राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
अपील सं0- 1850/2017
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद सं0- 542/2013 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 26.05.2006 के विरुद्ध)
My Car (Pvt.) Ltd. 84/54-C, Jareeb Chauki, G.T. Road, Kanpur Nagar, Through its Attorney Holder Mr. S.S. Chauhan.
…….Appellant
Versus
1. Neha Chaurasia W/o Shri Raj Chaurasia, R/o New Malhpur, Near Ring Road, Dubagga, Thakurganj, Lucknow.
2. M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd. Through its Managing Director Mr. Gurjeet Singh Alias Lucky, R/o 4/38, Vipul Khand, Gomti Nagar, Lucknow.
3. M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd. Through its Diamond Mr. Satyendra Kumar Yadav Alias Guddu Working in M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd., Sindhu Nagar, Krishna Nagar, Lucknow.
4. . M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd. Through its Director club Member, P. Sagar Working in M/s . M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd., Sindhu Nagar Krishna Nagar, Lucknow.
5. . M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd. Through its C.E.O. Madhumita Kaur Alias Rani Kaur R/o A-2, Tyagi Vihar, A.W.H.O., Lucknow.
6. M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd. Through its Country Head Prem Kumar Singh Working in M/s Vcare Multitrade Pvt. Ltd. Sindhu Nagar, Krishna Nagar, Lucknow.
……Respondents
समक्ष:-
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्हा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : श्री संजय कुमार कुन्तल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण सं0- 2 लगायत 6 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 03.04.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 542/2013 नेहा चौरसिया बनाम विक्रय प्रबंधक, माई कार प्रा0लि0 एवं पांच अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 26.05.2016 के विरुद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0- 1 को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से चार सप्ताह के अंदर परिवादिनी को प्रश्नगत वाहन के कागजात व आर0सी0 मूल रूप में हस्तगत करवायें। इसके अतिरिक्त विपक्षी सं0- 1 से 6 संयुक्त एवं एकल रूप में परिवादिनी को मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु रू0 30,000/- तथा रू0 5,000/- वाद व्यय स्वरूप उक्त अवधि में अदा करेंगे।‘’
3. परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 ता 5 ने सिंधु नगर कृष्णा नगर, लखनऊ में स्थित मकान में वी0 केयर मल्टी ट्रेड प्रा0लि0 कम्पनी खोला, जिसके अंतर्गत लोगों से एकमुश्त रूपया जमा कराकर अपनी कम्पनी का सदस्य बनाया और कहा कि तीन सदस्य और बनाइये तो आपको कार व घर दिया जायेगा जिसके लिए कुछ रूपया और जमा करना पड़ेगा तथा जो धनराशि कम्पनी में जमा किया है वह ब्याज सहित वापस कर दी जायेगी। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 के कहने पर रू0 21,000/- स्वयं जमा किये तथा तीन अन्य लोगों से इक्कीस-इक्कीस हजार रू0 जमा कराये व पुन: परिवाद के विपक्षीगण ने 6 सदस्यगण से इक्कीस-इक्कीस हजार रू0 जमा करवाये, जिस पर कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को एल0एक्स0आई0आर0एफ0 310 कार देने के लिए कहा गया। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को कम्पनी द्वारा दी जाने वाली कार पसंद नहीं थी उसे अल्टो के-10 एल0एक्स0आई0 कार पसंद थी, जिसके लिए प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने रू0 1,04,295/- नकद दि0 19.03.2012 को कम्पनी में जमा कर दिया, जिसके अंतर्गत अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा दि0 03.05.2012 को उक्त कार की डिलीवरी दी। कार के साथ प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को मेंटीनेंस सर्विस रिकार्ड की कॉपी एवं नेशनल इंश्योरेंस सार्टीफिकेट कम पॉलिसी स्कीम की कॉपी दी गई। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को कार की आर0सी0 व अन्य कागजात नहीं दिए गए और यह कहा गया कि उक्त कागजात डाक द्वारा आठ-दस दिन में भेज दिए जायेंगे, लेकिन न तो प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि ही वापस की गई और न ही उक्त दी गई कार की आर0सी0 व अन्य कागजात ही वापस किए गए, जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने परिवाद प्रस्तुत किया।
4. अपीलार्थी/विपक्षीगण को जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा नोटिस प्रेषित की गई थी, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया और न ही उनकी ओर से कोई वादोत्तर दाखिल किया गया। अत: दि0 18.04.2015 को परिवाद के विपक्षीगण के विरुद्ध एकपक्षीय कार्यवाही आरम्भ की गई।
5. अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 द्वारा अपील में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का यह आक्षेप है कि प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 लगायत 5 मै0 वीकेयर मल्टीट्रेड प्रा0लि0 द्वारा यह प्रचारित किया गया था कि जो व्यक्ति 21,000/-रू0 जमा करेंगे कम्पनी का सदस्य बनेगा और इसके उपरांत वह तीन अन्य सदस्य बनवाता है तो उसे एक कार उपहार में दी जायेगी तथा सदस्य एक मकान अन्य भुगतान करने पर प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त उक्त धनराशि ब्याज सहित वापस ली जा सकती है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के अनुसार उसने शर्तों के अनुसार सदस्य बनवाये तथा एक मारूति अल्टो K-10LXI पसंद की और रू0 1,04,295/- जमा किए, किन्तु प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को कार का पंजीयन प्रमाण पत्र तथा अन्य दस्तावेज नहीं मिले, जिस आधार पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के अनुसार प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 ता 5 के अधिकारियों द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 से सम्पर्क करके अपनी कम्पनी के सदस्यगण को मारूति कार सप्लाई करने का अनुबंध किया। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने उस अनुबंध के तहत 52 गाडि़यों की प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 ता 5 को सप्लाई की जा सके, लेकिन कम्पनी ने उसे मूल्य का चेक प्रदान किया जो अनादृत हो गया, जिसके सम्बन्ध में प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 लगायत 5 के डायरेक्टर श्री गुरुजीत सिंह तथा श्रीमती मधुमिता कौर एवं सी0ई0ओ0, पी0पी0 सिंह के विरुद्ध दि0 28.01.2013 को थाना सीसामऊ, कानपुर नगर में उसके द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज करायी गई। परिवाद के स्तर पर अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 को कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई थी। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का यह भी कथन है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने कोई भी संव्यवहार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के साथ नहीं किया था, इसलिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(डी) के प्रकाश में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का उपभोक्ता नहीं माना जा सकता है, क्योंकि अपीलार्थी/ परिवाद के विपक्षी द्वारा प्रतिफल के बदले कोई भी सेवा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को प्रदान नहीं की गई थी। स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 ता 5 के साथ हुए करार के अनुसार प्रतिफल के बदले गाडि़यों की सप्लाई करने का अनुबन्ध किया था। स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 को ही उन सप्लाई की गई गाडि़यों का मूल्य नहीं मिला है। स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के विरुद्ध प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का कोई वाद का कारण नहीं बनता है, न ही प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी उसकी उपभोक्ता है। अत: प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के विरुद्ध गलत प्रकार से पारित किया गया है जो अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के विरुद्ध अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
6. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा एवं प्रत्यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्ता श्री संजय कुमार कुन्तल को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
7. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 और परिवादिनी/प्रत्यर्थी सं0- 1 के मध्य कोई करार नहीं हुआ था, न ही उसने प्रतिफल के बदले प्रश्नगत वाहन प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को दिया था अथवा कोई सेवा प्रतिफल के बदले दी थी। स्वयं प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र के प्रस्तर 1 में अपने तथ्य को स्वीकार किया है कि ‘’प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 लगायत 5 सिंधु नगर कृष्णा नगर, लखनऊ में स्थित मकान में Vcare Multitrade Pvt. Ltd को खोला, जिसके अंतर्गत लोगों से एकमुश्त रूपया जमा कर अपनी कम्पनी का मेम्बर बनाया तथा साथ ही यह कहा कि तीन मेम्बर और बनाइये तो आपको कार व घर दिया जायेगा................। यह कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 के कहने पर 2100/-रू0 जमा किए तथा तीन अन्य लोगों से इक्कीस-इक्कीस सौ रूपये जमा करवाया’’। इस प्रकार प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने अपना तथा प्रत्यर्थीगण सं0- 2 व 3/विपक्षीगण सं0- 2 व 3 के मध्य करार होना दर्शाया है एवं स्वीकार्य रूप में अपने अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 माई कार प्रा0लि0 के साथ कोई करार होना नहीं दर्शाया है। धारा 2(i)(d) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता - सेवा प्रदाता अथवा उपभोक्ता – व्यापारी का सम्बन्ध तभी स्थापित होता है जब कि प्रतिफल के बदले विपक्षी से परिवादी या तो माल खरीदता है अथवा सेवा प्राप्त करता है। ऐसा कोई कार्य अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 एवं प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के मध्य नहीं हुआ है अथवा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी तथा अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के सम्बन्ध स्थापित नहीं हैं।
