अदा करे एवं ब्याज की देयता 09 प्रतिशत के स्थान पर 07 प्रतिशत की दर से देय होगी।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3