8. जहां तक अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 एवं प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 के मध्य की संविदा का प्रश्न है, इसके सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का अस्तित्व वितरक के रूप में है। धारा 2(1)(थ) के अनुसार व्यापारी की श्रेणी में इस अधिनियम के अंतर्गत वितरक भी आता है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से यह तर्क दिया गया कि वितरक के रूप में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 माई कार प्रा0लि0 का उत्तरदायित्व बनता है। इस तर्क के सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 माई कार तथा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के वास्तविक सेवा प्रदाता/व्यापारी के मध्य की संविदा का अवलोकन किया गया। इस संविदा की प्रतिलिपि अभिलेख पर है। यह दि0 12.06.2006 को कानपुर में निष्पादित संविदा है जिसके अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 के ग्राहकों को उनके द्वारा दिए जाने वाले प्रतिफल के बदले में वाहन/कार सप्लाई करने की संविदा की है, किन्तु यह संविदा स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के अनुसार पूर्ण नहीं हुई, क्योंकि संविदा के दूसरे पक्ष प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 की ओर से संविदा का पूर्ण भाग प्रतिफल देकर पूरा नहीं किया गया। अत: इस संविदा के सम्बन्ध में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का कोई उत्तरदायित्व आरम्भ में प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 5/विपक्षीगण सं0- 2 ता 5 के विरुद्ध वितरक के रूप में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के लिए नहीं बनता है। इस सम्बन्ध में भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 51 यह प्रदान करती है कि यदि किसी संविदा में एक पक्ष द्वारा अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं किया गया है तो दूसरा पक्ष संविदा का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है और अपने उत्तरदायित्व से उन्मोचित हो जाता है।
9. अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 की ओर से प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 के विरुद्ध पुलिस थाना सीसामऊ, कानपुर नगर में प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 के विरुद्ध दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांकित 28.01.2013 अभिलेख पर है जिसमें प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 पर यह अभियोग लगाया गया है कि उन्होंने अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 से 52 कारें प्राप्त करके प्रतिफल नहीं दिया और इस प्रकार उनके साथ धोखाधड़ी की है। इस प्रथम सूचना रिपोर्ट से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 के विरुद्ध धोखाधड़ी एवं पैसा हड़प जाने का अभियोग लगाया गया है तथा अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 को कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ है। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के साथ हुई संविदा प्रतिफल के अभाव में शून्य होने के साथ-साथ अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का कोई उत्तरदायित्व इस संविदा के लाभार्थी के प्रति नहीं बनता है। दूसरी ओर मामला छल एवं धोखाधड़ी पर आधारित है जिसका दाण्डिक मामला दर्ज हो चुका है। अत: इस स्तर पर अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के विरुद्ध परिवाद पोषणीय नहीं है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को प्रत्यर्थीगण सं0- 2 ता 6/विपक्षीगण सं0- 2 ता 6 के विरुद्ध संविदा का अनुपालन करने तथा उपभोक्ता एवं सेवाप्रदाता के रूप में अनुतोष प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है, किन्तु उपरोक्त विवेचन के आधार पर अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 के विरुद्ध अनुतोष प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। जिला उपभोक्ता आयोग ने अन्य प्रत्यर्थीगण जिनसे प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की संविदा हुई थी उनको उन्मुक्त करते हुए अपीलार्थी अर्थात विपक्षी सं0- 1 के विरुद्ध परिवाद स्वीकार किया है और अनुतोष प्रदान किया है जो अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 एवं प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के मध्य उपरोक्त कारणों से अनुमन्य नहीं है। अत: प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
10. अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार अपीलार्थी को वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(विकास सक्सेना) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-2